शायर और कवि प्रेम और सौहार्द की रोशनी से अंधकार को चीर देते है-प्रो. गुरु चरण सिंह
मुशायरे की पाकीज़गी को फिर से कायम करने की जरूरत-याकूब यावर
Varanasi (dil india live). वाराणसी की Ganga तट की पावन व जीवंत फिज़ाओं में, जहां सदियों से ज्ञान और साहित्य का दीप प्रज्वलित है, वहां मशहूर कवि अहमद आज़मी (Ahmad Azmi) की नवीन काव्य-कृति “क़तरा-ए-शबनम” का भव्य आयोजन पराड़कर स्मृति भवन में हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर गुरुचरण सिंह (Pr. Gurucharan Singh) ने किया। जबकि विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर डॉ. याकूब यावर (Dr Yaqoob Yawar) थे। शहर के समस्त मत-मतांतर और विचारधाराओं से जुड़े कवि, साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार और विद्वान इस आयोजन में उपस्थित थे। यह सजीव संगम स्वयं यह प्रमाणित करता था कि अहमद आज़मी का सृजन और उनके मित्रमंडल कितने व्यापक और विविध हैं।
दिलों को जोड़ती है अहमद आज़मी की कविताएं
प्रोफेसर गुरुचरण सिंह ने कहा कि, “जब राजनीति के वातावरण में वैमनस्य और कटुता की आंधियां उठती हैं, तब शायर और कवि ही वह दीपक होता है, जो प्रेम और सौहार्द की रोशनी से अंधकार को चीर देता है। अहमद आज़मी ऐसे ही दीपक हैं, जिनकी कविताएं दिलों को जोड़ती हैं, तोड़ती नहीं।”
हिंदुस्तानी संस्कृति की आत्मा से परिपूर्ण
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर डॉ. याकूब यावर ने अहमद आज़मी की रचनाओं को हिंदुस्तानी संस्कृति की आत्मा से परिपूर्ण बताया। इस दौरान उन्होंने कहा कि आज दुनिया में बड़ा बदलाव महसूस किया जा रहा है। लोगों को पढ़ने की बजाय देखने और सुनने की आदत ज्यादा होती जा रही है। किताबों से लोग दूर हो रहे हैं ऐसे में उर्दू अदब की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि ज्यादा अच्छा लिखा और पढ़ा जाए। उन्होंने कहा कि आज मुशायरे अदब से इतर हो रहे हैं ऐसे में मुशायरे की पाकीज़गी को फिर से कायम करने की जरूरत है। यह जिम्मेदारी अहमद आज़मी जैसे शायर बखूबी निभा सकते हैं। अहमद आज़मी के काव्य में एकता, सौहार्द और पारस्परिक सम्मान का ऐसा पैग़ाम है जो समाज को जोड़ता है और मानवता को सुदृढ़ करता है। उन्होंने आगे कहा कि यह कार्यक्रम केवल एक काव्य-संग्रह का विमोचन नहीं था, बल्कि प्रेम, एकता और सांस्कृतिक सामंजस्य के प्रति नवीनीकृत संकल्प की अभिव्यक्ति है।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि डॉ. कमालुद्दीन शेख ने अहमद आज़मी को दिल की गहराइयों से बधाई दी और कहा कि जैसे उनकी शायरी हमेशा पाठकों और श्रोताओं के हृदय में जगह बनाती रही हैं, उसी तरह उनका यह नवीन संग्रह भी जनता में समान रूप से सराहा जाएगा।
प्रोफेसर डॉ. मोहम्मद आरिफ़ (
Dr Mohmmad arif) ने कहा कि अहमद आज़मी की कविता में घर और आंगन की बातें, पुत्र और माता के अमर संबंध, समाज का दर्द, राष्ट्र और देशभक्ति की अनुभूति और समकालीन परिस्थितियों का चित्रण सब एक साथ प्रभावशाली ढंग से प्रकट होता है। यही कारण है कि आज हम इसे “क़तरा-ए-शबनम” के रूप में देख रहे हैं।
प्रोफेसर इशरत जहां (Dr ishrat jahan) ने अहमद आज़मी की कविता की सरलता और प्रभावशाली प्रस्तुतियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि पिछले 30–35 वर्षों से उनकी रचनाएं जनता और विद्वानों के हृदय में स्थायी स्थान बनाए हुए हैं।
इस अवसर पर चकाचौंध ज्ञानपुरी, शंकर कैमूरी ने भी अहमद आज़मी की रचनाओं पर अपने विचार रखे। सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन “क़ालिब फाउंडेशन”, मिर्ज़ापुर के अध्यक्ष डॉ. शाद मशरकी और सचिव ज़मज़म रामनगरी ने अहमद आज़मी को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया और उन्हें सर्जनात्मक प्रयासों के लिए बधाई दी।
रसम-ए-एजरा के अंतिम चरण में एक भव्य मुशायरे का आयोजन भी हुआ, जिसमें शहर वाराणसी और आसपास के प्रसिद्ध शायरों और कवियों ने अपना काव्य प्रस्तुत किया। प्रमुख कवियों में आबिद हाशमी, डॉ. शाद मशरीकी, ज़मज़म रामनगरी, आलम बनारसी, दमदार बनारसी, शमीम गाज़ीपुरी, समर गाज़ीपुरी, सलीम शिवालवी, निज़ाम बनारसी, अज़फर अली, डॉ. सुरेश कुमार अकेला, डॉ. नसीमा निसा और डॉ. रीना तिवारी ने अपने अशरार से लोगों को बांधे रखा।
अल मुबीन अवार्ड से किया सम्मानित
क़तरा-ए-शबनम के प्रकाशक खान ज़ियाउद्दीन मोहम्मद क़ासिम ने उपस्थित अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर गुरचरण सिंह एवं मुख्य अतिथि प्रोफेसर याकूब यावर के अतिरिक्त विशिष्ट अतिथियों को अल मुबीन अवार्ड से सम्मानित किया और आश्वासन दिया कि भविष्य में भी कवियों और कलाकारों की पुस्तकों के प्रकाशन में वे इसी निष्ठा और समर्पण के साथ योगदान देंगे।
इनकी रही खास मौजूदगी
हाफिज जमाल नोमानी, मतीन सासारामी, कार्यक्रम संयोजक ज़मज़म रामनगरी, नोमानी हसन खां, इमरान हसन खां, इस्तकबाल कुरैशी बाबू, डा. एहतेशामुल हक़, एहतेशामुलल्लाह सिद्दीकी, निज़ाम बनारसी, रेयाज अहमद, नदीम एडवोकेट, तारिक सिद्दीकी एडवोकेट आदि मौजूद थे।