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शनिवार, 16 सितंबर 2023

Imam Husain समेत कर्बला के शहीदों का मना 'पचासा'

पचासे के जुलूस में जियारत को उमड़ा जनसैलाब

दर्द भरे नौहों पर पेश किया मातम का नजराना 







Varanasi (dil India live).16.09.2023. बनारस में सफर कि 29 तारीख को शिया मर्द व ख़्वातीन ने शहीदाने कर्बला का पचासा अकीदत के साथ मनाया। इस दौरान बच्चों की अंजुमन भी नौहाख्वानी व मातम करती नजर आयीं।

शनिवार को पचासे का ऐतिहासिक जुलूस जब दोषीपुरा से अंजुमन जाफरिया द्वारा तथा चोहट्टा लाल ख़ान से अंजुमन आबिदिया द्वारा निकाला गया तो लोगों का हुजूम जुलूस की जियारत को उमड़ पड़ा। नबी और इमाम हसन की शहादत तथा इमाम हुसैन की शहादत के पचासवे दिन अलम, ताबूत, ताजिया, अमारी, दुलदुल की जियारत करने के लिए बनारस के अलावा लोग दूसरे शहरों से भी लाट सरैया पहुंचे हुए थे। दोषीपुरा का जूलूस ९ बजे इमामबाड़े से मेहदी इमाम के जेरे निगरानी निकला । अंजुमन जाफरिया के दर्द भरे नौहाख्वानी पर तमाम अजादार मातम का नजराना पेश करते हुए आगे बढ़ते गए। हाए इमाम-ए-हुसैन, हाय रसूले जमन... की सदाएं बुलंद होती रही। बड़ी बाजार, पीली कोठी, हनुमान पाठक होते हुए जुलूस जलालीपुरा पहुंचा जहां अजादारों ने शहीदाने कर्बला को नजराना पेश किया। जवान और छोटे बच्चे लब्बैक या हुसैन...की सदाएं बुलंद कर रहे थे। 

शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता हाजी फरमान हैदर ने बताया की हजारों की तादाद में लोग मातमदारो का हौसला देखते रहे। दूसरी ओर अंजुमन आबिदिया का जूलूस चौहट्टा से उठा। जो अपने कदीमी रास्तों से होते हुए जंजीर कमा का मातम करते हुए लाट सरैया सदर इमामबाड़े पहुंचा। इमामबाड़े पर हजारों की तादाद में मर्द , खवातीन, बच्चे अजादारों का इस्तकबाल करने के लिए मौजूद थे। इस अवसर पर मौलाना क़ासिद हुसैन , शफीक हैदर , जायर हुसैन , इकबाल हैदर आदि ने कर्बला के वाक़यात पर रौशनी डाली। इस अवसर पर सबील लगाकर खाना, पानी , चाय, शरबत, आदि का वितरण किया जा रहा था। हुसैनी टाइगर संस्था द्वारा ब्लड डोनेशन का आयोजन किया गया। जिसमें दो दर्जन ब्लड डोनेट किया गया। फरमान हैदर ने बताया की रास्ता खराब होने के वजह से जायरीन को परेशानी का सामना करना पड़ा। इस अवसर पर सज्जाद अली , मीसम अली, शामिल रिजवी, मेहदी हसन आदि लोग मौजूद थे।

शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

Imam Hussain India आना चाहते थे: सैयद फरमान हैदर

कर्बला के शहीदों की याद में  जंजीर का मातम




शिवाला से निकले जुलूस में अलम लिए अजादार

Varanasi (dil India live). 08.09.2023. चेहल्लुम के बाद भी गमे हुसैन का दौर अभी पूर्वांचल के शहरों में जारी है. इसी सिललिसे से तीन जुलूस जुमे को भी बनारस शहर में उठाया गया. पहला जुलूस सैयद आलिम हुसैन रिजवी के शिवाला स्थित अजाखाने से दिन में चार बजे उठा. यहां मौलाना तौसीफ अली इमामे जुमा जामा मस्जिद अर्दली बाजार ने तकरीर करते हुए कर्बला के शहीदों और असीरों के मसायब बयां किए. यहां अंजुमन गुलजारे अब्बासिया ने दर्द भरा नौहा पेश किया जिसे सुनकर तमाम अजादारों ने जंजीर व कमा का मातम किया. जुलूस विभिन्न रास्तों से होता हुआ शिवाला चौराहे पर पहुंचा जहां पर इमाम हुसैन का पैगाम दुनिया के लिए क्या था इस पर मौलाना नजीर हुसैन लखनवी व सैयद फरमान हैदर ने तकरीर की. उलेमा ने कहा कि इमाम हुसैन के नाम पर पूरी दुनिया एक प्लेटफार्म पर आ सकती है. इमाम हुसैन को इंडिया से मोहब्बत थी. यही वजह थी कि उन्होंने कर्बला की जंग के पहले कहा था कि मुझे हिन्दुस्तान जाने का दिल कर रहा है. आज वही हिन्दुस्तान इमाम हुसैन के चाहने वालों का मरकज बन गया है. जुलूस शिवाला घाट जाकर सम्पन्न हुआ. ऐसे ही सलेमपुरा में दूसरा जुलूस उठा. जिसमें ताजिया, अलम व ताबूत आदि शामिल था. यहां अंजुमन आबिदिया ने नौहाख्वानी व मातम किया. ऐसे ही तीसरा जुलूस मसजिद डिपटी जाफर बख्त शिवाला से उठा. जुलूस में अंजुमन हैदरी चौक ने दर्द भरे नौहों पर जोरदार मातम का नजराना पेश किया. यह जुलूस भी शिवाला घाट जाकर सम्पन्न हुआ. जुलूस का यह सिलसिला २६ सफर तक जारी रहेगा.

गुरुवार, 7 सितंबर 2023

गूंजी है कर्बला में सदा मैं हुसैन हूं...

इमाम हुसैन समेत कर्बला के शहीदों का मना चेहल्लुम 

निकला जुलूस, दर्द भरे नौहों के गूंजे बोल, हुआ मातम 

उलेमा बोले: हुसैन किसी एक मज़हब के नहीं 






Varanasi (dil India live). 07.09.2023. इमाम हसन, इमाम हुसैन समेत कर्बला के शहीदों का चेहल्लुम जुमेरात को अकीदत के साथ मनाया गया. इस मौके पर  जहां अंजुमन इमामिया के संयोजन में चेहल्लुम का जुलुस का आगाज़ अर्दली बाजार में मौलाना गुलज़ार मौलाई की मजलिस से हुआ वहीं बाद मजलिस अलम, ताबूत, दुलदुल व हज़रत अली असगर का झूला उठाया गया. इस मौके पर अमारी की अकीदतमंदों ने नम आंखों से जियारत कर कर्बला के शहीदों को याद किया. जुलूस अपने कदीमी रास्तों से होता हुआ उल्फत बीबी कम्पांड, सब्जी मंडी, डिठोरी महाल होते हुए पुनः उल्फत बीबी कम्पाउंड में आकर समाप्त हुआ.

मौलाना बाकर रजा बलियाबी की निजामत में निकले जुलूस में जफर अब्बास रिज़वी, हाजी एसएम जाफर, दिलकश रिज़वी, फसाहत हुसैन बाबू, इरशाद हुसैन, हसन मेंहदी कब्बन, सुजात हुसैन, रियासत हुसैन, विक्की जाफरी, रोमान हुसैन, राहिल नक़वी, सबील हैदर, गुलरेज़ टाइगर, अलमदार हुसैन, अमन मेहदी, ताबिर, नज़फ हैपी व्यवस्था संभाले हुए थे. 

जुलूस अर्दली बाज़ार मुख्य सड़क पर पहुंचने पर मौलाना तौसीफ अली इमामे जुमा अर्दली बाजार ने तकरीर करते हुए कहा कि हुसैन किसी एक मज़हब का नाम नहीं है बल्कि हुसैन पूरी कायनात के लिए आए और पूरी कायनात को दिखा दिया कि अगर इंसानियत और हक की बात आए तो अपनी जान की भी परवाह मत करना. जुलूस के साथ-साथ शहर की मशहूर अंजुमन अंसारे हुसैनी रजिस्टर्ड, अंजुमन जादे आखिरत, अंजुमन कासिमिया अब्बासिया, अंजुमन सदाये अब्बास, अंजुमन हुसैनिया, अंजुमन अंसारे हुसैनिया अवामी, अंजुमन पैगामें हुसैनी, अंजुमन मकदुमिया (गाज़ीपूर) के अलावा अन्य अंजुमन नौहाख्वानी व मातम करते हुए चल रही थी. क्षेत्रीय पार्षद व स्थानीय सभी वर्ग के लोग जुलूस में शामिल हुए.

उधर वक्फ मस्जिद व इमामबाडा मौलाना मीर इमाम अली व मेहदी बेगम गोविन्दपुरा कला, छत्तातले से चेहल्लुम का जुलूस मुतवल्ली सै• मुनाजिर हुसैनी मंजू के जेरे इन्तेजाम उठा. जुलूस उठने से पूर्व मजलिस को खेताब फरमाते हुए मौलाना ने कर्बला का वाक्या पेश किया. जुलूस उठने पर शुजाअत अली खां कब्बन मिर्जा व साथियों ने सवारी पढी " जब गोरे गरीबाँ से वतन में हरम आए…" जुलूस धीरे-धीरे छत्तातला,  गुदड़ी बाजार होते हुए दालमंडी हकीम काजमी के अजाखाने पहुंचा जहां से शबीहे जुलजनाह बरामद हुआ और अंजुमन हैदरी चौक ने नौहाख्वानी व मातम शुरू किया." ऐ अहले अजा बैठे क्या हो फरजंदे नबी का चेहलुम है ".जुलूस नई सडक काली महल पितरकुण्डा होते हुए लल्लापुरा स्थिति फात्मान पहुंचकर इकतेदाम पदीर हुआ. ऐसे ही इमामबाड़ा कच्चीसराय, दालमंडी से सैयद इकबाल हुसैन, लाडले हसन की देखरेख में जुलूस उठाया गया. जुलूस की देखरेख अंजुमन जव्वादिया ने की. जुलूस दालमंडी, नई सड़क, फाटक शेख सलीम, काली महल होकर दरगाहे फातमान पहुंचा. इस दौरान, दर्द भरा नौहा गूंजी है कर्बला में सदा मैं हुसैन हूं, नाना मेरे रसूले खुदा मैं हुसैन हूं…पढ़ा.

शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

Imam Hussain दुनिया के तमाम मज़लूंमो की आवाज़

१५ मुहर्रम को शिया मुस्लिमों ने मनाया ग़मे हुसैन 



Varanasi (dil India live). १५ मुहर्रम को शिया मुस्लिमों ने ग़मे हुसैन के रूप में मनाया। मोहर्रम के तीसरे जुमेरात शहर भर में कई मजलिसे हूई व ख्वातीन ने नौहाख्वानी व मातम किया. दरगाहें फातमान में हज़रत अब्बास के रौज़े पर मजलिस को ख़िताब करते हुऐ शिया जमा मस्जिद के प्रवक्ता सैयद फरमान हैदर ने कहा कि इमाम हुसैन ने अपनी शहादत और सब्र के ज़रिये दुनिया के हर मज़लूम की आवाज़ को बुलंद किया. उनकी शहादत के बाद परिवार की औरतों और बच्चो ने भी यज़ीद के तमाम ज़ुल्म को सहते हुऐ और महीनों क़ैद में रहकर भी उसके ज़ुल्म के आगे सर नहीं झुकाया. कर्बला के वाक़ियात सुनकर लोगो की आँखें नम हो गयी. इमरान हैदरी, समर बनारसी, हैदर मौलाई ने कलाम पेश किये. बड़े तादाद मे मर्द और ख्वातीन ने दुआख्वानि में हिस्सा लिया. मजलिसों का सिलसिला सुबह १० बजे से शुरू हुआ. पहली मजलिस दालमंडी पुरानी अदालत मे शब्बीर और सफ़दर के आजाखने पर मौलाना अमीन हैदर हुसैनी ने पढ़ी. शोएब देहलवी और प्रोफेसर अज़ीज़ हैदर ने कलाम पेश किये. शाम को हड़हासराय भीकाशाह गली में तीसरे दिन भी मौलाना तौसीफ अली इमामे जुमा अर्दली बाजार ने मजलिस को ख़िताब किया. अंजुमन हैदरी ने नौहाख्वानी व मातम किया. चौहाट्टा लाल ख़्वान मे मिर्ज़ा परिवार के अजाखाने पर मौलाना नदीम असगर रिज़वी ने मजलिस को ख़िताब किया. ऐसे ही अर्दली बाजार, शिवाला, रामनगर, पठानी टोला, माताकुण्ड में भी मजलिसों के ज़रिये कर्बला के शहीदों को खेराजे अक़ीदत पेश किया गया. 

ख्वातीन की मजलिस

काली महल में आजाखना इमदाद और फुरकान में दिन की मजलिस को सानिया नजफी ने ख़िताब किया, अनाया फातिमा ने नौहाख्वानी की. माताकुण्ड में हैदर अब्बास चांद के निवास पे ख्वातीन की मजलिस आयोजित हुईं.  नयी पोखरी पर भी मंज़िलत फातिमा के निवास पर ख्वातीन की मजलिस में दर्द भरे नौहों पर मातम का नजराना पेश किया गया।

सोमवार, 31 जुलाई 2023

Moharram 12: या हुसैन...की सदाओं पर निकला अलम सद्दा


बोल मोहम्मदी...या हुसैन की सदाओं संग निकला तीजे का जुलूस






Varanasi (dil India live)। इमाम हुसैन (रजि.) समेत कर्बला के तमाम शहीदों का तीजा सोमवार को पूरी अकीदत और एहतराम के साथ मनाया गया। इस मौके पर मुस्लिमों ने अलम सदा का जुलूस निकाल कर कर्बला में फूल-माला जहां ठंडा किया। तीजे पर इमाम चौकों पर फातेहा कर तबर्रुक तकसीम किया गया। गौरीगंज स्थित मरहूम नन्हें खां के इमामबाड़े से, बोल मोहम्मदी, या हुसैन... या हुसैन...व, नारे तकबीर अल्लाह हो अकबर...। की सदाओं के साथ अलम सद्दा का जुलूस उठा। यह जुलूस शिवाला पहुंचा जहां से विभिन्न रास्तों से होकर शिवाला घाट जाकर सम्पन्न हुआ। ऐसे ही शिवाला से अलम का जुलूस उठाया गया। जुलूस में बड़ी संख्या में पुलिस अधिकारी व पुलिस के जवान शामिल थे। उधर अर्दली बाजार, शिवपुर, तरना आदि का जुलुस अपने कदीमी रास्तों से कचहरी, वरुणापुल होकर नदेसर पहुंचा। अर्दली बाजार का जुलूस जब नदेसर पहुंचा तो उसके पीछे-पीछे नदेसर, राजा बाजार, पक्की बाजार आदि का जुलूस भी फातमान की ओर निकल चला। जुलूस की कमान शाहिद खां, भजपा नेता मलिक, मो. खालिक, गफ्फार, सिकंदर, शहजादे खां, नेयाज अहमद, शमशाद, हम्जा आदि साथ-साथ चल रहे थे। ऐसे ही रामपुरा, रेवड़ीतालाब व मदनापुरा का जुलूस भी निकला। यह जुलूस जंगमबाड़ी, गौदोलिया होते हुए फातमान पहुंच कर सम्पन्न हो गया। उधर ककरमत्ता से जुलूस निकला जो कर्बला पहुंच कर समाप्त हुआ। बजरडीहा, गौरीगंज, नई सड़क, शेख सलीम फाटक, पीलीकोठी, सरैया, छत्तनपुरा, राजा बाजार, प्राहलादघाट, सुंदरपुर, नरिया, दालमंडी, लल्लापुरा, पितरकुंडा, कोयला बाजार, बड़ी बाजार आदि जगहों से भी अलम का जुलूस निकाला गया। 

4 से लेकर 40 मीटर तक के अलम :–

अलम सददे के जुलूस में 4 फीट से लेकर चालीस मीटर तक के रंग-बिरंगे अलम अकीदतमंद ऐसे संभले हुए चल रहे थे कि वो जमीन पर न पड़े। जहां बिजली के तार व टेलीफोन कैबिल रास्ते में आता दिखाई दे रहा था, उससे बचने के लिए पैर पर अलम रखकर बेहद खूबसूरती से धीरे-धीरे संभालते हुए लोग उसे पार करा रहे थे। यह खूबसूरत लम्हा देखते ही बन रहा था। 

खिचडे की हुई फातेहा :–

इमाम हुसैन व इमाम हसन के तीजे पर शहर भर में अकीदतमंदों ने घरों व इमामबाडों में फातेहा कराया। इस दौरान कहीं शिरनी तो कहीं खिचडा बना। फातेहा का तबर्रुक लेने की लोगों में होड मची हुई थी। यह सिलसिला सुबह से देर रात तक चलता रहा।

सिपहगिरी का फन देखने को जुटा मजमा  

अलम सददा के जुलूस के साथ साथ फन-ए-सिपहगिरी के सिपाही अपने साथियों के साथ फन का मुजाहिरा सड़कों पर करते हुए दिखाई दिये। इस रणकौशल का लुत्फ लेने के लिए लोगों ने पलके बिछायी। कचहरी, शिवपुर, अर्दली बाजार, राजा बाजार, नदेसर, लल्लापुरा, बजरडीहा, गौरीगंज, रेवड़ी तालाब, मदनपुरा आदि इलाकों से अखाड़े निकले। इस दौरान जुलूस के आगे आगे खलीफा चल रहे थे। फन-ए-सिपहगीरी एसोसिएशन के लोग मोर्चा संभाले हुए थे। 

इस दौरान सामाजिक संगठन भी सक्रिय रहे। मोहर्रम के जुलूसों के दौरान सामाजिक संगठनों ने पितरकुंडा पर जिया क्लब की ओर से सुबह 10 बजे से शाम तक रिलीफ कैम्प लगाया गया जिसमें चिकित्सा व्यवस्था कि सीएमओ की ओर से खास व्यवस्था की गयी थी। संचालन शकील अहमद जादूगर कर रहे थे। नईसड़क पर अंजुमन इस्लामिया के सदर हाजी मो. शाहिद अली खां मुन्ना की देखरेख में सहायता शिविर लगा था। पासबा क्लब की ओर से लल्लापुरा रांगे की ताजिया के समीप लगे कैम्प में काफी लोग व्यवस्था संभाले हुए थे। 

दरगाहे फातमान में शमां किया रौशन

दरगाहे फातमान में शिया वर्ग ने इमाम हुसैन के तीजे पर इमाम हुसैन के रौजे पर सैयद फरमान हैदर की अगुवाई में शमां रौशन की गई। इस दौरान काफी लोग मौजूद थे।

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

Karbala ki kahani: हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन

...इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद


Varanasi (dil india live). 

इंसान को बेदार तो हो लेने दो हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन...।

मजहबे इस्लाम को दुनिया में फैलाने के लिए, पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ने जितनी कुर्बानियाँ दीं, उसे उनके नवासे हजरत इमाम हसन, हज़रत इमाम हुसैन ने कभी फीका नहीं पड़ने दिया, बल्कि नाना के दीने इस्लाम को बचाने के लिए अपने साथ अपने कुनबे को भी कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया।

इस्लाम की बुनियाद के लगभग 50 साल बाद दुनिया में जुल्म का दौर अपने शबाब पर था। मक्का से दूर सीरिया के गर्वनर य़जीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, उसके काम करने का तरीका तानाशाहों जैसा था, जो इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ था। उस दौर के तमाम लोग उसके सामने झुक गए, वो चाहता था कि नबी के नवासे हजरत इमाम हुसैन भी उसकी बैयत (अधिनता) करें मगर हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम के खिलाफ काम करने वाले य़जीद को खलीफा मानने से इन्कार कर दिया। इससे नाराज य़जीद ने अपने गर्वनर वलीद विन अतुवा को फरमान लिखा और कहा कि 'तुम हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने को कहो, अगर वह नहीं माने तो उनका सिर काटकर मेरे पास भेजो।'

वलीद विन अतुवा ने इमाम हुसैन को य़जीद का फरमान सुनाया तो इमाम हुसैन बोले। 'मैं एक तानाशाह, मजलूम पर जुल्म करने वाले और अल्लाह-रसूल को न मानने वाले य़जीद की बेअत करने से इन्कार करता हूँ।' इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुँचे, जहाँ य़जीद ने अपनी फौज के सिपाहियों को मुसाफिर बनाकर हुसैन का कत्ल करने के लिए भेज दिया। इस बात का पता हजरत इमाम हुसैन को चल गया और खून-खराबे को रोकने के लिए हजरत इमाम हुसैन अपने कुनबे के साथ इराक चले आ गए। मुहर्रम महीने की 2 तरीख 61 हि़जरी को इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे। 

पानी पर पहरा, फिर भी हुसैन ने ह़क से मुँह न फेरा

वह 2 मुहर्रम का दिन था, जब इमाम हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान में ठहरा था। यहाँ पानी के लिए सिर्फ एक फरात नदी थी, जिस पर य़जीद की फौज ने 6 मुहर्रम से हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। य़जीद की फौज की इमाम हुसैन को झुकाने की हर कोशिश नाकाम होती रही और आखिर में जंग का ऐलान हो गया।

दुश्मन देते थे हुसैन की हिम्मत की गवाही

9 तारीख तक य़जीद की फौज को सही रास्ते पर लाने के लिए मौका देते रहे, लेकिन वह नहीं माना। इसके बाद हजरत इमाम हुसैन ने कहा 'तुम मुझे एक रात की मोहलत दो ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूँ' इस रात को ही आशूरा की रात कहा जाता है।

इस्लामिक इतिहास कहता है कि य़जीद की 80 ह़जार की फौज के सामने इमाम हुसैन के 72 जाँनिसारों ने जिस तरह जंग की, उसकी मिसाल खुद दुश्मन फौज के सिपाही एक-दूसरे को देने लगे। इमाम हुसैन ने अपने नाना और वालिद के सिखाए हुए ईमान की मजबूती और अल्लाह से बे-पनाह मोहब्बत में प्यास, दर्द, भूख और अपने 6 माह के बेटे अली असगर के साथ पूरे खानदान को खोने तक के दर्द को जीत लिया। दसवें मुहर्रम के दिन तक हुसैन अपने भाइयों और साथियों की मैयत को दफनाते रहे। लड़ते हुए जब नमाज का वक्त करीब आ गया तो उन्होंने दुश्मन फौज से अस्र की नमाज अदा करने का वक्त माँगा। यही वक्त था जब इमाम हुसैन सजदे में झुके तो दुश्मन ने धोखे से उन पर वार कर उन्हें शहीद कर दिया। मक्का में इमाम हुसैन की शहादत की खबर फैली तो हर तरफ मातम छा गया। दुनिया ने सोचा कर्बला के बाद इस्लाम खत्म हो जाएगा, इमाम हुसैन के नाना के दीन और धर्म का कोई नामोनिशान नहीं होगा मगर हुआ इसका ठीक उल्टा। कर्बला के बाद इस्लाम न सिर्फ जिन्दा हो गया बल्कि समूची दुनिया में फैल गया। आज इमाम हुसैन और शहीदाने कर्बला का नाम लेने वाला पूरी दुनिया में है मगर यजीद का कोई नाम लेवा नहीं है तभी तो कहा गया है, इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद...।

शनिवार, 6 अगस्त 2022

Ganga jamuni tahzeeb: मंदिर जैसा इमामबाड़ा

तब हिंदू कुम्हार ने बनाई थी इमाम हुसैन की ताजिया


Varanasi (dil india live). है इमामबाड़ा मगर बनावट मंदिर जैसी है। देखने वाला देखता और सोचता ही रह जाता है कि यह क्या अजूबा है, आखिर मंदिर जैसा इमामबाड़ा क्यों बनाया गया? दरअसल बनारस कि आबो हवा ही कुछ ऐसी है कि कोई मुस्लिम नूर फातेमा शिव का मंदिर बनवाती हैं, तो हिंदू कुम्हार इमाम हुसैन कि आस्था और अकीदत में इमामबाड़ा।

वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट स्थित इस अनोखे इमामबाड़े की बुनियाद की कहानी एक हिंदू कुम्हार की अकीदत से जुड़ी हुई है। कर्बला में शहीद हुए इमाम हुसैन से कुम्हार को अकीदत थी। इस मोहब्बत के कारण ही इस इमामबाड़े का नाम कुम्हार का इमामबाड़ा पड़ा। इसमें एक ओर जहां शिया मुस्लिम मजलिस करते हैं तो वहीं हिंदू हाथ जोड़कर अकीदत से फूल चढ़ाते हैं। शहर ही नहीं बल्कि दुनिया का लगभग हर इमामबाड़ा गुंबदनुमा होता है, जो मस्जिद या मकबरे की सूरत में नजर आता है। वहीं हरिश्चंद्र घाट के कुम्हार का इमामबाड़ा मंदिर की तरह दिखता है। मुहर्रम आते ही यहां के हिंदू इसकी साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम कराते हैं।

इमामबाड़े का क्या है इतिहास

हरिश्चंद्र घाट स्थित कुम्हार का इमामबाड़ा लगभग डेढ़ सौ साल कदीमी है। इसकी देखरेख एक हिंदू कुम्हार परिवार कर रहा है, तो वहीं सरपरस्ती शिया वर्ग के हाथ में है। इमामबाड़े के मुतवल्ली सैयद आलिम हुसैन रिजवी इमामबारगाह का इतिहास बताते हैं, तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले हरिश्चंद्र घाट के पास एक हिंदू कुम्हार परिवार रहता था। कुम्हार का एक बेटा था, जो हर वर्ष मुहर्रम पर मिट्टी की ताजिया बनाया करता था। पिता ने पहले तो बच्चे को ताजिया बनाने से मना किया। जब वह नहीं माना तो उसकी खूब पिटाई की। पिटाई के बाद बच्चा इतना बीमार हुआ कि वैद्य, हकीम भी काम न आए। बेटे को लेकर पिता की चिंता बढ़ने लगी। मंदिर, मस्जिद, मजार पर उसने हाजिरी लगाई, लेकिन कोई फायदा न हुआ। फिर एक दिन कुम्हार ने सपने में देखा कि एक बुजुर्ग उसके सामने खड़े हैं। वह कह रहे हैं कि तेरा बेटा मुझसे अकीदत रखता है। तुमने उसे ताजिया बनाने से रोक दिया, तो वह बीमार पड़ गया है। अगर तुम्हें उससे मोहब्बत नहीं है तो मैं उसे अपने पास बुला लेता हूं। कुम्हार ने स्वप्न में ही अपनी गलती मानते हुए कहा कि बस एक बार आप मुझे माफ करके मेरे बच्चे को ठीक कर दें। इस पर बुजुर्ग ने कहा कि नींद से उठकर देख, तेरा बच्चा खेल रहा है। सैयद आलिम हुसैन अपने बड़े-बुजुर्गो की जुबानी बातों को याद करते हुए बताते हैं कि नींद से जगकर कुम्हार ने देखा कि जो बच्चा गंभीर रूप से बीमार था, वह न केवल पूरी तरह स्वस्थ था, बल्कि बच्चों के साथ खेल भी रहा था। यह नजारा देखकर कुम्हार ने सिर्फ खुश हुआ बल्कि उसकी इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों से अकीदत बढ़ गई।

बना दिया मंदिर जैसा इमामबाड़ा

हिंदू कुम्हार की आस्था के कारण ही इमामबाड़े के निर्माण के समय इसको मंदिर जैसा रूप दिया गया और नाम भी कुम्हार का इमामबाड़ा रखा गया। उसी समय से आस-पास के हिंदू भाइयों की आस्था इमामबाड़े से जुड़ गई। मुहर्रम में जब भी इमामबाड़ा खुलता है, वहां दोनों मजहब के लोग जुटते हैं। इसके अलावा 9 वीं व 10 वीं मुहर्रम का विश्व प्रसिद्ध दूल्हे का जुलूस यहां सात बार सलामी भी देता है। आलिम हुसैन बताते हैं कि उन दिनों अवध के नवाब शहादत हुसैन अपने पिता से नाराज होकर बनारस आ गए थे। उन्हीं की वंशज बाराती बेगम ने कुम्हार के बेटे का इमाम हुसैन के प्रति लगाव देख यह इमामबाड़ा बनवाया। इसकी देख रेख युद्ध-कौशल की शिक्षा देने वाले सैयद मीर हसन के परिवार को सौंपी गई। सैयद आलिम हुसैन और उनका परिवार उन्हीं का वंशज हैं। यह कुनबा डेढ़ सौ साल से कुम्हार के इमामबाड़े की देख रेख कर रहा है।

Christmas celebrations में पहुंचे वेटिकन राजदूत महाधर्माध्यक्ष लियोपोस्दो जिरोली

बोले, सभी धर्म का उद्देश्य विश्व मानवता का कल्याण एवं आशा का संदेश देना Varanasi (dil India live). आज वैज्ञानिक सुविधाओं से संपन्न मानव धरती...