कुर्बानी से पहले किया ईदुल अजहा की नमाज़ अदा
Varanasi (dil india live). देश-दुनिया के साथ ही बनारस में सुबह ईदुल अजहा की नमाज़ के साथ बकरीद का जश्न पूरी अकीदत के साथ शुरु हो गया। नमाज के बाद लोगों ने एक दूसरे को बकरीद की मुबारकबाद दी। मसजिदों और ईदगाह से नमाज़ मुकम्मल करके अकीदतमंद घर पहुँचे जहां कुर्बानी का सिलसिला शुरु हुआ। नमाज़ के दौरान उलेमा ने अपनी तकरीर में जहां लोगों को दीन के रास्ते पर चलने की दावत दी वही बकरीद के दिन को कुर्बानी और त्याग का दिन बताया। उलेमा ने कहा कि जानवर का गोश्त और हड्डी रब के पास नहीं जाती बाल्कि रब हमारी नियत देखता है, इसलिए हमे चाहिए कि जब भी हमारी जरुरत हो हम कुर्बानी के लिए तैयार रहे। वो कुर्बानी धन, दौलत, जानवर ही नहीं बाल्कि अपनी कौम और वतन के लिए भी हो सकती है। इस दौरान मुल्क में अमन, मिल्लत बुराईयों के खात्मे के लिए भी दुआएं मांगी गई।
पता हो कि इस्लामिक हिजरी कैलेंडर के मुताबिक, कुर्बानी का त्योहार बकरीद रमजान के दो महीने बाद आता हैं। इस्लाम धर्म में बकरीद के तीन दिन आमतौर पर छोटे-बड़े जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। इस दिन जानवर को अल्लाह की राह में जहां कुर्बान कर दिया जाता हैं। वहीं काबा में ज़ायरीन हज के अरकान मुकम्मल करते हैं।
बकरीद की जाने क्या है कहानी
बकरीद पैगम्बर हजरत इब्राहिम की सुन्नत है। एक बार खुदा ने हजरत इब्राहिम का इम्तिहान लेने के लिए आदेश दिया कि हजरत अपनी सबसे अजीज की कुर्बानी दें। हजरत इब्राहिम के लिए सबसे अजीज उनका बेटे हजरत इस्माइल थे, जिसकी कुर्बानी के लिए वे तैयार हो गए। उन्हे कुर्बानी के लिए ले भी गये मगर ऐन कुर्बानी से पहले रब ने हजरत इस्माईल की जगह ये कहते हुए कुर्बानी के लिए दुम्बा भेज दिया कि वो हज़रत इब्राहिम का इम्तेहान ले रहे थे और इम्तेहान में वो पास हो गये, तभी से कुर्बानी का पर्व मनाया जाता है।
अल सुबह हुई नमाजें
इस साल 10 जुलाई को पूरे देश में बकरीद का पर्व शुरु हुआ। ईदगाहों और प्रमुख मस्जिदों में ईद-उल-अजहा की विशेष नमाज सुबह 6 बजे से लेकर 10.30 बजे तक अदा की गई। कई जगहों पर मस्जिद और ईदगाहों के आसपास मेले जैसा माहौल दिखाई दिया। नमाज़ मुकम्मल करके जब मोमिन घर पहुंचे, घरों में सेवईयों का लुत्फ उठाया।