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बुधवार, 12 मई 2021

बनारस के गोविन्द्रपुरा में सबसे पहले मनायी गयी थी ईद

सन् हिजरी में पहली बार मनायी गयी थी ईद कि खुशियां


 वाराणसी (अमन/दिल इंडिया लाइव)। ईद मिल्लत और मोहब्बत का त्योहार है। सभी जानते हैं कि हफ्ते भर चलने वाले इस महापर्व से हमें खुशी और एकजुटता का पैगाम मिलता हैमगर कम लोग जानते हैं कि ईद का ऐतिहासिक पक्ष क्या है। इस्लामिक विद्वान मौलाना अज़हरुल क़ादरी ने ईद की तवारीखी हैसियत पर रौशनी डालते हुए बताया कि सन् हिजरी में सबसे पहले ईद मनायी गयी। पैगम्बरे इस्लाम नबी-ए-करीम हज़रत मोहम्मद (स.) का वो दौर था। उन्होंने सन् हिजरी में पहली बार अरब की सरज़मी पर  ईद की नमाज़ पढ़ी और ईद की खुशियां मनायी। उसके बाद से लगातार आज तक पूरी दुनिया में ईद की नमाज़े अदा की जाती है और लोग इसकी खुशियों में डूबे नज़र आते हैं।

जहां तक बनारस में ईद के त्योहार का सवाल हैइतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ तथ्यो को खंगालने के बाद बताते हैं कि बनारस में गोविन्द्रपुरा व हुसैनपुरा दो मुहल्ले हैं जहां सबसे पहले ईद मनायी गयी थी। वो बताते हैं कि हिन्दुस्तान में मुसलमानों के आने के साथ ही ईद मनाने के दृष्टांत मिलने लगते हैं। जहां तक बनारस की बात है यहां मुस्लिम सत्ता की स्थापना से पूर्व ही मुस्लिम न सिर्फ आ चुके थे बल्कि कई मुस्लिम बस्तियां भी बस गयी थी। दालमंडी के निकट गोविन्दपुरा और हुसैनपुरा में ईद की नमाज़ सबसे पहले पढ़े जाने का संकेत तवारीखी किताबों से ज़ाहिर है।

काशी के सौहार्द ने किया था कुतुबुद्दीन को प्रभावित

इतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि जयचन्द की पराजय के बाद बनारस के मुसलमानों की ईद को देखकर बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक को उस दौर में आश्र्चर्य हुआ था कि ईद की नमाज़ के बाद बनारस में जो सौहार्दपूर्ण माहौल दिखाई दिया था उसमें उन्हें हिन्दू-मुसलमान की अलग-अलग पहचान करना मुश्किल था। यह बनारसी तहज़ीब थी जो देश में मुस्लिम सत्ता की स्थापना के पूर्व ही काशी में मौजूद थी। जिसने एक नई तहज़ीबनई संस्कृति हिन्दुस्तानी तहज़ीब को जन्म दिया। तब से लेकर आज तक ईद की खुशियां बनारस में जितने सौहार्दपूर्ण और एक दूसरे के साथ मिलकर मनाया जाता है उतना अमनों-सुकुन और सौहार्दपूर्ण तरीके से दुनिया के किसी भी हिस्से में ईद नहीं मनायी जाती।

ईद का इस्लामी पक्ष

प्रमुख इस्लामी विद्धान मौलाना साक़ीबुल क़ादरी कहते हैं कि ईद रमज़ान की कामयाबी का तोहफा है। वो बताते हैं कि नबी का कौल है कि रब ने माहे रमज़ान का रोज़ा रखने वालों के लिए जिंदगी में ईद और आखिरत के बाद जन्नत का तोहफा मुकर्रर कर रखा है। यानि रमज़ान में जिसने रोज़ा रखा हैइबादत किया है नबी के बताये रास्तों पर चला है तो उसके लिए ईद का तोहफा है।

दूसरों को खुशिया बांटना है पैगाम

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां फाजिले बरेलवी पर रिसर्च करने वाले प्रमुख उलेमा मौलाना डा. शफीक अजमल की माने तो ईद का मतलब केवल यह नहीं कि महीने भर जो इबादत करके नेकियों की पूंजी एकत्र किया है उसे बुरे और बेहूदा कामों में ज़ाया कर देना बल्कि ईद का मतलब है कि दूसरों को खुशियां बांटना। अपने पड़ोस में देखों कोई भूखा तो नहीं हैकिसी के पास पैसे की कमी तो नहीं हैकोई ऐसा बच्चा तो नहीं जिसके पास खिलौना न होअगर इस तरह की बातें मौजूद है तो उन तमाम की मदद करना फर्ज़ है। 

मौलाना शफी अहमद कहते हैं कि दूसरो की मदद करना ईद का सबसे बड़ा मकसद है तभी तो रमज़ान में जकातफितराखैरातसदका बेतहाशा निकालने का हुक्म है ताकि कोई गरीबमिसकीनफकीर नये कपड़े से महरुम न रह जाये। ईद की खुशी में सब खुश नज़र आयें। यही वजह है कि ईद पर हर एक के तन पर नया लिवास दिखाई देता है।  

वर्तमान में ग्लोबल फेस्टिवल बना ईद 

एक माह रोज़ा रखने के बाद रब मोमिनीन को ईद कि खुशियो से नवाज़ता हैआज वक्त के साथ वही ईद ग्लोबल फेस्टीवल बन चुकी है जो टय़ूटरवाट्स एपस्टेलीग्राम से लेकर फेसबुक तक पर छायी हुई है। 

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