गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग में संरक्षित है गुरु का चोला
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर साहिब का काशी से गहरा नाता रहा है। यही वजह है की वो यहां लम्बे समय तक ठहरे थे और जाते वक्त भक्तों को अपना वस्त्र (चोला) दे गये। सरदार हरजिंदर सिंह राजपूत बताते हैं कि जब भक्तों ने कहा आपका दर्शन कैसे होगा तब नवें पातशाह ने अपना चोला दे कर कहा था कि इसे देखकर मेरा दर्शन होगा।
आज भी गुरु तेग बहादुर साहिब का बेशकिमती चोला गुरुद्वारे में संरक्षित है। जब गुरु तेग बहादुर यहां आए थे तो गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग में ही उन्होंने सात महीने 13 दिन तप किया था। जाते समय मखमली चोला कुर्ता निशानियां और चरण पादुका छोड़कर चले गये थे। जो आज भी गुरुद्वारे में संरक्षित है। इसके दर्शन के लिए लोगों का हुजूम उमड़ता हैं। यही नहीं यहां दसवें पातशाह गुरु गोविन्द सिंह के बाल्यकाल के भी वस्त्र मौजूद हैं।
भाई धर्मवीर सिंह कहते हैं कि गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग में उन्होंने सात महीने 13 दिन साधना की थी। उनकी साधना से प्रसन्न होकर मां गंगा उनके पास आ गई थीं। आज भी उस जल के सेवन से कई रोगों से मुक्ति मिलती है। देश दुनिया के सिख समाज के लोग जब गुरुद्वारा नीचीबाग आते हैं तो यहां पानी जरूर पीते हैं। गुरुद्वारे के सहायक ग्रंथी भाई धर्मवीर सिंह ने बताया कि गुरु तेग बहादुर साहिब 356 साल पहले 1666 ई. में पंजाब से दिल्ली, आगरा, मथुरा, कानपुर, प्रयागराज, मिजार्पुर और चुनार होते काशी पहुंचे थे। जब उनके अनुयायी भाई कल्याण को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने उनके के लिए नीचीबाग स्थित अपने घर को सजाया। यहां गुरु तेग बहादुर ने सात माह 13 दिन तक श्रद्धालुओं को उपदेश दिए।
पूर्णिमा के दिन गुरु स्नान की तैयारी में थे तभी भाई कल्याण ने कहा कि आज ग्रहण का दिन है। दूर-दूर से लोग यहां गंगा स्नान को आते हैं। चलिए गंगा स्नान कर आते हैं। इस पर गुरु तेग बहादुर ने कहा कि भाई कल्याणजी अमृत बेला का समय बीतता जा रहा है। यहीं स्नान कर लेते हैं। भाई कल्याण ने विनती करते हुए कहा कि गंगा यहां से आधा मील ही दूर हैं। गुरु तेग बहादुर ने कहा कि गंगा स्नान करने क्या जाना यही गंगा को बुला लेते हैं। यह कहते ही सतगुरू ने अपने चरणों से एक पत्थर की शिला हटाई तो गंगा की निर्मल जल धारा फूट पड़ी। यह देख भाई कल्याण उनके चरणों में गिर पड़े। बाद में गुरु तेग बहादुर साहिब के जाने के बाद शानदार गुरुद्वारा नीचीबाग का निर्माण हुआ। जहां गुरु तेग बहादुर साहिब की यादें उनके चोला और जूते के तौर पर आज भी संरक्षित है।