१३ अप्रैल (बैसाखी) पर खास
धर्म रक्षक गुरु गोविंद सिंह ने किया था खालसा पंथ की स्थापना
-हरजिंदर सिंह राजपूत
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। उस दौर में भारत की जनता हर तरफ से शोषित हो रही थी। तब भारत भूमि ने काल की मांग के अनुरूप एक महापुरुष को जन्म दिया। जिसने ने शिष्यों और अनुयायियों को समाज और राष्ट्र की बलिवेदी पर अपने को चढ़ा देने के लिए आह्वान ही नहीं किया वरना स्वयं एवं अपने पूरे परिवार को इस बलिवेदी पर चढ़ा दिया। यह महापुरुष थे सिखों के दसवें पातशाह गुरु गोविंद सिंह। इनके दो छोटे पुत्र फतेह सिंह एवं जोरावर सिंह को उस दौर के बादशाह ने धर्म परिवर्तन न करने पर जिंदा सरहिन्द की दीवारों में चुनवा दिया और इनके दो बड़े पुत्र अजीत सिंह और जुआर सिंह युद्ध में जूझते-जूझते वीरगति को प्राप्त हुये। जब गुरु गोविंद सिंह युद्ध से लौटे तो उनकी पत्नी ने अपने ४ बेटों के बारे में पूछा। इस पर गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि-
इन पुत्रों के कारणे वार दिये सूत चार
चार मुये तो क्या हुआ जीवित कई हजार।
इस महापुरुष का जन्म 22 दिसंबर सन, 1666, ईस्वी को पटना बिहार प्रांत के नगर में हुआ था। गुरु गोविंद सिंह ने देखा कि किस तरह उनके पिता गुरु तेगबहादुर को चांदनी चौक दिल्ली में इस्लाम धर्म न कबूल करने के आरोप में सरेआम कत्ल किये जाने पर उनका शीश और धड़ उठाने में लोग झिझक रहे थे और चोरी-छिपे उसे उचित जगह पर ले जाया गया था। यह बस इसलिए हुआ कि वह पहचान लिया जाएगा कि वह हिंदू है और उसका भी कत्ल कर दिया जाएगा। प्राणो के लिए इतना मोह की हिंदू के लिए हिंदू कहना भी मानो मौत को बुलाने के समान हो। यह सब गुरुजी से देखा न गया। इस पर उन्होंने प्रण किया कि मैं एक ऐसी बहादुर, लड़ाकू, विवेकशील और भारतीयता और मानवता के नाम पर मर मिटने को हमेशा तैयार रहने वाली कौम पैदा करूंगा जो वीरता में तो आदि्तीयत होगी ही साथ ही साथ उसके बाहरी चेहरे के स्वरूप के कारण उसका सदस्य लाखों में बड़ा पहचाना जाएगा कि वह भारतीय है।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने पंजाब के आन्नदपुर नामक स्थान पर 13 अप्रैल 1699 को बैसाखी वाले दिन एक बड़ी विशाल आमसभा का आयोजन किया गया, सभा की कार्रवाई शुरू करते ही उन्होंने कहा कि मुझे देश धर्म और समाज की रक्षा के लिए शीश (सिर) की आवश्यकता है। उनका यह क्रांतिकारी ऐलान सुनकर जनता में खलबली सी मच गई परन्तु कुछ समय उपरांत एक वीर उठा उसने कहा गुरु जी धर्म रक्षा के लिए मेरा शीश अर्पित है। गुरुजी उसके पास वाले खेमे में ले गए और उसका सिर धड़ विच्छेद कर दिया और पुनः बाहर आकर शीश की मांग दोहराई इसी प्रकार पांच वीरों की शीश धड़ से अलग कर पुनः उन्हें जीवित करके बाहर लाये और कहा यह हमारे प्रेरणा स्रोत पांच प्यारे हैं। उनको खंण्डे का अमृत पिलाया और कच्छ, कड़ा, कंघा, केश और कृपाण देकर सिंह नामक अलंकार से विभूषित किया। और उनसे बूंद अमृत पान करके "आपे गुरु चेला" का एक प्रेरणाप्रद मिसाल दुनिया के समक्ष रखी ऐसा दूसरा उदाहरण इस संसार में मिलना कठिन है।
खालसा पंथ का निर्माण कर के गुरु गोविंद सिंह जी ने अपना प्रण पूरा कर दिखाया इसका इतिहास और वर्तमान साक्षी है। वास्तव में गुरु गोविंद सिंह जी एवं सिख धर्म गुरुओं का उद्देश्य कोई नया धर्म कायम करने का ना था। उन्होंने सभी धर्म में समानता कायम करने और मिथ्या धार्मिक आय अम्बारो से बचकर ईश्वर को मानने के प्रेरणा दी।
विभिन्न धर्मानुयायी अभी तक जिन कमजोरियों के शिकार होते आये हैं और उनके तथाकथित गुरु या धर्माचार्य उन्हें भ्रमित करते आ रहे हैं। उससे बचने के लिए गुरु गोविंद सिंह जी ने शब्द ब्रह्म की उपासना करने की प्रेरणा दी उस समय विश्व की जो भी प्रांतीय सीमाएं थी और उनकी उपासना करने वाले जितने भी संत महात्मा और कवि थे उन सभी की उत्कृष्ट रचनाओं को एक जगह संग्रहित करके उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को ही परमेश्वर मारने की शिक्षा दी और इस संदर्भ में कहा-
सब सीखन को हुकम है,
गुरु मान्यो ग्रंथ गुरु ग्रंथ!
गुरु ग्रन्थ जी मानयो,
प्रगट गुरु की देह!
जाका हृदय शुद्ध है,
खोज शब्द में लेह!
गुरु ग्रंथ साहिब में हर प्रांत ही नहीं हर जाति के ब्राह्मण से लेकर शुद्ध और सूफी, संतों, हिंदू मुसलमान रचनाकारों की रचनाओं कौन संग्रहित कर के धर्म क्षेत्र में एक क्रांतिकारी मिसाल पेश की।