सब्र व एखलाक में नरमी सिखाता है रमजान
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव) मुकद्दस रमज़ान हमें सब्र करने के साथ ही अपने एखलाक में नरमी की सीख भी देता है। रमज़ान दूसरे मज़हब के साथ मिल्लत का पैगाम देता है। इसकी वजह यह है कि एक रोज़ेदार को रमज़ान में अल्लाह ने हर उस काम से बचने का हुक्म दिया है, जिसकी इजाज़त शरीयत नहीं देती। इसी के चलते 12 महीनों में इस एक महीने का अपना अलग मुकाम है। रमज़ान इबादत और अदब का महीना तो है ही साथ ही इस पूरे महीने एक रोज़ेदार नफ्स पर कंट्रोल के साथ ही बेशुमार इबादत करते हुए तमाम तरह का सब्र अख्तियार करता है। मेरे प्यारे नबी (स.) ने फरमाया है कि ये महीना सब्र का है और सब्र का बदला जन्नत है। रमज़ान में मासूम बच्चों व नौकरों से ज्यादा मेहनत व कड़े काम न लो, यह महीना इबादत और अदब व एहतराम का भी महीना है। इस महीने में अल्लाह के रसूल का हुक्म है कि रमज़ान आते ही बंदियों को रिहा कर दो। इस महीने में झगड़ा और फसाद को सख्ती से मना फरमाया गया है। इसलिए मोमिनीन को चाहिए कि मारपीट, बहस, लड़ाई-झगड़ा छोड़कर अमन और मिल्लत की नज़ीर पेश करें। जैसा हमारा रब चाहता है हमारे नबी (स.) चाहते हैं। रोज़ेदार रमज़ान का रोज़ा रख कर जहां ज़ाति तौर पर अपनी इस्लाह करता है वहीं वो एक अच्छा समाज भी बनाता है। ऐसे तो हर महीने हर दिन हर घंटे इंसान को पड़ोसियों के साथ, दूसरे मज़हब के साथ नरमी का हुक्म है मगर रमज़ान में खुसूसियत के साथ एक परिवार दूसरे परिवार का हक अदा करे, पड़ोसी मुसलमान हो या हिन्दू या दूसरे मजहब का उसके साथ नरमी बरती जाए। यूं तो हर दिन झगड़ा करना हराम करार दिया गया है। मगर इस बरकत वाले महीने की बरकत हासिल करने के लिए पूरे महीने रोज़दार को अपनी और दूसरों को तकलीफ पहुंचाने वाली हरकतों से बचना चाहिए। यह महीना बक्शीश का महीना है। इसलिए बंदों को चािहए कि अल्लाह और उसके रसूल से अपने तमाम गुनाहों के लिए रो-रोकर माफी मांगे। देर रात तक खूब इबादत करे। ऐ परवरदिगार तू नबी-ए-करीम के सदके में हम सबको रोज़ा रखने, इबादत करने की तौफीक दे ताकि हम सबकी जिन्दगी कामयाब हो जाये.. आमीन।
मो. शाहिद खां
{सदर, हिन्दुस्तानी तहजीब वाराणसी}