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शनिवार, 29 जुलाई 2023

Moharram 9: घरों में हुई शहीदाने कर्बला कि फातेहा, इमाम चौकों पर बैठाती गयी ताजिया

फातेहा के बाद आकर्षक ताजिये की जियारत







Varanasi (dil India live). हज़रत इमाम हसन, हज़रत इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों कि याद में जुमे को मलीदे, शरबत और शिरनी कि मुस्लिम घरों, इमाम चौकों व इमामबाड़ों में फातेहा करायी गई। फातेहा कराने के बाद जहां लोगों में तबर्रुक तकसीम किया गया वहीं इमाम चौक और इमामबाड़ों पर अदब और एहतराम के साथ ताजिये बैठा दिए गए। ताजिया बैठते ही उसकी जियारत करने दोनों वर्ग के लोगों का हुजुम दिखाई दिया।

9 वीं मोहर्रम को इमाम चौक पर सभी ताजिया फातेहा करके बैठा दी गईं। शहर भर में इनकी जियारत के लिए भारी भीड़ उमड़ी रही। जैतपुरा की बुर्राक की ताजिया, नईसडक की पीतल की ताजिया, लल्लापुरा की रांगे की ताजिया, गौरीगंज की शीशम की ताजिया, अर्दली बाजार की जरी के साथ ही चपरखट की ताजिया, मोतीवाली ताजिया, हिंदू लहरा की ताजिया, शीशे की ताजिया, मोटे शाबान की ताजिया, काशीराज की मन्नत की ताजिया आदि प्रमुख ताजिया लोगों के आकर्षण का केंद्र रहीं। इस दौरान बच्चे आकषर्ण ताजिये के साथ सेल्फी भी लेते दिखाई दिए।

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

Muharram 2022:खूबसूरत ताजियों की यहां करें जियारत

यौमे आशूरा पर शहर भर से एक एक से एक खूबसूरत ताजियों का जुलूस इमाम चौक से कर्बला की तरफ जाता दिखाई दिया। क्या कोई हिंदू क्या मुस्लिम ताजियों की जियारत के लिए सभी अकीदतमंद पलकें बिछाए नज़र आए। ताजिया कर्बला में जाकर जहां ठंडी हुई इसकी जियारत के लिए हुजुम सड़कों पर नज़र आया। कुल मिलाकर शांतिपूर्ण ढंग से दसवीं मोहर्रम का जुलूस सम्पन्न हो गया। इससे जिला व पुलिस प्रशासन ने भी राहत की सांस ली। यहां देखें शहर की प्रमुख ताजिया...












 

Muharram10th: या हुसैन...या हुसैन... की सदाओं संग कर्बला में दफन हो रही ताजिया

कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में निकला ताजिए का जुलूस












Varanasi (dil india live). यौमे आशुरा यानी दसवीं मुहर्रम पर मंगलवार को शहर से लेकर गांव तक या हुसैन,या हुसैन... अलविदा या हुसैन... की सदाएं गूंजती रहीं। तकरीबन एक हजार से अधिक छोटे-बड़े ताजिये इमाम चौक से उठाए गए। इन ताज़िए को जुलूस की शक्ल में दरगाहें फातमान, सदर इमामबाड़ा लाट सरैया, तेलियानाला घाट व शिवाला घाट समेत ग्रामीण इलाकों की कर्बला में पहुंच कर ठंडा करने का दौर समाचार लिखे जाने तक चलता रहा। इस दौरान अलम व ताजिया के साथ फन-ए-सिपहगिरी का मुजाहिरा भी हो रहा था। शिया वर्ग के शहर भर में अर्दली बाजार, दालमंडी, बेनिया, गौरीगंज, शिवाला से निकले जुलूस में मातमी अंजुमनों ने दर्द भरे नौहों संग जोरदार मातम का नज़ारा पेश किया। 

शहर के दालमंडी, नयी सड़क, लल्लापुरा, पीलीकोठी, पठानी टोला, चौहट्टा लाल खां, बड़ी बाजार, दोषीपुरा, कज्जाकपुरा, काजी सादुल्लाहपुरा, अर्दली बाजार, नदेसर, शिवाला, गौरीगंज, बजरडीहा, साकेत नगर, हुकुलगंज आदि से निकले ताजिया के जुलूस में भारी हुजूम उमड़ा हुआ था। इस दौरान चपरखट की ताजिया, रांगे की ताजिया, पीतल की ताजिया, ज़री की ताजिया, नगीने व काठ की ताजिये के साथ लोगों का हुजूम दिखाई दिया। बोल मोहम्मदी, या हुसैन..या हुसैन व नारे तकबीर अल्लाह हो अकबर…. की सदाएं भी बुलंद होती रहीं। कोनिया में हिन्दुओं ने ताजिये को कंधा देकर पास कराया। इससे यहां गंगा जमुनी तहजीब को बल मिलता दिखाई दिया। 

रास्ते भर ताजिया और जुलूस देखने के लिए भी भारी भीड़ उमड़ी रही। अर्दली बाजार, दालमंडी, नई सड़क, मदनपुरा, बजरडीहा आदि इलाकों से ताजिया दरगाहे फातमान की ओर रवाना हुईं। यहां बुर्राक, पीतल, रांगे, शीशम, चपरखट, मोतीवाली, हिंदू लहरा आदि प्रमुख ताजिया लोगों के आकर्षण का केंद्र रहीं। तमाम जायरीन इनकी जियारत करते दिखाई दिए।

शिवाला घाट पर गौरीगंज, शिवाला, बाबा फरीद, छिपपीटोला, नवाबगंज आदि की ताजिया वह भवनिया पहुंच कर ताजिया दफन किया। ऐसे ही हनुमान फाटक, कोयला बाजार, छिततनपुरा, पठानी टोला, कोनिया आदि की ताजिया कज्जाकपुरा, जलालीपुरा होते हुए सरैया स्थित कर्बला में पहुंच कर दफ्न हुई। 

शनिवार, 6 अगस्त 2022

Ganga jamuni tahzeeb: मंदिर जैसा इमामबाड़ा

तब हिंदू कुम्हार ने बनाई थी इमाम हुसैन की ताजिया


Varanasi (dil india live). है इमामबाड़ा मगर बनावट मंदिर जैसी है। देखने वाला देखता और सोचता ही रह जाता है कि यह क्या अजूबा है, आखिर मंदिर जैसा इमामबाड़ा क्यों बनाया गया? दरअसल बनारस कि आबो हवा ही कुछ ऐसी है कि कोई मुस्लिम नूर फातेमा शिव का मंदिर बनवाती हैं, तो हिंदू कुम्हार इमाम हुसैन कि आस्था और अकीदत में इमामबाड़ा।

वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट स्थित इस अनोखे इमामबाड़े की बुनियाद की कहानी एक हिंदू कुम्हार की अकीदत से जुड़ी हुई है। कर्बला में शहीद हुए इमाम हुसैन से कुम्हार को अकीदत थी। इस मोहब्बत के कारण ही इस इमामबाड़े का नाम कुम्हार का इमामबाड़ा पड़ा। इसमें एक ओर जहां शिया मुस्लिम मजलिस करते हैं तो वहीं हिंदू हाथ जोड़कर अकीदत से फूल चढ़ाते हैं। शहर ही नहीं बल्कि दुनिया का लगभग हर इमामबाड़ा गुंबदनुमा होता है, जो मस्जिद या मकबरे की सूरत में नजर आता है। वहीं हरिश्चंद्र घाट के कुम्हार का इमामबाड़ा मंदिर की तरह दिखता है। मुहर्रम आते ही यहां के हिंदू इसकी साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम कराते हैं।

इमामबाड़े का क्या है इतिहास

हरिश्चंद्र घाट स्थित कुम्हार का इमामबाड़ा लगभग डेढ़ सौ साल कदीमी है। इसकी देखरेख एक हिंदू कुम्हार परिवार कर रहा है, तो वहीं सरपरस्ती शिया वर्ग के हाथ में है। इमामबाड़े के मुतवल्ली सैयद आलिम हुसैन रिजवी इमामबारगाह का इतिहास बताते हैं, तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले हरिश्चंद्र घाट के पास एक हिंदू कुम्हार परिवार रहता था। कुम्हार का एक बेटा था, जो हर वर्ष मुहर्रम पर मिट्टी की ताजिया बनाया करता था। पिता ने पहले तो बच्चे को ताजिया बनाने से मना किया। जब वह नहीं माना तो उसकी खूब पिटाई की। पिटाई के बाद बच्चा इतना बीमार हुआ कि वैद्य, हकीम भी काम न आए। बेटे को लेकर पिता की चिंता बढ़ने लगी। मंदिर, मस्जिद, मजार पर उसने हाजिरी लगाई, लेकिन कोई फायदा न हुआ। फिर एक दिन कुम्हार ने सपने में देखा कि एक बुजुर्ग उसके सामने खड़े हैं। वह कह रहे हैं कि तेरा बेटा मुझसे अकीदत रखता है। तुमने उसे ताजिया बनाने से रोक दिया, तो वह बीमार पड़ गया है। अगर तुम्हें उससे मोहब्बत नहीं है तो मैं उसे अपने पास बुला लेता हूं। कुम्हार ने स्वप्न में ही अपनी गलती मानते हुए कहा कि बस एक बार आप मुझे माफ करके मेरे बच्चे को ठीक कर दें। इस पर बुजुर्ग ने कहा कि नींद से उठकर देख, तेरा बच्चा खेल रहा है। सैयद आलिम हुसैन अपने बड़े-बुजुर्गो की जुबानी बातों को याद करते हुए बताते हैं कि नींद से जगकर कुम्हार ने देखा कि जो बच्चा गंभीर रूप से बीमार था, वह न केवल पूरी तरह स्वस्थ था, बल्कि बच्चों के साथ खेल भी रहा था। यह नजारा देखकर कुम्हार ने सिर्फ खुश हुआ बल्कि उसकी इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों से अकीदत बढ़ गई।

बना दिया मंदिर जैसा इमामबाड़ा

हिंदू कुम्हार की आस्था के कारण ही इमामबाड़े के निर्माण के समय इसको मंदिर जैसा रूप दिया गया और नाम भी कुम्हार का इमामबाड़ा रखा गया। उसी समय से आस-पास के हिंदू भाइयों की आस्था इमामबाड़े से जुड़ गई। मुहर्रम में जब भी इमामबाड़ा खुलता है, वहां दोनों मजहब के लोग जुटते हैं। इसके अलावा 9 वीं व 10 वीं मुहर्रम का विश्व प्रसिद्ध दूल्हे का जुलूस यहां सात बार सलामी भी देता है। आलिम हुसैन बताते हैं कि उन दिनों अवध के नवाब शहादत हुसैन अपने पिता से नाराज होकर बनारस आ गए थे। उन्हीं की वंशज बाराती बेगम ने कुम्हार के बेटे का इमाम हुसैन के प्रति लगाव देख यह इमामबाड़ा बनवाया। इसकी देख रेख युद्ध-कौशल की शिक्षा देने वाले सैयद मीर हसन के परिवार को सौंपी गई। सैयद आलिम हुसैन और उनका परिवार उन्हीं का वंशज हैं। यह कुनबा डेढ़ सौ साल से कुम्हार के इमामबाड़े की देख रेख कर रहा है।

Christmas celebrations में पहुंचे वेटिकन राजदूत महाधर्माध्यक्ष लियोपोस्दो जिरोली

बोले, सभी धर्म का उद्देश्य विश्व मानवता का कल्याण एवं आशा का संदेश देना Varanasi (dil India live). आज वैज्ञानिक सुविधाओं से संपन्न मानव धरती...