बनारस घराने से लता मंगेशकर का था गहरा रिश्ता
- सुर संगम फिल्म में राजन, साजन मिश्र के साथ किया था पार्श्व गायन
- सिद्देश्वरी देवी के आवास पर कभी ठहरी थी लता मंगेशकर
- स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन से सदमें में है काशी
अमन
पं. किशन महाराज के शिष्य अमित मिश्रा कहते हैं कि पं. किशन महाराज, राजन-साजन मिश्र जब भी मुम्बई जाते थे तो वो लता मंगेशकर के घर पर ही ठहरते थे। बनारस से गए कलाकारों का वो दिल से स्वागत करती थी। ठुमरी सम्राट महादेव प्रसाद मिश्र कला संस्थान के पं. गणेश मिश्रा की माने तो वो बतौर एक कलाकार बनारस वालों की बहुत कद्र करती थी। बड़े गुलाम अली खां की शिष्या लता मंगेशकर के बारे में कहा गया है कि वो इतना मीठा गायन पेश करती थी कि उनके उस्ताद बड़े गुलाम अली भी कह उठते थे कि ई इतना सुर में गावे ली कि कभी डाटो ना खावेली...जब सब्हे सही हव ता का डाटी...। पं. किशन महाराज की पुत्री अंजलि मिश्रा कहती है कि उनके घर से उनका गहरा रिश्ता था। यही वजह है कि वो स्वस्थ्य हो इसके लिए पूरे देश के साथ ही बनारस संगीत घराने के लोग भी प्रार्थना कर रहे थे। उन्होंने 30 हजार से भी ज्यादा गाना गाया था। यह किसी कलाकार के लिए बहुत बड़ी बात है। काशी की गलियों से संघर्ष करते हुए बालीवुड में अपनी पहचान बनाने वाली सुरभि सिंह कहती है कि अकसर उनसे मुलाकात होती थी मगर कभी लगा ही नहीं कि वो इतने बड़े कद की मलिका हैं। बेहद साधारण था उनका व्यवहार। गरीबी से लेकर धनी बनने तक कभी उनके व्यवहार में बदलाव नहीं आया।
दरअसल 28 सितंबर 1929 को इंदौर में मशहूर संगीतकार दीनानाथ मंगेशकर के घर जन्मी लता मंगेशकर ने पांच साल की उम्र में ही गाना शुरू कर दिया था। उनके शुरुआती गुरु उनके पिता ही थे, बाद में बड़े गुलाम अली से उन्होंने गायन की शिक्षा ली। उनका काशी से गहरा लगाव था भले ही वो काशी कम आयी मगर यहां के संगीत घराने की वो बड़ी कद्रदान थीं। बिस्मिल्लाह खां, सिद्देश्वरी देवी, पं. महादेव प्रसाद मिश्र, सितारा देवी, किशन महाराज, राजन-साजन मिश्र से उनका गहरा लगाव था।