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सोमवार, 1 मई 2023

Nima Varanasi: eid मिलन में जुटे चिकित्सक

ईद मिलन समारोह संग नीमा का अमृत महोत्सव सम्पन्न 





Varanasi (dil india live). नेशनल इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (नीमा) वाराणसी  ने सांझा चूल्हा रेस्टोरेंट शिवपुर में अमृत महोत्सव समापन समारोह, ईद मिलन समारोह और अमृत महोत्सव टीम का सम्मान समारोह डॉक्टर एसआर सिंह की अध्यक्षता में आयोजित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर एम. ए. अजहर तथा डॉक्टर विनय कुमार पांडेय ने किया। अन्य मंचासीन डॉक्टर आर के यादव (ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन अमृत महोत्सव), डॉक्टर सलिलेश मालवीय (ऑर्गनाइजिंग सचिव अमृत महोत्सव) और कोषाध्यक्ष डॉक्टर अनिल कुमार गुप्त थे।

कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन डॉक्टर एस आर सिंह ने देते हुए सभी सदस्यगण का स्वागत किया और अमृत महोत्सव एवं नीमा में ईद मिलन की परम्परा का महत्व बताया। कार्यक्रम में शामिल चिकित्सकों का माल्यार्पण कर स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के अंत में डॉक्टरों ने एक दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद पेश की और अनेक प्रकार के व्यंजनों से लुत्फ उठाया।

 इस अवसर पर डॉ एम.ए. अज़हर, डॉ मुहम्मद अरशद, डॉक्टर ए के सिंह, डॉक्टर अरुण कुमार गुप्त, डॉक्टर कैलाश त्रिपाठी, डॉक्टर आर के यादव, डॉक्टर वकालत अली, डॉ गुलज़ार अहमद, डॉ नसीम अख्तर, डॉ एहतेशामुल हक, डॉ मोबश्शीर, डॉ अब्दुल कलाम, डॉ मुबीन, डॉ सगीर अशरफ़, डॉ सुमन बरनवाल, डॉ डॉली इत्यादि मौजूद थी।

शनिवार, 22 अप्रैल 2023

Benaras k Govindpura में सबसे पहले मनी थी eid ki khushi

Kashi में Ganga jamuni tahzeeb देख बादशाह कुतुबुद्दीन को हुआ था आश्चर्य 

ईद पर दोनों मजहब की अलग-अलग पहचान करने में उसे हुई थी मुश्किल



Varanasi (dil india live). ईद मिल्लत और मोहब्बत का त्योहार है। सभी जानते हैं कि हफ्ते भर चलने वाले इस महापर्व से हमें खुशी और एकजुटता का पैगाम मिलता है, मगर कम लोग जानते हैं कि ईद का ऐतिहासिक पक्ष क्या है। इस्लामिक विद्वान मौलाना अज़हरुल क़ादरी ने ईद की तवारीखी हैसियत पर रौशनी डालते हुए बताया कि सन् 2 हिजरी में सबसे पहले ईद मनायी गयी। पैगम्बरे इस्लाम नबी-ए-करीम हज़रत मोहम्मद (स.) का वो दौर था। उन्होंने सन् 2 हिजरी में पहली बार ईद की नमाज़ पढ़ी और ईद की खुशियां मनायी। उसके बाद से लगातार आज तक पूरी दुनिया में ईद की नमाज़े अदा की जाती है और लोग इसकी खुशियों में डूबे नज़र आते हैं।

जहां तक बनारस में ईद के त्योहार का सवाल है, इतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ तथ्यो को खंगालने के बाद बताते हैं कि बनारस में गोविन्द्रपुरा व हुसैनपुरा दो मुहल्ले हैं जहां सबसे पहले ईद मनाये जाने कि पोखत  तस्दीक होती है। वो बताते हैं कि हिन्दुस्तान में मुसलमानों के आने के साथ ही ईद मनाने के दृष्टांत मिलने लगते हैं। जहां तक बनारस की बात है यहां मुस्लिम सत्ता की स्थापना से पूर्व ही मुस्लिम न सिर्फ आ चुके थे बल्कि कई मुस्लिम बस्तियां भी बस गयी थी। दालमंडी के निकट गोविन्दपुरा और हुसैनपुरा में ईद की नमाज़ सबसे पहले पढ़े जाने का संकेत तवारीखी किताबों से ज़ाहिर है।

इतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि जयचन्द की पराजय के बाद बनारस के मुसलमानों की ईद को देखकर बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक को उस दौर में आश्र्चर्य हुआ था कि ईद की नमाज़ के बाद बनारस में जो सौहार्दपूर्ण गंगा जमुनी माहौल दिखाई दिया था उसमें उन्हें हिन्दू-मुसलमान की अलग-अलग पहचान करना मुश्किल था। यह बनारसी तहज़ीब थी जो देश में मुस्लिम सत्ता की स्थापना के पूर्व ही काशी में मौजूद थी। जिसने एक नई तहज़ीब, नई संस्कृति हिन्दुस्तानी तहज़ीब को जन्म दिया। तब से लेकर आज तक ईद की खुशियां बनारस में जितने सौहार्दपूर्ण और एक दूसरे के साथ मिलकर मनाया जाता है उतना अमनों-सुकुन और सौहार्दपूर्ण तरीके से दुनिया के किसी भी हिस्से में ईद नहीं मनायी जाती।

ईद का इस्लामी पक्ष

प्रमुख इस्लामी विद्धान मौलाना साक़ीबुल क़ादरी कहते हैं कि ईद रमज़ान की कामयाबी का तोहफा है। वो बताते हैं कि नबी का कौल है कि रब ने माहे रमज़ान का रोज़ा रखने वालों के लिए जिंदगी में ईद और आखिरत के बाद जन्नत का तोहफा मुकर्रर कर रखा है। यानी रमज़ान में जिसने रोज़ा रखा है, इबादत किया है नबी के बताये रास्तों पर चला है तो उसके लिए ईद का तोहफा है।

दूसरों को खुशिया बांटना है पैगाम

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां फाजिले बरेलवी पर रिसर्च करने वाले प्रमुख उलेमा मौलाना डा. शफीक अजमल की माने तो ईद का मतलब केवल यह नहीं कि महीने भर जो इबादत करके नेकियों की पूंजी एकत्र किया है उसे बुरे और बेहूदा कामों में ज़ाया कर देना बल्कि ईद का मतलब है कि दूसरों को खुशियां बांटना। अपने पड़ोस में देखों कोई भूखा तो नहीं है, किसी के पास पैसे की कमी तो नहीं है, कोई ऐसा बच्चा तो नहीं जिसके पास खिलौना न हो, अगर इस तरह की बातें मौजूद है तो उन तमाम की मदद करना हमारा फर्ज़ है। और यही रमज़ान हमें सिखाता है। मौलाना शफी अहमद कहते हैं कि दूसरो की मदद करना ईद का सबसे बड़ा मकसद है तभी तो रमज़ान में जकात, फितरा, खैरात, सदका बेतहाशा निकालने का हुक्म है ताकि कोई गरीब, मिसकीन, फकीर नये कपड़े से महरुम न रह जाये। ईद की खुशी में सब खुश नज़र आयें। यही वजह है कि ईद पर हर एक के तन पर नया लिवास दिखाई देता है।  

ईद ग्लोबल फेस्टिवल

एक माह रोज़ा रखने के बाद रब मोमिनीन को ईद कि खुशियो से नवाज़ता है, आज वक्त के साथ वही ईद ग्लोबल फेस्टीवल बन चुकी है जो टय़ूटर, वाट्स एप, स्टेलीग्राम से लेकर फेसबुक तक पर छायी हुई है।


Eid Ramadan Mubarak कि कामयाबी का अज़ीम तोहफा

ईद उसकी जो रमज़ान के इम्तेहान में हुआ पास



Varanasi (dil india live)। मज़हबे इस्लाम में सब्र और आजमाइश को आला दर्जा दिया गया है। कहा जाता है कि रब वक्त-वक्त पर हर बंदों का इम्तेहान लेता है और उन्हें आज़माता है। ईद की कहानी भी सब्र और आज़माइश का ही हिस्सा है। यानी माह भर जिसने कामयाबी से रोज़ा रखा, सब्र किया, भूखा रहा, खुदा की इबादत की, वो रमज़ान के इम्तेहान में पास हो गया और उसे रब ने ईद कि खुशी अता फरमायी। दरअसल ईद उसकी है जो सब्र करना जानता हो, जिसने रमज़ान को इबादतों में गुज़ारा हो, जो बुरी संगत से पूरे महीने बचता रहा हो, मगर उस शख्स को ईद मनाने का कोई हक़ नहीं है जिसने पूरे महीने रोज़ा नहीं रखा और न ही इबादत की। नबी-ए-करीम (स.) ने फरमाया कि रमज़ान वो मुकदद्स महीना है जो लोगों को यह सीख देता है कि जैसे तुमने एक महीना अल्लाह के लिए वक्फ कर दिया, सुन्नतों और नफ़्ल पर ग़्ाौर किया, उस पर अमल करता रहा, वैसे ही बचे पूरे साल नेकी और पाकीज़गी जारी रखो। यह महीना इस बात की ओर भी इशारा करता है कि अगर एक महीने की इबादत के बाद ईद की खुशी बंदों को रब देता है तो 12 महीने अगर इबादतों में गुज़ारा जाये तो जिन्दगी में हर दिन ईद जैसा और हर रात रमज़ान जैसी होगी। रमज़ान महीने की इबादत इसलिए भी महबूब है क्यों कि ये अल्लाह का महीना है और इस महीने के पूरा होते ही खुदा ईद का तोहफा देकर यह बताता है कि ईद की खुशी तो सिर्फ दुनिया के लिए ह। इससे बड़ा तोहफा कामयाब रोज़ेदारों को आखिरत में जन्नत के रूप में मिलेगा। पूरी दुनिया में यह अकेला ऐसा त्योहार है जिसमें कोईभी पुराने या गंदे कपड़ों में नज़र नहीं आता। अगर एक महीने की इबादत के बाद ईद मिलती है तो हम साल के बारह महीने इबादत करें तो हमारा हर दिन ईद होगा। तो हम क्यों न हर दिन हर महीना अपना इबादत में गुज़ारे। 

           Aatif Mohammad Khalid 

(शिक्षक, कमलापति त्रिपाठी इंटर कालेज वाराणसी)

Dekho Eid आयी है, कितने रंग लाई है

सबको खुशियां बांटने का पैगाम देती है ईद


Varanasi (dil india live)। अरबी में किसी चीज़ के बार-बार आने को उद कहा जाता है उद से ही ईद बनी है। ईद का मतलब ही वो त्योहार है जो बार-बार आये। यानी जिसने रोज़ा रखा है उसके लिए ईद बार-बार आएगी। ईद तोहफा है उनके लिए जिन्होंने एक महीना अपने आपको अल्लाह के लिए वक्फ कर दिया। यही वजह है कि रमज़ान और ईद एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अगर रमज़ान होता और ईद न होती तो हमें शायद इतनी खुशी न होती। खासकर छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं होता मगर वो इसलिए खुश होते हैं कि रमज़ान खत्म होते ईद आयेगी, ईदी मिलेगी। इसे ईद-उल-फित्र भी कहते हैं क्यों कि इसमें फितरे के तौर पर 2 किलों 45 ग्राम गेंहू जो हम खाते हो उसके दाम के हिसाब से घर के तमाम सदस्यों को सदाका-ए-फित्र निकालना होता है। जिससे जरुरतमंदों कि मदद हो जाती है।

इस्लामी ग्रंथों में आया है  कि रमज़ान के बाद जब ईद आये तो इस बात का पता करो कहीं कोई रो तो नहीं रहा है, कोई ऐसा घर तो नहीं बचा है जहां ईद के लिए सेवईयां न हो। कोई पड़ोसी भूखा तो नहीं है। अगर ऐसा है तो उसकी मदद करना हर साहिबे नेसाब पर वाजिब है।

दरअसल ईद उसकी है जिसने रमज़ान भर इबादत किया और कामयाबी से रमज़ान के पूरे रोज़े रखे। नबी-ए-करीम (स.) ईद सादगी से मनाया करते थे। इसलिए इस्लाम में सादगी से ईद मनाने का हुक्म है। एक बार नबी (स.) ईद के दिन सुबह फज्र की नमाज़ के बाद घर से बाज़ार जा रहे थे कि आपको एक छोटा बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया। नबी (स.) ने उससे कहा आज तो हर तरफ ईद की खुशी मनायी जा रही है ऐसे में तुम क्यों रो रहे हो? उसने कहा यही तो वजह है रोने की, सब ईद मना रहे हैं मैं यतीम हूं, न मेरे वालिदैन है और न मेरे पास कपड़े और जूते-चप्पल के लिए पैसा। यह सुनकर नबी (स.) ने उसे अपने कंधों पर बैठा लिया और कहा कि तुम्हारे वालिदैन भले नहीं हैं मगर मैं तुम्हे अपना बेटा कहता हूं। नबी-ए-करीम (स.) के कंधे पर बैठकर बच्चा उनके घर गया वहां से तैयार होकर ईदगाह में नमाज़ अदा की। जो बच्चा यतीम था उसे नबी-ए-करीम (स.) ने चन्द मिनटों में ही अपना बेटा बनाकर दुनिया का सबसे अमीर बना दिया। इसलिए ईद आये तो सभी में आप भी खुशियां बांटे, सबको खुशी दें, सही मायने में तभी आपकी ईद होगी। अल्लाह ताला सभी को रोज़ा रखने की तौफीक दे ताकि सभी की ईद हो जाये..आमीन।

  डा. मो. आरिफ

(लेखक चर्चित इतिहासकार हैं)

शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

Eid miladunnabi mubarak: आज किसकी आमद से हर तरफ उजाला है...

Nabi के जश्न में रौशनी से नहां उठा सारा जहां 

हर तरफ नूर की बारिश

नबी की शान में पेश हुए कलाम





Mohd Rizwan
Varanasi (dil india live )। इस्लाम धर्म के आखिरी पैगम्बर, हज़रत मोहम्मद मुस्तफा (स.) की यौमे पैदाइश की खुशी में शनिवार की शाम मुसालिम इलाके रौशनी और सजावट से इतराते नज़र आये। इस दौरान सारा जहां नबी की मोहब्बत और अकीदत लुटाता नज़र आया। हर तरफ नूर की बारिश और डायसो से नबी की शान में कलाम पेश करते शायरों का जज्बा और जुनून देखते ही बन रहा था। यह नज़ारा था अर्दली बाज़ार मुख्य रोड का। मौलाना शमशुद्दीन साहब की अंगुवाई में यहां देर रात तक शायरों ने जहां कलाम पेश किया वही उलेमा की तकरीर से भी अकीदतमंद फैज़याब हुए। मध्यरात्रि तक शायरों के कलाम फिजा में खुशबू बिखेरते नजर आए। नबी की शान में एक से एक उम्दा कलाम गूंज रहा था।

उधर मरकजी यौमुन्नबी कमेटी की ओर से ईद मिलादुन्नबी पर, आज किसकी आमद से हर तरफ उजाला है, आखिरी पैयंबर है और नूर वाला है... व, आमीना का लाल देखो जगमग जगमग करता है...। जैसे कलाम पेश करते हुए शनिवार की रात जुलूस निकाला गया। जुलूस बेनियाबाग के पूर्वी छोर हड़हा मैदान से निकला। इसके बाद सराय हाड़हा, छत्तातले, नारियल बाजार, दालमंडी, नई सड़क, मस्जिद खुदा बख्श, कुरैशबाग मस्जिद, उस्ताद बिसमिल्लाह खान मार्ग होकर भीखा शाह गेट पर पहुंचकर समाप्त हुआ। 

जुलूस की अगुवाई कमेटी के अध्यक्ष शकील अहमद बबलू, पूर्व चेयरमैन अल्पसंख्यक आयोग कर रहे थे। जुलूस के बाद मौलाना ज़कीउल्लाह असदुल कादरी ने नबी की सीरत पर रौशनी डाली। कहा कि पैंगबरे ने इस्लाम धर्म के अंतिम पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद (स.) किसी एक के लिए नहीं बाल्कि सारी दुनिया के लिए रहमत बनकर आए थे। अगर नबी को मानते हो तो उनके बताये हुए रास्तो पर चलों।इस दौरान आगा कमाल अहमद, रेयाज़ अहमद नूर, मोहम्मद अबरार खान, शकील अहमद सिद्दीकी, अब्दुल अलीम, इमरान अहमद, शकील, दिलशाद अहमद आदि मौजूद थे।

जगमगा उठा मुसलिम इलाका

Eid miladunnabi 2022 के जश्न के दौरान मुस्लिम इलाके रौशनी से नहां उठे। अर्दली बाजार, पक्की बाजार, मकबूल आलम रोड, नदेसर, लल्लापुरा, हबीबपुरा, नई सड़क, दालमंडी, सराय हड़हा, रेवड़ी तालाब, मदनपुरा, गौरीगंज, शिवाला, बजरडीहा, शक्कर तालाब, जलालीपुरा, कोयला बाजार, पीली कोठी, बड़ी बाजार आदि इलाकों में विद्युतीय सजावट देखने को मिली।

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022

Eid miladunnabi 2022: नबी की पैदाइश पर रौशन होगा सारा जहां

नबी की शान में पेश होगा कलाम, उलेमा करेंगे तकरीर

अर्दली बाजार में नातिया मुशायरा कल, 9 को निकलेगा जुलूस 


Varanasi (dil india live). हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलैहिवसल्लम की पैदाइश के जश्न में कल सारा जहां रोशनी से नहा उठेगा। हर तरफ नूर की बारिश होगी। 11 रबी उल अव्वल की शाम सजावट का जो दौर शुरू होगा वह 12वीं की रात तक बदस्तूर जारी रहेगा। सजावट के साथ ही नबी की शान में नात का गुलदस्ता अंजुमने पेश करेंगी। कहीं उलेमा की तकरीर तो कहीं शायर नातिया कलाम पेश कर नबी की हम्द-ओ-सना करेंगे। इस दौरान पूरा मंजर नूरानी होगा और हर तरफ नूर की बारिश होगी। 
बेनियाबाग के हड़हासराय से मरकज़ी यौमुंनबी कमेटी का जुलूस उठेगा। जुलूस नबी पर सलाम और कलाम पेश करता हुआ नई सड़क, दालमंडी आदि विभिन्न इलाकों से होते हुए वापस बेनिया पहुंचेगा, जहां पर मौलाना अलहाज सूफी जकीउल्लाह असदउल कादरी की नूरानी तकरीर होगी। तकरीर के बाद अंजुमनों का नातिया मुकाबला शुरू होगा। इसमें बनारस और आसपास की तमाम अंजुमन शिरकत करेंगी।

अर्दली बाजार में नातिया मुशायरा कल

11रबी अव्वल 8 अक्टूबर को जश्ने ईद मिलादुन्नबी के अवसर पर रात्रि 8:00 बजे से अर्दली बाजार में नातिया मुशायरा मुख्य रोड पर होगा। अंजुमन फैजान ए नूरी के जेरे इंतेज़ाम होने वाले इस आयोजन के बारे में सैयद फरजंद हुसैन फकीह वो शादाब खान ने संयुक्त रूप से बताया कि नातिया मुशायरा में नामचीन  नातखान अपने कलाम पेश करेंगे। वही 9 अक्टूबर को शाम 4 बजे जुलूस ए मोहम्मदी आपने कदीमी रास्तों अर्दली बाजार भोजूबीर, गिलट बाजार, सर्किट हाउस, कचहरी, पुलिस लाइन होते हुए कार्यक्रम स्थल अर्दली बाजार के मरकज पर आकर समाप्त होगा। रात्रि 9 बजे से मुल्क के जाने माने उलेमा की तकरीर होगी। यह कार्यक्रम सुबह फज्र की नमाज़ तक चलेगा।ऐसे ही दालमंडी, नई सड़क, सराय हड़हा, मदनपुरा, रेवड़ीतालाब, गौरीगंज, शिवाला, बजरडीहा, जलालीपुरा, सरैया, पीलीकोठी, पठानी टोला, चौहट्टा, लल्लापुरा, नदेसर, मकबूल आलम रोड,  हुकुलगंज आदि में भी नबी की शान में सजावट की जाएगी और नबी की यौमे पैदाइश का जश्न मनाया जाएगा।

सोमवार, 18 जुलाई 2022

ईद ए ग़दीर पर मनाई गई खुशिया, सजी महफ़िल



Varanasi (dil india live). हिजरी साल के ज़िल्हिज्जा माह की 18 तारीख को अपने आख़िरी हज से वापसी पर पैग़म्बर ए आज़म ने अपने चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली को अल्लाह के हुक्म से अपने बाद हाकिम ओ पेशवा बनाया था। ग़दीर ए ख़ुम नामी जगह जो मक्का और मदीना के बीच स्थित है वहां सवा लाख हाजियो के मजमे में रसूलुल्लाह ने हज़रत अली को अपने दोनों हाथों पर बुलंद करके फ़रमाया जिस जिस का मैं मौला आज से उस उस का अली मौला। ये दिन शिया मुसलमानों के लिए ईद का दिन है।

   इसी ईद की खुशियां मानते हुए शहर में रात ही से महफ़िल का सिलसिला शुरू हो गया था। रवीवार की रात करारा हाउस तेलियानाला में क़सीदा ख़्वानी की महफ़िल हुई जो देर रात तक चली। सोमवार को दिन में 4 बजे बनारस के इमाम ए जुमा मौलाना सैयद ज़फर उल हुसैनी की सदारत में करारा हॉउस पर महफ़िल ए बयान के एहतेमाम हुआ। बयान से पहले शोअरा ए केराम ने अपना मंज़ूम नज़राना ए अक़ीदत पेश किया। महफ़िल को ख़िताब करते हुए मौलाना अक़ील हुसैनी ने ईद ए ग़दीर की फ़ज़ीलत और मौला अली के फ़ज़ाएल बयान किये। महफ़िल की निज़ामत मौलाना अमीन हैदर हुसैनी ने किया। महफ़िल में मौलाना मेहदी रज़ा, मौलाना इश्तियाक अली, मौलाना इक़बाल हैदर, मौलाना करीमी साहब, मौलाना यूसुफ मशहदी, मौलाना ज़ाएर ईमानी साहब समेत हज़ारो की तादाद में मोमिनीन ने शिरकत की। इसी क्रम में दालमंडी, दरगाहे फ़ात्मान, शिवाला, बड़ी बाज़ार, मदनपुरा समेत लगभग सभी शिया बहुल इलाकों में महफ़िल सजाई गई और खुशियां मनाई गई।

मंगलवार, 3 मई 2022

Eid Mubarak:देखो ईद आयी है खुशिया लायी है…

चांद के दीदार संग ईद का जश्न शुरू 



Varanasi (dil India live )। 30 वी रमज़ान का चांद दिखते ही देश-दुनिया में ईद का जश्न शुरू हो गया। जहां पूरी रात बाज़ार खरीदारों से गुलज़ार रहा वहीं लोगों ने अपने घरों, मस्जिदों, मैदानों से चांद का दीदार किया। लोग रमज़ान का रोज़ा कमयाबी से रखने की खुशी में डूबे नज़र आयें। हर तरफ बहार और खुशिया ही खुशियां दिखाई देने लगी। लोग घरों से निकल कर बाज़ार की तरफ चल पड़े। बनारस के लाखों मुसलमान ईद का खैरमखदम करने को बेताब दिखाई दिये। उधर ईदगाहों और मस्जिदों में ईद की तैयारी पूरी हो चुकी है। ईद की नमाज़ मंगलवार की सुबह 6.30 बजे से 10.30 बजे के बीच अदा की जायेगी। मस्जिद ईदगाह लाट सरैया में मौलाना जियाउर्रहमान नमाज अदा करायेंगे तो ईदगाह लंगर में मौलाना इरशाद रब्बानी, मस्जिद लगड़े हाफिज नई सड़क में मौलाना ज़कीउल्लाह असदुल कादरी, मुगलिया शाही मस्जिद बादशाहबाग में मौलाना हसीन अहमद हबीबी, शाही मस्जिद ढ़ाई कंगूरा में हाफिज़ नसीम अहमद बशीरी, नूरानी माहौल में ईद की नमाज़ पूरी करायेंगे। ऐसे ही मस्जिद अक्सा रेवड़ीतालाब में मौलाना जमील, मस्जिद बरतला में मौलाना अयाज़ महमूद, नगीने वाली मस्जिद रेवड़ीतालाब में हाफिज़ सैफुल मलिक, मस्जिद सुल्तानिया रेवड़ी तालाब में मोहम्मद सउद, मस्जिद शाह तैयब बनारसी में मौलाना अब्दुल सलाम व मस्जिद शाह मूसा ककरमत्ता में मौलाना शकील नमाज अदा करायेंगे। वहीं छित्तनपुरा मस्जिद खोजित कुआं में मौलाना वकील अहमद मिस्बाही, मस्जिद याकूब शहीद में हाफिज़ मो. ताहिर, मस्जिद कम्मू खां डिठोरी महाल में मौलाना शमशुद्दीन, मस्जिद अहनाफ सरायहडहा में मौलाना फैजानुल्लाह कादरी नमाज़ अदा करायेंगे। ऐसे ही आलमगीर मस्जिद धरहरा, जामा मस्जिद नदेसर, बड़ी मस्जिद रसूलपुरा, ईदगाह विद्यापीठ, मस्जिद उस्मानिया, बड़ी मस्जिद सदर बाज़ार, मस्जिद दायम खां पुलिस लाइन, मस्जिद उल्फत बीबी, मस्जिद ईदगाह बैतुससलाम समेत शहर और आसपास की तकरीबन पांच सौ मस्जिदों में ईदुल फितर की नमाज़ पूरी अकीदत के साथ अदा करने की तैयारियां पूरी कर ली गई है।

सेवईयों को तैयार करने में जुटी रही ख्वातीन 

घरों में ईद की तैयारियों में ख्वातीन देर रात तक लगी रही, सेवईयों से लेकर तमाम पकवान घरों में तैयार किये जा रहे थे तो वहीं सजने संवरने की भी तैयारी हो रही थी, कोई मेहंदी लगा रहा था तो कोई पार्लर से लौटता नज़र आया।

ईद पर रखें लोगों का खास ख्याल

वाराणसी के मुफ्ती-ए-बनारस अहले सुन्नत मौलाना मोइनुद्दीन अहमद फारुकी प्यारे मियां ने लोगों से अपील की है कि लोग अपने पड़ोसियों और गरीबों का ख्याल रखें। ऐसा न हो कि आपके पड़ोस में ईद के दिन कोई भूखा रह जाये। उन्होंने कहा कि ईद की खुशी में इस बात का पूरा ख्याल रखें कि सभी इस दिन खुशी मनायें और वतन से मोहब्बत की दुआ मांगे, भलाई और परोपकारी के रास्ते पर चलें, किसी को बुरा न कहें।

पूरी रात चला एसएमएस का दौर

30 वां रोज़ा पूरा होते ही शहर में ईद मुबारक और ईद से मिलते जुलते तमाम मुबारकबाद मैसेज व एसएमएस लोगों ने अपने मोबाइल से अज़ीज़ों को भेजा। कम्प्यूटर, लेपटाप और स्मार्ट फोन पर ई-मेल के ज़रिये व वाट्स एप, फेसबुक से भी लोगों ने एक दूसरे को मुबारकबाद दी। ईद की खुशियों में सबसे ज्यादा बच्चे और यंगेस्टर्स डूबे दिखाई दिये जो एक दूसरे को ऐसे पैगाम आदान-प्रदान कर रहे थे।

रविवार, 1 मई 2022

Eid 2022: ईद उसकी जो रब के इम्तिहान में हुआ पास

 ‌रब लेता है अपने नेक बंदों का इम्तेहान

Varanasi (dil India live )। मज़हबे इस्लाम में सब्र और आजमाइश को आला दर्जा प्राप्त है। कहा जाता है कि रब वक्त-वक्त पर हर बंदों का इम्तेहान लेता है और उन्हें आज़माता है। ईद की कहानी भी सब्र और आज़माइश का ही हिस्सा है। यानी माह भर जिसने कामयाबी से रोज़ा रखा, सब्र किया, भूखा रहा, खुदा की इबादत की, वो रमज़ान के इम्तेहान में पास हो गया और उसे रब ने ईद कि खुशी अता फरमायी। दरअसल ईद उसकी है जो सब्र करना जानता हो, जिसने रमज़ान को इबादतों में गुज़ारा हो, जो बुरी संगत से पूरे महीने बचता रहा हो, मगर उस शख्स को ईद मनाने का कोई हक़ नहीं है जिसने पूरे महीने रोज़ा नहीं रखा और न ही इबादत की। नबी-ए-करीम (स.) ने फरमाया कि रमज़ान वो मुकदद्स महीना है जो लोगों को यह सीख देता है कि जैसे तुमने एक महीना अल्लाह के लिए वक्फ कर दिया, सुन्नतों और नफ़्ल पर ग़्ाौर किया, उस पर अमल करता रहा, वैसे ही बचे पूरे साल नेकी और पाकीज़गी जारी रखो। यह महीना इस बात की ओर भी इशारा करता है कि अगर एक महीने की इबादत के बाद ईद की खुशी बंदों को रब देता है तो 12 महीने अगर इबादतों में गुज़ारा जाये तो जिन्दगी में हर दिन ईद जैसा और हर रात रमज़ान जैसी होगी। रमज़ान महीने की इबादत इसलिए भी महबूब है क्यों कि ये अल्लाह का महीना है और इस महीने के पूरा होते ही खुदा ईद का तोहफा देकर यह बताता है कि ईद की खुशी तो सिर्फ दुनिया के लिए ह। इससे बड़ा तोहफा कामयाब रोज़ेदारों को आखिरत में जन्नत के रूप में मिलेगा। पूरी दुनिया में यह अकेला ऐसा त्योहार है जिसमें कोईभी पुराने या गंदे कपड़ों में नज़र नहीं आता। अगर एक महीने की इबादत के बाद ईद मिलती है तो हम साल के बारह महीने इबादत करें तो हमारा हर दिन ईद होगा। तो हम क्यों न हर दिन हर महीना अपना इबादत में गुज़ारे।

                       डॉ. एहतेशामुल हक  

                (सदर, सुल्तान क्लब, वाराणसी)

शनिवार, 30 अप्रैल 2022

Eid Mubarak: मेल-जोल व खुशियां बांटने का नाम है ईद

 



Varanasi (dil India live )। अरबी में किसी चीज़ के बार-बार आने को उद कहा जाता है उद से ही ईद बनी है। ईद का मतलब ही वो त्योहार है जो बार-बार आये। यानी जिसने रोज़ा रखा है उसके लिए ईद बार-बार आएगी। ईद तोहफा है उनके लिए जिन्होंने एक महीना अपने आपको अल्लाह के लिए वक्फ कर दिया। यही वजह है कि रमज़ान और ईद एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अगर रमज़ान होता और ईद न होती तो हमें शायद इतनी खुशी न होती। इस्लाम कहता है कि रमज़ान के बाद जब ईद आये तो इस बात का पता करो कहीं कोई रो तो नहीं रहा है, कोई ऐसा घर तो नहीं बचा है जहां ईद के लिए सेवईयां न हो। कोई पड़ोसी भूखा तो नहीं है। अगर ऐसा है तो उसकी मदद करना हर साहिबे नेसाब पर वाजिब है।

खासकर छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं होता मगर वो इसलिए खुश होते हैं कि रमज़ान खत्म होते ईद आयेगी, ईदी मिलेगी। इसे ईद-उल-फित्र भी कहते हैं क्यों कि इसमें फितरे के तौर पर 2 किलों 45 ग्राम गेंहू जो हम खाते हो उसके दाम के हिसाब से घर के तमाम सदस्यों को सदाका-ए-फित्र निकालना होता है। दरअसल ईद उसकी है जिसने रमज़ान भर इबादत किया और कामयाबी से रमज़ान के पूरे रोज़े रखे। नबी-ए-करीम (स.) ईद सादगी से मनाया करते थे। इसलिए इस्लाम में सादगी से ईद मनाने का हुक्म है। एक बार नबी (स.) ईद के दिन सुबह फज्र की नमाज़ के बाद घर से बाज़ार जा रहे थे कि आपको एक छोटा बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया। नबी (स.) ने उससे कहा आज तो हर तरफ ईद की खुशी मनायी जा रही है ऐसे में तुम क्यों रो रहे हो? उसने कहा यही तो वजह है रोने की, सब ईद मना रहे हैं मैं यतीम हूं, न मेरे वालिदैन है और न मेरे पास कपड़े और जूते-चप्पल के लिए पैसा। यह सुनकर नबी (स.) ने उसे अपने कंधों पर बैठा लिया और कहा कि तुम्हारे वालिदैन भले नहीं हैं मगर मैं तुम्हे अपना बेटा कहता हूं। नबी-ए-करीम (स.) के कंधे पर बैठकर बच्चा उनके घर गया वहां से तैयार होकर ईदगाह में नमाज़ अदा की। जो बच्चा यतीम था उसे नबी-ए-करीम (स.) ने चन्द मिनटों में ही अपना बेटा बनाकर दुनिया का सबसे अमीर बना दिया। इसलिए ईद आये तो सभी में आप भी खुशियां बांटे, सबको खुशी दें, सही मायने में तभी आपकी ईद होगी। अल्लाह ताला सभी को रोज़ा रखने की तौफीक दे ताकि सभी की ईद हो जाये..आमीन।

                           डा. मो. आरिफ

{लेखक मुस्लिम मामलो के जानकार व इतिहासकार}

गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

काशी के सौहार्द ने किया था बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक को प्रभावित

बनारस के गोविन्दपुरा में सबसे पहले मनी थी ईद  

ईद पर दोनों मजहब के लोगों की अलग-अलग पहचान करना था मुश्किल

Aman

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। ईद मिल्लत और मोहब्बत का त्योहार है। सभी जानते हैं कि हफ्ते भर चलने वाले इस महापर्व से हमें खुशी और एकजुटता का पैगाम मिलता है, मगर कम लोग जानते हैं कि ईद का ऐतिहासिक पक्ष क्या है। इस्लामिक विद्वान मौलाना अज़हरुल क़ादरी ने ईद की तवारीखी हैसियत पर रौशनी डालते हुए बताया कि सन् 2 हिजरी में सबसे पहले ईद मनायी गयी। पैगम्बरे इस्लाम नबी-ए-करीम हज़रत मोहम्मद (स.) का वो दौर था। उन्होंने सन् 2 हिजरी में पहली बार ईद की नमाज़ पढ़ी और ईद की खुशियां मनायी। उसके बाद से लगातार आज तक पूरी दुनिया में ईद की नमाज़े अदा की जाती है और लोग इसकी खुशियों में डूबे नज़र आते हैं।

जहां तक बनारस में ईद के त्योहार का सवाल है, इतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ तथ्यो को खंगालने के बाद बताते हैं कि बनारस में गोविन्द्रपुरा व हुसैनपुरा दो मुहल्ले हैं जहां सबसे पहले ईद मनायी गयी थी। वो बताते हैं कि हिन्दुस्तान में मुसलमानों के आने के साथ ही ईद मनाने के दृष्टांत मिलने लगते हैं। जहां तक बनारस की बात है यहां मुस्लिम सत्ता की स्थापना से पूर्व ही मुस्लिम न सिर्फ आ चुके थे बल्कि कई मुस्लिम बस्तियां भी बस गयी थी। दालमंडी के निकट गोविन्दपुरा और हुसैनपुरा में ईद की नमाज़ सबसे पहले पढ़े जाने का संकेत तवारीखी किताबों से ज़ाहिर है।

इतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि जयचन्द की पराजय के बाद बनारस के मुसलमानों की ईद को देखकर बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक को उस दौर में आश्र्चर्य हुआ था कि ईद की नमाज़ के बाद बनारस में जो सौहार्दपूर्ण माहौल दिखाई दिया था उसमें उन्हें हिन्दू-मुसलमान की अलग-अलग पहचान करना मुश्किल था। यह बनारसी तहज़ीब थी जो देश में मुस्लिम सत्ता की स्थापना के पूर्व ही काशी में मौजूद थी। जिसने एक नई तहज़ीब, नई संस्कृति हिन्दुस्तानी तहज़ीब को जन्म दिया। तब से लेकर आज तक ईद की खुशियां बनारस में जितने सौहार्दपूर्ण और एक दूसरे के साथ मिलकर मनाया जाता है उतना अमनों-सुकुन और सौहार्दपूर्ण तरीके से दुनिया के किसी भी हिस्से में ईद नहीं मनायी जाती।

ईद का इस्लामी पक्ष

प्रमुख इस्लामी विद्धान मौलाना साक़ीबुल क़ादरी कहते हैं कि ईद रमज़ान की कामयाबी का तोहफा है। वो बताते हैं कि नबी का कौल है कि रब ने माहे रमज़ान का रोज़ा रखने वालों के लिए जिंदगी में ईद और आखिरत के बाद जन्नत का तोहफा मुकर्रर कर रखा है। यानि रमज़ान में जिसने रोज़ा रखा है, इबादत किया है नबी के बताये रास्तों पर चला है तो उसके लिए ईद का तोहफा है।

दूसरों को खुशिया बांटना है पैगाम

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां फाजिले बरेलवी पर रिसर्च करने वाले प्रमुख उलेमा मौलाना डा. शफीक अजमल की माने तो ईद का मतलब केवल यह नहीं कि महीने भर जो इबादत करके नेकियों की पूंजी एकत्र किया है उसे बुरे और बेहूदा कामों में ज़ाया कर देना बल्कि ईद का मतलब है कि दूसरों को खुशियां बांटना। अपने पड़ोस में देखों कोई भूखा तो नहीं है, किसी के पास पैसे की कमी तो नहीं है, कोई ऐसा बच्चा तो नहीं जिसके पास खिलौना न हो, अगर इस तरह की बातें मौजूद है तो उन तमाम की मदद करना फर्ज़ है। मौलाना शफी अहमद कहते हैं कि दूसरो की मदद करना ईद का सबसे बड़ा मकसद है तभी तो रमज़ान में जकात, फितरा, खैरात, सदका बेतहाशा निकालने का हुक्म है ताकि कोई गरीब, मिसकीन, फकीर नये कपड़े से महरुम न रह जाये। ईद की खुशी में सब खुश नज़र आयें। यही वजह है कि ईद पर हर एक के तन पर नया लिवास दिखाई देता है।  

ईद ग्लोबल फेस्टिवल

एक माह रोज़ा रखने के बाद रब मोमिनीन को ईद कि खुशियो से नवाज़ता है, आज वक्त के साथ वही ईद ग्लोबल फेस्टीवल बन चुकी है जो टय़ूटर, वाट्स एप, स्टेलीग्राम से लेकर फेसबुक तक पर छायी हुई है।

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बोले, सभी धर्म का उद्देश्य विश्व मानवता का कल्याण एवं आशा का संदेश देना Varanasi (dil India live). आज वैज्ञानिक सुविधाओं से संपन्न मानव धरती...