हाय ज़ेहरा... की सदा के साथ उमड़ा हज़ारों का हुजूम
Varanasi (dil India live)। अंजुमन हैदरी के तत्वाधान में शहर की मातमी अंजुमनों की अपील पर गुरुवार को 10 बजे दिन में कालीमहल स्थित शिया मस्जिद से जुलूस उठाया गया जो अपने पारम्परिक रास्तों नईसड़क, दालमंडी, चौक, बुलानाला, मैदागिन, विशेश्वरगंज होता हुआ 1 बजे दिन में शिया जामा मस्जिद, दारानगर पहुँचकर जलसे में परिवर्तित हो गया। अंजुमन हैदरी के प्रेसिडेंट सैय्यद अब्बास मुर्तुज़ा शम्सी के निर्देशन एवं जनरल सेक्रेटरी नायब रज़ा के संयोजन में चल रहे इस जुलूस में बनारस की सभी मातमी अंजुमनों ने शिरकत की।
जुलूस में चल रहे हज़ारों अकीदतमंद "आले सऊद होश में आओ.. ज़हरा का रौज़ा जल्द बनाओ" की आवाज़ बुलंद कर रहे थे। बनारस के उलेमा की क़यादत में चलने वाला ये जुलूस जब शिया जामा मस्जिद पहुँचा तो जलसे का आयोजन हुआ जिसमें तक़रीर करते हुए मौलाना तौसीफ़ अली, मौलाना अमीन हैदर एवं हाजी फ़रमान हैदर ने भारत सरकार से मांग की वो उनकी आस्था का मान रखते हुए सऊदी सरकार पर दबाव बनाए और उनकी मांग को पूरा करने की कोशिश करे। तत्पश्चात साइन किया हुआ मेमोरेंडम महामहिम राष्ट्रपति जी के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को भेजा गया। जलसे के बाद मजलिस को ख़िताब करते हुए मौलाना अक़ील हुसैनी ने कहा कि कल जब मुहम्मद साहब के घर वाले इस दुनिया में थे तब भी उन्हें चैन से रहने नहीं दिया गया और सब को शहीद किया गया और आज भी उनकी क़ब्रों को ढहा कर ज़ुल्म का सिलसिला जारी है, जिसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जलसे का संचालन सैय्यद अब्बास मुर्तज़ा शम्सी ने किया। जुलूस में शहर बनारस की सभी मातमी अंजुमनों समेत मौलाना ज़मीर हसन साहब, मौलाना नदीम असग़र साहब, मौलाना अमीन हैदर साहब, मौलाना मेहदी रज़ा साहब, मौलाना इश्तियाक अली साहब, मौलाना मुहम्मद हुसैनी साहब, मौलाना इबनुल हसन साहब, मुनाज़िर हुसैन मंजु आदि मौजूद थे।
पता हो कि आज से 101 वर्ष पूर्व हिजरी माह शव्वाल की 8 तारीख को सऊदी अरब की तत्कालीन हुकूमत नें पैग़म्बर मुहम्मद साहब की इकलौती बेटी जनाबे सैय्यदा और 4 इमामों की क़ब्रों पर बने आलीशान रौज़ों को बुलडोज़र चला कर गिरा दिया था जिससे पूरी दुनिया में मुहम्मद साहब के परिवार से आस्था रखने वालों में ग़म ओ गुस्से की लहर दौड़ गई थी। विगत 100 साल से आज तक बनारस में अंजुमन हैदरी के तत्वाधान में विरोध स्वरूप एक जुलूस उठाया जाता है और सऊदी सरकार से उन रौज़ों के पुनर्निर्माण की मांग की जाती है।