हज़रत बहादुर शहीद के दर से फ़ैज़ उठाकर लौटें जायरीन
फिर आएंगे अगली बार, तब तक अलविदा बहादुर शहीद बाबा...
Varanasi (dil India live). किसी शायर ने क्या खूब लिखा है ''कोई हिंदू न मुसलमां न ईसाई है, गुलशन-ए-हिंद में मिलजुल कर बहार आई है...'' शायर के अशरार की तस्दीक हुई हज़रत बाबा बहादुर शहीद रहमतुल्लाह अलैह के उर्स में के दौरान। हजरत सैयद बाबा बहादुर शहीद रहमतुल्लाह अलैह के कैंटोनमेंट स्थित आस्ताने पर उर्स के दौरान धर्म और मजहब की दीवारे टूटती दिखाई दी। क्या हिंदू क्या मुस्लिम, सभी मजहब के लोग बाबा के दर पर मन्नते और मुराद मांगते दिखाई दिए। दो दिनी उर्स में पहले रोज़ उलेमाओं ने नबी की जिंदगी और औलिया-ए- कराम के करामत पर रोशनी डाली, बाबा का दर नज़्म और हमदो सना से गूंज रहा था, नातिया शायर कलाम पेश करते नजर आए. इस दौरान चादर गागर का नजराना पेश किया गया। शाम में मगरिब की नमाज के बाद समीउल्लाह बाबू भाई के आवास से सरकारी चादर का जुलूस निकला जो अपने परम्परागत रास्तों से होते हुए बाबा के दर पर पहुंचा, जहां लोगों ने अकीदत और एहतराम के साथ बाबा की चादरपोशी की। इस दौरान दोनों मज़हब के लोग इस तरह घुले मिले थे कि यह पहचान करना मुश्किल था कि कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान? शनिवार को उर्स सम्पन्न होने का ऐलान अम्न और सौहार्द की सदाओं के साथ हुआ। इस दौरान तमाम जायरीन अलविदा हज़रत बहादुर शहीद...कहकर अपने घरों को लौट गए।
फैज और सुकुन पाने आते हैं अकीदतमंद
गद्दीनशी मो. सग़ोरुल्लाह खां बाबू व समीउल्लाह खां दावा करते हैं कि यह आस्ताना मिल्लत का मरकज है यहां सभी मजहब के लोग बिना किसी भेदभाव के हाजिरी लगाने उमड़ते हैं।
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