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सोमवार, 19 सितंबर 2022

Aaj niklega शिवाला का ऐतिहासिक दुलदुल

Varanasi (dil india live)। शिवाला स्थित सैयद आलिम हुसैन रिजवी के इमामबाड़े से दुलदुल का कदीमी जुलूस आज दोपहर 3:00 बजे निकलेगा। जुलूस में शामिल अजादार दर्द भरे नौहों पर मातम करते हुए विभिन्न रास्तों से शिवाला घाट पहुंचेंगे। गंगा किनारे पहुंचकर यह जरूर संपन्न होगा। जुलूस से पहले मजलिस होगी। मजलिस में मौलाना नसीर आज़मी कर्बला के शहीदों और असीरों की जिंदगी पर रौशनी डालेंगे। इस दौरान अंजुमन नसीरुल मोमिनीन व अंजुमन गुलज़ारे अब्बासिया नौहाखवानी वह मातम करेंगी।

शनिवार, 27 अगस्त 2022

Ya Husain: दरे हुसैन हर मर्ज़ की दवा: मौलाना शरर नकवी

सच्चाई और हक पर चलने का नाम है इमाम हुसैन

varanasi (dil india live). अर्दली बाजार में स्वर्गीय अली अब्बासअली टीटी के इमाम बारगाह में अशरे की 8 वी मजलिस को खिताब करते हुए हिंदुस्तान के नामचीन मौलाना सैयद शरर नकवी लखनऊ ने कहा कि अगर सच्चे हुसैनी हो तो अपने सजदे से मस्जिदों को रोशन करो, इससे दुनिया और आखिरत दोनों सवर जाएगी। इमाम हुसैन की शहादत से मुसलमानों को इबरत हासिल करनी चाहिए। दरे हुसैन पर हर मर्ज की दवा है।जरा हुसैन पर आने और जाने की कोई पाबंदी नहीं है। इमाम हुसैन ने अपने किरदार से साबित कर दिया कि इस्लाम में दोस्त दुश्मन नहीं देखा जाता बल्कि इंसानियत देखी जाती है। इंसान की जान बचाना ही हमारा असली मकसद है।

पेशखानी नबील हैदर सोज़खानी तफसीर बनारसी नौहाखानी शमशाद ने किया। आए हुए अजादारो का शुक्रिया अख्तर अब्बास ने किया। मजलिस में शिरकत करने वाले प्रमुख लोगों में हाजी मोहम्मद अब्बास ,हाजी अबुल हसन, एजाज अब्बास,हसन मेंहदी कब्बन, फिरोज़ नकवी, मेराज रिज़वी ,बेला हैदर रहे।

गुरुवार, 11 अगस्त 2022

Muharram 12th:अलम सददे के जुलूस में उमड़ा जनसैलाब

इमाम हसन, इमाम हुसैन समेत शहीदाने कर्बला का मना तीजा

तीजे के जुलूस में भी दिखा तिरंगा झंडा





Varanasi (dil india live). इमाम हसन, इमाम हुसैन समेत शहीदाने कर्बला का तीजा गुरुवार को पूरी अकीदत के साथ मनाया गया। इस दौरान जहां अजाखानों व इमामबारगाहों में 12 वीं मुहर्रम पर फूल की जहां मजलिसे हुई वहीं घरों में फातेहा दिलाकर तबर्रुक तक्सीम किया गया। चना, इलायची दाना, पान, डली और तेल पर फातिहा कराकर अकीदतमंदों ने इमाम हुसैन व शहीदाने कर्बला को नजराना-ए-अकीदत पेश किया। दोपहर बाद अलग-अलग इलाकों से अलम व अखाड़ों के जुलूस निकले। जुलूस के दौरान फन-ए-सिपहगरी का हैरतअंगेज प्रदर्शन किया गया। बुजुर्गो व बच्चों ने भी दिखावटी तलवार, बनेठी, लाठी आदि में अपने जौहर दिखाए। भोजूबीर, अर्दली बाजार, नदेसर, जैतपुरा, छित्तनपुरा, चौहट्टा लाल खां, कोयला बाजार, बजरडीहा, नई सड़क, लल्लापुरा, पितरकुंडा, पीली कोठी, सदर बाजार, शिवाला, गौरीगंज, बजरडीहा, नयी सड़क, दालमंडी आदि क्षेत्रों से निकले अलम सद्दे के जुलूस दरगाह फातमान पहुंचे। जुलूस में युवा 10 फीट से लेकर 50 फीट तक के अलम लेकर चल रहे थे, जिन्हें गुब्बारे, फूल-माला, मोती व बिजली के झालरों से आकर्षक रूप में सजाया गया था। नई सड़क चौराहे से दरगाह फातमान तक तिल रखने भर की भी जगह नहीं थी। मुख्य मार्ग के दोनों ओर के मकानों की छतों व बरामदों पर महिलाओं व बच्चों की भीड़ रही। उधर, गौरीगंज से नन्हे खां के इमामबाड़े से दोपहर बाद अलम का जुलूस निकला जो शिवाला के अलम के जुलूस को साथ में लेते हुए सैकड़ों लोग कलाम पेश करते चल रहा था। जुलूस शाम में अकीदत के साथ सम्पन्न हुआ।

स्वयंसेवी संगठन रहे सक्रिय

तीजा के जुलूस में किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी न हो इसके लिए स्वयं सेवी संस्थाओं के वालंटियर्स जुलूस में मुस्तैद रहे। श्री सड़क स्टेट मीडिया की ओर से जहां सहायता के लिए कैम्प लगा हुआ था वहीं जिया क्लब की ओर से शकील अहमद जादूगर के संयोजन में पितरकुंडा चौराहे के पास चिकित्सा शिविर लगाया गया था। ऐसे ही अंजुमन इस्लामिया की ओर से नई सड़क चौराहे पर हाजी मुहम्मद शाहिद अली खां मुन्ना के संयोजन में सहायता व चिकित्सा शिविर लगाया गया।

देर रात तक गूंजती रही मातम की सदा 

शिया हजरात के घरों में फूल की मजलिस हुई। लोगों ने फातेहा कराकर तबर्रुक तक्सीम किया। घरों व इमामबारगाहों में मजलिस आयोजित हुई। इस दौरान मुकीमगंज, अर्दली बाजार, शिवाला, गौरीगंज, चौहट्टा लाल खां, काली महल, चहमामा, दालमंडी, मदनपुरा, पितरकुंडा आदि क्षेत्रों में शिया हजरात के घरों से देर रात तक नौहाख्वानी व मातम की सदा गूंजती रहीं।

सोमवार, 1 अगस्त 2022

Muharram: हिन्दू लेखक की जुबानी, मोहर्रम की दर्द भरी दास्तां

न्याय के पक्ष में संघर्ष करने वालों की अंतरात्मा में इमाम हुसैन आज भी है ज़िन्दा

(ध्रुव  गुप्त की वाल से)

Varanasi (dil india live). इस्लामी वर्ष यानी हिजरी सन्‌ के पहले महीने मुहर्रम की शुरुआत हो चुकी है। मुहर्रम का शुमार इस्लाम के चार पवित्र महीनों में होता है जिसे अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद ने अल्लाह का महीना कहा है। इस पाक़ माह में रोज़ा रखने की अहमियत बयान करते हुए उन्होंने कहा है कि रमजान के अलावा सबसे अच्छे रोज़े वे होते हैं जो अल्लाह के इस महीने में रखे जाते हैं। मुहर्रम के महीने के दसवे दिन को यौमें आशुरा कहा जाता है। यौमे आशुरा का इस्लाम ही नहीं, मानवता के इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान है। यह वह दिन है जब सत्य, न्याय, मानवीयता के लिए संघर्षरत हज़रत मोहम्मद के नवासे हुसैन इब्न अली की कर्बला के युद्ध में उनके बहत्तर स्वजनों और दोस्तों के साथ शहादत हुई थी। हुसैन विश्व इतिहास की ऐसी कुछ महानतम विभूतियों में हैं जिन्होंने बड़ी सीमित सैन्य क्षमता के बावज़ूद आततायी यजीद की विशाल सेना के आगे आत्मसमर्पण कर देने के बजाय लड़ते हुए अपनी और अपने समूचे कुनबे की क़ुर्बानी देना स्वीकार किया था। कर्बला में इंसानियत के दुश्मन यजीद की अथाह सैन्य शक्ति के विरुद्ध हुसैन और उनके थोड़े-से स्वजनों के प्रतीकात्मक प्रतिरोध और आख़िर में उन सबको भूखा-प्यासा रखकर यजीद की सेना द्वारा उनकी बर्बर हत्या के किस्से और मर्सिया पढ़ और सुनकर मुस्लिमों की ही नहीं,  हर संवेदनशील व्यक्ति की आंखें नम हो जाती हैं - कब था पसंद रसूल को रोना हुसैन का/आग़ोश-ए-फ़ातिमा थी बिछौना हुसैन का / बेगौर ओ बेकफ़न है क़यामत से कम नहीं / सहरा की गर्म रेत पे सोना हुसैन का !

मनुष्यता और न्याय के हित में अपना सब कुछ लुटाकर कर्बला में हुसैन ने जिस अदम्य साहस की रोशनी फैलाई, वह सदियों से न्याय और उच्च जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ रहे लोगों की राह रौशन करती आ रही है। कहा भी जाता है कि 'क़त्ले हुसैन असल में मरगे यज़ीद हैं / इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद।' इमाम हुसैन का वह बलिदान दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ही नहीं, संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। हुसैन महज़ मुसलमानों के नहीं, हम सबके हैं। यही वज़ह है कि यजीद के साथ जंग में लाहौर के ब्राह्मण रहब दत्त के सात बेटों ने भी शहादत दी थी जिनके वंशज ख़ुद को गर्व से हुसैनी ब्राह्मण कहते हैं। हालांकि कुछ लोग हुसैनी ब्राह्मणों की शहादत की इस कहानी पर यक़ीन नहीं रखते।

इस्लाम के प्रसार के बारे में पूछे गए एक सवाल के ज़वाब में एक बार महात्मा गांधी ने कहा था - मेरा विश्वास है कि इस्लाम का विस्तार उसके अनुयायियों की तलवार के ज़ोर पर नहीं, इमाम हुसैन के सर्वोच्च बलिदान की वज़ह से हुआ। नेल्सन मंडेला ने अपने एक संस्मरण में लिखा है- क़ैद में मैं बीस साल से ज्यादा वक़्त गुज़ार चुका था। एक रात मुझे ख्याल आया कि मैं सरकार की शर्तों को मानकर उसके आगे आत्मसमर्पण कर यातना से मुक्त हो जाऊं, लेकिन तभी मुझे इमाम हुसैन और करबला की याद आई। उनकी याद ने मुझे वह रूहानी ताक़त दी कि मैं उन विपरीत परिस्थितियों में भी स्वतंत्रता के अधिकार के लिए खड़ा रह सका।

लोग सही कहते हैं कि न्याय के पक्ष में संघर्ष करने वाले लोगों की अंतरात्मा में इमाम हुसैन आज भी ज़िन्दा हैं, मगर यजीद भी अभी कहां मरा है ? यजीद अब एक व्यक्ति का नहीं, एक अन्यायी और बर्बर सोच और मानसिकता का नाम है। दुनिया में जहां कहीं भी आतंक, अन्याय, बर्बरता, अपराध और हिंसा है, यजीद वहां-वहां मौज़ूद है। यही वज़ह है कि हुसैन हर दौर में प्रासंगिक हैं। मुहर्रम का महीना उनके मातम में अपने हाथों अपना ही खून बहाने का नहीं, उनके बलिदान से प्रेरणा लेते हुए मनुष्यता, समानता,अमन,न्याय और अधिकार के लिए उठ खड़े होने का अवसर भी है और चुनौती भी।

BHU के डा. ओमशंकर ने तोड़ा आमरण अनशन, लड़ेंगे कानूनी लड़ाई

Varanasi (dil India live). बीएचयू कार्डियोलाजी विभाग में मरीजों को बेड उपलब्ध कराने और भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की मांग को लेकर आमरण अनशन पर ब...