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सोमवार, 21 अगस्त 2023

भारत रत्न Ustad Bismillah Khan बरसी पर आएं याद


Varanasi (dil India live). 21.08.2023. भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की 17वीं पुण्यतिथि उनके मकबरे पर पुरे अकीदत से मनायी गयी कब्र पर परिवार के सारे सदस्य मौजूद रहे। बिस्मिल्लाह खां की बड़ी बेटी ज़रीना बेगम, पौत्री शाहिन फात्मा, मिन्हाज फात्मा, फलक बेगम, जैनब फात्मा, पौत्र इफ्तिखार हुसैन, हादी हसन, नजमूल हसन, फरहत अब्बास, परवेज हुसैन, मोहम्मद अली व पौत्र आफाक हैदर से उनकी कब्र पर उनका पसंदीदा नौहा पेश किया, जिसका बोल "मारा गया है तीर से बच्चा रवाब"। इसे सुनकर मौजूद लोगों की आंखें नम हो गई।

श्रद्धांजलि देने उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय राय भी पहुंचे। उन्होंने उनके चित्र पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित किया। उन्होंने श्रद्धांजलि देने के बाद  कहा कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब जैसे लोग हजारों सालों में पैदा होते है, वो न सिर्फ एक शहनाई वादक थे बल्कि एक संत भी थे। कार्यक्रम संयोजक शकील अहमद जादूगर ने कहा कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के सम्मान में भारत सरकार से पूरजोर गुजारिश है कि उनके नाम से एक ट्रेन का संचालन किया जाये। कार्यक्रम में मुख्य रूप से बनारस के अब्बास मुर्तजा शम्सी, दरगाहे फातमान के मुतवल्ली सैय्यद अब्बास रिज़वी शफक, प्रमोद वर्मा, शैलेन्द्र सिंह, इमरान अहमद, हाजी असलम, प्रिंस राय खगोलन, सलीम उर्फ पयाऊ व हाजी इस्लाम व  उप नगर आयुक्त, नगर निगम वाराणसी इन्द्र विजय सहित काफी लोगों ने श्रद्धांजली अर्पित किया। कार्यक्रम संयोजन शकील अहमद जादूगर व धन्यवाद बिस्मिल्लाह खान के पौत्र आफाक हैदर ने किया।

India की आजादी ही नहीं, गणतंत्र दिवस पर भी गूंजी थी उस्ताद की शहनाई

शहनाई से उस्ताद नहीं, उस्ताद से जानी जाती हैं 'शहनाई'

‘भारत रत्न’ बिस्मिल्लाह खान की बरसी पर दिल इंडिया लाइव की श्रद्धांजलि 


Varanasi (dil India live)। 21.08.2024. India अपनी बहुलतावादी, मिली-जुली संस्कृति के लिए जगविख्यात है। इसकी वजह यह है कि हिंदुस्तान की सरज़मी पर तमाम ऐसी हस्तियो ने जन्म लिया, जिस पर समूची दुनिया नाज़ करती है। इस फेहरिस्त में शहनाईवादक ‘भारत रत्न’ उस्ताद बिस्मिल्लाह खान भी शामिल हैं। शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसी शख्सियतों ने ही इस देश कि मिली-जुली संस्कृति की दुनिया में शिनाख्त कराई। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने अपनी सारी उम्र संगीत को ही अपना सब कुुुुछ माना, वो ताउम्र धर्मवाद, जात-पात का विरोध करते रहे और संगीत के ही रियाज में लगे रहे। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को नाज़ था कि वो बनारस में रहते है जहां गंगा बहती है, आज उस्ताद को दुनिया से गये अर्सा हो गया मगर वो आज भी देश-दुनिया में वैसे ही जाने जाते है जैसे पहले जाने जाते थे।, यह कहा जाये कि शहनाई से उस्ताद नहीं, उस्ताद से शहनाई जानी जाती है, तो गलत नहीं होगा। बिस्मिल्लाह खान वो शख्सियत हैं जिन्होंने देश की आजादी का स्वागत लाल किले पर शहनाई से तो किया ही साथ ही गणतंत्र दिवस पर भी उस्ताद की शहनाई की गूंज दुनिया के कोने कोने तक पहुंची थी।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाज़े गए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है, क्योंकि मुल्क का बच्चा-बच्चा उनके नाम, शोहरत और उनकी आजीवन संगीत साधना से परिचित है। संगीत के क्षेत्र में उनकी साधना के कायलों की तादाद हिन्दुस्तान ही नही विश्व भर मेें है। जिसका संगीत से कोई सरोकार नही है। वो भी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान कि शहनाई की तान सुन झूम उठता था। वो खुशी के साज पर गम का तराना बजाते थे, बिस्मिल्लाह खां जब मोहर्रम में अपनी शहनाई से आंसुओ का नज़राना पेश करते थे तो सभी कि आंखो में आंसु आ जाता था। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बिहार में मुस्लिम परिवार में पैैैैदा हुए। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बहुत छोटी उम्र में ही अपने पिता पैगम्बर बख्श खान के साथ बनारस आकर बस गए थे, जहां उन्होंने अपने मामा अली बख्श ‘विलायत’ से शहनाई बजाना सीखा, जो काशी के बाबा विश्वनाथ मन्दिर में स्थायी रूप से शहनाई-वादन किया करते थे। अपने मामा के इंतकाल के बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने भी बरसों बाबा विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाई।

पीएम नेहरू के कहने पर बजाई थी शहनाई

15 अगस्त 1947 में जब देश आजाद हुआ तो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के लाल किला पर तिरंगा फहराने के बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने देशवासियों को बधाई देने के लिए लाल किले से शहनाई बजाई। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने पीएम जवाहर लाल नेहरू के कहने पर शहनाई बजाई थी। 1997 में आजादी की 50 वीं वर्षगांठ पर भारत सरकार के आमंत्रण पर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने दूसरी बार लाल किले के दीवाने-आम से शहनाई बजाई। यह भी एक मिसाल है कि 1992 में ईरान के तेहरान में एक बड़ा ऑडिटोरियम बनाया गया, जिसका नाम उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के नाम पर रखा गया, ‘तालार मौसीकी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान’ उन्होंने कन्नड़ फिल्म में साउथ के सुपरस्टार राजकुमार की फिल्म ‘शादी अपन्ना’ के लिए शहनाई बजाई थी। यह फिल्म ब्लॉकबस्टर थी। ऐसे ही उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने सत्यजीत रे की फिल्म ‘जलसाघर’ में नजर आए थे और 1959 की फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में भी उस्ताद ने ही शहनाई बजाई व ‘रॉकस्टार’ फिल्म में भी उनकी शहनाई बजी थी। भारत के पहले गणतंत्र दिवस (26 जनवरी, 1950) पर उन्होंने लाल किले से राग कैफी की प्रस्तुति दी थी। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का बचपन का नाम कमरूद्दीन था लेकिन वो बिस्मिल्लाह खान के नाम से मशहूर हुुुए। 

रविवार, 6 फ़रवरी 2022

लता मंगेशकर अलविदा...

 बनारस घराने से लता मंगेशकर का था गहरा रिश्ता

  • सुर संगम फिल्म में राजन, साजन मिश्र के साथ किया था पार्श्व गायन
  • सिद्देश्वरी देवी के आवास पर कभी ठहरी थी लता मंगेशकर
  • स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन से सदमें में है काशी  




अमन

वाराणसी ०६ फरवरी (dil India live)।  28 सितंबर 1929 को इंदौर में मशहूर संगीतकार दीनानाथ मंगेशकर के घर जन्मी लता मंगेशकर ने आज दुनिया को अलविदा कह दिया। स्वर कोकिला लता मंगेशकर का दुनिया को अलविदा कहना कला और सांस्कृतिक नगरी काशी के लिए किसी सदमे से कम नहीं है। लता मंगेशकर का काशी संगीत घराने से गहरा लगाव था। खासकर ठुमरी गायिका सिद्देश्वरी देवी के घर वो कई बार आयी थीं।  ठुमारी सम्राट पं. महादेव प्रसाद मिश्र से उन्होंने ठुमरी की बारीकी सीखी थी। बिस्मिल्लाह खां की वो बहुत बड़ी फैन थीं। यही नहीं फिल्म सुर संगम में राजन मिश्र व साजन मिश्र के साथ लता मंगेशकर ने भी पार्श्व गायन पेश किया था। एक कलाकार के रूप में लता मंगेशकर का बनारस संगीत घराने से गहरा लगाव था।  पं. साजन मिश्र कहते हैं कि लता जी का उनके परिवार से गहरा और नज़दीकी रिश्ता था। 1982 में लता जी ने पं. दीनानाथ जी की स्मृति में कार्यक्रम रखा था तो उसमें बनारस घराने से सितारा देवी का डांस हुआ था और हम दोनों भाईयों का गायन था, वो उनसे पहली मुलाकात थी। उन्होंने इतनी इज्ज़त दी थी कि लग ही नहीं रहा था कि उनसे पहली बार मिले हैं। उसके बाद 1983 में सुर संगम के लिए भी उन्होंने अपनी आवाज़ दी।  इसके बाद तो उनका काशी के संगीत घरानों से उनका गहरा लगाव हो गया था। ऐसी गायिका शायद ही कभी धरती पर आये।

पं. किशन महाराज के शिष्य अमित मिश्रा कहते हैं कि पं. किशन महाराज, राजन-साजन मिश्र जब भी मुम्बई जाते थे तो वो लता मंगेशकर के घर पर ही ठहरते थे। बनारस से गए कलाकारों का वो दिल से स्वागत करती थी। ठुमरी सम्राट महादेव प्रसाद मिश्र कला संस्थान के पं. गणेश मिश्रा की माने तो वो बतौर एक कलाकार बनारस वालों की बहुत कद्र करती थी। बड़े गुलाम अली खां की शिष्या लता मंगेशकर के बारे में कहा गया है कि वो इतना मीठा गायन पेश करती थी कि उनके उस्ताद बड़े गुलाम अली भी कह उठते थे कि ई इतना सुर में गावे ली कि कभी डाटो ना खावेली...जब सब्हे सही हव ता का डाटी...।  पं. किशन महाराज की पुत्री अंजलि मिश्रा कहती है कि उनके घर से उनका गहरा रिश्ता था। यही वजह है कि वो स्वस्थ्य हो इसके लिए पूरे देश के साथ ही बनारस संगीत घराने के लोग भी प्रार्थना कर रहे थे। उन्होंने 30 हजार से भी ज्यादा गाना गाया था। यह किसी कलाकार के लिए बहुत बड़ी बात है। काशी की गलियों से संघर्ष करते हुए बालीवुड में अपनी पहचान बनाने वाली सुरभि सिंह कहती है कि अकसर उनसे मुलाकात होती थी मगर कभी लगा ही नहीं कि वो इतने बड़े कद की मलिका हैं। बेहद साधारण था उनका व्यवहार। गरीबी से लेकर धनी बनने तक कभी उनके व्यवहार में बदलाव नहीं आया।  

दरअसल 28 सितंबर 1929 को इंदौर में मशहूर संगीतकार दीनानाथ मंगेशकर के घर जन्मी लता मंगेशकर ने पांच साल की उम्र में ही गाना शुरू कर दिया था। उनके शुरुआती गुरु उनके पिता ही थे, बाद में बड़े गुलाम अली से उन्होंने गायन की शिक्षा ली। उनका काशी से गहरा लगाव था भले ही वो काशी कम आयी मगर यहां के संगीत घराने की वो बड़ी कद्रदान थीं। बिस्मिल्लाह खां, सिद्देश्वरी देवी, पं. महादेव प्रसाद मिश्र, सितारा देवी, किशन महाराज, राजन-साजन मिश्र से उनका गहरा लगाव था।

तुलसी विवाह पर भजनों से चहकी शेर वाली कोठी

Varanasi (dil India live)। प्रबोधिनी एकादशी के पावन अवसर पर ठठेरी बाजार स्थित शेर वाली कोठी में तुलसी विवाह महोत्सव का आयोजन किया गया। श्री ...