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बुधवार, 18 अगस्त 2021

हज़रत अब्बास का ताबूत सजा, गूंजा आंसुओं का नज़राना


मोहर्रम : निभाई गयी 8 मोहर्रम की परम्परा

वाराणसी 18 अगस्त (दिल इंडिया लाइव)। मोहर्रम का महीना इनाम हुसैन और उनके 71 साथियों की याद में मनाया जाता है। बुधवार को मोहर्रम की 8 तारीख़ को  इमाम हुसैन के बावफ़ा और बहादुर भाई हज़रत अब्बास की याद में जगह-जगह मजलिसों का आयोजन कोविड नियमों के अनुपालन में किया गया। इसी क्रम में दालमंडी के चहमामा इलाके से ख्वाजा नब्बू साहब के इमामबड़े से उठने वाले विश्व प्रसिद्द और 250 साल पुराने तुर्बत के जुलूस की परम्परा का निर्वहन किया गया। कोरोना काल में शासन की मंशा के अनुरूप जुलूस नहीं उठाया गया। 

पुरखों की परम्परा निभाई



  जुलूस में भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आंसुओं का नज़राना अपनी ग़मज़दा शहनाई से दिया करते थे जिसे सुनने के लिए देश और विदेश से लोग आते थे। वहीँ फ़तेह अली खां और उनके हमराहियों ने भी अपने पुरखों की परम्परा का निर्वहन करते हुए शहनाई बजाई। 

इस सम्बन्ध में जुलूस के आयोजक मुनाजिर हुसैन मंजू ने बताया कि इमाम हुसैन के भाई हज़रत अब्बास की याद में उठने वाला 8 मोहर्रम का जुलूस इस वर्ष भी कोरोना गाइडलाइन के अनुरूप मुल्तवी रखा गया। इमामबाड़ा ख्वाजा नब्बू साहब में सिर्फ ताबूत सजाकर मजलिस की गयी। जिसमे अब्बास मुर्तुज़ा शम्सी ने मर्सिया पढ़ा। इसके बाद हुज्जतुल इस्लाम आली जनाब मौलाना सैयद अमीन हैदर ने मजलिस को खिताब फ़रमाया। 

इसके बाद शराफत अली खां और उनके बेटे लियाकत अली खां ने हमराहियों के साथ इमामबाड़े में ही सवारी पढ़ी जिसके बोल थे 'जब हाथ कलम हो गए सक्काए हरम के सवारी सुनकर लोगों की आंखों से अश्क जारी हो गया। इसके बाद अंजुमन हैदरी चौक बनारस ने नौहा मातम किया। इसी दौरान अपने पुरखो की शहनाई की परम्परा का निर्वहन करते हुए फ़तेह अली खां ने शहनाई से आसुओं का नज़राना पेश किया।

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