सरफराज अहमद
दालमंडी स्थित मरहूम डॉ.नाजिम जाफरी के अजाखाने से निकले लुटे काफिले के जुलूस में फरमान हैदर ने कलाम पेश किया। अशरे को भी शब्बीर का जो गम नहीं करते, वो पैरवी-ए-सरवरे आलम नहीं करते, हिम्मत हो तो महशर में पयंबर से भी कहना, हम जिंदा-ए-जावेद का मातम नहीं करते...। जुलूस के कदीमी रास्ते में आलिमों ने तकरीर पेश की। तकरीर में जब उन्होंने लुटे हुए काफिले का मंजर बयान किया तो शिया समुदाय के लोग बिलखते देते गए।
सैकड़ों साल कदीमी इस लुटे काफिले के जुलूस में अलम, दुलदुल व परचम भी शामिल था। जुलूस के आते नई सड़क पर चारों ओर लोगों का मजमा ज़ियारत करने उमड़ा दिखा। जुलूस में परचम के पीछे दो लोग चुप का डंका, बजाते हुए दरगाहे फातमान की ओर बढ़े। आयोजन में अब्बास मुर्तजा शम्सी, समर शिवालवी, सलमान हैदर, सैफ जाफरी, सिराज वगैरह कलाम पढ़ते हुए चल रहे थे। मुज्तबा जाफरी व डा. मुर्तज़ा जाफरी के संयोजन में निकले जुलूस में कर्बला के शहीदों का लुटा हुआ काफिला नई सड़क, फाटक शेख सलीम, पितरकुंडा, लल्लापुरा होकर होकर दरगाहे फातमान पहुंचा। जहां उलेमा ने तकरीर में कहा कि कर्बला में यजीद ने मोर्चा तो जीत लिया मगर जंग वो हार गया, आज पूरी दुनिया में इमाम हुसैन का नाम सबसे ज्यादा रखा जा रहा है मगर यज़ीद का नामलेवा कोई नहीं है। यजीद था और इमाम हुसैन हैं।
अज़ादारी जनाबे जैनब की देन
दालमंडी में ख्वातीन की मजलिस को खिताब करते हुए मोहतरमा नुजहत फातेमा ने कहा कि कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनकी बहन जनाबे ज़ैनब व उम्मे कुलसुम, उनके बेटे इमाम ज़ैनुल आबदीन व चार साल की छोटी बहन जनाबे सकीना ने ज़ालिम यज़ीद के जुल्म के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि बहादुरी से सामना किया। दर्दनाक जुल्म सहते हुए कर्बला के बाद इमाम हुसैन के मिशन को दुनिया तक कामयाबी से पहुंचाया। यहां डा. नसीम जाफरी ने शुक्रिया अदा किया। दुनिया में अजादारी जनाबे जैनब की देन है।