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शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

Sant Ravidas ka anokha Mandir




Varanasi (dil india live)। मजहबी शहर बनारस गंगा जमुनी तहजीब के लिए देश दुनिया में विख्यात है। यहां मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर व गुरुद्वारों के ऐतिहासिक दस्तावेज पग पग पर मौजूद है। यही वजह है कि इनके दर्शन के लिए देश दुनिया से भक्त खींचे चले आते हैं। ऐसा ही ऐतिहासिक और अनूठा आस्था का एक केन्द्र है, राजघाट पर स्थित संत रविदास मंदिर। यह मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित है। यह मंदिर जहां श्रम साधना का संदेश देता है वहीं सर्वधर्म समभाव की एक शानदार मिसाल भी है।

संत रविदास सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे। इसका अंदाजा उनकी स्मृति में राजघाट में बनाए गए मंदिर को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। यह मंदिर संत रविदास के संदेशों के अनुकूल बनाया गया है। राजघाट स्थित संत रविदास का मंदिर सर्वधर्म समभाव का इकलौता ऐसा प्रतीक है जहां पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्म के दर्शन होते हैं। सभी धर्मों के प्रतीक चिन्ह को मंदिर के गुंबद पर स्थान दिया गया है।

दी रविदास स्मारक सोसायटी के महासचिव सतीश कुमार उर्फ फगुनी राम ने बताया कि मंदिर का शिलान्यास 12 अप्रैल 1979 में हुआ और 1986 में बनकर जब तैयार हुआ तो सभी देखते रह गए। मंदिर पर पांच गुंबद हैं जिन पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं बौद्ध धर्म के मंगल चिह्न अंकित हैं। इस मंदिर का निर्माण देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम ने कराया था। उन्होंने बताया कि संत रविदास मानवता, समता व समरसता के पोषक थे। इसी भावना को केंद्र में रखकर बाबू जगजीवन राम ने इस मंदिर की स्थापना की। यह मंदिर सभी जाति एवं धर्म के लोगों के लिए सदैव खुला रहता है। मंदिर के सुनहरे गुंबद से जब सूर्य की रोशनी टकराती है तो मंदिर की छटा और बढ़ जाती है। बेहद खूबसूरत एवं भव्य मंदिर की चमक दूर से ही दिखाई देने लगती है।


संत शिरोमणि गुरु रविदास जयंती कि तैयारी पूरी 

संत रविदास की जयंती को मनाने के लिए मंदिर में तैयारियां पूरी हो गई हैं।  रविदास जयंती पर दर्शनार्थियों का मंदिर में तांता लगा रहता है। खासकर पंजाब से तो जत्थे में श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं। जगजीवन राम की बेटी व पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार हर साल मंदिर में मत्था टेकने आती हैं। इस बार भी वो यहां आ चुकी हैं।

शनिवार, 26 नवंबर 2022

Kashi me Guru teg bahadur sahib nai kiya tha 362 saal pahle tap






Varanasi (dil india live). सिख धर्म के नौवें पातशाह गुरु तेग बहादुर साहिब ने आज से 362 साल पहले काशी में तप किया था। नीचीबाग में उनके द्वारा 7 माह 16 दिन की तपस्या से जुड़े कई ऐतिहासिक दस्तावेज आज भी मौजूद है। उन्होंने अपने तप के बल पर ही तपोभूमि गुरुद्वारा बड़ी  संगत नीचीबाग में मां गंगा को बुला लिया था। जिसका प्रवाह आज भी लोगों को शुद्ध गंगा जल का अमृत पान करा रहा हैं। गुरु तेग बहादुर साहिब का शहीदी पर्व पर काशी से जुड़ी उनकी यादों को ताज़ा करती दिल इंडिया कि एक रिपोर्ट...

गुरु तेग बहादुर साहिब पंजाब से चलकर दिल्ली, आगरा, मथुरा, कानपुर, होते हुए इलाहाबाद कुंभ में पहुंचे थे। वह दौर 1660 का था। गुरु तेग बहादुर साहिब के अनुयाई भाई कल्याण को जब यह जानकारी मिली तो वह उनके दर्शन के लिए लालयित हो उठे मगर वो बुजुर्ग होने की वजह से वहां जा पाने में असमर्थ थे। मन ही मन उन्होंने गुरु तेग बहादुर साहिब के दर्शन मात्र के लिए उन्होंने प्रभु से प्रार्थना कि काश गुरु तेग बहादुर साहिब काशी आ जाते ? फिर क्या था एक दिन अचानक गुरु तेग बहादुर साहिब न सिर्फ काशी पहुंच कर भाई कल्याण को दर्शन दिया बल्कि यहां गुरु तेग बहादुर साहिब ने 7 माह 16 दिन तक तप भी किया। इस दौरान उन्होंने संगत को पहले पातशाह गुरु नानक देव के उपदेश दिए। 

 नीचीबाग गुरुद्वारे के ग्रंथी भाई धर्मवीर सिंह ने बताया कि उनके आगमन के दौरान ही एक घटना घटी। मांग पूर्णिमा के दिन भाई कल्याण ने गुरुतेग बहादुर साहिब से कहा कि आज सैकड़ों श्रद्धालु काशी गंगा स्नान करने आ रहे हैं। इसलिए आपका आदेश हो तो हम भी गंगा स्नान करके आ जाएं? उन्होंने कहा कि गंगा कितनी दूर हैं तो बताया कि आधा मील। इस पर उन्होंने ध्यान करते हुए घर में रखे एक पत्थर को हटाया तो वहां से एक निर्मल जलधार निकल पड़ी। भाई कल्याण यह देख आश्चर्य चकित हो गए। जब घर आंगन में पानी भरने लगा तो गुरुजी के आदेश अनुसार पत्थर की शिला उसके स्थान पर रख दी गई। वहीं भाई कल्याण व गुरु तेग बहादुर साहिब समेत काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने वहां स्नान किया। इस जल का स्रोत आज भी बाऊली साहिब के रूप में मौजूद है। इस जल का अमृत पान करने के लिए लोग दूर दूर से आज भी आते हैं। मान्यता है कि आज भी उस जल के सेवन से काफी बीमार लोगों को रोगों से मुक्ति मिलती है।

बनारस के साथ ही गुरु तेग बहादुर साहिब मिर्जापुर व चुनार भी  गए। बनारस से जाते समय भाई कल्याण आदि भावुक हो उठे, बोले अब आपके दर्शन कैसे होंगे। इस पर उन्होंने अपना चोला, कुर्ता पायजामा और चरण पादुका आदि निशानियां वहीं छोड़ दी और कहा जब इसे देखेंगे तो मेरा दर्शन होगा। उनकी यह निशानियां आज भी गुरुद्वारे में संरक्षित है। इसके दर्शन पूजन के लिए लोग उमड़ते हैं। भाई कल्याण के उसी घर को बाद में गुरुद्वारा नीचीबाग बड़ी संगत का सिख अनुयायियों ने रुप दे दिया। यह गुरुद्वारा सिख इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज अपने भीतर समेटे आज शान से बनारस के नीचीबाग इलाके में खड़ा है। जहां देश दुनिया से तमाम श्रद्धालु व पर्यटक गुरुद्वारे में मत्था टेकने पहुंचते हैं। यहां वह सहेज कर रखे गए तमाम सिख दस्तावेज देखकर निहाल हो उठते हैं।