नवसाधना में 'राष्ट्रीय एकता, शांति और न्याय शिविर में बोले बुद्धिजीवी
वाराणसी 20 दिसंबर (dil india live)। हर व्यक्ति के स्वायत्ता की रक्षा ही धर्मनिरपेक्षता है। कोई भी राज्य तब तक कल्याणकारी राज्य नहीं हो सकता जबतक वह धर्मनिरपेक्ष न हो। ये विचार नवसाधना कला केंद्र में 'राष्ट्रीय एकता, शांति और न्याय ' विषयक तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के दूसरे दिन वक्ताओं ने कही। अलग-अलग सत्रों में चले शिविर में बीएचयू के प्रो.आनंद दीपायन ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब किसी धर्म के खिलाफ होना नहीं है बल्कि वह हमें दूसरे धर्म का आदर और सम्मान सिखाता है। धर्मनिरपेक्षता ही लोकतंत्र की गारंटी है। इस बात को हमें बखूबी समझने की जरूरत है। जब धर्मनिरपेक्षता कमजोर होगी तो लोकतंत्र कमजोर होगा।
बीएचयू आईआईटी के प्रो.आर के मंडल ने प्रो.दीपायन की बातों को विस्तार देते हुए सवाल उठाया कि आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो वो कौन से कारण है जिसके चलते पोस्टरों से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की तस्वीर गायब है। उन्हें खलनायक के तौर पर क्यों पेश किया जा रहा है। हमें इस बात को समझने की जरूरत है। नेहरू कहते कि हमारा धर्म विश्वविद्यालय, कालेज, लेबोरेटरी, बांध और नहरों का निर्माण करना है। जबकि आज के दौर में धर्म की परिभाषा बदल गयी है। नेहरू मानते थे कि मानवीय संवेदनाओं से ही संविधान की आत्मा बच सकती है।'
बीएचयू की प्रो.वृंदा परांजपे ने 'समाज निर्माण में महिलाओं की भूमिका' विषयक सत्र में कहा कि हमें अपनी ताकत पहचाननी होगी। जब तक हम अपनी ताकत नहीं पहचानेंगे तब तक बेहतर समाज का निर्माण नहीं कर सकते। शिविर में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आये हुए 40 प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया। शिविर की विषय स्थापना और संचालन डॉ मोहम्मद आरिफ़ ने किया।
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