मरहूम अली आज़म हबीबी की बरसी मनाई गई
Mohd Rizwan
Varanasi (dil india live)। अंजुमन तबलीग अहले सुन्नत व दावते नमाज़ के पूर्व प्रबंधक मरहूम अली आज़म हबीबी (Ali Azam Habibi) की दीनी खिदमात को भुलाया नहीं जा सकता। वो आला हज़रत को मानने वाले व सूफिज़्म के सच्चे सिपाही थे। हुजूर मुजाहिदे मिल्लत के मुरीद मरहूम अली आज़म हबीबी ने हुजूर मुजाहिदे मिल्लत के मिशन नेकी और नमाज़ की दावत, दीन की खिदमत को अपनी जिंदगी का मक़सद बनाया। उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की मोहम्मदाबाद गोहना तहसील के बंदीकला (नगरीपार गांव) में जन्मे अली आज़म हबीबी शिक्षा दीक्षा के बाद जिला उद्योग केन्द्र वाराणसी (DiC Varanasi) में कार्यरत होने के चलते शुरू से ही बनारस के गौरीगंज में किराये के मकान में रहते थे। यहीं पर दीनी जज़्बे और हुजूर मुजाहिदे मिल्लत की दुआ मिली और वो हुजूर के मिशन में लग गये। दीन की खिदमत के साथ ही बच्चो की परवारिश शिक्षा दीक्षा में भी उन्होंने कोई कोताही नहीं होने दी। दीन के लिए ही बरेली शरीफ से मिले फतवे पर उन्होंने नसबंदी कानून के खिलाफ नौकरी छोड़ दी, बाद में कानून वापस हुआ तो उन्न्हें फिर से बुलाकर उक्त सरकारी नौकरी दी गई। दीन की राह में ये उनकी पहली ज़ीत समझी जा सकती है। सैकड़ों लोगों को उन्होंने दीन का रास्ता दिखाया। हुजूर मुजाहिदे मिल्लत की कायम अंजुमन तबलीग अहले सुन्नत व दावते नमाज़ के वो आजीवन प्रबंधक थे। वर्ष 2000 में जब वो जिला उद्योग केन्द्र से रिटायर हुए तो जो फंड विभाग से मिला उससे उन्होने 2002 में अर्दली बाजार में एक जमीन खरीदकर मकान बनवाया और वो वहीं सपरिवार रहने लगे।
टकटकपुर कब्रिस्तान में हुए थे सुपुर्दे खाक
वर्ष 2019 में बीमारी के बाद 24 दिसंबर, (27 रबीउल आखिर) को वो दुनिया से रुख्सत हो गये। उन्हें टकटकपुर कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक किया गया था। उनकी बरसी पर अर्दली बाजार में फातेहा का आयोजन किया गया। जिसमें घर के लोग और अज़ीज़ शामिल हुए। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि अली आज़म हबीबी हमेशा क़ौम की बेहतरी, बेदारी के लिए जीते रहें। किसी का कभी बुरा नहीं चाहा। किसी का हक नहीं मारा। हमेशा दूसरों की वो मदद के लिए तत्पर रहते थे।


कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें