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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

khwaja gharib Nawaz का बड़ा कुल सम्पन्न, लौटने लगे जायरीन



Varanasi (dil india live). Rajasthan (राजस्थान) के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 811 वां सालाना उर्स पूरी अकीदत के साथ सम्पन्न हो गया। कल ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह के उर्स पर बड़े कुल की रस्म अदा की गई। बड़े कुल के साथ सालाना उर्स संपन्न हो गया। इसी के साथ काशी से अजमेर उर्स में जियारत करने गए बनारस के लोगों का जत्था अब अपने घरों को लौट रहा है।

इससे पहले अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह पर कल सुबह बड़ा कुल जिसे नवीं का कुल कहा जाता है सुबह आठ बजे खुद्दाम-ए-ख्वाजा ने मजार शरीफ पर कुल की रस्म अदा की और आस्ताना शरीफ के साथ दरगाह परिसर को केवड़े एवं गुलाबजल से गुसल कराया गया। इस दौरान देश में अमन चैन, खुशहाली की दुआओं में लोगों ने हाथ फैलाया।

कुल की रस्म में खुद्दाम ए ख्वाजा ने ही सभी धार्मिक क्रिया पूरी की और फातिहा के बाद खादिमों की अंजुमन की ओर से उर्स संपन्न होने का ऐलान कर दिया गया। बड़े कुल के मौके पर देश दुनिया से आए ख्वाजा के दीवानों की सकुशल घर वापसी के लिए भी दुआ की गई। इतना ही नहीं उर्स के शांतिपूर्वक एवं सफलता के साथ संपन्न होने पर सभी का शुक्रिया अदा किया गया।

पाकिस्तान के 240 जायरीन ने की जियारत 

उर्स मे शरीक होने आये पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के 240 सदस्यों का दल भी सायं अजमेर शरीफ उर्स में जियारत करने के बाद रवाना हो गया। पाकिस्तान के दल ने दोनों देशों के बीच मोहब्बत का पैगाम दिया।

मंगलवार, 31 जनवरी 2023

Mother Halima central school में मौसिक़ी ‘आहंगे हयात’ में गायकों ने दिखाया जौहर


Varanasi (dil india live). मदर हलीमा सेंट्रल स्कूल में हुए मौसिक़ी प्रोग्राम ‘आहंगे हयात’ में कई गायक ने अपना जौहर दिखाया। हेमलता ने कई ग़ज़लें पेशकर श्रोताओं की वाहवाही लूटी। गायक प्रियांशू शिवांश, एजाज़ुल्लाह ख़ान ने अपनी प्रस्तुति से तालियाँ बटोरी। उत्कर्ष गिटार और सोमेनदास तबले पर सहभागिता की।कार्यक्रम की चीफ गेस्ट सुचरीता गुप्ता ने दर्शकों की माँग और ख़्वाहिशों को पूरा करते हुये दो बेहतरीन ग़ज़लें पढ़कर इस प्रोग्राम को बुलन्दी बख़्शी। बनारस घराने की वरिष्ठ गायिका को सुनकर श्रोतागण अभिभूत हुये। कार्यक्रम में गेस्ट ऑफ़ ऑनर प्रोफ़ेसर आभा सक्सेना और डॉ. शबनम रहीं। मदर हलीमा फ़ाउंडेशन के प्रबंधक नोमान हसन ने आगंतुकों का स्वागत किया। डॉ शबनम ने  विदुषी सुचारिता गुप्ता पर स्वलिखित पुस्तक मदर हलीमा लाइब्रेरी को भेंट की जबकि ख़ूबसूरत संचालन इमरान हसन ख़ान ने किया। कार्यक्रम का संयोजन शालिनी सिंह, अबुज़र सिद्दीक़ी, और मनीषा ने किया।

इस मौक़े पर उर्दू साहित्यकार अब्दुस्समी के अतिरिक्त अश्फ़ाक अहमद, मक़सूद ख़ान, इरफ़ान हसन, रिज़वान हसन, डॉ खन्ना, नीता चौबे, डॉ फ़ैज़ान, ख़ुर्शीद आलम, इंतिसाब आलम, एकराम, सैयद अरशद, क़मरूद्दीन, आसिफ़ अली, सुबहान हसन के साथ ग़ज़ल के शौक़ीन पुरुष महिलाएँ बड़ी संख्या में मौजूद रहीं।

रविवार, 29 जनवरी 2023

Khwaja ka urs: Ajmer Sharif से Kashi तक धूम

बनारस कि गलियों में गूंज रहा ख़्वाजा, मेरे ख़्वाजा... 

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का 811वां उर्स 

अजमेर में जियारत के लिए उमड़ी अकीदतमंदों की भीड़

काशी में दिखी गंगा जमुनी तहज़ीब

Mohd Rizwan 

Varanasi (dil india live) हिंदल वली, सूफी संत, ख्वाजा हज़रत मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह (सरकार गरीब नवाज़) के 811 वें उर्स पर Ajmer Sharif से लेकर Kashi तक आस्था का सैलाब देखने को मिल रहा है। क्या कोई हिंदू, क्या मुस्लिम, क्या गोरा, क्या काला, सभी ख्वाजा की मोहब्बत में सर झुकाएं अजमेर शरीफ दरगाह में उमड़े हुए हैं। जो Ajmer Sharif नहीं जा सका, वो जहां भी है वहां से ख्वाजा साहब को याद कर रहा है। जायरीन की भीड़ में कई देशों के अकीदतमंदों का हुजूम शामिल है। दरगाह में छह रजब पर आज कुल की रस्म अदा की गई। काशी में जहां ख्वाजा के दीवानों ने घरों में फातेहा करायी वहीं जगह जगह कुल शरीफ व लंगर का आयोजन भी किया गया है। इस दौरान सूफियाना कलाम फिजा में गूंज रहा है।

अजमेर शरीफ दरगाह में ख्वाजा गरीब नवाज के सालाना उर्स के मौके पर हाजिरी देने के लिए देश के कोने-कोने से लाखों जायरीन अजमेर आए हुए हैं। ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में अकीदतमंदों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। दरगाह परिसर जायरीन से खचाखच भरा रहा। सुबह से ही बड़ी संख्या में जियारत के लिए जायरीन का आना जाना लगा रहा।

कुल शरीफ की रस्म में जुटे जायरीन 

रजब के चांद की छह तारीख को ख्वाजा गरीब नवाज की छठी आज अकीदत वह एहतराम के साथ मनाई गई। इस दिन ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स की अहम रवायत (परंपरागत रस्म) निभाई जाती है जिसे छोटे कुल की रस्म कहा जाता है। रविवार को कुल की रस्म अदा की गई। मजार शरीफ को गुसल दिया गया। इसके बाद दरगाह को केवड़े और गुलाब जल से धोया गया। इस अहम रवायत को दरगाह के ख़ादिम आस्ताने में निभा रहे थे। खादिम कुतुबुद्दीन सखी ने बताया कि रजब के चांद की 9 तारीख यानी 1 फरवरी को बड़े कुल की रस्म अदा की जाएगी। मजार शरीफ को गुसल देने के बाद इस दिन पूरी दरगाह को धोया जाएगा।

इससे पहले शनिवार शाम को रोशनी की दुआ के एक घंटे बाद से ही दरगाह को केवड़े और गुलाब जल से धोना शुरू कर दिया गया था। दरगाह की दीवारों पर केवड़े और गुलाब जल का छिड़काव करने के बाद जायरीन दीवारों से टपकते पानी को बोतलों में भरकर साथ ले गए।

दरअसल उर्स के मौके पर जायरीन कई साधनों से अजमेर आते हैं। इनमें बड़ी संख्या में ट्रेन से सफर कर आने वाले होते हैं। ऐसे में उन जायरीन को वापस भी लौटना होता है। जो छठी को छोटे कुल की रस्म तक नहीं रुक पाते हैं। वह एक दिन पहले ही दरगाह को केवड़े और गुलाब जल से धोना शुरू कर देते हैं। देर रात तक यह सिलसिला जारी रहता है।

गुरुवार, 19 जनवरी 2023

Khwaja gharib Nawaz k dar par pesh hogi Tiranga chadar

महबूबे इलाही हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के दर पर भी चढ़ेगी तिंरगा चादर




Varanasi (dil india live). मास्जिद लाठ सरैया स्थित हज़रत मखदूम शाह बाबा रहमतुल्लाह अलैह के आस्ताने पर Khwaja gharib nawaz (ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह) को चढ़ायी जाने वाली तिरंगे चादर को अकीदतमंदों के दीदार के लिए खोली गई। ये तिरंगी चादर पीछले 30 वर्षो से ख्वाजा गरीब नवाज कमेटी वाराणसी के अध्यक्ष वकील अहमद और उपाध्यक्ष शेख रमजान अली के नेतृत्व में लगातार अजमेर शरीफ जा रही है । इस मौके पर जलालीपुरा के पार्षद हाजी ओकास अंसारी ने बताया की ख्वाजा गरीब नवाज साहब को ये तिरंगा चादर वकील अहमद और रमजान अहमद के नेतृत्व में पिछले 30 वर्षो से एक जत्था काशी से अजमेर शरीफ जाता है और इस साल के उर्स मुबारक पर 25 अकीदतमंदों का ये जत्था 23 जनवरी को बनारस रेलवे स्टेशन से ट्रेन से  रवाना होगा। ये जत्था पहले दिल्ली जायेगा जहा एक तिरंगा चादर  हजरत निजामुद्दीन शाह औलिया के दरगाह पर चढ़ाया जायेगा उसके बाद ये जत्था अजमेर शरीफ के लिए रवाना हो जायेगा जहां 29/01/23 के छठीं के कुल पर चढ़ाया जायेगा, इसके बाद दुआ खानि होगी जिसमे मुल्क की तरक्की कारोबार में बरक्कत केलिए और मुल्क में अमान अमान और भाई चरागी  कायम रहे  उसके लिए दुआ करेंगे और उसके बाद नौ का कुल करने के बाद ये जत्था 2 फरवरी को वापस लौटेगी।

इस मौके पर हाजी ओकास अंसारी, दुर्गा प्रसाद गुप्ता, मन्नू गुप्ता, वकील अहमद, शेख रमजान अली, मोहम्मद महतो, शहाबुद्दीन, रमजान अली, विपिन पाल, मंगलेश सिंह, डा. मुख्तार अहमद, नेसार अहमद, नियाज़, अब्दुल मतीन आदि लोग मोजूद थे।

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

Karbala ki kahani: हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन

...इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद


Varanasi (dil india live). 

इंसान को बेदार तो हो लेने दो हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन...।

मजहबे इस्लाम को दुनिया में फैलाने के लिए, पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ने जितनी कुर्बानियाँ दीं, उसे उनके नवासे हजरत इमाम हसन, हज़रत इमाम हुसैन ने कभी फीका नहीं पड़ने दिया, बल्कि नाना के दीने इस्लाम को बचाने के लिए अपने साथ अपने कुनबे को भी कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया।

इस्लाम की बुनियाद के लगभग 50 साल बाद दुनिया में जुल्म का दौर अपने शबाब पर था। मक्का से दूर सीरिया के गर्वनर य़जीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, उसके काम करने का तरीका तानाशाहों जैसा था, जो इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ था। उस दौर के तमाम लोग उसके सामने झुक गए, वो चाहता था कि नबी के नवासे हजरत इमाम हुसैन भी उसकी बैयत (अधिनता) करें मगर हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम के खिलाफ काम करने वाले य़जीद को खलीफा मानने से इन्कार कर दिया। इससे नाराज य़जीद ने अपने गर्वनर वलीद विन अतुवा को फरमान लिखा और कहा कि 'तुम हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने को कहो, अगर वह नहीं माने तो उनका सिर काटकर मेरे पास भेजो।'

वलीद विन अतुवा ने इमाम हुसैन को य़जीद का फरमान सुनाया तो इमाम हुसैन बोले। 'मैं एक तानाशाह, मजलूम पर जुल्म करने वाले और अल्लाह-रसूल को न मानने वाले य़जीद की बेअत करने से इन्कार करता हूँ।' इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुँचे, जहाँ य़जीद ने अपनी फौज के सिपाहियों को मुसाफिर बनाकर हुसैन का कत्ल करने के लिए भेज दिया। इस बात का पता हजरत इमाम हुसैन को चल गया और खून-खराबे को रोकने के लिए हजरत इमाम हुसैन अपने कुनबे के साथ इराक चले आ गए। मुहर्रम महीने की 2 तरीख 61 हि़जरी को इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे। 

पानी पर पहरा, फिर भी हुसैन ने ह़क से मुँह न फेरा

वह 2 मुहर्रम का दिन था, जब इमाम हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान में ठहरा था। यहाँ पानी के लिए सिर्फ एक फरात नदी थी, जिस पर य़जीद की फौज ने 6 मुहर्रम से हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। य़जीद की फौज की इमाम हुसैन को झुकाने की हर कोशिश नाकाम होती रही और आखिर में जंग का ऐलान हो गया।

दुश्मन देते थे हुसैन की हिम्मत की गवाही

9 तारीख तक य़जीद की फौज को सही रास्ते पर लाने के लिए मौका देते रहे, लेकिन वह नहीं माना। इसके बाद हजरत इमाम हुसैन ने कहा 'तुम मुझे एक रात की मोहलत दो ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूँ' इस रात को ही आशूरा की रात कहा जाता है।

इस्लामिक इतिहास कहता है कि य़जीद की 80 ह़जार की फौज के सामने इमाम हुसैन के 72 जाँनिसारों ने जिस तरह जंग की, उसकी मिसाल खुद दुश्मन फौज के सिपाही एक-दूसरे को देने लगे। इमाम हुसैन ने अपने नाना और वालिद के सिखाए हुए ईमान की मजबूती और अल्लाह से बे-पनाह मोहब्बत में प्यास, दर्द, भूख और अपने 6 माह के बेटे अली असगर के साथ पूरे खानदान को खोने तक के दर्द को जीत लिया। दसवें मुहर्रम के दिन तक हुसैन अपने भाइयों और साथियों की मैयत को दफनाते रहे। लड़ते हुए जब नमाज का वक्त करीब आ गया तो उन्होंने दुश्मन फौज से अस्र की नमाज अदा करने का वक्त माँगा। यही वक्त था जब इमाम हुसैन सजदे में झुके तो दुश्मन ने धोखे से उन पर वार कर उन्हें शहीद कर दिया। मक्का में इमाम हुसैन की शहादत की खबर फैली तो हर तरफ मातम छा गया। दुनिया ने सोचा कर्बला के बाद इस्लाम खत्म हो जाएगा, इमाम हुसैन के नाना के दीन और धर्म का कोई नामोनिशान नहीं होगा मगर हुआ इसका ठीक उल्टा। कर्बला के बाद इस्लाम न सिर्फ जिन्दा हो गया बल्कि समूची दुनिया में फैल गया। आज इमाम हुसैन और शहीदाने कर्बला का नाम लेने वाला पूरी दुनिया में है मगर यजीद का कोई नाम लेवा नहीं है तभी तो कहा गया है, इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद...।

Christmas celebrations में पहुंचे वेटिकन राजदूत महाधर्माध्यक्ष लियोपोस्दो जिरोली

बोले, सभी धर्म का उद्देश्य विश्व मानवता का कल्याण एवं आशा का संदेश देना Varanasi (dil India live). आज वैज्ञानिक सुविधाओं से संपन्न मानव धरती...