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मंगलवार, 19 सितंबर 2023

Jain Dharam का पर्वाधिराज 'पर्युषण' शुरू

सबसे पहले जो क्षमा करता है, वो सबसे शक्तिशाली 

  • जिसके पास क्षमा रूपी तलवार है उसका दुर्जन कुछ नहीं कर सकते




Varanasi (dil India live).19.09.2023. भारतीय संस्कृति के पर्वो में जैन धर्म के पर्युषण (दशलक्षण) महापर्व का विशेष महत्व है. श्री दिगम्बर जैन समाज काशी के तत्वावधान में आयोजित 14 दिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलवार 19 सितंबर को प्रातः से ही नगर के जैन मन्दिरो भेलूपुर, सारनाथ, मैदागिन, खोजंवा, नरिया, ग्वाल दास साहू लेन, चन्द्रपुरी, भदैनी में दशलक्षण पूजन-एवं विविध धार्मिक आयोजन के साथ शुरू हुआ. जैन धर्मावलम्बीयो के लिए यह बहुत ही कठिन आत्मा की आराधना का पर्व है. इन दिनों सभी छोटे बडे व्रत- उपवास, संयम, सामायिक, जप, स्वाध्याय में तल्लीन रहते है. मंगलवार को सभी जैन मंदिरो में तीर्थंकरो का अभिषेक-पूजन प्रक्षाल के साथ पूजन प्रारंभ हुई. भगवान पार्श्वनाथ की जन्म स्थली भेलूपुर में प्रातः विधानाचार्य डा:पं: अशोक जैन के निर्देशन में संगीतमय दशलक्षण विधान का शुभारंभ हुआ-वही ग्वाल दास लेन स्थित मन्दिर में भी 10 दिवसीय विधान का विधि-विधान से शुभारंभ हुआ.

सायंकाल भेलूपुर स्थित भगवान पार्श्वनाथ जन्म स्थली पर शास्त्र प्रवचन प्रोः फूल चन्द्र प्रेमी ने दशलक्षण पर्व के प्रथम अध्याय "उत्तम क्षमा धर्म " का अर्थ सहित व्याख्यान करते हुए कहा कि जिसके पास क्षमा रूपी तलवार है उसका दुर्जन भी कुछ नहीं कर सकते. जिस दिन आपके जीवन में क्षमा का आगमन होगा उस दिन आपका जीवन 'पार्श्वनाथ 'के समान हो जायेगा. उन्होंने कहां-जो  पहले क्षमा मांगता है वह सबसे ज्यादा बहादुर है और जो सबसे पहले क्षमा करता है वह सबसे ज्यादा शक्तिशाली है. 

खोजंवा स्थित जैन मन्दिर में शास्त्र प्रवचन करते हुए डा: मुन्नी पुष्पा जैन ने कहां की जीवन की मिठास का स्वाद लेने के लिए आपके पास अतीत को भूलने की और  दूसरो को क्षमा करने की शक्ति होना चाहिए. 

आत्मविश्वास, आत्म ज्ञान और आत्मसंयम केवल यही तीनों जीवन को परम शक्ति सम्पन्न बना देते है. उन्होंने कहां की समस्त बुराईयो को पी जाने की क्षमता प्रगट होना ही क्षमा धर्म है. क्षमा वही कर सकता है जिसके अंदर निर्मल ज्ञान का सागर है और वह तप तपस्या से ही संभव है. सायंकाल जैन मंदिरो में शास्त्र प्रवचन, जिनवाणी पूजन, तीर्थंकरो, क्षेत्रपाल बाबा, देवी पद्मावती जी की सामूहिक आरती की गई. आयोजन में प्रमुख रूप से अध्यक्ष दीपक जैन, उपाध्यक्ष राजेश जैन, आर सी जैन, विनोद जैन, अरूण जैन, अजीत जैन, विनोद जैन चांदी वाले, सौरभ जैन उपस्थित थे.

रविवार, 20 नवंबर 2022

Christ raja ka parva 2022



कैंडल हाथों में लेकर निकले मसीही 

Varanasi (dil india live). ईसाई धर्मावलंबियों ने इतवार को राजा खीस्त का पर्व धूमधाम से मनाया। सुबह विशेष प्रार्थना सभा हुई तो शाम में सेंट मेरीज़ महा गिरजाघर में ईसाई पुरोहितों द्वारा प्रभु खीस्त कि आराधना के बाद खीस्त राजा की भव्य शोभायात्रा सेंट मेरीज़ से निकाली गई। बिशप यूजीन की अगुवाई में शोभा यात्रा में मसीही हाथों में कैंडल लाइट लेकर चल रहे थे। शोभा यात्रा कैंटोंमेंट इलाके में भ्रमण करते हुए वापस सेंट मेरीज़ महा गिरजाघर पहुंच कर सम्पन्न हुई।

ईसाई धर्मावलंबियों कि मान्यता है कि प्रभु यीशु संसार के राजा हैं। वो जितने दिन भी धरती पर रहे उन्होंने लोगों को प्रेम व भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया। वो धरती पर मानव रूप में आए उन्होंने अपने अनुयायियों को सच्चाई के रास्ते पर चलने की वकालत करते हुए मानव जाति के कल्याण की राह दिखाई। उनके बताए मार्ग पर चलकर ही हम खुद को मसीही कहने के सच्चे हकदार बन सकते हैं। 

इस दौरान कैण्ट थाना प्रभारी प्रभुकांत, उपनिरीक्षक प्रवीण कुमार सचान, वैभव कुमार सहित बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स तैनात किया गया था।

रविवार, 30 अक्तूबर 2022

Fastival: व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी सूर्य दिया अर्घ्य


Ghazipur (dil india live)। सूर्य उपासना का महापर्व डाला छठ पर जनपद में गंगा तट वह गांव के सरोवर में व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। शाम लगभग 3:00 बजे से ही महिलाओं का घाटों पर जाना आरंभ हो गया। इसके साथ ही सूर्य उपासना का महापर्व डाला छठ का चिर परिचित गीत गाते” कांच ही बांस के बहंगिया,बहगीं लचकती जाय “के साथ ही महिलाओं ने गंगा घाटों पर पहुंचना आरंभ कर दिया । महापर्व का उत्साह नदियों , सरोवर ,तालाबों के किनारे देखा गया ।आज रविवार की शाम को व्रती महिलाओं ने घाटों पर पहुंचकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। पुलिस प्रशासन द्वारा घाटों के किनारे महिला कांस्टेबल तथा पुरुष कांस्टेबल की ड्यूटी लगी थी। पुलिस कांस्टेबलों द्वारा गंगा के किनारे नाव पर भी चक्रमण करते देखा गया। जिले के प्रशासनिक अधिकारी अलर्ट रहें ,पेट्रोलिंग करते देखा गया। आज सुबह से ही लोगों द्वारा फल की खरीदारी के लिए बाजरो में भीड़ उमरी रही । घाटों पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगी रही । घाटों पर पूजन के लिए शाम के समय नगर एवं ग्रामीण क्षेत्र के लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया । 

रविवार, 11 सितंबर 2022

Jain dharam news: क्षमा कायरों का नहीं वीरों का धर्म

भगवान पार्श्वनाथ जन्मस्थली पर बही मैत्री, प्रेम  की गंगा 

विश्व मैत्री क्षमावाणी पर्व पर पूरे विश्व के लिए दिया गया प्रेम का सन्देश 





Varanasi (dil india live). श्री दिगम्बर जैन समाज काशी द्वारा भेलूपुर स्थित भगवान पार्श्वनाथ जी की जन्म स्थली पर रविवार को क्षमावाणी पूजन, तीर्थंकरो का प्रक्षाल नमन, विद्वत जनो का सम्मान एवं विश्व मैत्री क्षमावाणी पर्व पर भारी संख्या में लोगों ने एक दूसरे से क्षमायाचना व क्षमा का सन्देश पूरे विश्व के लिए हुआ। प्रारंभ में अपराह्न 1 बजे से क्षमावाणी पूजन एवंदेवाधिदेव श्री 1008 पार्श्वनाथ का अभिषेक मंत्रोच्चारण के साथ सायं तक चला। 
विश्व शांति के लिए शान्ती धारा की गई। 

राजेश जैन ने बताया कि यह वो दिन है जिस दिन बैर विरोध को शांत कर क्षमा, प्रेम और मैत्री भाव प्रकट किया जाता है। शत्रु भी इस दिन एक दूसरे को क्षमादान करके मन को शांत एवं निरबैर बनाने का प्रयत्न करते हैं। अनजाने में बिन चाहे भी भूल किसी से हो सकती है, ऐसे उन अंजान पलों की भूल हमारी माफ करें। 

क्षमावाणी पर्व पर हमें क्षमा का दान करे, मुझे गले से लगाकर मेरे ऊपर उपकार करें ,कलुष ह्रदय को साफ करें । तीर्थंकर पार्श्वनाथ अतिशय भूमि क्षेत्र में विश्व का यह अनूठा कार्यक्रम वाराणसी के भेलूपुर स्थित जैन मन्दिर में आयोजित हुआ। जहां बहती रही सिर्फ प्रेम, मैत्री एवं क्षमा की गंगा। इस पर्व पर सभी छोटे- बडे का भेदभाव मिटाकर महिलाए, बच्चे, बुजुर्ग एक दूसरे से अश्रुपूरित नेत्रो से पाँव पकड़कर गले से गले मिलकर क्षमा मांग रहे थे। 

तन-मन एवं आत्मा की शुद्धी पर्युषण की महानता, क्षमावाणी की सौजन्यता से विभूषित होकर जैन धर्म सभी के जीवन में उत्तम क्षमा का मंगलमयी सन्देश देता है। 

परस्परोप ग्रहो जीवानाम् की भावना एक -दूसरे के प्रति सभी के ह्रदय में प्रेम गहरा और प्रगाढ होता रहे। यही मैत्री के क्षमावाणी पर्व का मुख्य उद्देश्य है। यही सन्देश जैन धर्म पूरे विश्व में गुंजायमान करता है।क्षमावाणी सन्देश में प्रोः अशोक जैन ने कहां क्षमा अमृत है, क्षमा ज्योति पुंज है, आत्मनुभव का वास्तविक रूप है। प्रोः कमलेश जैन ने कहां-क्षमा श्रमण जो होता है विष को अमृत करता है। 

ब्रह्मचारी आकाश जैन ने कहां - क्षमा कायरो का नहीं वीरों का धर्म है। क्षमाशील आत्म पुरूषार्थ करते है। 

डां मुन्नी पुष्पा जैन ने कहां - क्षमा प्राणी मात्र का धर्म है। इसे किसी जाति, सम्प्रदाय से नहीं जोड़ा जा सकता। 

पं सुरेंद्र शास्त्री ने कहां- क्षमा आत्मा का स्वभाविक गुण है। क्षमा मोक्ष महल की आधार शिला है। 

धर्म प्रचारक राजेश जैन ने कहां-संस्कृत में पृथ्वी का एक नाम क्षमा, अचला, स्थिरा भी है, विवेकी व्यक्ति का ह्रदय पृथ्वी के समान अचल और आचरण में हमेशा स्थिर होना चाहिए। इसलिए कहां गया है क्षमा वीरसय् भूषणम् ।यही संदेश जैन धर्म पूरे विश्व मे गुंजायमान करता है। 

यह पर्व प्रेम, करूणा, वात्सल्य और नैतिकता के भाव जागृत करता है। 

विद्वानो ने क्षमावाणी पर्व को विश्व मैत्री बताते हुए इसकी तुलना अंहिसा दिवस से की। पर्व पर जैन साधको ने देश-विदेश में रहने वाले रिश्तेदारों ,इष्ट मित्र, व्यापारी, शुभचिंतक सभी वर्ग के लोगो को क्षमावाणी कार्ड, दूरभाष, ई मेल, एस एम एस द्वारा सन्देश देकर शुभकामना दी। 

विद्वानो में प्रोः अशोक जैन, प्रोः कमलेश जैन, डाः मुन्नी पुष्पा जैन, ब्रह्मचारी आकाश जैन, पं सुरेंद्र शास्त्री, पं मनीष जैन एवं 16 दिन से 3 दिनो का निर्जला व्रत करने वालो में श्री मति मोना काला (16)दिन, आलोक जैन (10)दिन, अर्पित जैन (10)दिन श्रीमति मंजू जैन (10)दिन, किशोर जैन (10)दिन, रजनी जैन, संध्या जैन, शोभा जैन, श्वेता जैन, नीति जैन, मनीषा जैन, इन सभी व्रत तपस्वीयों का सम्मान समाज के अध्यक्ष दीपक जैन, उपाध्यक्ष राजेश जैन, प्रधान मन्त्री अरूण जैन, विनय जैन, तरूण जैन, सुधीर पोद्दार, प्रमिला सांवरिया, शोभारानी जैन ने किया। 

आयोजन में प्रमुख रूप से आर सी जैन, संजय जैन, विनोद जैन, रत्नेश जैन, सौरभ जैन, निशांत जैन उपस्थित थे।

गुरुवार, 8 सितंबर 2022

Ananta chaturdashi पर्व पर होगा 108 रजत कलशो से महामस्तकाभिषेक




Varanasi (dil india live)। नगर के विभिन्न जैन मंदिरो में शुक्रवार 9 सितम्बर को विविध धार्मिक आयोजन होगे। श्री दिगम्बर जैन समाज काशी के तत्वावधान में शुक्रवार 9-9-2022 को दशलक्षण (पर्युषण महापर्व) के अन्तिम दिन नगर के सभी जैन मंदिरो मे परिक्रमा पूजन, अभिषेक, प्रभात फेरी कर धर्मावलम्बी प्रातः बेला से ही करेंगे। 

मुख्य आयोजन-:अनंत चतुर्दशी पर्व पर ग्वाल दास साहू लेन स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर जी में पूजन के साथ सकल जैन समाज की उपस्थिती में (केंद्रीय कार्यक्रम)ठीक सायं 4 बजे से श्री 1008 अनंत नाथ भगवान एवं चिंतामणि पार्श्वनाथ जी (मूलनायक) पद्मासन विशाल बडी प्रतिमा जी का 108 रजत कलशो से महामस्तकाभिषेक का आयोजन होगा। भगवंतो की आरती के उपरांत प्रवचन का कार्यक्रम होगा।

Jain dharam news:जैन मंदिरो में चौबीसो तीर्थंकरो का प्रक्षालन-पूजन

जहां पर किंचित मात्र भी अंतरंग और बहिरंग न हो उसे कहते है आकिंचन धर्म 

पर्युषण पर्व का नौवां दिन-अनन्त चतुर्दशी शुक्रवार को




Varanasi (dil india live)। श्री दिगम्बर जैन समाज काशी के तत्वावधान में गुरुवार को प्रातः जैन मंदिरो में चौबीसो तीर्थंकरो का प्रक्षालन एवं पूजन किया गया। पर्व के नौवें दिन मंदिरो मे रत्नत्रय स्थापना, नन्दीशवर दीप पूजन, दशलक्षण बिधान पूजन, सोलह कारण व्रत पूजन, स्वयंभू स्त्रोत पूजा प्रारंभ हुई। 

प्रातः भगवान पार्श्वनाथ जी की जन्म भूमि भेलूपुर मे ब्रह्मचारी आकाश जैन जी के कुशल निर्देशन में संगीतमय क्षमावाणी महामंडल विधान मे भक्तो ने बढ चढ कर हिस्सा लेकर पूरी श्रद्धा के साथ भाग लिया। गुरुवार को जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर की जन्म स्थली चन्द्रवती, चौबेपुर भगवान के गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान कल्याणक भूमि मे चन्द्रप्रभु स्वामी का प्रक्षाल पूजन किया गया। 

पर्युषण पर्व के नौवे अध्याय "उत्तम आकिंचन धर्म "पर ग्वाल दास साहू लेन स्थित जैन मन्दिर मे सायंकाल पं सुरेंद्र शास्त्री ने व्याख्यान देते हुए कहा-आकिंचन का अर्थ है-मेरा कुछ भी, किंचित भी नहीं है। 'मै का अर्थ है-आत्मा और मेरा अर्थात आत्मा का क्या?कुछ भी तो नहीं ।

आत्मा तो शरीर को छोड़कर चली जाती है ।शरीर ही जब मेरा नहीं है, तो कुछ मेरा कैसे हो सकता है। यदि आप उत्तम आकिंचन धर्म अपनाना चाहते है, तो धन के लिए धर्म को नहीं ,धर्म के लिए धन को छोडना प्रारंभ कर दो। बाहरी परिग्रह को त्याग कर आत्म-स्वभाव में रमण करना सीख जाओ। सभी का कल्याण हो, सभी धर्म मार्ग पर चलना सीख जाए। 

खोजंवा स्थित जैन मंदिर में डा: मुन्नी पुष्पा जैन ने कहां आकिंचन धर्म आत्मा की उस दशा का नाम है जहां पर बाहरी सब छूट जाता है  किंतु आंतरिक संकल्प विकल्पों की परिणति को भी विश्राम मिल जाता है। जहां पर किंचित मात्र भी अंतरंग और बहिरंग परिग्रह न हो उसे कहते है आकिंचन धर्म। 

सायंकाल सभी जैन मंदिरो मे-भजन, जिनवाणी पूजन, शास्त्र प्रवचन, तीर्थंकरो की आरती, सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। 

आयोजन मे प्रमुख रूप से अध्यक्ष दीपक जैन, उपाध्यक्ष राजेश जैन, विनोद जैन, अरूण जैन, तरूण जैन, सुधीर पोद्दार, अजित जैन, राज कुमार बागडा उपस्थित थे। 

बुधवार, 7 सितंबर 2022

Jain news: जीवन का उद्धार संग्रह से नही त्याग से

पर्युषण पर्व का अष्टम दिन- रत्नत्रय व्रत पूजा प्रारंभ 



Varanasi (dil india live)। श्री दिगम्बर जैन समाज काशी के तत्वावधान में चल रहे पर्युषण महापर्व पर बुधवार को सुबह सभी जैन मंदिरो में तपस्वियों के तप की अनुमोदना की गई ।

पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के पावन अवसर पर सोलह कारण के 32/16 उपवास, दशलक्षण व्रत के 10 उपवास, अठाई के 8 उपवास, रत्नत्रय के 3 उपवास, एकासन एवं किसी भी प्रकार से त्याग-तपस्या कर तप की राह पर चलने वाले सभी धर्म प्रेमी तपस्वियों के उत्कृष्ट साधना के लिए जैन समाज ने कृत कारित अनुमोदना की। यह पर्युषण पर्व सबके जीवन को एक नई दिशा प्रदान करें, ऐसी मंगल कामना की गई। 

बुधवार को जैन मंदिरो में रत्नत्रय व्रत पूजा, भगवनतो की पूजा, अरिहंतो की पूजा एवं अभिषेक व क्षमावाणी महामंडल विधान पूरी भक्ति के साथ संगीतमय वातावरण मे मंत्रोच्चार के साथ किया। जैन धर्म में भादो माह को सम्राट के समान माना गया है इस दौरान श्रावक भक्तो के मन मे सहज ही त्याग- तपस्या, दर्शन सहित तमाम धार्मिक भावना स्वयं उत्पन्न हो जाती है। 

बुधवार को प्रातः भदैनी स्थित भगवान सुपारस नाथ जी की जन्म स्थली (जैन घाट) मे तीर्थंकर का प्रक्षाल पूजन किया गया। थोडा सा त्याग वीजारोपण की तरह हमेशा करते रहना चाहिए, जिससे भविष्य में पुण्य की फसल लहलहायेगी। उक्त बाते खोजंवा स्थित जैन मंदिर मे पर्व के आठवे दिन "उत्तम त्याग धर्म " पर व्याख्यान देते हुए-डाः मुन्नी पुष्पा जैन ने कहां- उन्होंने कहा जो समस्त द्रव्यो में मोह छोड़कर संसार शरीर और भोगो से विरक्त होता है, वही सच्चा त्याग धर्म है। 

ग्वाल दास साहू लेन स्थित मन्दिर मे व्याख्यान देते हुए प: सुरेंद्र शास्त्री ने कहा- समस्त संसार में उत्तम त्याग धर्म श्रेष्ठ कहा गया है। औषधि दान, शास्त्र दान, अभय दान, आहार दान-ये तो व्यवहार त्याग के रूप में है। राग और द्वेष का निवारण करना (त्यागना) निश्चय त्याग है। बुद्धिमान लोग दोनों दान (व्यवहार और निश्चय) करते है, दिगम्बर जैन साधु त्याग की उत्कृष्ट मूर्ति होते है। 

जिस प्रकार मेघा जल का त्याग, नदी स्वयं का जल नही पीती, पेड़ स्वयं फल नही खाते। इसी प्रकार अधिक धन या वस्तु का संग्रह नही करना चाहिए त्यागने से ही मन एवं चित्त प्रसन्न रहता है। 

सायंकाल जिनेन्द्र भगवान की आरती, प्रतियोगिताए, धर्म पर फैंसी ड्रेस प्रतियोगिताए, सांस्कृतिक कार्यक्रम किये गए। 

आयोजन में प्रमुख रूप से दीपक जैन, राजेश जैन, संजय जैन, अरूण जैन, जय कुमार जैन, रत्नेश जैन, तरूण जैन, सौरभ जैन उपस्थित रहे। 

मंगलवार, 6 सितंबर 2022

Jain dharam news:तप के बिना आत्म शुद्धि नही

पर्युषण पर्व का सातंवा दिन- उत्तम तप धर्म 


Varanasi (dil india live)। दशलक्षण ( पर्युषण पर्व) जैन संस्कृति का महान, पवित्र, आध्यात्मिक पर्व है। आत्मशोधन, पर्यालोचन और आत्म निरिक्षण करके अपने अतित के परित्याग करने में ही इस पर्व की सार्थकता है। मंगलवार को प्रातः से नगर की सभी जैन मंदिरो में पूजन-अर्चन पाठ प्रारंभ हुआ। 

श्री दिगम्बर जैन समाज काशी के तत्वावधान में चन्द्रपुरी चौबेपुर स्थित गंगा किनारे भगवान चन्दा प्रभु का प्रातः सविधि पूजन एवं अभिषेक किया गया। भगवान पार्श्वनाथ जी की जन्म भूमि भेलूपुर में भगवान पार्श्वनाथ जी का अभिषेक पूजन किया गया। साथ में चल रहे दस दिवसीय क्षमावाणी महामंडल विधान में काफी संख्या में महिलाए एवं पुरुष जोड़ों ने हिस्सा लेकर संस्कृत के श्लोक पढकर श्री जी भगवान को श्री फल अर्पित कर धर्म में सराबोर रहे। वही- सारनाथ, नरिया, खोजंवा, मैदागिन, हाथीबाजार, भदैनी,एवं ग्वाल दास साहू लेन स्थित मन्दिरों में पूजन- पाठ अभिषेक व शांति धारा की गई। 

मंगलवार की सायंकाल ग्वालदास साहू लेन स्थित जैन मन्दिर में पर्व के सातंवे अध्याय " उत्तम तप धर्म " पर व्याख्यान देते हुए पं सुरेंद्र शास्त्री ने कहां- तप के बिना आत्म शुद्धि भी नहीं हो सकती। आत्मा को स्वर्ण बनाना है तो इसे तपना पड़ेगा। तप से ही परमार्थीक लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। 

खोजंवा स्थित जैन मंदिर में व्याख्यान देते हुए- डां मुन्नी पुष्पा जैन ने कहां - मात्र देह की क्रिया का नाम तप नहीं है अपितु आत्मा में उत्तरोत्तर लीनता ही वास्तविक 'निश्चय तप है। जिस प्रकार अग्नि के माध्यम से पाषाण में से स्वर्ण पृथक किया जाता है वैसे ही हम तप रूपी अग्नि के माध्यम से शरीर से आत्मा को पृथक कर सकते है। 

सायंकाल जैन मंदिरो में जिनवाणी स्तुति, ग्रन्थ पूजन, तीर्थंकर पार्श्वनाथ, क्षेत्रपाल बाबा एवं देवी पद्मावती जी की सामूहिक आरती की ग ई।  

आयोजन मे प्रमुख रूप से श्री दीपक जैन, राजेश जैन, अरूण जैन, ध्रुव कुमार जैन, रत्नेश जैन, तरूण जैन, विजय जैन उपस्थित थे। 

बुधवार, 13 जुलाई 2022

भारतीय सांस्कृतिक पर्व गुरुपूर्णिमा


Dr. Sanjay Kumar   

MP (dil india live). भारतीय संस्कृति में गुरु का विशेष महत्व माना गया है। गुरु ही मनुष्य में ज्ञान का आधान करता है। इसलिए आषाढ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। यद्यपि भारत देश ऋषि प्रधान देश रहा है, हर युग में ऋषियों के प्रति आदर - सम्मान का भाव देखने को मिलता है।काश्यप, आंगिरा, भृगु, वशिष्ठ, अगस्त्य, भारद्वाज, जमदग्नि, विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य, जैमिनी, बाल्मीकि, दुर्वाषा आदि  की  एक वृहद ऋषि परंपरा देखने को मिलती है। इन सभी के प्रति शिष्यों द्वारा अपार श्रद्धा का भाव भी दृष्टिगोचर होता है। यह देश ज्ञान वैभव का देश है। यहाँ अपरा और परा विद्याओं का संगम है। आत्मा तथा शारीर के साथ ही आदिभौतिक , आदिदैविक और आध्यात्मिक चिन्तन परम्परा का विकास ऋषियों के मनीषा से ही व्यक्त होती है। भारत में ज्ञान के मूलभूमि ऋषि ही हैं। क्योंकि सभी शास्त्र उन्ही के द्वारा श्रुत परंपरा से संरक्षित रहे हैं। इसलिए ऋषि परंपरा को ही गुरुपरंपरा के रूप वन्दना की जाती है। लेकिन एक मान्यता के अनुसार महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था। उन्हीं के सम्मान में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही  गुरु पूर्णिमा पर्व का आयोजन होता है। ऐसा भी बताया जाता है कि इसी दिन महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्यों व मुनियों को सर्वप्रथम श्रीमाद्भागवद्पुरण का उपदेश दिया था। श्रीमाद्भागवद्पुरण उनके अट्ठारह पुराणों में इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि इसमें भगवत- भक्ति के द्वारा मोक्ष का मार्ग  बतलाया  गया है। कुछ लोगों का यह भी  मानना है कि महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्र को लिखना  इसी दिन प्रारंभ किया था। इसलिए वेदांत दर्शन के प्रारंभिक दिन को गुरुपूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है| ब्रह्मसूत्र वेदान्त दर्शन का वह ग्रन्थ है  जो जीव–व्रह्म की एकता की घोषणा करता है। यहाँ  यह भी बताना उचित होगा कि भक्ति काल के संत श्रीघासीदास का जन्म भी  आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही  हुआ था। जो कबीर दास के शिष्य थे|पूर्णिमा के दिन का भौगोलिक रूप से भी अत्यधिक  महत्व माना जाता है। इस दिन चंद्रमा का पृथ्वी के जल से सीधा संबंध होता है| फलत: समुद्र में ज्वार- भाटा उत्पन्न हो जाता है। चंद्रमा समुद्र के जल को अपनी ओर खींचता है। यह क्रिया मनुष्य को भी प्रभावित करती है क्योंकि मनुष्य के शरीर में भी अधिकांश भाग जल का ही है |इसलिए मनुष्य के शरीर की  जल की गति बदल जाती है |गुण में भी परिवर्तन हो जाता है। आत्म- विस्तार की स्थिति बनने लगती है जिससे  एक अपूर्व आनंद की अनुभूति है।

      महर्षि वेदव्यास संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे।उन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता है | वे आदि  गुरु हैं| इसलिए उनके जन्मदिन आषाढ़पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। वेदांत दर्शन व अद्वैत वाद  के संस्थापक वेदव्यास ऋषि पाराशर के पुत्र थे तथा उनकी माता का नाम सत्यवती था। पत्नी  आरुणि से उत्पन्न महान बाल योगी सुखदेव  इनके पुत्र  हैं| एक परंपरा के अनुसार पांडू, धृतराष्ट्र और विदुर भी महर्षि वेदव्यास  के संतान माने जाते हैं | वेदव्यास ने महाभारत, ब्रह्मसूत्र ,18 पुराण ,18 उपपुराण की रचना किए हैं |इसके अतिरिक्त इन्होंने वेदों को उनके विषय के अनुसार ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद, अथर्ववेद के रूप में चार भागों में विभाजित किया है| महर्षि वेदव्यास की शिष्य परंपरा में  पैल ,जैमिनी, वैशंपायन, समन्तु मुनि , रोमहर्षण आदि का नाम महत्वपूर्ण रूप से सामने आता है| यह आषाढ़ पूर्णिमा गुरु महात्मा का पर्व है| इस दिन गुरु की पूजा का विधान शास्त्रों में मिलता है |गुरुपूर्णिमा वर्षा ऋतु में पङती है। इस दिन से 4 महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान का प्रकाश चारों ओर बिखेरते हैं। यह 4 माह प्राकृतिक रूप से बहुत रमणीय  होता  है|  ना अधिक गर्मी पड़ती है ना सर्दी का भान होता है| इसलिए चाहे ज्ञान क्षेत्र हो या अध्ययन क्षेत्र हो दोनों दृष्टि से यह समय बड़ा ही उपयुक्त माना जाता है। ऐसे समय में साधक  द्वारा की गई साधना फलीभूत होती है। ठीक वैसे ही जैसे  सूर्य के ताप से तप्त  भूमि को वर्षा की शीतलता एवं पौधे उत्पन्न करने की शक्ति मिलती है वैसे ही गुरु के सानिध्य में उपस्थित होकर साधकों की  ज्ञानशक्ति, भक्ति, शांति और योग की प्राप्ति होती है।

 यद्यपि भारतीय संस्कृति  ऋषियों का आचरण –व्यावहार द्वारा परिष्कृत संस्कृति है | यहाँ पर ऋषियों –मुनियों के प्रति जीवन के प्रारम्भिक काल से ही श्रद्धा का भाव देखने को मिलता है | ऋषि अपने आचरण मात्र  से  शिष्यों के अन्त: करण में ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित कर देता है |ऋषि ज्ञान का  प्रकाश अत्यंत गंभीर ,गुरु  व भारी होता है | इसी लिए उपदेशक ऋषियों को गुरु की संज्ञा से विभूषित किया गया है |गुरु शब्द दो वर्णों के योग से बना है –गु और रु | गु का अर्थ होता है–अंधकार या अज्ञान तथा रु का अर्थ होता है– हटाने वाला या अवरोधक। इसलिए गुरु शब्द का अर्थ अज्ञान को हटाने वाला या अंधकार को दूर करने वाला होता है। गुरु का ज्ञान भारी है, गुरु का कार्य भारी है और गुरु की सेवा भी भारी ही है | इसलिए वह गुरु कहलाता है | गुरु ही अज्ञान तिमिर का अपने ज्ञानांजन शलाका से हरण कर देता है |यानि अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य गुरु ही करता है | जिसके सम्बन्ध में ठीक ही कहा गया है –

                   अज्ञान तिमिरंध्श्च  ज्ञानांजन शलाकया |

                   चक्षुन्मिलितं   येन तस्मै श्री गुरुवे नम: ||

 एक  बात और ध्यान देने योग्य है कि गुरु का महत्व सभी धर्मों व सम्प्रदायों में है | जैन, बौद्ध , सिक्ख ,इसाई,पारसी,इस्लाम  आदि सभी किसी न किसी रूप में गुरु की सत्ता में विश्वास रखते है  | सभी गुरु का आदर करते हैं |क्योंकि गुरु ही सबके ज्ञान का आधार है | मैं ऐसा धर्म ,संप्रदाय ,जाति नहीं देखता हूँ जो विना गुरु का हो , सबके  अपने –अपने गुरु हैं |गुरु के महात्म्य के सम्बन्ध में आदिकवि वाल्मीकीय भी कहते हैं –

              स्वर्गोधनं वा धान्यं वा विद्या पुत्रा: सुखानि च |

                गुरुवृत्यनुरोधेन न किंचिदपि  दुर्लभम्   || (१/३०/३६)

अर्थात् गुरुजनों की सेवा का अनुसरण करने से स्वर्ग ,धन ,धान्य,विद्या ,पुत्र ,और सुख कुछ भी दुर्लभ नहीं होता है | यहाँ सेवा से अभिप्राय  गुरु का अनुशासन है, उसका निर्देश ही सेवा है | भारतीय परंपरा में गुरु को व्रह्म , विष्णु  और महेश के समकक्ष मानते हुए का गया है _

                   गुरुर्वह्मा  गुरुर्विष्णु  गुरुर्देवो महेश्वर:|

                 गुरु साक्षात् परव्रह्म तस्मै श्री गुरवे नाम ||

हिंदी के भक्तकवि तुलसीदास  भी गुरु -गौरव के विषय में कहा है –

                 श्रीगुरुचरन  सरोज रज निज मनु मुकुर सुधारी |

                 वरनऊँ रघुबर विमल  जसु जो दायक फल चारी ||

इस प्रकार भारतीय संस्कृति  में गुरु का स्थान बहुत श्रेष्ठ है। सभी मनुष्य के जीवन में  ज्ञानी गुरु की महती आवश्यकता होती है। गुरु ही जीवन लक्ष्य का प्रकाशक होता है। मनुष्य जीवन तो एक हाड.–मास के  पुतले  के समान है| उस पुतले को  ज्ञान संपन्न ,गुण सम्पन्न और विवेक संपन्न गुरु ही बनता है।  उसके विना देवता भी अधूरे हैं। राम और  कृष्ण भी विना गुरु के ज्ञानी नहीं बन सके। गुरु शास्त्र और शस्त्र से  शिष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। वही जीवन में परम ज्योति जलाता है। इतिहास साक्षी बिना गुरु के ज्ञान से कोई भी संवृद्ध नहीं हुआ है। यह गुरुपूर्णिमा पर्व समस्त ऋषि व  गुरुपरंपरा का प्रतीक शुभ दिवस है।

(लेखक संस्कृत विभाग, डाक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ( म.प्र.) में सहायक आचार्य हैं।

Mo.No.8989713997,9450819699

Email-drkumarsanjayBhu@gmail.com)

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

रमजान मुबारक: चांद दिखा तो होगा रमज़ान का आगाज़

कल चांद रात, उमड़ेगी चांद देखने वालों की भीड़

रहमतों, बरकतों का महीना है रमज़ान


वाराणसी ०१ अप्रैल (दिल इंडिया लाइव)। रहमत, बरकत और मगफिरत के महीने रमजान में अब महज़ कुछ ही वक्त रह गए हैं। कल चांद रात है, अगर चांद दिखा तो माहे रमज़ान का शनिवार की रात नमाज़े तरावीह के साथ आगाज़ हो जाएंगा, इतवार को मोमिनीन पहला रोज़ा रखेंगें, अगर चांद नहीं दिखा तो इतवार को चांद रात और सोमवार को पहला रमज़ान होगा। दरअसल हिजरी कैलेंडर में २८, ३१ तारीख का कोई वजूद नहीं है। हिजरी महीना चांद पर आधारित है। इसलिए कभी २९ दिन का तो कभी ३० दिन का होता है। इसलिए हर साल तकरीबन १० दिन इस्लामी पर्व पहले आ जाता हैं। रमज़ान की तैयारियां अंतिम चरण में है। कल चांद देखने मोमिनीन मस्जिदों, मैदानों और घरों की छतों पर एकत्र होंगे। चांद के दीदार के साथ ही तय होगा कि रमज़ान कब से शुरू होगा।

रमज़ान महीने को काफी खास और पाक माना जाता है। इस पूरे महीने लोग अल्लाह की इबादत करते हैं और रोजा रखते हैं। रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस साल रमजान का महीना 2 या 3 अप्रैल से शुरू होगा। इसी महीने में पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स.) के सामने इस्लाम की पाक किताब कुरान नाज़िल हुई थी। दुनिया भर में मुस्लिम इस पाक महीने का इंतजार करते है। रमज़ान के बाद ईद की खुशियां मनाई जाती है।

सोमवार, 14 मार्च 2022

हर्बल रंगों के साथ मनायें होली की खुशियां

खतरनाक हो सकता है होली में केमिकल युक्त रंगों का प्रयोग

कोविड प्रोटोकाल का करें पालन

वाराणसी, 14 मार्च (दिल इंडिया लाइव)। होली में केमिकल युक्त रंगों का प्रयोग आप के लिए घातक हो सकता हैं। इससे त्वचा के झुलसने के साथ ही श्वांस व नेत्र रोग सम्बन्धित बीमारियां भी हो सकती है। लिहाजा होली पर केमिकल युक्त रंगों के प्रयोग से बचें और हर्बल रंगों के साथ होली की खुशियां मनायें। 

 यह कहना है मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा.संदीप चौधरी का। डा. चौधरी ने कहा कि होली पर सभी को कोविड प्रोटोकाल का भी अवश्य पालन करना चाहिए । खास तौर पर उन लोगो को जो कोविड संक्रमण से गुजर चुके हैं।  ऐसे लोगो के लिए रसायन युक्त रंग काफी नुकसानदायक हो सकता है । जिला क्षय रोग अधिकारी डा. राहुल सिंह कहते हैं कि वर्तमान दौर में होली खेलने के लिए लोग जिन रंगों का अधिकांशतः प्रयोग करते है वह ऐसे रसायनों से तैयार किये जाते है जो लोगों के लिए बेहद ही हानिकारक होते हैं। होली पर जिन लोगों को इस तरह के रंग लगाये जाते है उन्हें त्वचा रोग होने का सर्वाधिक खतरा रहता हैं। रसायनों से युक्त रंग लगने के कुछ ही देर बाद त्वचा में तेज जलन, खुजली और दानों या फफोलों का निकलना शुरू हो जाता है। इन रंगों में कुछ ऐसे भी रसायन मिले होते है जिनके प्रयोग से त्वचा के झुलसने का खतरा होता है। अगर ये रंग आंखों में चले जाए तो इनसे आंखों को भी क्षति पहुंच सकती है। कई बार सांस के जरिये ये रंग फेफड़ों में भी जमा हो जाते है जिसके कारण वहां भी संक्रमण हो सकता है। इसलिए सभी को केमिकल युक्त रंगों से होली खेलने से बचना चाहिए। 

 इस तरह करें बचाव

अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा एके मौर्य  कहते है कि केमिकल युक्त रंगों से बचाव का बेहतर तरीका है कि होली वाले रोज घर निकलने से पहले पूरे शरीर में नारियल का तेल अवश्य लगाये। ऐसे कपड़े पहने जिससे शरीर का अधिकांश हिस्सा ढका रहे। इतना करने के बाद भी यदि किसी ने आपकों केमिकल युक्त रंग  लगा दिया है और आपके शरीर के किसी हिस्से में जलन अथवा किसी भी तरह की परेशानी हो तो चिकित्सक से तत्काल परामर्श लेना चाहिए।

 हर्बल रंगों का करें प्रयोग

क्षेत्रीय आयुर्वेद अधिकारी डा. भावना द्विवेदी कहती हैं कि पहले के जमाने में होली हर्बल रंगों से ही खेली जाती थी। लोग टेंसू या फिर अन्य फूलों को भिंगों कर होली खेलने खेलने के लिए रंग तैयार करते थे। इसके साथ ही चंदन, रोली का प्रयोग भी होली खेलने में होता था। ऐसे में होली पर लोगों को केमिकल रंगों से बचते हुए हर्बल  रंगों का प्रयोग करना चाहिए। 

 फूलों की होली भी एक बेहतरीन विकल्प

डा. भावना द्विवेदी कहती है कि फूलों की होली एक बेहतरीन विकल्प है। इसका प्रचलन भी हाल के वर्षो में तेजी से बढ़ा है। गुलाब की पंखुड़ियों से होली खेलकर रासायनिक रंगों से बचा जा सकता है।

शनिवार, 5 मार्च 2022

शबे बरात 17 मार्च को

मोमिनीन अदा करेंगे खास नमाज़

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव) शबे बरात की अज़ीम रात १७ मार्च को है, इस बाबरकत रात रब के सभी नेक बंदे अपने पाक परवर दीगार की इबादत में मशगुल रहेंगे सारी रात मोमिनीन खास नमाज़ अदा करेंगे शबे बरात पर अपनों व बुजुर्गो की क्रबगाह पर अज़ीज चिरागा करते हैं, घरों में रोशनी की जाती है। इस दौरान घरों में शिरनी की फातेहा होती हैं

घरो में लौटती है पुरखों की रूह 

शबे बरात से ही रुहानी साल शुरू होता है। इस रात रब फरिश्तों की डय़ूटी लगाता है। लोगों के नामे आमाल लिखे जाते हैं। किसे क्या मिलेगाकिसकी जिंदगी खत्म होगीकिसके लिये साल कैसा होगापूरे साल किसकी जिन्दगी में क्या उतार-चढ़ाव आयेगा। ये इसी रात लिखा जाता है साथ ही पुरखों की रूह अपने घरों में लौटती है जिसके चलते लोग घरों को पाक साफ व रौशन रखते हैं।
मर्द ही नही घरों में ख्वातीन भी शबे बरात की रात इबादत करती हैं। इबादत में छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल होते हैं सुबह से शाम तक घरों में ख्वातीन हलवा व शिरनी बनाने में जुटती हैं। शाम में वो भी इबादत में मशगूल हो जाती हैंशबे बरात पर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में पिछली बार चहल-पहल नही दिखाई दी थी वजह लाक डाउन जो था मगर इस बार हालात सुधरे हुए हैं  
 

लाकडाउन में नही हुआ था चिरागा  

पिछ्ली बार लाकडाउन था उस साल न तो मज़ारों पर चिरागा हुआ था और न ही रमज़ान और ईद कि नमाज़े ही अदा की जा सकी थी, मगर बुज़ुर्गो के नाम पर घर में ही शबे बरात पर शमां जलाया गया था और फातेहा पढ़ कर उनकी मगफिरत की दुआएं मांगी गई थीऔर उन पर सवाब पहुंचाया गया था

बनारस में यहाँ लगाई जाती है हाज़िरी

बनारस शहर के प्रमुख कब्रिस्तान टकटकपुरहुकुलगंज, भवनिया कब्रिस्तान गौरीगंजबहादर शहीद कब्रिस्तान रविन्द्रपुरीबजरडीहा का सोनबरसा कब्रिस्तानजक्खा कब्रिस्तानसोनपटिया कब्रिस्तानबेनियाबाग स्थित रहीमशाहदरगाहे फातमानचौकाघाटरेवड़ीतालाबसरैयाजलालीपुराराजघाट समेत बड़ी बाजारपीलीकोठीपठानीटोलापिपलानी कटराबादशाहबागफुलवरियालोहताबड़ागांवरामनगर आदि इलाक़ों की कब्रिस्तानों और दरगाहों में लोग हर साल पहुच कर शमां रौशन करते हैं, फातेहा पढ़कर अज़ीज़ों की बक्शीश के लिए दुआएं मगफिरत मांगते हैं 

रविवार, 6 फ़रवरी 2022

रोज़ डे के साथ शुरु होगा वेलेन्टाईन वीक

आइये जाने कब है कौन सा डे, क्या है तैयारियां


वाराणसी ६ फरवरी (dil India live)। इंतेज़ार की घड़ी जल्द खत्म होने वाली है। 7 फरवरी से वैलेंटाइन वीक का आगाज़ हो जाएगा। प्यार के पक्षी अभी से ही अपने युवा साथियों के साथ उड़ान भरते दिखाई दे रहे हैं। कोरोना काल के बाद इस बार इस पर्व को लेकर लोगों में खास उत्साह रहने की उम्मीद है। कोई प्रेमी के लिए गिफ्ट खरीद रहा है तो कोई किमती चाकलेट। प्रेमी प्रेमिकाओं का उत्‍सव जो आने वाला है। वेलेन्टाईन डे का क्रेज विदेशों से ज्यादा अब भारतीय लोगों में भी दिखाई देता है। दरअसल सात फरवरी को रोज डे, आठ फरवरी को प्रपोज डे, नौ फरवरी को चॉकलेट डे, दस को टेडी डे, ग्यारह फरवरी को प्रॉमिस डे, बारह फरवरी को किस डे, तेरह फरवरी को हग डे और चौदह फरवरी को वैलेंटाइन डे देश दुनिया में मनाया जाएगा। 

14 फरवरी वैलेंटाइन डे का वो खास दिन होता है, जिस दिन आशिक और माशुक अपने प्यार का इजहार करते है। प्यार और मोहब्बत के इस खास दिन को देखते हुए दुनिया भर का बड़ा छोटा बाजार भी इसे भूनाने में लगा जाता है। तरह तरह के गिफ्ट आइटम प्यार के जोड़ो को केन्द्र करके बाजार में उतारा गया है। छोटी गली कूचों की दुकानों से लेकर बड़े माल व फूलों की दुकान तक पर रेड रोज, यलो और व्हाईट रोज़ से लेकर गुलदस्‍तों तक की डिमांड शुरू हो जाती है। फूलों के कारोबारी इस सीजन में लग्न न होने से वैलेंटाइन डे पर फूलों का कारोबार कर युवओं को आकर्षित करने में जुटे हैं। रेड रोज की कीमत दस रुपये से लेकर बीस और चेरी रेड तक पचीस रुपये प्रति पीस से लेकर छोटा बुके सौ रुपये से लेकर हजारों रुपये तक पैकेज में उपलब्ध है। कारोबारी बता रहे हैं कि ग्राहक अभी खरीदारी तो नहीं कर रहे हैं मगर पूछताछ और बुकिंग का दौर शुरू हो चुका है। उम्मीद है कि रोज़ डे की पूर्व संध्या पर यह कारोबार अपने शबाब पर होगा।

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

एनसीसी कैडेटों ने दी परेड की सलामी

डी.ए.वी में मनाया गया 73 वाँ गणतंत्र दिवस



वाराणसी, 26 जनवरी (dil india live)। डी.ए.वी. पी.जी. काॅलेज में बुधवार को 73 वाँ गणतंत्र दिवस समारोह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। प्रातःकाल महाविद्यालय के पी.एन. सिंह क्रीड़ा प्रांगण में प्राचार्य डाॅ. सत्यदेव सिंह एवं मंत्री/प्रबन्धक अजीत कुमार सिंह यादव ने ध्वजारोहण किया। राष्ट्रगान के उपरान्त महाविद्यालय के एन.सी.सी. प्रभारी कैप्टन डाॅ. सत्यगोपाल के नेतृत्व में प्राचार्य को परेड की सलामी दी गई। परेड में एनसीसी कैडेटों ने मार्चपास्ट कर कदम से कदम मिलाकर सलामी दी। इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त अध्यापक एवं कर्मचारी उपस्थित रहे।

ऐसे ही डीएवी इंटर कॉलेज में 73 वें गणतंत्र दिवस की धूम रही। डीएवी पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सत्यदेव सिंह, प्रबंधक अजीत कुमार सिंह यादव, प्रधानाचार्य डॉ. दयाशंकर मिश्र ने ध्वजारोहण किया। इस अवसर पर एनसीसी प्रभारी नरेंद्र कुमार सिंह के नेतृत्व में एनसीसी कैडेटों ने परेड की सलामी दी। इस अवसर पर कॉलेज के कोषाध्यक्ष हरिबंश सिंह भी उपस्थित रहे। वहीं डीएवी काॅलेज परिसर में संचालित मानव शिक्षण संस्थान में भी गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया गया। मुख्य अतिथि डाॅ. सत्यदेव सिंह एवं अजीत कुमार सिंह यादव ने ध्वजारोहण किया। 

सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मना गणतंत्र दिवस

सुल्तान क्लब में शान से लहराया तिरंगा


वाराणसी 27 जनवरी (dil india live)। सामाजिक संस्था " सुल्तान क्लब" की ओर से संजय गाँधी नगर कालोनी , बड़ी बाज़ार में कोविड -19 का पालन करते हुए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम बड़े ही हर्षोल्लास के वातावरण में मनाया गया। संस्थाध्यक्ष डॉ एहतेशामुल हक व समाजसेवी हाजी सलमान बशर ने संयुक्त रूप से ध्वजारोहण किया।ध्वजारोहण के पश्चात राष्ट्रगान पढ़ा गया, देश प्रेम से सरोबार नज्मे भी पढ़ी गई। स्वच्छता व मतदाता जागरूकता अभियान के लिए लोगों को जागरूक भी किया गया। इस अवसर पर अतिथियों ने खिताब करते हुए कहा कि देश की एकता एवम अखण्डता को कायम रखने के लिए सभी धर्मों का सम्मान व देश के कानून पर अमल करना होगा,मिल जुलकर रहने पर ही हमारा देश तरक्की करेगा यही हमारी गंगा जमनी तहजीब की पहचान है।हमें धार्मिक शिक्षा के साथ साथ दुनियावी व साइंस की तालीम भी लेनी होगी,देश की आजादी व सविधान में सभी धर्मों के लोगों ने भाग लिया,लाखों उलमा - ए - एकराम शहीद हुए।डॉ भीमराव अंबेडकर जी का बनाया हुआ संविधान पर सभी लोगों को चलना होगा तभी हमारा देश एक बार फिर सोने की चिड़िया कहलाएगा,आतंकवाद व भ्रष्टाचार के विरोध में हमेशा खड़ा रहना होगा।अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ. एहतेशामुल हक ने कहा कि बच्चे देश के भविष्य हैं देश में तरक्की व खुशहाली लाने के लिए हमे सत्य और अहिंसा के रास्ते पर हर हाल में चलना होगा। 

कार्यक्रम का संचालन कोषाध्यक्ष शमीम रियाज़ ने किया उपाध्यक्ष महबूब आलम ने लोगों का स्वागत किया। इस अवसर पर समाजसेवी हाजी सलमान बशर, अध्यक्ष डॉ. एहतेशामुल हक, सचिव जावेद अख्तर, महासचिव एच. हसन नन्हें, कोषाध्यक्ष शमीम रियाज़, उपाध्यक्ष अजय वर्मा, मुहम्मद इकराम, अब्दुर्रहमान, मौलाना अब्दुल्लाह, हाफिज़ मुनीर, इरफान इत्यादि ने भाग लिया।

बुधवार, 24 नवंबर 2021

इस क्रिसमस पर नया आकार ले रहा है गिरजाघर

 142 साल बाद लाल गिरजा में फिर आया निखार

  • 1879 में ब्रिटिश पादरी ने बनवाया था लाल गिरजाघर






वाराणसी (dil india live)। छावनी स्थित मसीही समुदाय की आस्था का केन्द्र सीएनआई लाल गिरजाघर को 142 साल बाद निखार आया है। समूचा चर्च नया आकार ले चुका है। क्रिसमस आते-आते समूचे चर्च का रंग-रुप पूरी तरह से बदल चुका होगा। कोरोना काल में दो साल तक क्रिसमस का जश्न नहीं मना था मगर इस दौरान सबसे खास यह हुआ कि प्राचीन चर्च के पुन: निर्माण की शुरुआत फरवरी में कर दी गई थी। चर्च के सेक्रेटरी विजय दयाल बताते हैं कि क्रिसमस तक पूरी काम हो जायेगा। अब तक तकरीबन 40 लाख रुपये चर्च निर्माण में खर्च किये जा चुके हैं। दिन रात की मेहनत के बाद चर्च का पूरा कलेवर ही पूराने नकशे के अनुरुप बदल दिया गया है। चर्च की गैलरी को भी चर्च में शामिल कर दिया गया है इससे तकरीबन दो सौ लोगों के बैठने की जगह पहले से और बढ़ जायेगी। 

लाल चर्च का इतिहास 

अपने नाम के अनुरूप ही इस गिरजाघर का रंग लाल है। पूर्व पादरी सैम जोशुआ सिंह ने चर्च की कहानी बेहद सरल लफ्जों में शेयर किया। उन्होंने बताया कि  ब्रिटिश पादरी एलवर्ट फ्रेंटीमैन ने ही लाल चर्च की नींव 1879 में अंग्रेजी हुकूमत के निर्देष पर रखी थी। फ्रेंटीमैन की देखरेख में ही इस चर्च का निर्माण हुआ। चर्च जब बनकर तैयार हुआ तो उन्हें ही सरकार ने  इस चर्च का पहला पादरी बनाया। वर्तमान में संजय दान चर्च के पादरी है तो विजय दयाल सचिव। 

 ईसा मसीह की शहादत की याद करता है ताज़ा 

लाल गिरजाघर का रंग शहादत का प्रतीक है। ईसा मसीह की शहादत की याद में ही वाराणसी के छावनी स्थित इस चर्च को लाल रंग और शांति के प्रतीक सफेद रंग से सजाया गया है। यह चर्च देश की मिली जुली संस्कृति की मिसाल है। यहां सभी मज़हब के लोग समय-समय पर आते हैं। इतवार को विशेष प्रार्थना सुबह 9.30 बजे से होती है तो क्रिसमस के दौरान यहां शाम में भी चर्च सर्विस होती है। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी के साथ ही यहां भोजपुरी में भी प्रभु यीशु की स्तुति की जाती है।

28 से शुरू होगा प्रभु यीशु आगमन काल

क्रिसमस सीजन की शुरुआत इस बार 28 नवंबर से शुरू हो जायेगी। क्रिसमस के पूर्व पड़ने वाले चार इतवार को आगमन काल माना जाता है। उसके बाद क्रिसमस आता है। इस बार 28 नंबर को पहला इतवार है। इसी दिन चर्चेज़ में क्रिसमस का आगाज़ हो जायेगा। इसके बाद यूं तो हर दिन चर्चेज़ में कैरोल सिंगिंग व प्रार्थना सभा होगी मगर संड़े कुछ खास ही होगा। आगमन का दूसरा इतवार 5 दिसंबर, तीसरा 12 दिसंबर व चौथा इतवार 19 दिसंबर को पड़ेगा। इसके बाद क्रिसमस आयेगा। क्रिसमस में दो साल बाद फिर उल्लास और उत्साह दिखाई देगा।

रविवार, 21 नवंबर 2021

ख्रीस्त राजा का पर्व मनाने महागिरजा में जुटे मसीही

सेंट मेरीज़ महागिरजा घर से निकला जुलूस

  •  मसीही समुदाय ने जलाई कैंडिल 
  • पूजन विधि का हुआ समापन
  • अगले इतवार से शुरु होगा आगमन



वाराणसी 21नवंबर (dil india live)। इतवार को कैथोलिक  मसीही समुदाय के लोगों ने उल्लासपूर्ण मौहाल में ख्रीस्त राजा का पर्व मनाया। इसी के साथ वर्ष 2021 की चर्च पूजन विधि का समापन हो गया। अब प्रभु यीशु के आगमन की तैयारियां 27 नवंबर से शुरु हो जाएंगी। क्रिसमस के पूर्व पड़ने वाले 4 इतवार को आगमन काल कहते हैं। 27 से आगमन काल का आगाज़ हो जायेगा।

ख्रीस्त राजा के पर्व पर इतवार को चर्च के बाद शाम में कैंडिल लाइट के साथ धूमधाम से जुलूस निकला। जुलूस की अगुवाई वाराणसी धर्मप्रांत के बिशप डा. यूजिन जोसेफ कर रहे थे। इस दौरान सेंट मेरीज़ महागिरजा घर के पुरोहित फादर विजय शांतिराज, फादर फिलिप डेनिस, फादर सुसाई राज, फादर हेनरी, फादर जान, सिस्टर एन वीटा, सिस्टर अंजू, सिस्टर मंजू, सिस्टर तारा, फादर मुकुल, राकी आदि मिस्सा बलिदान में शामिल हुए।

क्या बोले बिशप

बिशप ने अपने संदेश में कहा कि प्रभु यीशु ख्रीस्त ने अपने समय में कभी खुद को राजा के रूप में प्रस्तुत नहीं किया। लेकिन, विश्वासियों ने उनकी शिक्षा और जीवन को मुक्तिदाता और नबी के रूप में स्वीकार किया। 


जाने क्या है इतिहास

साल  1925 में संत फादर पायस द्वारा ख्रीस्त राजा का पर्व मनाने की घोषणा की गई थी। तभी से यह पर्व मनाया जा रहा है। मान्यता के अनुसार वर्ष के अंतिम पूजन रविवार को ख्रीस्त राजा का पर्व मनाया जाता है। हमारा विश्वास है कि यीशु राजा के रूप में प्रेम, शांति और भाईचारा का संदेश देने निकलते हैं।

शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

देव दीपावली 2021: धरती पर देवलोक

देवताओं की दीपावली में धरती हुई रौशन

गंगोत्री सेवा समिति ने रचा इतिहास, पहली बार पांच बेटियों की अगुवाई में हुई गंगा महाआरती, बेटियों के हौसला बढ़ाने के लिए गूंजा " हर हर महादेव..."

  •  कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं ने मनाई थी दीपावली
  •  महादेव द्वारा दैत्य त्रिपुर के वध के उपरांत देवताओं ने जलाया था दीप श्रृंखला
  •  वर्षों बाद फिर शिव की नगरी में फिर जीवंत हुई यह परम्परा 
  • पूर्णिमा की रात गंगा के घाट पर होता हैं अद्भुत जल उत्सव 
  •  घाटों पर जुटे रहें श्रद्धालु
  •  मान्या, पद्माक्षी, रोशनी, पूजा और करिश्मा ने किया आरती का नेतृत्व







वाराणसी19 नवंबर (dil india live)। काशी की गंगा आरती के वैश्वीकरण के बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा घाटों का नज़ारा अद्भूत था। इस दौरान धरती पर देवलोक उतरा नज़र आया। देव दीपावली पर काशी में तकरीबन 15 लाख दीये से देव दीपोत्सव मनाया गया। इस दौरान घाटों पर महा आरती और आतिशबाजी भी हुई।

कार्तिक पूर्णिमा पर काशी के सभी घाट दीपों की रैशनी से जगमगा उठे। देव दीपावली पर यूपी सरकार ने 15 लाख दीये जलाकर दीपोत्सव मनाने की मंशा जताई थी जिसके बाद घाट के 120 सेवा समितियों को जिम्मेदारी देकर दीपोत्सव मनाने की अपील की गई थी। जैसे ही पूर्णिमा का चांद दिखा लोग वाराणसी के कुल 82 घाट (वरुणा से लेकर अस्सी घाट) तक एक साथ दीपदान हुआ। इस तरफ गंगा के दोनों ओर पर दीपोत्सव मनाया जा रहा था। वही लेजर शो बैलून फेस्टिवल, फायर फेस्टिवल के साथ साथ पहली बार दशाश्वमेध घाट के महाआरती में कन्याओ ने मां गंगा की आरती की। बता दे कि काशी के देव दीपावली महोत्सव को देखने लोग भारत से साथ ही दुनिया के अलग अलग देशों से लाखों की संख्या में लोग वाराणसी आते है काशी में इस दीपोत्सव में  घाटों पर 'India', 'शिवलिंग' की रंगोली, त्रिशूल, दीये और अमृत महोत्सव का स्लोगन भी लिखा गया जिसमें लोगो ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

वहीं दशाश्वमेध घाट स्थित गंगोत्री सेवा समिति ने आरती के इतिहास में एक नया अध्याय का सृजन करते हुए  काशी में 30 साल पहले बाबू महाराज द्वारा शुरू किये गए गंगा आरती का इस वर्ष  नेतृत्व पांच कन्याओं ने किया। 1991 के बाद आज इस परिवार की तीसरी पीढ़ी के मान्या दुबे और शिवांश दुबे ने आज के गंगा महाआरती में भाग लिया। नारी शक्ति के सम्मान और उनके बढ़ते कदम की अगुवाई के लिए गंगोत्री सेवा समिति ने एक नजीर पेश कर नारी सशक्तिकरण में एक कदम बढ़ाया है। 

कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर काशी के घाट ब्राम्हणों के श्लोक के साथ ‘‘हर-हर गंगे’ के महाजाप से गूंज उठा। वर्षो से चल रही परम्परा के अनुसार दशाश्वमेध घाट पर नियमित आरती करने वाली संस्था गंगोत्री सेवा समिति के तत्वावधान में गंगा महारानी का पूजन-स्तवन संग दुग्धाभिषेक हुआ। तट पर सिंहासनारूढ़ गंगा महारानी की श्रृंगारिक प्रतिमा और उनकी अलौकिक आरती की निराली छवि निहारने को श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। 

इस दौरान धार्मिंक अनुष्ठान का श्रीगणेश मंगलाचरण से हुआ। इसके पश्चात समिति के संस्थापक अध्यक्ष किशोरी रमण दूबे (बाबू महाराज) के सान्निध्य में मुख्य अतिथि सुमेरूपीठ शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सस्वती, पद्मश्री चंद्रशेखर सिंह, इंडियन ऑयल डा. उत्तीय भटाचार्य, अरुण प्रयास कमलेश कुमार राय, चद्रिका राय,  यूको बैंक से धनश्याम परमार सिडवी के नितिन जालान और डा. रितु गर्ग ने मां गंगा का शास्त्रोक्त विधि से पूजन के क्रम में 51 लीटर दूध से अभिषेक किया। समूचे घाट की आकर्षक सजावट के साथ ही माँ गंगा की 108 किलो की अष्टधातु की प्रतिमा का विशेष श्रृंगार 108 किलो फूल से किया गया जिसमें कलकत्ता से मंगाए 70 किलो विदेशी फूल संग देशी फूलो का भी समावेश रहा । इसी क्रम में पांच बेटियों के नेतृत्व में  मां गंगा की महाआरती के साक्षी हजारों श्रद्धालुओं ने बेटियों के जन्म में सहायक और उनके सम्मान का संकल्प दुहराया ।

इस वर्ष के आयोजन में 21 बटुकों संग 42 रिद्धि सिद्धि द्वारा गंगा महाआरती की गयी। इस उत्सव् को यादगार बनाने के लिए कन्हैया दुबे के संयोजन में हुए सांस्कृतिक आयोजन में  गायक और सांसद मनोज तिवारी काशी के मशहूर गायक ओम तिवारी और आस्था शुक्ला और अमलेश शुक्ला संग तमाम गायकों ने गायकी के माध्यम से अपनी पुष्पांजलि अर्पित किया। 

दूसरी तरफ गंगोत्री सेवा समिति द्वारा केदार घाट के सीढ़ीओ  पर भी आकर्षक सजावट संग पांच आरती सम्पन कराई गयी। आयोजन के अंत में राज्य पुलिस और पीएसी के शहीद हुए जवानों की याद में अश्विन पूर्णिमा (20  OCT) से जल रही आकाशदीप का समापन करते हुए उनके नाम से दीपदान संग किया गया। इस महाआयोजन में प्रमुख रूप से पं. किशोरी रमन दुबे बाबू महाराज, दिनेश शंकर दुबे गंगेश्वर दुबे, डा. संतोष ओझा, भृगु नाथ द्विवेदी ,संकठा प्रसाद आदि लोग समिति के तरफ से माता गंगा की महाआरती में भागीदारी किया। संचालन का दायित्व राजेश शुक्ला ने निभाया।

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

छ्ठ पर्व: काशी में उतरा बिहार का अक्स

निकलते सूर्य को दिया अर्ध्य संग छठ सम्पन्न





वाराणसी 11 नवंबर (dil india live)। उगते सूर्य को अर्ध्य के साथ ही बीते 3 दिनों से चल रहा छठ का महापर्व और व्रत आज पूरा हो गया। इस मौके पर वाराणसी के गंगा घाट पूरी तरह से छठ के रंग में रंगे दिखे। हर तरफ बस छठ पूजा का माहौल और अपने परिवार के साथ व्रतधारी महिलाएं। करीब 6 बज कर 40 मिनट पर जब सूर्य की लालिमा दिखनी शुरू हुई तो लाखों की भीड़ ने भास्कर देव को अपनी श्रद्धा अर्पित कर छठ का पर्व पूरा किया।

छठ के अंतिम दिन आज उगते सूर्य को अर्ध्य देने के लिए आधी रात से ही लोगों की भीड़ गंगा घाट पर उमड़नी शुरू हो गयी है। तमाम श्रद्धालु ऐसे थे जिन्होंने सूर्य देव के इंतज़ार में सारी रात गंगा घाट पर ही गुजारी। अभी रात की काली चादर हटी नहीं थी मगर पूजा की वेदियों पर जल रहे दीयों ने अँधेरे को मिटाना शुरू कर दिया था। गंगा घाटों दूर दूर तक जिधर भी देखो बस छठ पूजा का ही नज़ारा था। अँधेरा कम होने के साथ ही लोगों की नज़रें भी सूर्य देव को तलाशती आसमान पर टिक गयी। व्रतधारी महिलाएं अपने हाथों में फल, फूल से सजे सूप लेकर गंगा के पानी में उतर गयी। संभावित समय से करीब 20 मिनट की देरी से जब 6 बज कर 40 मिनट पर सर्व देव ने अपने दर्शन दिए तो लाखों की भीड़ ने उगते सूर्य को अर्ध्य देकर छठ का अपना व्रत पूरा किया। छठ के इस पर्व को लेकर लोगों में अटूट आस्था है. उनकी मानें तो सर्व देव और छठ मईया की उपासना से उनकी हर मुराद पूरी हुई है। छठ की पूजा के लिए गंगा घाटों पर इस कदर भीड़ थी मानो तिल भर रखने की जगह ना हो। तमाम ऐसे श्रद्धालु जो वर्षों व्रत को करते चले आ रहे हैं तो कई ऐसे भी जिनके लिए यह पहला मौका था, मगर उनके भी मन में लेकर आस्था और विश्वास उतना ही मजबूत और यह भरोसा आज छठ के व्रत से उनकी हर मुराद जरूर पूरी होगी।

छठ की शुरुआत

बिहार से शुरू हुआ यह प्रकृति की आराधना का यह महापर्व आज पुरे देश में उल्लास के साथ मनाया जाता है। प्रशासन ने भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए बेहतर इंतज़ाम किया था।




तुलसी विवाह पर भजनों से चहकी शेर वाली कोठी

Varanasi (dil India live)। प्रबोधिनी एकादशी के पावन अवसर पर ठठेरी बाजार स्थित शेर वाली कोठी में तुलसी विवाह महोत्सव का आयोजन किया गया। श्री ...