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गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

गुरु तेग बहादुर के चोले के आज भी होते हैं दर्शन

गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग में संरक्षित है गुरु का चोला 




वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर साहिब का काशी से गहरा नाता रहा है। यही वजह है की वो यहां लम्बे समय तक ठहरे थे और जाते वक्त भक्तों को अपना वस्त्र (चोला) दे गये। सरदार हरजिंदर सिंह राजपूत बताते हैं कि जब भक्तों ने कहा आपका दर्शन कैसे होगा तब नवें पातशाह ने अपना चोला दे कर कहा था कि इसे देखकर मेरा दर्शन होगा।

आज भी गुरु तेग बहादुर साहिब का बेशकिमती चोला गुरुद्वारे में संरक्षित है। जब गुरु तेग बहादुर यहां आए थे तो गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग में ही उन्होंने सात महीने 13 दिन तप किया था। जाते समय मखमली चोला कुर्ता निशानियां और चरण पादुका छोड़कर चले गये थे। जो आज भी गुरुद्वारे में संरक्षित है। इसके दर्शन के लिए लोगों का हुजूम उमड़ता हैं। यही नहीं यहां दसवें पातशाह गुरु गोविन्द सिंह के बाल्यकाल के भी वस्त्र मौजूद हैं।

भाई धर्मवीर सिंह कहते हैं कि गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग में उन्होंने सात महीने 13 दिन साधना की थी। उनकी साधना से प्रसन्न होकर मां गंगा उनके पास आ गई थीं। आज भी उस जल के सेवन से कई रोगों से मुक्ति मिलती है। देश दुनिया के सिख समाज के लोग जब गुरुद्वारा नीचीबाग आते हैं तो यहां पानी जरूर पीते हैं। गुरुद्वारे के सहायक ग्रंथी भाई धर्मवीर सिंह ने बताया कि गुरु तेग बहादुर साहिब 356 साल पहले 1666 ई. में पंजाब से दिल्ली, आगरा, मथुरा, कानपुर, प्रयागराज, मिजार्पुर और चुनार होते काशी पहुंचे थे। जब उनके अनुयायी भाई कल्याण को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने उनके के लिए नीचीबाग स्थित अपने घर को सजाया। यहां गुरु तेग बहादुर ने सात माह 13 दिन तक श्रद्धालुओं को उपदेश दिए।

पूर्णिमा के दिन गुरु स्नान की तैयारी में थे तभी भाई कल्याण ने कहा कि आज ग्रहण का दिन है। दूर-दूर से लोग यहां गंगा स्नान को आते हैं। चलिए गंगा स्नान कर आते हैं। इस पर गुरु तेग बहादुर ने कहा कि भाई कल्याणजी अमृत बेला का समय बीतता जा रहा है। यहीं स्नान कर लेते हैं। भाई कल्याण ने विनती करते हुए कहा कि गंगा यहां से आधा मील ही दूर हैं। गुरु तेग बहादुर ने कहा कि गंगा स्नान करने क्या जाना यही गंगा को बुला लेते हैं। यह कहते ही सतगुरू ने अपने चरणों से एक पत्थर की शिला हटाई तो गंगा की निर्मल जल धारा फूट पड़ी। यह देख भाई कल्याण उनके चरणों में गिर पड़े। बाद में गुरु तेग बहादुर साहिब के जाने के बाद शानदार गुरुद्वारा नीचीबाग का निर्माण हुआ। जहां गुरु तेग बहादुर साहिब की यादें उनके चोला और जूते के तौर पर आज भी संरक्षित है।

सोमवार, 10 जनवरी 2022

गुरु गोविंद सिंह की देश-दुनिया में 355 वीं जयंती मनाई गई

जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो...

मैं हूं परम पूरक को दासा देखन आयो जगत तमाशा...



Varanasi 09 जनवरी (dil india live) : सिक्ख धर्म के दसवें पातशाह गुरु गोविंद सिंह की जयंती पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ आस्थापूर्वक देश-दुनिया के साथ ही धर्म की नगरी काशी में भी मनायी गयी। इस अवसर गुरुद्वारा गुरुबाग व गुरुद्वारा नीचीबाग में विशेष आयोजन किये गये। पूरे दिन गुरुद्वारे शबद कीर्तन के बोलों से गूंजते रहे। दोनों गुरुद्वारों में दरबार साहिब को फूलमाला और बिजली के झालरों से सजाया गया था। सुबह से ही दरबार में हाजिरी लगाने वालों का तांता लगा रहा। हालांकि कोविड के चलते रात का दीवान आनलाइन ही सजा, गुरुद्वारों के पट रात 10 बजे बंद कर दिये गये।

इससे पहले सुबह गुरु पर्व का आगाज गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग में गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश से हुई। फूलों फूलों से सजी पालकी श्री गुरुग्रंथ साहिब की परिक्रमा में बड़ी संख्या में भक्त शामिल हुए। शब्द कीर्तन गायन कर गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश हुआ।इसी के साथ ही पिछले 40 दिनों से निकल रही प्रभातफेरियों एवं श्री अखंड पाठ साहिब जी का लड़ी पाठ का भी समापन हुआ। अरदास एवं प्रसाद वितरण में गुरु भक्तों का हुजुम जुटा हुआ था। शाम को आनलाईन दीवान सजाया गया। 

 गुरुद्वारा गुरुबाग में हजूरी रागी जत्था भाई नरेंद्र सिंह भाई रकम सिंह भाई रंजीत सिंह ने गुरुवाणी, शबद कीर्तन व कथा से संगत को निहाल किया। सुबह से से रात तक गुरुद्वारे, सच कहूं सुन लेहु सभै, जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो...व, मैं हूं परम पूरक को दासा देखन आयो जगत तमाशा...जैसे शबद-कीर्तन के स्वर गूंज रहे थे। घरों से लेकर जश्न का माहौल था पंगत और संगत का उल्लास गुरुदारों में देखते ही बन रहा था।

गुरुबाग में तो गजब की रौनक थी। सुबह से ही श्रद्धालुओं का गुरुद्वारे में पहुंचने का क्रम शुरू हुआ जो अनवरत जारी रहा। पूरे दिन गुरुद्वारों में शबद कीर्तन में लोग जुटे हुए थे। गुरूनानक खालसा बालिका इंटर कालेज एवं गुरुनानक इंग्लिश स्कूल के बच्चों ने भी शबद कीर्तन में भाग लिया। इस अवसर पर विशिष्ट लोगों को सिरोपा देकर सम्मान किया गया। मौजूद संगत ने पंगत में बैठकर गुरु का अटूट लंगर बरता। जिसमें बड़ी संख्या में दूसरे धर्म के भी लोग शामिल हुए और प्रसाद ग्रहण कर खुद को निहाल किया।मुख्य ग्रंथि भाई रंजीत सिंह ने दीवान समाप्ति की अरदास की। इस अवसर पर बलजीत सिंह, महंत सिंह, भाई धरमवीर सिंह, परमवीर सिंह अहलूवालिया आदि मौजूद थे।

तुलसी विवाह पर भजनों से चहकी शेर वाली कोठी

Varanasi (dil India live)। प्रबोधिनी एकादशी के पावन अवसर पर ठठेरी बाजार स्थित शेर वाली कोठी में तुलसी विवाह महोत्सव का आयोजन किया गया। श्री ...