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शनिवार, 5 नवंबर 2022

Shanti, sadbhavna यात्रा संकल्प के साथ सम्पन्न

125 किमी दूरी तय कर 100 गांवों में किया गया संवाद 

  • नफरत और बांटने की राजनीति का बहिष्कार आज की जरूरत है : डा संदीप पाण्डेय 
  • समाज में भ्रम, वैमनस्य और अशांति फ़ैलाने वालों से सतर्क रहना जरूरी है: विजय नारायण 
  • विविधता में एकता देश की पहचान है: डॉ आरिफ
  • आमजन की समस्याओं पर चर्चा के बजाय गैरजरूरी बहसों में उलझने से बचें: शैलेन्द्र
  • शांति सद्भावना सहयोग और सौहार्द हमारी परंपरा : राम धीरज 






Varanasi (dil india live). साझा संस्कृति मंच एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित शांति, सद्भावना, प्रेम और भाईचारे के संदेश के साथ 9 दिवसीय "शांति सद्भावना यात्रा" का भव्य समापन शनिवार को सारनाथ में हुआ . इसके पूर्व संदहा से सारनाथ तक ग्रामवासियों ने पदयात्रियों का जोरदार स्वागत एवं अभिनंदन किया। सारनाथ में बुद्ध मंदिर के समक्ष औपचारिक समापन सभा में लोगों को संकल्प दिलाया गया कि समाज को नफरत नहीं बल्कि प्रेम और आपसी मेलजोल की जरूरत है इसलिए हम शांति सद्भाव प्रेम और मेलजोल बढाने की दिशा में दृढ़ संकल्पित होकर प्रयास करेंगे।

यात्रा संयोजक नंदलाल मास्टर ने बताया कि 9 दिनों की यह पद यात्रा में वाराणसी कुल आठों विकास खण्डों में होते हुए लगभग 100 गांव से गुजरी इस दौरान जनवादी गीत, नाटक, संवाद, कंदील मार्च, मशाल जुलूस, जनसभा आदि का आयोजन किया गया और शांति सद्भावना का संदेश प्रसारित किया गया।

सभा के बाद विद्या आश्रम परिसर में "भारतीय लोक परम्परा में न्याय, शांति एवं सद्भावना " विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए  मैग्सेसे पुरस्कार सम्मानित सामाजिक कार्यकर्त्ता डॉ संदीप पाण्डेय ने  कहा कि दरअसल समाज में अशांति और नफरत फैलाने वाले लोकप्रिय नहीं हैं। सत्य और धर्म उनके साथ नहीं है, लेकिन वो संगठित और सक्रिय हैं, हमारी निष्क्रियता का लाभ उठाते हैं, हमे इंसान के बजाय भीड़ बनाने में और वोट बैंक बनाने में उनका फायदा है। एक-दूसरे के बारे में वैमनस्य,भ्रम और भय फैलाया जा रहा है। बहुत चालाकी से अधकचरे झूठ को सच बनाया जा रहा है। नयी टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का गन्दा इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में हमे सचेत होकर रहना है सत्य को जानना है और समाज मे मिलजुल कर रहने की परंपरा का निर्वहन करना है।

वरिष्ठ समाजवादी चितंक विजय नारायण ने कहा कि तेजी से बढ़ रही असामाजिकता और अशांति के बुरे परिणामों को समझने की जरूरत है। अब हमारा गांव, गांव के लोगों का नही रहा, पहले छोटी बड़ी समस्याओं का निस्तारण आपस में मिल बैठकर कर लिया जाता था। लेकिन अब हम हर छोटे बड़े विवाद में खर्चीले कोर्ट कचहरी और थाना पुलिस की मार जलालत झेलने को अभिशप्त हैं, हमें दवाई, पढाई, रोजगार की जरूरत है तो उसी पर बात करनी होगी आपसी वैमनस्य की नहीं।

वरिष्ठ गांधी वादी एवं इतिहासकार डा मोहम्मद आरिफ ने कहा कि  भारत की खासियत विविधता में एकता है। विभिन्न धर्मों, जातियों और पंथों के लोग यहाँ एक साथ रहते हैं। भारत का संविधान अपने नागरिकों को समानता और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। शांति और सद्भाव सुनिश्चित रहें, इसके लिए कई कानून बनाए गए हैं। बनारस की बात करें, तो सैकड़ों सालों से अलग अलग तरीकों से पूजा पाठ, शादी ब्याह से लेकर अंतिम कर्म करने वाले लोग बहुत प्यार से एक ही गाँव मुहल्ले में रहते आएं हैं। सभी तरह के धर्म, जाति, विचारों से भरा पूरा छोटा सा अलमस्त शहर बनारस, दुनिया भर के लोगों को कैसे जुटा के रखता है, ये एक आश्चर्य और कौतुहल का विषय है, नफरत और बांटने की राजनीति को बनारस को नकारना ही होगा तभी यहाँ की गंगा जमुनी तहजीब की परम्परा बची रहेगी।

साझा संस्कृति मंच के पूर्व अध्यक्ष डॉ नीति भाई ने पदयात्रियों को बधाई देते हुए कहा कि यह बहुत ही उपयोगी अभियान रहा जिसके परिणाम सुखद होंगे। झारखंड से आये इप्टा से जुड़े वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता शैलन्द्र भाई ने कहा कि आज से कुछ वर्ष पहले तक अख़बार टीवी आदि में गरीब की रोजी रोटी की बात होती थी,  मजदूरों किसानों की परेशानियों की चर्चा होती थी, छात्रों की पढ़ाई और युवाओं के रोजगार की चिंता दिखती थी। मगर आज सिर्फ ये पार्टी या वो पार्टी तक सिमित होकर रह गयी है। मार - झगड़ा और चीन - पाकिस्तान करने में ही सब फंसे हुए है। मीडिया और सत्ता की इस रस्साकस्सी में समाज पिस रहा है। 

सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द मूर्ति ने कहा कि पढाई, दवाई, काम धंधा की जगह हमारा गाँव घर दिन रात ' हिन्दू-मुसलमान ' के टकराव की बात सुन रहा है। लोगों में चिड़चिड़ापन तनाव और गुस्सा बढ़ रहा है। हिन्दू - मुसलमान की गैर जरूरी बहस में फँसाकर मंहगाई की बात को अनदेखा कर दिया जा रहा है। नौकरी की मांग को अगड़ा - पिछड़ा, आरक्षण समर्थक और विरोधी के खांचे में बांटकर आपस मे ही लड़ा दिया जा रहा है. यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है. समाज को सचेत होना ही होगा। जिला पंचायत सदस्य अनिता प्रकाश ने समाज मे सभी को मिलजुल कर रहने और नफरत को नकारने का आह्वान किया।संगोष्ठी के दौरान सभी पदयात्रियों का माल्यार्पण कर अभिनंदन किया गया। सांस्कृतिक दल प्रेरणा कला मंच की टीम ने जनवादी गीतों और नाटक का प्रस्तुतिकरण किया।

अध्यक्षीय संबोधन में सर्व सेवा संघ उत्तर प्रदेश के संयोजक रामधीरज भाई ने कहा कि समाज मे  विद्यालय-चिकित्सालय, कार्यालय- देवालय तक में हो रहा भेदभाव और हिंसा एक बड़ी चुनौती है। घर से लेकर खेत तक और सड़क से ऑफिस तक चंहुओर फैले इस अफरातफरी के समय में शांति सद्भाव की बात करने की अधिक जरूरत है। संगोष्ठी का संचालन फादर आनंद और अध्यक्षता रामधीरज भाई ने की और धन्यवाद ज्ञापन  अनिता ने किया. 

कार्यक्रम में मुख्य रूप से संदीप पाण्डेय, सरिता प्रकाश, अरविंद मूर्ति, थेरो भँतो, रंजू सिंह, महेन्द्र राठौर, विनोद, रामबचन, अनिल, सुजीत, सूबेदार, सुरेंद्र, कन्हैया, सतीश सिंह, फादर जयंत, विजेता, रुखसाना, सोनी, नीति, मैत्री, पूनम, इन्दु, एकता, रवि शेखर, धनंजय, मुकेश, विनय सिंह, प्रदीप सिंह समेत सैकड़ो लोगो की भागीदारी रहीं।

गुरुवार, 25 नवंबर 2021

सामाजिक एकता का खात्मा डेमोक्रेसी को चैलेंज: प्रो. मलिक

राष्ट्रीय एकता कमजोर होने से लोकतंत्र होता है कमजोर 


 



वाराणसी 25 नवंबर (dil india live)।आज वाराणसी के नव साधना प्रेक्षागृह, तरना में राइज एंड एक्ट के तहत एक दिवसीय " वक्ताओं ने राष्ट्रीय एकता,शांति और न्याय की स्थापना को लेशांतिकर अपने-अपने विचार रखे। वक्ताओं का मत था कि राष्ट्रीय एकता के कमजोर होने से लोकतंत्र कमजोर होता है। जरूरत हमें सामाजिक ताने-बाने को मजबूती प्रदान करते हुए देश की एकता अखंडता को अक्षुण रखने का प्रयास करना चाहिए।

कार्यक्रम के मुख्यअतिथि बीएचयू के प्रो. दीपक मलिक ने कहा कि आज सामाजिक एकता का लोप हो रहा है। एकता के पाठ पढ़ाये नहीं जाते। यह डेमोक्रेसी को चैलेंज है। दलितों, महिलाओं की दशा नहीं बदली। वह आज भी बदतर हालात में जी रहे हैं। कोविड के चलते बहुत सारी प्रक्रियाएं धीमी हो गयी। भले ही बहुत सारी कोशिशें की गई। 

उन्होने कहा कि आज  इतिहास, संस्कृति बदलने वाली ताकतें सक्रिय है। हमें इन  पर चिंतन करने और अपनी सोंच में बदलाव व सकारात्मक पहल की जरूरत है।चित्रा सहस्त्रबुद्धे ने सामाजिक सौहार्द पर चर्चा में कहा कि सामान्य जीवन जी रहे स्त्री व पुरुष का जीवन सामाजिक होता है। सामाजिक सौहार्द सामाजिक जीवन की शक्ति व ज्ञान है। गंगा का उद्धरण देते हुए कहा कि जिस तरह गंगा धाराओं को एक कर आगे बढ़ती है वही प्यार, नवीनता और सृजन है। सामाजिक कार्यकर्ता लेनिन रघुवंशी ने सामाजिक बुराइयों पर कुठाराघात करते हुए कहा कि जातिवाद, वंशवाद, धर्म को लेकर होने वाली नफरत की लड़ाई बिकने वाली लड़ाई है ,इसे हमें समझना होगा ।अमीर गरीब की खाई को पाटना होगा। वंचित व दलित तबके को सामाजिक न्याय दिलाना ही बाबा साहब अंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

पत्रकार एके लारी ने कहा कि आज के दौर में हमें तय करना होगा कि हम किस मीडिया की बात करते हैं। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया की चर्चा करते हुए कहा कि मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी कहा जाता है। ऐसे में मीडिया की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह खबरों के मामले में न्याय करें। संचालन व आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम संयोजक डॉ. मोहम्मद आरिफ ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो अगर उसे लागू करने वाले ठीक नहीं होंगे तो संविधान अपना अस्तित्व खो देगा।आज स्थिति वैसी ही आ गयी है।हमें सावधान रहने की जरूरत है।

दूसरे सत्र में गंगा-जमुनी तहजीब के शायर नजीर बनारसी को उनके ज्यंती पर याद किया गया। डॉ.कासिम अंसारी ने नजीर बनारसी को मिर्जा गालिब की परम्परा का शायर बताया।उन्होंने कहा कि उनकी शायरी हो या गजल या फिर नज्म उसमें हर जहां कौमी एकजहती दिखती है.वहीं उन्होंने अपने शहर बनारस और गंगा को लेकर जो लिखा है उसकी कोई तुलना नहीं है।

प्रो.मलिक ने इस बात पर अफसोस जताया कि अपने शहर में नजीर अब बेगाने हो गये है। जिस बनारस की परम्पराओं को लेकर उन्होंने ढ़ेर सारे शेर लिखे उस बनारस का उन्हें भूलना दुखद है.

पत्रकार एके लारी ने कहा नजीर ऐसे शायर थे जिन्होंने कभी किसी तरह के सम्मान को महत्व नहीं दिया। तमाम तरह के सम्मान के प्रस्ताव उनके पास आते थे लेकिन वो हर बार ये कहकर ठुकरा देते थे कि मेरी शायरी से निकले संदेश लोगों के जेहन में रहे यही असल सम्मान है।

 तृतीय सत्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश से आये हुए अध्यापक, पत्रकार, विद्यार्थी, वकील,सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी बात कही।सत्र की अध्यक्षता करते हुए सामाजिक कार्यकर्त्री रंजू सिंह ने कहा कि आज एकता और सौहार्द की बात करने वाले हासिये पर है हमें इस जमात को बढ़ाना है।आज बिना संघर्ष किये मंजिल पर नहीं पहुंचा जा सकता है।भारत संघर्ष से ही बना है।

गोष्ठी में मो. खालिद, डा. क़ासिम अंसारी, सी बी तिवारी, अंकिता वर्मा, रामकिशोर चौहान, हृदयानंद शर्मा, लाल प्रकाश राही, बृजेश पाण्डेय, प्रतिमा पाण्डेय, प्रज्ञा सिंह, अरुण मिश्रा, मो. असलम, सुधीर जायसवाल, अब्दुल मजीद, कृष्ण भूषण मौर्य, रंजू सिंह, प्रज्ञा सिंह, अर्शिया खान,हरिश्चंद्र बिंद,आबिद शेख,शमा परवीन,हर्षित कमलेश, अयोध्या प्रसाद, रीता सिंह आदि प्रतिभागी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन लाल प्रकाश राही और धन्यवाद सुधीर जायसवाल ने किया।

तुलसी विवाह पर भजनों से चहकी शेर वाली कोठी

Varanasi (dil India live)। प्रबोधिनी एकादशी के पावन अवसर पर ठठेरी बाजार स्थित शेर वाली कोठी में तुलसी विवाह महोत्सव का आयोजन किया गया। श्री ...