...ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ साथ
- परवीन शाकिर के चुनिंदा कलाम

1.मैं सच कहूंगी मगर फिर भी हार जाऊंगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा।
2.पलट कर फिर यहीं आ जाएंगे हम
वो देखे तो हमें आज़ाद कर के।
3.ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
मेरे रिसते हुए ज़ख़्मों के हिसाबों की तरह।
4.तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ साथ।
5.बोझ उठाते हुए फिरती है हमारा अब तक
ऐ ज़मीं माँ तिरी ये उम्र तो आराम की थी।
6.बंद कर के मिरी आँखें वो शरारत से हँसे
बूझे जाने का मैं हर रोज़ तमाशा देखूँ।
7.ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
यूँ सताने की तो आदत मिरे घनश्याम की थी।
8.तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना
कितना अच्छा लगता है फूल जैसे बच्चों पर।
9.यूँ देखना उस को कि कोई और न देखे
इनाम तो अच्छा था मगर शर्त कड़ी थी।
10.अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ।
(प्रस्तुतकर्ता मोहम्मद रिजवान)