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गुरुवार, 26 जून 2025

Mahe Muharram 2025: Chand के दीदार संग इस्लामी नये साल का आगाज़

मस्जिदों में शहादतनामा तो अजाखानों में शुरू हुई मजलिस-ए-इस्तेक़बालिया

शिया ख़्वातीन ने तोड़ी चूड़ियां, हटाया साजो श्रृंगार, पहना काला लिवास


सरफराज अहमद / मो. रिज़वान 
Varanasi (dil India live). 29 जिलहिज्जा को चांद का दीदार हो गया। चांद देखे जाने के साथ ही इस्लामी नये साल माहे मोहर्रम का आगाज़ हो गया। चांद देखे जाने की पुष्टि ‘काजी-ए-शहर’ समेत तमाम चांद कमेटी के ऐलान से हुई। अपने ऐलान में कहा गया कि आज (27 जून) को मोहर्रम का चांद दिखाई दिया है। इसलिए मुहर्रम की 01 तारीख 28 जून को होगी और यौमे आशूरा 6 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा। उधर चांद के दीदार संग शिया अजाखाने सजा दिए गए। मजलिसे इस्तेकबालिया बनारस, जौनपुर, लखनऊ, मऊ, आजमगढ, बलिया, गोरखपुर व गाजीपुर आदि शहरों में शुरू हो गई।





दरअसल मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल का पहला महीना है। इसी महीने के साथ इस्लामिक नए साल की शुरुआत होती है। वैसे तो ये एक महीना है लेकिन इस महीने में मुसलमान खास तौर पर शिया मुसलमान पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन समेत कर्बला में शहीद हुए 72 वीरों की शहादत का गम मनाते हैं। सन 61 हिजरी (680 ईस्वी) में इराक के कर्बला में पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन को उनके 72 साथियों के साथ यजीदी सेना ने शहीद कर दिया था। मुहर्रम में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का शिया मुस्लिम गम मनाते हैं। मातम करते हैं।  

इस दौरान सुन्नी मस्जिदों में एक से दस मुहर्रम तक सुन्नी मुसलमान शहादतनामा पढते हैं’ तकरीर होती है तो शिया मुसलमान इमाम हुसैन की शहादत का जिक्र करते हैं। उनका गम मनाने के लिए मजलिसें करते हैं। मजलिसों में इमाम हुसैन की शहादत बयान की जाती है। मजलिस में तकरीर (स्पीच) करने के लिए ईरान से भी इंडिया में आलिम (धर्मगुरू) आते हैं और जिस इंसानियत के पैगाम के लिए इमाम हुसैन ने शहादत दी थी उसके बारे में लोगों को विस्तार से बताया जाता है। उधर लोगों ने एक दूसरे को इस्लामिक नये साल की मुबारकबाद दी। सोशल मीडिया, खासकर फेसबुक और व्हाट्स एप पर इस्लामी हिजरी नये साल की मुबारकबाद लोग अपने अजीजों से शेयर कर रहे थे।

शहर भर में हुई इस्तकबाले की मजलिसे

आज मोहर्रम के चांद की तस्दीक होते ही हर तरफ फिजा गमगीन हो गई। या हुसैन या हुसैन...की सदाएं फिजा में गूंजने लगी। हर तरफ इस्तकबाले अज़ा की मजलिसे हुईं व इमामबाड़ों में शमा रोशन किया गया और शरबत पर कर्बला के शहीदों की नजर हुई। शहर भर की 28 अंजुमनों ने नोहा और मातम का आगाज़ किया।

शिया जमा मस्जिद के प्रवक्ता हाजी फरमान हैदर ने तकरीर करते हुए कहा कि यह वह महीना है कि जिसमें इमाम हुसैन ने अपने 71 साथियों के साथ इंसानियत को बचाने के लिए कुर्बानी पेश की। बताया कि लाखों की तादाद में मुसलमान और गैर मुसलमान हजरात भी इमाम हुसैन का गम मानते हैं, शहर भर में पहली मोहर्रम से लेकर 13वीं मोहरम तक लगातार जुलूस उठते हैं और सैकड़ो की तादाद में मजलिसे होती हैं। जिसमें खवातीन भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। इस सिलसिले से पहला जुलूस कल शाम ठीक 4:00 बजे उठाया जाएगा जो कैंपस में नोहाख्वानी और मातम के साथ समाप्त होगा। हैदर ने बताया की बनारस शहर में कई जगह रास्तों की परेशानियां हैं और प्रशासन से अपील की जाती है कि वह रास्तों की दुश्वारियां को दूर कराएं और सुरक्षा के इंतजाम किए जाएं। 

इंसानियत के लिए मिसाल है शहादत-ए-हुसैन

इस्लाम की तारीख में मुहर्रम बड़े ही अकीदत, एहतेराम के साथ मनाया जाता है। इंसानियत के लिए शहादत-ए-हुसैन एक मिसाल है। मुहर्रम का चांद दिखाई देने के बाद मर्सियाखान सैयद नबील हैदर ने इस्तेक़बाले अजा की मजलिस को खिताब करते हुए कहा कि मुहर्रम पर 2 महीना 8 दिन ग़म मनाया जाता है। यही नहीं पूरे दो माह 8 दिन शिया समुदाय के लोग किसी भी खुशी में शरीक नहीं होते। चांद दिखाई देने से आज ही से इमाम बारगाह, अजाखानो, घरों में मजलिसों का सिलसिला शुरू हो गया। 

नबील ने कहा कि इमाम हुसैन ने जो इन्सानियत की राह दिखाई है ,वही हक पर चलने की नेक राह है। इमाम हुसैन ने जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का पैगाम दिया, हुसैन ने जालिम खलीफा का साथ नहीं दिया । इसीलिए आपको अपने 72 साथियों के साथ इतनी बड़ी कुर्बानी देनी पड़ी, लेकिन यही कुर्बानी दीन को बचा ले गई, और उसी कुर्बानी की वजह से इंसानियत दुनिया में अभी भी जिंदा है। इमाम हुसैन का बलिदान सत्य, न्याय, धार्मिकता महान प्रेरणा है। उनका बलिदान अन्याय के खिलाफ लड़ने और सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए एक शक्तिशाली संदेश है।