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बुधवार, 3 नवंबर 2021

सियासी मैदान में छोटे दल की ताकत

पूर्वांचल में खेला करने को बेताब दिख रहे उभरते सुरमा

अपना दल, सुभासपा, आप, वीआईपी, एआईएमएआईएम पर सभी की निगाहें  

वाराणसी 3 नवंबर (dil india)। उत्तर प्रदेश में चुनाव अधिसूचना भले ही अभी जारी न हुई हो मगर पूर्वांचल में सियासी पारा चढ़ा हुआ है। चुनाव आचार संहिता लगने से पहले सभी सियासी दल अपनी बातें, अपना मुद्दा, जनता तक पहुंचाने के लिए बेताब है। कोई पेट्रोलियम पदार्थो की महंगाई, बेराज़गारी को मुद्दा बना रहा है तो कोई ईमानदारी, प्रदेश के सम्मान की बात कर रहा है। धर्म, जाति, पक्ष-विपक्ष के हमले शुरू हो गये हैं, जोड़-तोड़ और समीकरण बनाने की जद्दोजेहद जारी है। जनता को लुभाने के लिए रैलियां कर वादो का दौर अपने शबाब पर है। सत्ता बचाने व काबिज होने के लिए कोई भी दल कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता है। पूवार्चंल की लगभग 160 सीटों पर काबिज होने के लिए सत्ता व विपक्ष के बीच रस्सा कस्सी तेज हो गई है। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो समीकरण बनाने और बिगाड़ने में इस बार सबसे ज्यादा किरदार छोटे दल अदा करेंगे। वही बनायेंगे और बिगाड़ेंगे सियासी खेल। पूर्वांचल में अपना दल, अपना दल एस, सुभासपा, आप, वीआईपी, एआईएमएआईएम, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी पर सभी की निगाहें है।

जातीगत आधार पर बने छोटे-छोटे दल अपने वजूद को कायम करने के लिए समीकरण बनाने में लग गये है। समाजवादी पार्टी व सुभासपा ने गठबंधन करके पूवार्चंल की सियासत को जहां नया समीकरण का संकेत दिया है वहीं भाजपा की बी टीम का आरोप देश भर में झेल रहे एआईएमएआईएम प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी को भी झटका लगा है। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अगुवा शिवपाल यादव और ओवैसी से लगातार ओमप्रकाश राजभर की बैठकें होना और फिर सपा से ओम प्रकाश राजभर का हाथ मिला लेना सियासत का नया पेंच कहा जा रहा है। सूत्र तो यहां तक कहते हैं कि आने वाले दिन में सपा ओवैसी से भी हाथ मिला सकती है। क्यों कि छोटे-छोटे दल को साथ लेकर ही सपा प्रमुख अपनी सियासी महत्वकांक्षा पूरी करने की फिराक में हैं। ओम प्रकाश राजभर के आने से पूर्वांचल का राजभर वोट सपा के पाले में आ जायेगा और यादव, मुस्लिम वोट बैंक पहले से सपा के पाले में है। ओवैसी सपा के साथ आ जाते हैं तो संभव है कि सपा के पाले से जो थोड़ा बहुत मुस्लिम वोट खिसकने का डर है वो नहीं रहेगा। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि अगर सपा ओवैसी के साथ जाते हैं तो भाजपा इसे हिन्दू-मुस्लिम का रूप देकर सियासी लाभ उठा सकती है। अखिलेश यह रिस्क संभव है कि न लें। शायद इसी लिए ओम प्रकाश राजभर और सपा में समझौता तो हो गया मगर ओवैसी का चेप्टर अभी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

भाजपा पर वादाखिलाफी का आरोप

बिहार में एनडीए सरकार का हिस्सा, वीआईपी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश साहनी कहते है कि हमारी केंद्र सरकार से मांग थी कि निषादों को आरक्षण मिले, लेकिन केंद्र की मोदी सरकार नहीं दे सकी। मुकेश कहते हैं कि यूपी के विधानसभा चुनाव में जीतने के लिए नहीं, बल्कि योगी सरकार को हराने के लिए लड़ेंगे। ऐसे ही जातीय आधार पर बनी सुभासपा व निषाद पार्टी बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ थी। सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर विधायक बनने के बाद भाजपा सरकार में मंत्री भी थे मगर वहां सम्मान न मिलने के कारण उन्होंने मंत्री पद को ठोकर मार दिया। 

ज्यादातर सीटों पर भाजपा

 कुछ गिनती की सीटें छोड़ दिया जाये तो पूर्वांचल की ज्यादातर सीटों पर भाजपा का ही कब्जा है। 2017 के चुनाव में तकरीबन सभी छोटे क्षेत्रीय दल भाजपा के साथ थे मगर अब समीकरण उससे इतर है। इस बार अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल को छोड़ दिया जाये तो तकरीबन सभी छोटे दल या तो सपा के साथ हैं या फिर अलग-थलग पड़े हैं। इस वक्त कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाली अपना दल एस और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी अलग-थलग ही है। संभव है कि दोनों दल चुनाव आते-आते अपना रुख स्पष्ट करें।

राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ की जाने राय

राजनीति विशेषज्ञ डा. आरिफ कहते हैं कि पूर्वांचल में कही अगडे-पिछडे के आधार पर तो कही धर्म के आधार पर मतदान होता रहा है। अन्य मुद्दे गौड हो जाते है। हालांकि सर्भ दल चाहते है जातीय समीकरण ध्वस्त हो लेकिन चुनाव में प्रत्याशियों को चयन उनकी काबिलियत पर नही जातीगत आधार पर ही होता है। सपा, बसपा ही नहीं कांग्रेस और भाजपा भी जाति आधार पर उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं। जाति समीकरण के चलते ही पूर्वांचल की सियासत में छोटे-छोटे दलों का उदय हुआ और आज छोटे दल ही समीकरण बनाते है और बिगाड़ते हैं।

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