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मंगलवार, 2 नवंबर 2021

आयुर्वेद भगा सकता है कुपोषण

‘राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस’  एवं धन्वंतरि जयंती मनी


वाराणसी, 2 नवम्बर (dil india)। आयुर्वेद एवं यूनानी विभाग के तत्वावधान में  चौकाघाट स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में मंगलवार को ‘ राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस’  एवं धन्वंतरि जयंती मनायी गयी। इस अवसर पर ‘पोषण में आयुर्वेद का महत्व’ विषयक संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया। संगोष्ठी में  क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी डा. भावना द्विवेदी ने कहा कि  स्वस्थ समाज के लिए देश का कुपोषण मुक्त होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि कुपोषण से मुक्ति में आयुर्वेद महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 

डा. भावना द्विवेदी ने कहा कि एक समय ऐसा भी था जब कुपोेषण से लोगों की स्थिति गंभीर हो जाती थी |  इसमें अब तेजी से बदलाव आया है। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों, के साथ ही हमारे आस-पास मिलने वाले औषधीय पौधों, साग-सब्जियों का प्रयोग कर आज हम कुपोषण पर काफी हद तक अंकुश लगा चुके हैं। उन्होंने कहा कि पोषण के प्रति जागरुकता लाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में विभाग की ओर से लगातार जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। खास तौर पर महिलाओं और बच्चों को यह बताया जा रहा है कि वह अपने खान-पान में किस तरह से बदलाव लाएं जिससे उन्हें पोषक तत्व प्राप्त हों।

आयुर्वेद एक जीवन पद्वाति


संगोष्ठी की मुख्य अतिथि व आयुर्वेद महाविद्यालय की प्रधानाचार्य डा. नीलम गुप्त ने कहा कि आयुर्वेद एक जीवन पद्धति है। आयुर्वेद हमें खाना-पीना, रहना और सभी के सुख की कामना करने का संदेश देता है। कोरोना काल में आयुर्वेद ने अपनी उपयोगिता साबित कर दी है। लोगों में आयुर्वेद के प्रति काफी विश्वास बढ़ा है। अब हम आयुर्वेद के जरिए कुपोषण को भी देश से दूर भगाने में कामयाब होंगे। उन्होंने कहा कि उपभोक्तावादी संस्कृति में खान-पान के लिए बाजारू चीजों पर हमारी निर्भरता बढ़ी है। हमें इससे दूर होना पड़ेगा। यह तभी संभव है जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति इसके लिए जागरूक होगा। संगोष्ठी में डा. पुष्पांजली, डा. सनातन राय, डा. कुंवर अंकुर सिंह, डा. प्रीति गुप्ता,डा. विजय राय, डा. मनीष, डा. विनय मिश्र ने भी विचार व्यक्त किये। संचालन डा. रमन ने व डा. उमाशंकर ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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