टीबी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
टीबी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 12 सितंबर 2023

TB उन्मूलन, संचारी रोग व टीकाकरण के प्रति किया जागरूक

TB Champion ने रोगियों से भेदभाव न करने, उनकी मदद करने का दिया संदेश

रैली में TB उन्मूलन को जनसहभागिता व बच्चों के टीकाकरण के लगे नारे  



Varanasi (dil India live). 12.09.2023. क्षय (TB) उन्मूलन के साथ ही संचारी रोग नियंत्रण एवं बच्चों व गर्भवती के नियमित टीकाकरण के लिए समुदाय को लगातार जागरूक किया जा रहा है. इसी क्रम में मंगलवार को दयानंद एंग्लो वैदिक (डीएवी) इंटर कॉलेज से TB और नियमित टीकाकरण को लेकर जन जागरूकता रैली निकाली गई. इसके साथ ही हरिश्चंद्र चंद्र इंटर कॉलेज में गोष्ठी आयोजित कर छात्र-छात्राओं को सघन मिशन इंद्रधनुष 5.0 और संचारी रोग नियंत्रण अभियान के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई. मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी के निर्देशन में आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय सेवा योजना के छात्र-छात्राओं, यूनिसेफ से डा. शाहिद एवं TB चैम्पियन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया.

            डीएवी इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ विवेक कुमार सिंह ने रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाने के लिए सरकार की ओर से हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. इसके लिए विशेष अभियान चलाये जा रहे हैं। इसके साथ ही बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं का समय से टीकाकरण और संचारी रोग जैसे डेंगू, मलेरिया आदि के लिए समुदाय में लोगों को जागरूक किया जा रहा है. विभागीय अधिकारी व कर्मचारी इसकी रोकथाम के लिए जुटे हुये हैं. ऐसे में आम जनमानस की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इन बीमारियों से बचाव के लिए सतर्क व जागरूक रहें। रैली में ‘टीबी हारेगा देश जीतेगा’, ‘जन जन को जगाना है टीबी को भागना है’, ‘टीबी से बचाव करें और अपनों का ख्याल करें’ एवं ‘अपने बच्चों को बीमारियों से बचाएंगे, सब काम छोड़ पहले टीकाकरण कराएंगे’ आदि जन जागरूकता के नारे लगाए गए.

TB चैम्पियन ने साझा किया अनुभव

TB चैम्पियन मोहम्मद अहमद ने अपने अनुभवों को साझा करते हुये कहा कि वर्ष 2018 में वह TB की बीमारी से ग्रसित हो गए थे. इसके बाद उन्होंने अपना पूरा इलाज (छह माह) सरकारी अस्पताल से कराया और स्वस्थ हो गए. एक भी दिन दवा खाना नहीं छोड़ा. उसके बाद एसएसपीजी चिकित्सालय स्थित TB यूनिट के मुख्य उपचार पर्यवेक्षक धर्मेन्द्र नाथ सिंह ने वर्ल्ड विज़न इंडिया के डीसीसी सतीश कुमार सिंह से उनकी मुलाकात कराई और उनके द्वारा तीन दिवसीय प्रशिक्षण देकर टीबी चैम्पियन बनाया गया. पिछले करीब दो सालों से वह समाज के हर वर्ग में जाकर TB उन्मूलन के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं. TB रोगियों से भेदभाव न करने व उनकी मदद करने का संदेश दिया. साथ ही जागरूकता कार्यक्रम और एसएसपीजी चिकित्सालय में सपोर्ट हब पर बैठकर टीबी के मरीजों से मिलकर उनके इलाज में हर संभव मदद कर रहे हैं.

            इस मौके पर उप प्रधानाचार्य अखिलेश श्रीवास्तव, एनसीसी कैडेट लेफ्टिनेंट सुलाब सिंह एवं लेफ्टिनेंट मो शहीद, वरिष्ठ अधिकारी नरेन्द्र कुमार, एसटीएस धर्मेंद्र नाथ सिंह, वर्ल्ड विज़न इंडिया से सतीष कुमार सिंह एवं अन्य लोग उपस्थित रहे.

सोमवार, 27 मार्च 2023

Kashi में चोलापुर से शुरू होगी ‘tb मुक्त पंचायत’ की मुहिम

पहले पंचायत को करेंगे टीबी मुक्त, तब होगा काशी क्षय मुक्त: सीएमओ



Varanasi (dil india live). जनपद में अब ‘टीबी मुक्त पंचायत’ अभियान चलेगा। इसकी प्रक्रिया, योजना और रणनीति तेज कर दी है। यह पहल काशी में हुए तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय टीबी सम्मेलन के सफल आयोजन के बाद की गई है।  

मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी ने बताया कि प्रधानमंत्री की इस मुहिम को लेकर सम्मेलन में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया और केंद्रीय राज्य स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रवीण भारती पवार ने भी इस बात पर ज़ोर दिया था और आग्रह किया था कि हम सभी लोग देखें कि उनके ग्राम पंचायत में कोई भी टीबी मरीज नहीं होना चाहिए। यदि कोई टीबी का मरीज पहचान में आए तो तुरंत नजदीकी आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर जाने को कहें। इस कार्य में क्षेत्रीय आशा कार्यकर्ता और ग्राम प्रधान, पंचायत सदस्य उनका पूरा सहयोग करें। हर बैठक में इसके साथ ही उन्हें जागरूक करते हुये जांच के लिए प्रेरित करें जिससे गाँव टीबी मुक्त हो और देश भी टीबी मुक्त हो सके।  

         सीएमओ ने कहा कि वाराणसी में प्रधानमंत्री के टीबी मुक्त पंचायत को हकीकत बनाने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। पहले हम सभी ग्राम पंचायतों को टीबी मुक्त करेंगे, तब काशी क्षय मुक्त कहलाएगा। उन्होंने जनमानस से अपील की है कि किसी भी मरीज का पता चलने पर उसे तुरंत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर ले जाएं और जांच कराकर सम्पूर्ण उपचार कराएं। उपचार के दौरान टीबी मरीज को हर माह 500 रुपये पोषण भत्ते के रूप में सीधे उसके बैंक खाते में भेजें जाते हैं।  

जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डॉ पीयूष राय ने बताया कि टीबी मुक्त पंचायत अभियान के तहत जनपद ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। शुरुआत में चोलापुर ब्लॉक के सभी 89 ग्राम पंचायतों का चयन किया गया है। इसके बाद जल्द ही सभी ब्लॉकों और शहरी क्षत्रों पर यह अभियान शुरू किया जाएगा। चोलापुर में तीन अतिरिक्त पीएचसी, 13 आयुष्मान भारत - हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर और 37 स्वास्थ्य उपकेंद्र हैं। यहाँ 20 सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ), 27 एएनएम और 206 आशा कार्यकर्ताएं तैनात हैं। ग्राम प्रधान और आशा कार्यकर्ता के माध्यम से वृहद स्तर पर समुदाय को जागरूक करने के साथ ही टीबी की सघन स्क्रीनिंग के अभियान चलाया जाएगा। सभी संभावित लक्षण वाले व्यक्तियों की सूची तैयार की जाएगी। तत्पश्चात सभी का बलगम एकत्रित कर जांच की जाएगी। जांच में पुष्टि होने पर उन्हें निक्षय पोर्टल पर नोटिफ़ाई करते हुये उपचार शुरू किया जाएगा। यदि बलगम की जांच निगेटिव आती है तो उसका एक्सरे किया जाएगा। 

         डॉ पीयूष ने बताया कि टीबी मुक्त पंचायत अभियान को सफल बनाने के लिए पिरामल फ़ाउंडेशन विभाग का सहयोग कर रही है। सीएचओ और ग्राम प्रधान एक साथ टीबी मुक्त पंचायत में कार्य करेंगे। हर बैठक में वह टीबी के बारे में जागरूकता फैलाएँगे जिससे टीबी के प्रति सामाजिक मिथक व भ्रांतियों को दूर किया जा सके।

मंगलवार, 21 मार्च 2023

Health news : कहीं Tb का संकेत तो नहीं है लगातार पीठ व रीढ़ का दर्द ?

दर्द को न करें नजरंदाज, हो सकते हैं गम्भीर परिणाम 

समय से उपचार न होने पर दिव्यांगता का भी रहता है अंदेशा



Varanasi (dil india live). लल्लापुरा निवासी 48 वर्षीय शकील (परिवर्तित नाम) के पीठ व कमर में दो वर्ष पूर्व लगातार दर्द था। सोचा कोई वजनी वस्तु उठाने से हुए खिंचाव की वजह से दर्द  है। मालिश व दर्द निवारक गोलियों का सहारा लिया।  कोई आराम नहीं मिला। दर्द बढ़ता जा रहा था। घर के अंदर  चार कदम चलना तो दूर पैरों पर खड़ा होना मुश्किल हो गया तो  परिजनों के सहयोग से मण्डलीय अस्पताल पहुंचे। वहां चिकित्सक ने कई तरह की जांच कराया तो पता चला रीढ़ की हड्डी में टीबी है। डेढ़ वर्ष तक चले उपचार के बाद पूरी तरह स्वस्थ हो गए। 

सब्जी बेचकर अपनी गृहस्थी चलाने वाले शकील बताते है कि इस दौरान स्वास्थ्य विभाग के साथ परिवार का पूरा सहयोग मिला। शिव प्रसाद गुप्त अस्पताल परिसर स्थित जिला क्षय रोग केन्द्र के चिकित्सा अधिकारी डॉ.अन्वित श्रीवास्तव का कहना है कि आम तौर पर लोग पीठ , कमर के दर्द को तब तक नजरअंदाज करते हैं  जब तक  चलना-फिरना मुश्किल नहीं हो जाता। दर्द असहनीय हो जाता है तो चिकित्सक के पास जाते हैं। यह आभास भी नहीं होता  कि  रीढ़ की हड्डी में टीबी भी हो सकती है।  वह बताते हैं  कि पिछले वर्ष जनवरी से दिसम्बर तक जिले में 142 रीढ़ की हड्डी में टीबी के मामले सामने आये। उपचार से लगभग 100 लोग स्वस्थ हो चुके है, शेष का उपचार चल रहा है।


कैसे होती है रीढ़ की  हड्डी में tb

 डॉ.अन्वित का कहना है कि वैसे तो टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों, श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र को प्रभावित करती  है लेकिन कुछ मामलों में नाखून व बाल को छोड़कर शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है।  रीढ़ की हड्डी में टीबी तब होती है जब टीबी का संक्रमण फेफड़ों के बाहर फैलकर रीढ़ तक पहुंच जाता है। रीढ़ की हड्डी में टीबी के कारण होने वाले पीठ दर्द के वास्तविक कारण की जानकारी न होने की वजह से शुरू में अधिकतर  लोग इसके प्रति लापरवाह होते हैं। उन्हें आभास  नहीं होता है कि टीबी हुई है। यही स्थिति गंभीर  होती है। इसलिए लगातार पीठ दर्द में आराम न हो तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें| चिकित्सक की सलाह पर जांच कराएँ कि कहीं यह टीबी तो नहीं| लापरवाही करने से यह दिव्यांग तक बना सकती है।

 रीढ़ की हड्डी में tb के कारण

क्षय रोगी के संपर्क में आने से भी रीढ़ की हड्डी में टीबी हो सकती  है। टीबी रोगी के संपर्क में आने के बाद यह फेफड़ों या लिम्फ नोड्स से रक्त के माध्यम से रीढ़ तक भी पहुंच सकता है।

 रीढ़ की हड्डी में tb के लक्षण

 पीठ में लगातार दर्द, कमजोरी महसूस करना,भूख न लगना, वजन कम होना, रात के समय बुखार आना, दिन में बुखार उतर जाना भी रीढ़ की हड्डी में टीबी का लक्षण हो सकता है।

 रीढ़ की हड्डी में tb का उपचार

 डॉ.अन्वित का कहना है कि रीढ़ की हड्डी में टीबी का उपचार संभव है लेकिन इसके लिए यह भी जरूरी है कि इसका समय से उपचार हो। सरकारी अस्पतालों में उपचार की व्यवस्था है, जहां टीबी रोगियों को दवाएं भी दी जाती हैं । सरकार की ओर से निक्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान पोषण के लिए पांच सौ रुपये की धनराशि प्रतिमाह मरीज के खाते में सीधे भेजी जाती है। वह बताते हैं कि दवाओं, परहेज और पौष्टिक तत्वों से भरपूर संतुलित आहर लेने से रीढ़ की हड्डी में हुआ टीबी पूरी तरह ठीक हो जाता है ।

बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

Ruckmani के 35 माह के तप ने बना दिया tb champion

Xdr tb से स्वस्थ होकर बनीं 300 tb मरीजों की मददगार





Varanasi (dil india live). एक्सडीआर टीबी की मरीज रुक्मिणी 35 माह तक हर रोज कई-कई दवाओं के सेवन और सुबह-शाम के इंजेक्शन की असहनीय पीड़ा से ऊब चुकीं थीं। यहाँ तक कि एक वक्त वह जिन्दगी की आस तक छोड़ चुकी थीं लेकिन स्वास्थ्य विभाग के बेहतर इलाज और परिवार वालों के हर वक्त ख्याल रखने व धैर्य बंधाने से अब पूरी तरह स्वस्थ हैं। इसी असहनीय पीड़ा के दौरान ठान लिया था कि अगर स्वस्थ हो गयी तो कुछ ऐसा करूंगी कि दूसरों को इस तरह के कष्ट से न गुजरना पड़े। अब टीबी चैम्पियन (tb champion) बनकर करीब 300 टीबी मरीजों की ruckmani मददगार बनी हैं। बीमारी से उनको यह सीख मिल ही चुकी थी कि समय से जाँच और उपचार न कराने का नतीजा कितना गंभीर हो सकता है।  

 मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी के बाद टीबी के सबसे गंभीर रूप एक्सटेंसिवली ड्रग रजिस्टेंट (एक्सडीआर) टीबी के इलाज के दौरान मिली सीख का हवाला देकर वह अब दूसरों को ऐसी गलती न करने की नसीहत देती हैं। टीबी चैम्पियन (tb champion) के रूप में उनकी राह आसान की वर्ल्ड विजन इण्डिया संस्था ने। संस्था ने ट्रेनिंग देने के साथ ही मरीजों की सूची भी सौंपी जिनको सही मायने में संबल की जरूरत थी। अब वह 10-12 मरीजों का प्रतिदिन मनोबल बढाने के साथ ही बताती हैं कि दवा का सेवन नियमित रूप से करना है और साथ में पोषक आहार भी लेना है ताकि जल्दी स्वस्थ बन सकें। समुदाय में भी लोगों को बताती हैं कि दो हफ्ते से अधिक समय से बुखार बना हो, बलगम में खून आ रहा हो, वजन गिर रहा हो, भूख न लग रही हो तो स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र पर टीबी की जाँच जरूर कराएँ। 

बड़ागांव ब्लॉक के कूंडी गांव की रुक्मिणी घरेलू कामकाज निपटाकर हर रोज दोपहर 12 बजे क्षय रोगियों की सूची लेकर बैठ जाती हैं। फोन पर शंकाओं का समाधान करने के साथ ही बीच में दवा छोड़ने वाले क्षय रोगियों या किसी तरह की दिक्कत का सामना कर रहे मरीजों को स्वास्थ्य केन्द्र तक ले जाती हैं। इस तरह रुक्मिणी क्षय रोगियों के संपर्क में तो रहती ही हैं विद्यालयों, सार्वजनिक स्थानों पर भी लोगों को जागरूक करती हैं। महिलाओं के समूह में बैठक कर क्षय रोग से बचाव और उपचार के बारे में भी समझाती हैं। एक वर्ष के भीतर लगभग 300 क्षय रोगियों से उन्होंने सम्पर्क किया है। इनमें 167 पुरुष, 126 महिलाएं व सात बच्चे शामिल हैं। इनमें 55 क्षय रोगी पूरी तरह ठीक हो चुके हैं। क्षय रोगियों को समझाने में कई बार दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। वह बताती हैं कि बड़ागांव के ही ग्राम चिरई के अवनीश कुमार (18 वर्ष) जब दवा खाते थे तो पेट में दर्द होने लगता था। इस वजह से वह दवा बीच-बीच में बंद कर देते थे। समझाने पर लगातार दवा की और अब हालत में सुधार है। ऐसी ही स्थिति बसनी (बड़ागांव) के अजय पाण्डेय (42 वर्ष) की भी रही। दवा बीच में छोड़ने की वजह से उन्हें एमडीआर टीबी हो गयी। समझाया तो अब लगातार दवा खा रहे हैं।

 रुक्मिणी अपनी बीमारी को याद कर बताती हैं कि बीए -बीटीसी करने के बाद यूपीटेट की परीक्षा पास कर अध्यापिका बनना चाहती थी। इसके लिए प्रयासरत ही थी कि अक्टूबर-2017 में खांसी, बुखार व कमजोरी से परेशान रहने लगी। शुरू में निजी चिकित्सक से उपचार कराया पर लाभ नहीं मिला। छह माह तक चली दवा के बाद निजी डाक्टर ने दिल में छेद बताया और आपरेशन की बात कही। इससे घबरा गयी और बीएचयू के सर सुन्दर लाल चिकित्सालय पहुँची। जांच के बाद यह साफ हो गया कि दिल में छेद नहीं है। अप्रैल 2018 में बलगम जांच में पता चला कि टीबी का बिगड़ा रूप एमडीआर है। 15 दिन तक अस्पताल में भर्ती होकर उपचार कराया। लगभग 14 माह (अप्रैल 2018 से मई 2019) तक एमडीआर की दवा खाई लेकिन सांस लेने में दिक्कत, पैरों में तेज दर्द और कमजोरी बनी रही। जून 2019 में एक दिन अचानक हालत बिगड़ी तो अस्पताल में पुनः भर्ती करना पड़ा। अब टीबी का सबसे बिगड़ा रूप एक्सडीआर हो चुका था। महीने भर अस्पताल में रहने के बाद छुट्टी मिली। दवा के साथ ही हर रोज सुबह-शाम इंजेक्शन लगता था। इंजेक्शन लगने के कुछ देर बाद तक कानों में सीटी बजने की आवाज आती थी जिससे घबरा जाती थी। इच्छा होती थी कि दवा बंद कर दें लेकिन पति तपन कुमार के साथ ही ससुराल व मायके के लोग समझाते थे। तब उनकी इकलौती बेटी आराध्या महज दो वर्ष की थी। उसे  मायके में छोड़ना पड़ा। लगातार चल रहीं दवाओं के बीच होने वाली परेशानियों से ऊब चुकी थी। लगता था कि शायद नहीं बचूंगी। जून 2019 से फरवरी 2021 तक लगभग 21 माह एक्सडीआर की दवा चली। फरवरी 2021 में पूरी तरह ठीक हो गई और इसके साथ ही दवा बंद हो गयी। रुक्मिणी बताती हैं कि अप्रैल 2018 में निक्षय पोषण योजना के तहत हर माह 500 रुपये पोषक आहार के लिए मिलना शुरू हुआ जो फरवरी 2021 तक मिला। इस तरह 35 माह में 17500 रुपये पोषक आहार के लिए मिले।

शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

TB patient को गोद लेकर प्रदान की पोषण पोटली

निक्षय मित्र बनीं पूर्व cms डाक्टर स्वर्णलता सिंह 

TB मरीजों को पोषण और भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता: सीएमओ 



Varanasi (dil india live). देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में शुक्रवार को अक्षय एकादशी के अवसर पर जिला महिला चिकित्सालय कबीरचौरा की पूर्व सीएमएस डॉ स्वर्णलता सिंह ने अपने आवास पर आयोजित कार्यक्रम में 10 टीबी मरीजों को गोद लेकर उन्हें पोषण पोटली प्रदान की। 

काशी विद्यापीठ ब्लॉक के तिलखनी क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी और पूर्व सीएमएस डॉ स्वर्णलता सिंह ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया । टीबी मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत डॉ स्वर्णलता सिंह निक्षय मित्र के रूप में पंजीकरण हो गया है । अब वह गोद लिए गए 10 मरीजों को हर माह पोषण पोटली प्रदान करेंगी और उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुये उन्हें भावनात्मक सहयोग भी देंगी । डॉ स्वर्णलता सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की प्रेरणा से उन्होने टीबी मरीजों को गोद लेने की पहल की है । इस मौके पर उन्होने कुपोषित और गरीब बच्चों को पेन-पेंसिल, खाद्य सामाग्री का वितरण किया । बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के लिए गरीब बेटियों, किशोरियों साथ ही मिशन शक्ति के तहत महिलाओं को भी उपहार भेंट किए । इसके अलावा सेंट मैरी हॉस्पिटल को कंबल प्रदान किए । 

इस मौके पर सीएमओ डॉ संदीप चौधरी ने डॉ स्वर्णलता सिंह के नेक पहल की सराहना की । उन्होने कहा कि वह कुपोषित व गरीब बच्चों, किशोरियों, महिलाओं के कल्याण के लिए बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं । टीबी मुक्त भारत की दिशा में उन्होने बहुत अच्छा कदम उठाया है । सीएमओ ने उम्मीद जताई कि वह इसी तरह समाज के कल्याण के लिए आगे भी बेहतर कार्य करती रहें । उन्होने कहा कि राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) व प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत स्वयं सेवी संस्था, जनप्रतिनिधि, अधिकारी आदि निक्षय मित्र बनकर टीबी मरीजों को गोद लेकर उनके पोषण और भावनात्मक सहयोग के लिए अपना योगदान दे रहे हैं जिसकी उन्हें बेहद आवश्यकता है । 

जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डॉ पीयूष राय ने बताया कि टीबी मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत जनपद में स्वयं सेवी संस्था, जनप्रतिनिधि एवं अधिकारियों सहित अब तक 149 निक्षय मित्र बन चुके हैं। इनके द्वारा 3380 टीबी मरीजों को गोद लिया जा चुका है।

कार्यक्रम में चिकित्साधिकारी डॉ अतुल सिंह, लक्ष्मीकांत मिश्रा, एनटीईपी से एसटीएस अभिषेक सिंह, सच्चिदानंद उपाध्याय, अजय सिंह सहित अन्य लोग मौजूद रहे ।

सोमवार, 19 सितंबर 2022

Awards:सर्वश्रेष्ठ निक्षय मित्र को राज्यपाल करेंगी सम्मानित

वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य

  • अभी जिले में हैं 17 निक्षय मित्र, पौष्टिक आहार व उपचार में करेंगे मदद
  • सीएमओ और जिला क्षय रोग अधिकारी भी बने निक्षय मित्र


Varanasi (dil india live).यदि आप निक्षय मित्र हैं, अर्थात आपने किसी टीबी मरीज को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने का संकल्प लिया है, तो प्रदेश की राज्यपाल आपके इस सराहनीय कार्य के लिए आपको सम्मानित कर सकती हैं। इस संबंध में राज्य क्षय नियंत्रण अधिकारी एवं संयुक्त निदेशक (क्षय) ने प्रदेश के सभी जिला क्षय अधिकारियों को पत्र लिख कर उत्कृष्ट कार्य करने वाले सर्वश्रेष्ठ निक्षय मित्र का विवरण भी मांगा है। दरअसल निक्षय मित्र योजना के तहत कोई भी व्यक्ति टीबी (क्षय) रोग के खिलाफ शुरू की गई राष्ट्रव्यापी जंग में अपना योगदान दे सकता है। ऐसे व्यक्तियों और संस्थाओं को प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल द्वारा सम्मानित भी किया जाएगा। 

इस मुहिम में मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी और जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ पीयूष राय भी निक्षय मित्र बन गए हैं। इसके साथ ही सीएमओ ने लोगों से निक्षय मित्र बनकर टीबी के खिलाफ जंग को मजबूती देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह देश ने सम्मलित प्रयासों से पोलियो और कोरोना के खिलाफ जंग जीती है, उसी प्रकार टीबी के खिलाफ जंग को जीतने के लिए सम्मिलित प्रयास किया जाना है। वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य है। इसके लिए बीते दिनों में प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान लांच किया गया। इस अभियान को जन-आंदोलन बनाने के लिए निक्षय मित्र योजना की भी शुरुआत की गई है। 

क्या है निक्षय मित्र योजना

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ पीयूष राय ने बताया कि निक्षय मित्र योजना टीबी से पीड़ित लोगों को गोद लेने की योजना है। इस योजना के तहत कोई भी स्वयंसेवी संस्था, औद्योगिक इकाई या संगठन, राजनीतिक दल या कोई भी व्यक्ति टीबी मरीज को गोद ले सकेगा, ताकि वह इलाज में उसकी मदद करा सके और उसके लिए हर माह पौष्टिक आहार की व्यवस्था करा सके। इस अभियान के तहत निक्षय मित्र बनने वाले व्यक्ति या संस्था को कम से कम एक साल के लिए और अधिक से अधिक तीन साल के लिए किसी ब्लॉक, वार्ड या जिले के टीबी रोगियों को गोद लेकर उन्हें भोजन, पोषण आदि जरूरी मदद उपलब्ध करानी होती है। इस अभियान से जुड़ने के लिए आप निक्षय पोर्टल www.nikshay.in पर रजिस्टर किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय स्थित जिला क्षय रोग केंद्र पर संपर्क किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में जिले में 17 निक्षय मित्र हैं और संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।   

योजना का उद्देश्य

राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के डीपीसी संजय चौधरी व डीपीपीएमसी नमन गुप्ता ने बताया कि इस अभियान को जन-आंदोलन बनाकर आमजन को बताना होगा कि इस बीमारी की रोकथाम संभव है। इसका इलाज आसान और नि:शुल्क है। लोगों को यह भी बताना होगा कि टीबी के कीटाणु हर व्यक्ति के शरीर में मौजूद होते हैं। लेकिन जब रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तो व्यक्ति में यह रोग दिखता है। इलाज से इस बीमारी से जरूर छुटकारा मिल सकता है। ये सभी बातें लोगों तक पहुंचने के बाद ही टीबी से प्रभावित लोग इलाज की सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे।

मंगलवार, 23 अगस्त 2022

Central tb division ने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों का किया निरीक्षण

एआरटी सहित सीएचसी अराजीलाइन, मिसिरपुर, काशी विद्यापीठ, हरहुआ पर टीबी सुविधाओं का जाना हाल

Varanasi (dil india live). राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के अंतर्गत मंगलवार को ज्वाइंट सपोर्टिव सुपरविजन (जेएसएस) मिशन के अंतर्गत दिल्ली से आई सेंट्रल टीबी डिवीजन की टीम ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय सहित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में टीबी जांच व उपचार की सुविधाओं का निरीक्षण किया।

दूसरे दिन सेंट्रल टीबी डिवीजन की एक टीम ने डीडीयू चिकित्सालय स्थित एआरटी व आईसीटीसी सेंटर का निरीक्षण किया। दूसरी टीम ने सीएचसी अराजीलाइन के राजातालाब ब्लॉक में क्षय रोगियों और उनके सहयोगियों से चर्चा की। इसके साथ ही क्षय रोगियों को दिये जा रहे पोषण व भावनात्मक सहयोग के बारे में भी जानकारी ली। तीसरी टीम ने सीएचसी मिसिरपुर व काशी विद्यापीठ पर स्थापित टीबी यूनिट का जायजा लिया। एक अन्य टीम ने हरहुआ पीएचसी स्थित टीबी यूनिट का निरीक्षण किया। इसके साथ ही क्षेत्र के क्षय रोगियों के गृह भ्रमण कर उनसे मुलाक़ात की और उनसे उपचार में दिये जा रहे सहयोग के बारे में विस्तार से जानकारी ली। निरीक्षण के दौरान टीम ने रजिस्टर, प्रचार-प्रसार सामाग्री सहित अन्य उपकरणों के बारे जिला क्षय रोग अधिकारी सहित अन्य स्टाफ को अवगत कराया। इसके साथ ही आईएमए के अध्यक्ष और ड्रग इंस्पेक्टर के साथ बैठक भी की।

 टीम का नेतृत्व नेशनल टास्क फोर्स फॉर मेडिकल कॉलेज के अध्यक्ष डॉ अशोक भारद्वाज व राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ शैलेंद्र भटनागर कर रहे हैं। इसमें डब्ल्यूएचओ इंडिया के डीआर एंड लेटेंट टीबी के नेशनल प्रोफेशनल ऑफिसर डॉ मलिक परमार, यूएसएआईडी की प्रोजेक्ट मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट (हेल्थ) डॉ भाविया वाड्रा, आईडीडीएस के टीम लीड डॉ संजीव सैनी, डब्ल्यूएचओ एनटीईपी नेशनल कंसल्टेंट डॉ शिवावलीनाथन, डब्ल्यूएचओ एनटीईपी मेडीकल कंसल्टेंट डॉ रचना विश्वजीत, डॉ राहुल सांघवी, डॉ सौरभ श्रीवास्तव, डॉ पीएस प्रीति, डॉ किरन के एवं डॉ विनोद कुमार शामिल हैं। दूसरे दिन भी जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डॉ पीयूष राय, उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ अमित सिंह, एमओ डीटीसी डॉ अन्वित श्रीवास्तव, डीपीसी संजय चौधरी, डीपीपीएमसी नमन गुप्ता, डीपीटीसी विनय मिश्रा, वरिष्ठ टीबी सुपरवाइज़र (एसटीएस) व अन्य जिला क्षय रोग केंद्र के स्वास्थ्यकर्मी टीम से साथ रहे।

सीएमओ डॉ संदीप चौधरी ने बताया कि सेंट्रल टीबी डिवीजन टीम द्वारा दिए जा रहे दिशा-निर्देशों को पूरा करने का प्रयास करेगी। डीटीओ डॉ पीयूष राय ने बताया कि बुधवार को टीम जिलाधिकारी, सीएमओ व जिला क्षय रोग इकाई के साथ समीक्षा बैठक करेगा। इसके साथ ही क्षय उन्मूलन कार्यक्रम में सहयोग कर रही संस्थाओं के साथ संवाद करेगी।

सोमवार, 18 जुलाई 2022

गर्भावस्था में है टीबी तो बरतें सावधानीं वर्ना होगी परेशानी

गर्भपात की आशंका संग जान का भी रहता है खतरा 

लक्षण दिखते ही उपचार शुरू होने पर जच्चा-बच्चा हो सकते हैं सुरक्षित


Varanasi (dil india live). जैतपुरा की रहने वाली शबीना (परिवर्तित नाम ) असामान्य थकान, गिरते वजन और मिचली आने से परेशान थी। इन परेशानियों को वह यह समझ कर नजरअंदाज करती रही कि यह सब उसके गर्भवती होने की वजह से हो सकते हैं। हालत जब तेजी से बिगड़े तो उसने जिला महिला अस्पताल में उपचार शुरू कराया। जांच हुई तो पता चला कि वह दो माह से गर्भवती तो जरूर है लेकिन साथ ही उसे टीबी की बीमारी ने भी जकड़ रखा है। कुछ ऐसी ही स्थिति सेनपुरा की पारुल विश्वकर्मा (परिवर्तित नाम ) के साथ हुई। चार माह की गर्भवती पारुल लगातार खांसी आने और तेजी से गिरते वजन से परेशान रही। जांच हुई तो पता चला कि गर्भवती होने के बाद उसे भी टीबी हो चुका है।

यह परेशानी सिर्फ शबीना और पारुल  की ही नहीं उनके जैसी अन्य महिलाओं की भी है, जो गर्भवती होने के साथ-साथ टीबी रोग से भी पीड़ित होती हैं। ऐसी गर्भवतियों के टीबी रोगी होने का पता तभी चल पाता है जब उनकी जांच होती हैं। जिला महिला चिकित्सालय के स्त्री व प्रसूति रोग चिकित्सक डा. मधुलिका पांडेय कहती हैं “दरअसल टीबी व गर्भवस्था के दौरान होने वाली परेशानियों के कुछ लक्षण काफी मिलते-जुलते होते हैं। मसलन गर्भ ठहरने के बाद गर्भवती ने यदि पोषक आहारों पर ध्यान नहीं दिया तो उसका वजन कम होने लगता है। यह स्थिति टीबी की बीमारी होने पर भी होती है। इस रोग से ग्रसित होने पर रोगी कमजोर होने लगता है। आम तौर पर गर्भवती को असमान्य थकान की भी परेशानी होती है। ऐसी परेशानी टीबी रोगी को भी होता है। गर्भावस्था में गिरते वजन, थकान, कमजोरी जैसे लक्षणों के साथ ही तेज बुखार, खांसी को मौसमी बीमारी मानकर गर्भवती इसे नजरअंदाज करने की कोशिश करती हैं, जबकि यह परेशानी उन्हें गर्भावस्था के दौरान हुए टीबी रोग की वजह से भी हो सकते हैं।”

 गर्भावस्था में टीबी से जच्चा-बच्चा को खतरा

डा. मधुलिका बताती हैं कि “गर्भावस्था में टीबी का समय से उपचार न होने से यह गर्भवती के साथ-साथ गर्भस्थ के लिए भी खतरनाक हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान टीबी गर्भवती के शरीर को धीरे-धीरे खोखला कर देता है। उसका वजन तेजी से गिरने के साथ ही उसमें खून की इतनी कमी हो जाती है कि प्रसव के दौरान उसकी जान को भी खतरा हो सकता है। इतना ही नहीं टीबी से ग्रसित गर्भवती के गर्भ में पल रहे शिशु का विकास ठीक से नहीं हो पाता है।  ऐसी महिलाओं का गर्भपात होने अथवा समय से पूर्व प्रसव की भी आशंका रहती है। समय से पूर्व हुए नवजात काफी कमजोर अथवा अविकसित होते हैं, ऐसे में जन्म लेने के कुछ ही देर बाद उनकी मौत का भी भय होता है। उन्होंने बताया कि गर्भावस्था के दौरान असामान्य लक्षण दिखते ही गर्भवती की तत्काल जांच करानी चाहिए। टीबी रोगियों की जांच व उपचार सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त है। साथ ही उन्हें पोषक आहार के लिए हर माह 500 रुपये दिए जाते है। है। लिहाजा गर्भावस्था में टीबी होने पर घबराने की जरूरत नहीं। सही समय से उपचार कराना चाहिए ताकि गर्भवती व उसके होने वाले शिशु को किसी तरह का खतरा न रहे।” 

 इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज

दो सप्ताह से अधिक की खांसी

खांसी में बलगम के साथ खून का आना

लगातार  बुखार का आना

गर्दन की ग्रंथियों में सूजन

रात में सोते समय पसीना आना

कम काम करने के बाद भी थकावट

रविवार, 3 जुलाई 2022

हड्डियों में जकड़न और दर्द की न करें अनदेखी, हो सकता है ‘बोन टीबी’

सही समय से उपचार न होने पर अपाहिज होने का भी खतरा

सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध है मुफ्त उपचार की सुविधा

क्षय रोगी को हर माह मिलता है 500 रूपये पोषण भत्ता भी



Varanasi (dil india live). पहड़िया की रहने  वाली अर्चना (52 वर्ष) कई वर्ष से हाई शुगर से पीड़ित हैं। इधर छह माह से एक हाथ की कोहनी के पूरा न खुलने को लेकर वह परेशान थीं। उनका वह हाथ ऊपर उठाना भी मुश्किल था। पड़ोसी चिकित्सक को दिखाया तो उन्होंने कुछ दवाएं लिखने के साथ ही उन्हें शुगर कंट्रोल करने की सलाह दी। पर रोग कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। जोड़ों में असह दर्द के साथ ही भूख लगना भी बंद हो गया और वजन तेजी से गिरने लगा। पं.दीन दयाल चिकित्सालय में दिखाने और वहां के चिकित्सक की  सलाह पर जब उन्होंने जांच करायी तो पता चला कि उन्हें ‘बोन टीबी’ है। कुछ ऐसा ही हुआ चौकाघाट के रहने वाले 60 वर्षीय राधेश्याम विश्वकर्मा के साथ। उन्हें भी पहले से शुगर था, दोनों घुटनों में अचानक जकड़न भी आ गयी। दर्द इतना की उनका उठना बैठना भी मुश्किल हो गया। उन्हें भी पहले यही लगा कि यह सब शुगर की वजह से है पर जब उन्होंने पं.दीन दयाल चिकित्सालय में जांच कराया तो पता चला कि उन्हें भी ‘बोन टीबी ’ है। 

यह कहानी सिर्फ अर्चना और राधेश्याम की ही नहीं ऐसे तमाम अन्य लोगों की है जो कोहनियों के न खुलने, घुटनों के न मुड़ने अथवा हड्डियों की अन्य समस्या को वह शुगर बढ़ने के कारण मान लेते हैं, जबकि ऐसे लोगों को यह समस्या ‘बोन टीबी’ के कारण भी हो सकती है। सही समय से उपचार न होने से मरीज के अपाहिज होने का खतरा रहता है। जिला क्षय रोग अधिकारी डा. राहुल सिंह बताते हैं कि  वैसे तो टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों, श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र को प्रभावित करता है। लेकिन कुछ मामलों में यह नाखून व बालों को छोड़कर शरीर के अन्य किसी भी अंग में भी हो सकता है। हड्डियों में होने वाले टीबी को मस्कुलोस्केलेटल टीबी भी कहा जाता है। वह बताते है कि टीबी दो तरह की होती हैं। पहला पल्मोनरी टीबी और दूसरा एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी। जब टीबी फैलता है, तो इसे एक्स्ट्रापल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस (ईपीटीबी) कहा जाता है। ईपीटीबी के ही एक रूप को हड्डी व जोड़ की  टीबी के नाम से भी जाना जाता है। बोन टीबी हाथों के जोड़ों, कोहनियों और कलाई ,रीढ़ की हड्डी, पीठ को भी प्रभावित करता है। 

 बोन टीबी के कारण

किसी क्षय रोग से पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में आने से भी बोन टीबी हो सकता है। टीबी हवा से माध्यम से भी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। टीबी रोगी के संपर्क में आने के बाद यह फेफड़ों या लिम्फ नोड्स से रक्त के माध्यम से हड्डियों, रीढ़ या जोड़ों में जा सकता है।

 बोन टीबी के लक्षण

बोन टीबी के लक्षण शुरुआती दौर  में नजर नहीं आते हैं। शुरुआत में इसमें दर्द नहीं होता है लेकिन जब व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित हो जाता है, तो उसमें इसके लक्षण दिखाई देने लगते है। इनमें जोड़ों का दर्द, थकान, बुखार, रात में पसीना, भूख न लगना, वजन का कम होना आदि शामिल हैं।

 बोन टीबी का उपचार

जिला क्षय रोग अधिकारी डा. राहुल सिंह कहते हैं बोन टीबी का उपचार पूरी तरह संभव है। इसका निःशुल्क उपचार किया जाता है और दवाएं भी सभी सरकारी चिकित्सालयों में मुफ्त दी जाती हैं। इतना ही नहीं निक्षय पोषण योजना के तहत पोषण के लिए पांच सौ रुपये की धनराशि प्रतिमाह मरीज के खाते में सीधे स्थानान्तरित किये जाते हैं। दवाओं, परहेज और पौष्टिक तत्वों से भरपूर संतुलित आहर लेने से बोन टीबी पूरी तरह ठीक हो जाता है।

रविवार, 12 जून 2022

टीबी चैंपियन हुए प्रशिक्षित समुदाय को करेंगे जागरूक

प्रचार सामग्री के जरिये क्षय उन्मूलन की जगाएंगे अलख 

वाराणसी, चंदौली व सोनभद्र के 32 चैंपियन की समीक्षा के साथ आईईसी का अनावरण
Varanasi (dil India live)। वर्ष 2025 तक देश को क्षय उन्मूलन की दिशा में स्वास्थ्य विभाग की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में अब टीबी चैम्पियन जिले में क्षय रोग के प्रति जागरूकता लाने और भ्रांतियों को दूर करने में विभाग की मदद करेंगे| इसके लिए वह सूचना, शिक्षा एवं संचार (आईईसी) सामग्री जैसे पोस्टर, पंपलेट, बैज, टैटू आदि का सहारा लेंगे |

     इस संबंध में *मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी के निर्देशन एवं जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ राहुल सिंह* की अध्यक्षता में वाराणसी (13 टीबी चैंपियन) सहित चंदौली और सोनभद्र जिले के 32 टीबी चैंपियन के समीक्षा कार्यक्रम के दौरान आईईसी मैटेरियल का अनावरण भी किया गया । इस दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन भोजुबीर स्थित एक होटल में वर्ल्ड विजन इंडिया, एफआईएनडी और रीच संस्था द्वारा यूनाइट टू एक्ट प्रोजेक्ट के तहत किया गया।

जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया कि सभी टीबी चैंपियन टीबी मरीजों को उपचार और भावनात्मक सहयोग के साथ समुदाय को भी जागरूक करने का काम कर रहे हैं। टीबी मरीजों को संबल प्रदान कर उनकी हर तरह से मदद में जुटे टीबी चैंपियन प्रशिक्षण प्राप्तकर डिस्ट्रिक्ट टीबी सेंटर (डीटीसी), टीबी यूनिट (टीयू) और प्रभावशाली लोगों के बीच इन आईईसी मैटेरियल के सहारे संवेदीकरण करेंगे । समीक्षा बैठक में बताया गया है कि टीबी मरीजों को प्रेरित करें कि वह बीच में दवा न बंद करें। दवा बंद करने से टीबी बिगड़ सकती है यानि एमडीआर का रूप ले लेती है और कई बार एक्सडीआर टीबी भी बन जाती है जिसमें जटिलताएं बढ़ जाती हैं । टीबी की दवा तब तक खानी है जब तक कि चिकित्सक द्वारा बंद करने की सलाह न दी जाए। इसी प्रकार टीबी के प्रत्येक निकटवर्ती व्यक्ति की (जो अत्यंत निकट रहा हो) टीबी जांच आवश्यक है और साथ ही उसके संपर्क में आने वाले लोगों को टीबी प्रिंवेटिव थेरेपी के तहत बचाव के लिए दवा अनिवार्य रूप से खिलानी है। यह सभी संदेश समुदाय तक पहुंचाने के लिए टीबी चैंपियन से कहा गया है। उन्होंने बताया कि जिले के सभी सरकारी अस्पताल सहित ग्रामीण एवं शहरी स्वास्थ्य केंद्रों पर निःशुल्क जांच एवं उपचार की सुविधा मौजूद है। इसके साथ निक्षय पोषण योजना के तहत टीबी मरीजों को छह माह तक 500 प्रति माह पोषण के लिए धनराशि सीधे उनके बैंक खाते में दी जाती है। इस कार्यक्रम में डीपीसी संजय चौधरी, डीपीपीएम नमन गुप्ता एवं वर्ड विजन इऺडिया के डीसीसी सतीश सिंह, शशांक श्रीवास्तव, कमलेश एवं अन्य लोग शामिल रहे। 

आईईसी से देंगे ऐसे संदेश

टीबी एक संक्रामक रोग है जो बैक्टीरिया के कारण होता है और इसका पूरी तरह से इलाज संभव है।

बालों और नाखूनों को छोड़ कर टीबी शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है।

फेफड़ों की टीबी को पल्मोनरी, जबकि शरीर के अन्य अंगों की टीबी को एक्स्ट्रा पल्मोनरी कहते हैं।

केवल फेफड़े की टीबी ही संक्रामक है।

जब टीबी ग्रसित व्यक्ति असुरक्षित तरीके से खांसता या बोलता है तो हवा के माध्यम से दूसरे को संक्रमण होता है।

लक्षण दिखे तो कराएं जांच

अगर लगातार दो हफ्ते से खांसी आए, बलगम में खून आए, रात में बुखार के साथ पसीना आए, तेजी से वजन घट रहा हो, भूख न लगे तो नजदीकी डीएमसी या टीयू पर टीबी जांच निःशुल्क करवा सकते हैं। अगर जांच में टीबी की पुष्टि हो तो पूरी तरह ठीक होने तक इलाज चलाना है।

Christmas celebrations में पहुंचे वेटिकन राजदूत महाधर्माध्यक्ष लियोपोस्दो जिरोली

बोले, सभी धर्म का उद्देश्य विश्व मानवता का कल्याण एवं आशा का संदेश देना Varanasi (dil India live). आज वैज्ञानिक सुविधाओं से संपन्न मानव धरती...