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शनिवार, 25 मार्च 2023

Mohd Zeeshan रख रहा रमज़ान का रोजा

यह नन्हा रोजेदार रहेगा पूरे महीने रोज़ा 

Varanasi (dil india live)। काजीसादुल्लापूरा बड़ीबाजार के रहने वाले समाजसेवी डॉक्टर एहतेशामुल हक के पुत्र मुहम्मद जीशान ने रमजान का पहला रोजा रख कर सभी को चकित कर डाला। कक्षा 4 में पढ़ने वाला जीशान सुबह सहरी में उठा और अपने माता पिता से कहा कि मैं रोजा रहूंगा। गार्जियन ने बहुत मना किया लेकिन बच्चे की ज़िद के आगे कौन मना करे। जीशान कहता है कि वो पूरे माह का रोज़ा रखेगा। नमाज़ भी मस्जिद में जाकर अदा करता है जिशान। यही नहीं कुरआन की तिलावत करना उसकी दिनचर्या में शुमार है।जीशान ने कहा कि मैं अपने रब से दुआ मांगूंगा और मेरा रब जरूर सुनेगा।

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

Art competition में सोनू, निखिल, गौरव का जलवा

कला शिक्षक आतिफ ने किया छात्रों को पुरस्कृत 



Varanasi (dil india live). कमलापति त्रिपाठी बॉयज इंटर कॉलेज कैंट में चित्रकला कंपटीशन का आयोजन कॉलेज के प्रिंसिपल विपुल श्रीवास्तव के निर्देश पर कला टीचर आतिफ मोहम्मद खालिद की अगुवाई में किया गया। गांधी जयंती के अवसर पर हुए इस आयोजन में सोनू कुमार को प्रथम तो निखिल कनौजिया को दूसरा व गौरव प्रजापति तीसरे स्थान पर रहे।

इस दौरान बेहतर कार्य करने वाले तीनों छात्रों को कला अध्यापक आतिफ मोहम्मद खालिद ने पुरस्कृत किया।

शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

Medical me आबिद के टेलेंट का जलवा

नीट परीक्षा पास कर आबिद ने किया कमाल

Varanasi (dil india live)। जामिया मतलउल उलूम कमनगढा मदरसा के वरिष्ठ अध्यापक मुहम्मद अकील अंसारी के छोटे पुत्र मुहम्मद आबिद का मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट यूजी 2022 में आल इंडिया रैंक 12134, आल इंडिया ओबीसी रैंक 4811 तथा 720 में 621 अंक प्राप्त होने पर मदरसा परिवार और पूरा समाज बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा है आबिद का एम बी बी एस में  सफलता मिलने पर परिवार में जश्न का माहौल है। परिजनों ने बताया कि आबिद को बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना था जो अपने बड़े अब्बू डॉक्टर जमील अंसारी से प्रेरित होकर अपने सपने साकार कर दिखाया।आबिद की इस उपलब्धि से परिवार,गांव एवं क्षेत्र में हर्ष व्याप्त है। मुहम्मद आबिद का एम बी बी एस में अच्छी रैंक आने पर सामाजिक संस्था "सुल्तान क्लब" वाराणसी के अध्यक्ष डॉक्टर एहतेशामुल हक और सभी पदाधिकारियो ने मुबारकबाद पेशकर उज्ज्वल भविष्य की कामना की है।

मूलतः गाजीपुर जनपद के रहने वाले मुहम्मद आबिद ने बालभारतीय इंग्लिश स्कूल लोहटिया वाराणसी से हाई स्कूल और इंटर की परीक्षा पास की। बड़े भाई मुहम्मद आमिर का अभी कुछ दिन पहले ही भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई में वैज्ञानिक पद पर चयन हुआ है।

9307981801


संपर्क करें,,,,,

मुहम्मद अकील अंसारी

9450978182

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

Karbala ki kahani: हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन

...इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद


Varanasi (dil india live). 

इंसान को बेदार तो हो लेने दो हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन...।

मजहबे इस्लाम को दुनिया में फैलाने के लिए, पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ने जितनी कुर्बानियाँ दीं, उसे उनके नवासे हजरत इमाम हसन, हज़रत इमाम हुसैन ने कभी फीका नहीं पड़ने दिया, बल्कि नाना के दीने इस्लाम को बचाने के लिए अपने साथ अपने कुनबे को भी कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया।

इस्लाम की बुनियाद के लगभग 50 साल बाद दुनिया में जुल्म का दौर अपने शबाब पर था। मक्का से दूर सीरिया के गर्वनर य़जीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, उसके काम करने का तरीका तानाशाहों जैसा था, जो इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ था। उस दौर के तमाम लोग उसके सामने झुक गए, वो चाहता था कि नबी के नवासे हजरत इमाम हुसैन भी उसकी बैयत (अधिनता) करें मगर हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम के खिलाफ काम करने वाले य़जीद को खलीफा मानने से इन्कार कर दिया। इससे नाराज य़जीद ने अपने गर्वनर वलीद विन अतुवा को फरमान लिखा और कहा कि 'तुम हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने को कहो, अगर वह नहीं माने तो उनका सिर काटकर मेरे पास भेजो।'

वलीद विन अतुवा ने इमाम हुसैन को य़जीद का फरमान सुनाया तो इमाम हुसैन बोले। 'मैं एक तानाशाह, मजलूम पर जुल्म करने वाले और अल्लाह-रसूल को न मानने वाले य़जीद की बेअत करने से इन्कार करता हूँ।' इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुँचे, जहाँ य़जीद ने अपनी फौज के सिपाहियों को मुसाफिर बनाकर हुसैन का कत्ल करने के लिए भेज दिया। इस बात का पता हजरत इमाम हुसैन को चल गया और खून-खराबे को रोकने के लिए हजरत इमाम हुसैन अपने कुनबे के साथ इराक चले आ गए। मुहर्रम महीने की 2 तरीख 61 हि़जरी को इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे। 

पानी पर पहरा, फिर भी हुसैन ने ह़क से मुँह न फेरा

वह 2 मुहर्रम का दिन था, जब इमाम हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान में ठहरा था। यहाँ पानी के लिए सिर्फ एक फरात नदी थी, जिस पर य़जीद की फौज ने 6 मुहर्रम से हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। य़जीद की फौज की इमाम हुसैन को झुकाने की हर कोशिश नाकाम होती रही और आखिर में जंग का ऐलान हो गया।

दुश्मन देते थे हुसैन की हिम्मत की गवाही

9 तारीख तक य़जीद की फौज को सही रास्ते पर लाने के लिए मौका देते रहे, लेकिन वह नहीं माना। इसके बाद हजरत इमाम हुसैन ने कहा 'तुम मुझे एक रात की मोहलत दो ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूँ' इस रात को ही आशूरा की रात कहा जाता है।

इस्लामिक इतिहास कहता है कि य़जीद की 80 ह़जार की फौज के सामने इमाम हुसैन के 72 जाँनिसारों ने जिस तरह जंग की, उसकी मिसाल खुद दुश्मन फौज के सिपाही एक-दूसरे को देने लगे। इमाम हुसैन ने अपने नाना और वालिद के सिखाए हुए ईमान की मजबूती और अल्लाह से बे-पनाह मोहब्बत में प्यास, दर्द, भूख और अपने 6 माह के बेटे अली असगर के साथ पूरे खानदान को खोने तक के दर्द को जीत लिया। दसवें मुहर्रम के दिन तक हुसैन अपने भाइयों और साथियों की मैयत को दफनाते रहे। लड़ते हुए जब नमाज का वक्त करीब आ गया तो उन्होंने दुश्मन फौज से अस्र की नमाज अदा करने का वक्त माँगा। यही वक्त था जब इमाम हुसैन सजदे में झुके तो दुश्मन ने धोखे से उन पर वार कर उन्हें शहीद कर दिया। मक्का में इमाम हुसैन की शहादत की खबर फैली तो हर तरफ मातम छा गया। दुनिया ने सोचा कर्बला के बाद इस्लाम खत्म हो जाएगा, इमाम हुसैन के नाना के दीन और धर्म का कोई नामोनिशान नहीं होगा मगर हुआ इसका ठीक उल्टा। कर्बला के बाद इस्लाम न सिर्फ जिन्दा हो गया बल्कि समूची दुनिया में फैल गया। आज इमाम हुसैन और शहीदाने कर्बला का नाम लेने वाला पूरी दुनिया में है मगर यजीद का कोई नाम लेवा नहीं है तभी तो कहा गया है, इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद...।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

जानिए भारतीय सेना के इस जांबाज ब्रिगेडियर की कहानी

'नौशेरा के शेर' मोहम्मद उस्मान की आज है यौमे पैदाइश

(15 जुलाई जयंती पर खास ) 




Shahin ansari

Varanasi (dil india live)। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जंग के मैदान में शहीद होने वाले बड़ी रैंक के पहले अफसर थे। बहादुरी ऐसी कि पाकिस्तानी सेना खौफ खाती थी। इंडियन आर्मी के इस अफसर को "नौशेरा का शेर" भी कहा जाता है। उस्मान ने वतन परस्ती की ऐसी मिसाल पेश की कि बंटवारे के दौरान पाकिस्तानी सेना का चीफ बनने का मोहम्मद अली जिन्ना का प्रस्ताव ठुकरा दिया। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान पहले ऐसे अफसर थे,जिस जांबाज़ पर पाकिस्तान ने इनाम रखा था।

  भारतीय सेना के महान अफसर  ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को  आजमगढ़ में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद फारूख पुलिस में आला अधिकारी थे जबकि मां जमीलन बीबी घरेलू महिला थीं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय मरदसे में हुई और आगे की पढ़ाई वाराणसी के हरश्चिंद्र स्कूल तथा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हुई। वह न सिर्फ अच्छे खिलाड़ी थे बल्कि ज़बरदस्त वक्ता भी थे। वीरता उनमें कूट-कूट कर भरी थी। तभी तो महज़ 12 साल की उम्र में वह अपने एक मित्र को बचाने के लिए कुएं में कूद पड़े थे और उसे बचा भी लिया था।

 देश के बंटवारे के समय जिन्ना और लियाकत खान ने मुसलमान होने का वास्ता देकर उनसे पाकिस्तान आने का आग्रह किया। साथ ही पाकिस्तान की सेना का प्रमुख बनाने का न्यौता भी दिया। मगर उन्होंने उस न्यौते को ठुकरा दिया और 1947-48 में पाकिस्तान के साथ पहले युद्ध में वे शहीद हो गए। साल 1932 में मोहम्मद उस्मान की उम्र महज 20 वर्ष थी। उस्मान जिस दौर में पल रहे थे, वो आजादी से काफी पहले का दौर था। उस्मान ने तभी सेना में जाकर देश के लिए कुछ करने का जज्बा दिल में पाल लिया था। यह वो दौर था जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत थी। उस्मान के पिता चाहते थे कि बेटा सिविल सर्विस में जाकर खानदान का नाम ऊंचा करे। लेकिन उस्मान के ख़्वाब उनके पिता की सोच से अलग थे।

 20  वर्ष की उम्र में उस्मान को आर एम, रॉयल मिलिट्री एकेडमी में दाखिला मिल गया। उस वक्त पूरे भारत में केवल 10 लड़कों को इस मिलिट्री संस्थान में दाखिला मिला था। उस्मान उनमें से एक थे। तब भारत की अपनी मिलिट्री एकेडमी नहीं थी, इसलिए सेना में जाने वाले युवाओं को ब्रिटिश सरकार इंग्लैंड में रॉयल मिलिट्री एकेडमी भेजकर ट्रेनिंग करवाती थी। हालांकि इंग्लैंड की इस एकेडमी का यह आखिरी बैच था। उसी साल भारत में उत्तराखंड के देहरादून में पहली इंडियन मिलिट्री एकेडमी की स्थापना हो गई। उस्मान अपने पिता फारूख की उम्मीदों से उलट आर्मी अफसर बनने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए। वहां उन्होंने 3 साल तक मिलिट्री की कड़ी ट्रेनिंग ली। इंग्लैंड की रॉयल मिलिट्री एकेडमी में प्रशिक्षण पूरा करने के बाद एक साल उस्मान ने रॉयल मिलिट्री फोर्स में भी अपनी सेवाएं दीं।

 जिसके बाद वो भारत लौट आए। साल 1935 में उस्मान को 10वीं बलूच रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में पहली तैनाती मिली। वर्ल्ड वॉर के दौरान मोहम्मद उस्मान को अफगानिस्तान और बर्मा में भी तैनात किया गया। 30 अप्रैल, 1936 को उनको लेफ्टिनेंट की रैंक पर प्रमोशन मिला और 31 अगस्त, 1941 को कैप्टन की रैंक पर। अप्रैल 1944 में उन्होंने बर्मा में अपनी सेवा दी और 27 सितंबर, 1945 को लंदन गैजेट में कार्यवाहक मेजर के तौर पर उनके नाम का उल्लेख किया गया। बंटवारे से पहले साल 1945 से लेकर साल 1946 तक मोहम्म्द उस्मान ने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन का नेतृत्व किया। बलूच रेजीमेंट में तैनाती के दौरान वह युद्ध की हर बारीकी को सीख रहे थे। उस्मान शायद अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई के लिए तैयार हो रहे थे। जो उन्हें बंटवारे के बाद पाकिस्तानी फौज से लड़नी थी। अपनी काबिलियत के दम पर उन्हें लागातार प्रमोशन मिलता रहा और कम उम्र में ही वो ब्रिगेडियर के पद पर क़ाबिज़ हो गए।

 साल 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। जिसके बाद दोनों देशों से हजारों लोग इस तरफ से उस तरफ गए और वहां से यहां आए। भारत-पाक बंटवारे के बाद हर चीज का बंटवारा हो रहा था। जमीन के टुकड़े के साथ ही विभागों और सेना की कुछ रेजिमेंट का बंटवारा किया गया। बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा बना। बंटवारे के बाद मोहम्मद उस्मान बड़ी मुश्किल में आ गए। क्योंकि बलूच रेजिमेंट बंटवारे के बाद पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई। उस दौर में सेना में बहुत ही कम मुसलमान थे। जब बंटवारा हुआ तो मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमान होने की वजह से ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तान ले जाना चाहते थे।

 जिन्ना जानते थे कि उस्मान एक काबिल और दिलेर अफसर हैं, जो पाकिस्तानी सेना के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बावजूद इसके उस्मान ने पाकिस्तान जाने से साफ मना कर दिया। उसके बाद उस्मान को तोड़ने के लिए पाकिस्तानियों की ओर से काफी प्रलोभन दिए गए। इतना ही नहीं, मोहम्मद अली जिन्ना ने मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तानी सेना का चीफ ऑफ आर्मी बनाने तक का लालच दिया था। मगर जिन्ना का ये लालच भी उस्मान के ईमान को हिला नहीं पाया। उस्मान ने भारतीय सेना में ही रहने का फैसला किया। जिसके बाद उन्हें डोगरा रेजिमेंट में शिफ्ट कर दिया गया। साल 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद कश्मीर आजाद रहना चाहता था। लेकिन पाकिस्तान ने बेहद चालाकी से वहां घुसपैठ की । पाकिस्तान की मंशा कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने की थी।

 उस दौरान कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। भारतीय सेना ने कश्मीर को बचाने के लिए अपने सैनिकों को श्रीनगर भेज दिया। भारतीय सेना का पहला लक्ष्य पाकिस्तानियों से कश्मीर घाटी को बचाना था। भारतीय सेना ने कश्मीर के आम इलाकों को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया। वहीं, पाकिस्तानी घुसपैठ करते हुए नौशेरा तक पहुंच गए थे। पाकिस्तानी फौज कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर चुकी थी। पुंछ में हजारों लोग फंसे हुए थे। जिन्हें निकालने का काम भारतीय सेना कर रही थी। उस समय ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 77वें पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे। वहां से उनको 50वें पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभालने के लिए भेजा गया। इस रेजिमेंट को दिसंबर, 1947 में झांगर में तैनात किया गया था।

 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झांगर पर भी कब्जा कर लिया था। झांगर का पाक के लिए सामरिक महत्व था। मीरपुर और कोटली से सड़कें आकर यहीं मिलती थीं। लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करिअप्पा तब वेस्टर्न आर्मी कमांडर थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था – झांगर और पुंछ पर कब्जा करना। कई अन्य अधिकारियों के साथ ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भी कश्मीर में अपनी बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। उस्मान के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं था। दुश्मन गुफाओं में छिपकर भारतीय सेना पर हमला कर रहे थे। उस्मान ने झांगर क्षेत्र को पाकिस्तानियों के कब्जे से आज़ाद कराने की क़सम खाई थी। जो उन्होंने पूरी भी की।

 ब्रिगेडियर उस्मान ने एक तो पाकिस्तान की सेना में सेनाध्यक्ष बनने की जिन्ना की पेशकश को ठुकरा दिया था। उसके बाद ऐसी बहादुरी दिखाई कि एक के बाद एक इलाके दुश्मन सेना के कब्जे से छुड़ा लाए। झांगर हासिल करने के बाद ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा को भी फतह कर लिया था। जिसके बाद से उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाने लगा। उस्मान की बहादुरी के आगे पाकिस्तानी सेना चारों खाने चित्त हो गई थी। ब्रिगेडियर उस्मान की क़ाबलियतऔर कुशल रणनीति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके नेतृत्व में भारतीय सेना को काफ़ी कम नुकसान हुआ था। जहां इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 1000 सैनिक मारे गए, तो वहीं भारतीय सेना के सिर्फ 33 सैनिक शहीद हुए थे। ब्रिगेडियर  उस्मान अपनी बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सेना की आंखों की किरकिरी बन चुके थे। पाकिस्तान इतना बौखला गया था कि उसने उस्मान के सिर पर 50 हजार रुपए का इनाम भी रख दिया।

 पाक सेना घात लगाकर बैठी थी। 3 जुलाई, 1948 की शाम, पौने 6 बजे होंगे। उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले कि उन पर 25 पाउंड का गोला पाक सेना ने दाग दिया। उनके अंतिम शब्द थे – हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाए। ब्रिगेडियर उस्मान 36वें जन्मदिन से 12 दिन पहले शहीद हो गए। ब्रिगेडियर के पद पर रहते हुए देश के लिए शहीद होने वाले उस्मान इकलौते भारतीय थे। उन्हीं की कुर्बानी का नतीजा है कि आज भी जम्मू-कश्मीर की घाटियां भारत का अभिन्न अंग हैं। 

 शहादत के बाद राजकीय सम्मान के साथ उन्हें जामिया मिल्लिया इस्लामिया क़ब्रगाह, नयी दिल्ली में दफनाया गया। उनकी अंतिम यात्रा में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला शामिल थे। किसी फौजी के लिए आज़ाद भारत का यह सबसे बड़ा सम्मान था। यह सम्मान उनके बाद किसी भारतीय फौजी को नहीं मिला। मरणोपरांत उन्हें ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

 उस्मान अलग ही मिट्टी के बने थे। अपने फौजी जीवन में बेहद कड़क माने जाने वाले उस्मान अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद मानवीय और उदार थे। अपने वेतन का अधिकाँश हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। वे नौशेरा में अनाथ पाए गए 158 बच्चों को उनको पढ़ाते-लिखाते और उनकी देखभाल करते थे। जब-जब भारतीय फौज की वतनपरस्ती और पराक्रम का जिक्र होगा, भारत माँ के सपूत ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का नाम बड़े अदब के साथ याद लिया जाएगा।

"लाई हयात आये , क़ज़ा ले चली , चले।

अपनी ख़ुशी से आये ना, अपनी ख़ुशी चले।।"

(लेखक सेन्टर फ़ॉर हार्मोनी एंड पीस से जुड़ी हुई हैं।)

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

आमिर बने वैज्ञानिक अधिकारी


Varanasi (dil india live). मदरसा जामिया मतलउल उलूम कमनगढा के वरिष्ठ अध्यापक मुहम्मद अकील अंसारी के पुत्र मुहम्मद आमिर का भाभा आटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) मुंबई में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर चयन होने पर मदरसा परिवार और बुनकर समाज गौरवान्वित महसूस कर रहा है। सभी खुश हैं कि आमिर ने बुनकर समाज का नाम रौशन किया है। आमिर का वैज्ञानिक अधिकारी बनने पर सामाजिक संस्था "सुल्तान क्लब" वाराणसी के अध्यक्ष डॉक्टर एहतेशामुल हक और सभी सदस्यों ने मुबारकबाद पेशकर उज्ज्वल भविष्य की कामना की है। मूलतः गाजीपुर जनपद के रहने वाले मुहम्मद आमिर ने पिछले दिनों आल इंडिया परीक्षा गेट में 45 वीं रैंक प्राप्त किया था। आमिर ने वाराणसी में रहकर अपनी पढ़ाई मुकम्मल की।

तुलसी विवाह पर भजनों से चहकी शेर वाली कोठी

Varanasi (dil India live)। प्रबोधिनी एकादशी के पावन अवसर पर ठठेरी बाजार स्थित शेर वाली कोठी में तुलसी विवाह महोत्सव का आयोजन किया गया। श्री ...