आठवीं मोहर्रम को निकला कदीमी दुलदुल का जुलूस
–शान से बैठायी गई प्रमुख ताजियां, कल आग से होकर गुजरेगा दूल्हे का विश्व प्रसिद्ध जुलूस
Varanasi (dil India live)। मोहर्रम पर शहर की प्रमुख रांगे की ताजिया, पीतल की ताजिया, नगीने की ताजिया, कुम्हार की ताजिया आदि लोगों की जियारत के लिए इमामबाडे में बैठा दी गई। बची हुई सभी ताजिया जुमे को इमाम चौकों पर बैठायी जाएंगी और शनिवार को उन्हें कर्बला में दफन किया जाएगा। मोहर्रम को देखते हुए पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर पैदल गश्त बढ़ा दी गई। थाना प्रभारियों ने विभिन्न स्थानों पर गश्त कर आवश्यक दिशा निर्देश जारी किया। इस दौरान प्रभारी निरीक्षक सिगरा व चौकी प्रभारी लल्लापुरा मय सशस्त्र बल चौकी क्षेत्र लल्लापुरा में रांगे कि कदीमी ताजिया और दरगाहे फातमान आदि का पैदल गस्त कर निरीक्षण किया।
निकला अलम, ताबूत का जुलूस
चाहमाहमा स्थित ख्वाजा नब्बू साहब के इमामबाड़े से कदीमी आठवीं मोहर्रम का तुर्बत व अलम का जुलूस अपनी पुरानी परंपराओं के अनुसार संयोजक सैयद मुनाज़िर हुसैन 'मंजू' के ज़ेरे इंतेजाम जहां उठाया गया वहीं अर्दली बाजार में दुलदुल, अलम व ताबूत का कदीमी जुलूस निकला।
चाहमाहमा के ख्वाजा नब्बू के इमामबाड़े में तुर्बत व अलम का जुलूस जुलूस उठने से पूर्व मजलिस को खिताब करते हुए अब्बास मूर्तज़ा शम्सी ने मौला अब्बास की शहादत बयान किया। जुलूस उठने पर लियाकत अली खां व उनके साथियों ने सवारी शुरू की- "जब हाथ कलम हो गए सक्काए हरम के, और अर्शे बरी हिल गया गिरने से अलम के"। जुलूस चाहमामा होते हुए दालमंडी स्थित हकीम साहब के अज़ाख़ाने पर पहुँचा जहां से अंजुमन हैदरी चौक बनारस ने नौहाख्वानी शुरू की। "अब्बास क्या तराइ में सोते हो चैन से" जिसमें शराफत हुसैन, लियाकत अली खां, साहब ज़ैदी, शफाअत हुसैन शोफी, मज़ाहिर हुसैन, राजा व शानू ने नौहाख्वानी की।
जुलूस दालमंडी, खजुर वाली मस्जिद, नई सड़क, फाटक शेख सलीम, काली महल, पितरकुंड, मुस्लिम स्कुल होते हुए लल्लापूरा स्थित फ़ातमान पहुँचा। पूरे रास्ते उस्ताद फतेह अली खां व भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के पौत्र नासिर अब्बास, आफाक हैदर व उनके साथियों ने शहनाई पर आंसुओं का नज़राना पेश किया। फ़ातमान से जुलूस पुनः वापस मुस्लिम स्कुल, लाहंगपूरा, रांगे की ताज़िया, औरंगाबाद, नई सड़क कपड़ा मंडी, कोदई चौकी, सर्राफा बाजार, टेढ़ी नीम, बांस फाटक, कोतवालपूरा, कुंजीगरटोला, चौक, दालमंडी, चाहमामा होते हुए इमामबाङे में समाप्त होगा l उधर सैय्यद जियारत हुसैन के अंर्दली बाजार तार गली स्थित आवास से 8 वीं मोहर्रम गुरुवार को दुलदुल अलम, ताबूत का जुलूस 27 जुलाई को रात्रि 9 बजे उठा। जुलूस अपने कदीमी (पुराने) रास्ते से होकर उल्फत बीबी हाता स्थित स्व.मास्टर जहीर साहब के इमामबाङा पर समाप्त हुआ। जुलूस में अंजुमन इमामिया नौहा व मातम किया। इरशाद हुसैन "शद्दू" ने शुक्रिया अदा किया।
कल निकलेगा दूल्हे का विश्व प्रसिद्ध जुलूस
विश्व प्रसिद ‘दूल्हा’ कासिम नाल कमेटी के सदर परवेज कादिर खां की अगुवाई में नौवीं तारीख की रात सदियों पुरानी परंपरा शहीदाने कर्बला की याद में एशिया का इकलौता 'दूल्हे का जुलूस' निकलेगा। इमाम हुसैन के भतीजे हजरत कासिम के घोड़े की नाल के साथ 'दूल्हा' नंगे पांव 30 टन लकडि़यों के दहकते अंगारों पर से होकर गुजरेगा तो साथ में ‘या हुसैन, या हुसैन’...की सदाएं बुलंद करते हुए लाखों लोग शामिल होंगे। दूल्हे के वापस इमामबाड़ा पहुंचने के बाद ही ताजियों का जुलूस दसवीं मोहर्रम को उठना शुरू होगा। दूल्हा नाल कमेटी के सदर परवेज कादिर खान के मुताबिक कर्बला की जंग के समय हजरत कासिम की शादी तय थी लेकिन शहीद होने के कारण दूल्हा नहीं बन सके उनकी याद में ही इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार सैकडो साल पुरानी परंपरा काशी में चली आ रही है। हजरत कासिम के घोड़े की नाल को पकड़ने वाले को दूल्हा कहा जाता है और उस पर इमाम हुसैन की सवारी आती है।
कमेटी के मो. खालिद ने बताया कि इमामबाड़े में हज़रत कासिम के घोड़े की नाल रखी हुई है। इसे सिर्फ इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार नौवीं व दसवीं मुहर्रम को ही बाहर निकाला जाता है। इमामबाड़ा की दीवारों पर प्रतीकात्मक रूप से खून के छींटे कर्बला के मंजर की याद दिलाते हैं।
दूल्हे का जुलूस शनिवार की रात 9 बजे शिवाला से प्रारंभ होकर शहर के भदैनी, अस्सी दुर्गाकुंड, गौरीगंज’ भेलूपुर, रेवड़ी तालाब, नई सड़क होते हुए माध्यरात्रि के बाद फातमान पहुंचेगा। 12 किलोमीटर लंबे रास्ते में जगह-जगह लोग जुलूस आने के पहले ही दस-दस मन लकड़ी के अलाव जलाएंगे। इन्हीं अंगारों पर से दूल्हा और जुलूस में शामिल लोग दौड़ते हुए आगे बढ़ते हैं।