बुधवार, 28 अप्रैल 2021

दुनिया जिसे भूख कहती है, इस्लाम ने उसे इबादत बना दिया


रमज़ान का पैग़ाम-15 

(28-04-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। दुनिया जिस भूख से परेशान होती है उसी भूख को इस्लाम ने इबादत बना दिया। इस्लाम भूखे प्यासे रहकर अल्लाह की इबादत के ज़रिये रोज़ेदारों को यह दिखाना चाहता है कि भूखे और प्यासे रहने का क्या दर्द है। जो गरीब है जिनके पास खाने को खाना नहीं पीने के लिए पानी नहीं हैमुफलिसी में जिन्दगी गुज़ार रहे हैं वो किस तरह अपनी जिन्दगी काट रहे हैं मोमिन इस बात को रोज़ा रखकर समझता है और रमज़ान में उन भूखे प्यासे जिन्दगी गुज़ारने वालेगरीबों मिसकीनों के लिए इस्लामी टैक्स ज़कात और फितरा निकालता है ताकि उनकी भूख और प्यास तो मिटे ही साथ ही उन गरीबों की ईद भी मन जाये। उलेमा कहते हैं कि तमाम इबादतों में तो इंसान दिखावा कर सकता है मगर रोजा ही सिर्फ एक ऐसी इबादत है जिसमें किसी तरह का कोई दिखावा नहीं कर सकता। यही वजह है कि रब को राज़ी करने के लिए तमाम छोटे-छोटे बच्चे भी लाख मना करने के बावजूद रोज़ा रखते हैं। सिर्फ खाने-पीने से बाज रहने का नाम ही रोज़ा नहीं हैबल्कि रोज़ा रखने वाला तमाम बुराइयों से भी दूर हो जाता है। अल्लाह और उसके रसूल के बताए रास्तों पर अमल करते हुए पूरा महीना कठोर इबादतों में गुज़ारता है। रोज़ादार को चाहिये कि वो रोज़े में जैसे खाना-पीना छोड़ता है वैसे ही झूठगीबतचुगलीबदग़्ाुमानीइल्ज़ाम तराशी और बद ज़ुबानी भी छोड़ दे। पैगम्बरे इस्लाम नबी-ए-करीम हजरत मोहम्मद मुस्तफा (स.) ने फरमाया कि अगर कोई लड़ाई करने पर तुमसे अमादा रहे तो तुम उससे कह दो कि में रोज़े से हूं। मैं लड़ाई-झगड़ा नहीं चाहता। इस्लामी किताबों में आया है कि जो रमज़ान का रोज़ा रखेगाउसे पहचानेगा और जिन गुनाहों से बचना चाहिये उससे बचाआज़ा का रोज़ा रखा तो उसकी वो गुनाह जो उसने पहले की है उसे खुदा माफ कर देगा। इसलिए रोज़ेदार का रोज़ा ढाल का काम करता है। तभी तो हदीस में है किजो बुरी बात को कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो उसके भूखा-प्यासा रहने की रब को कोई ज़रूरत नहीं है। बल्कि रब तो बंदे को भूखा प्यासा रोज़ा रखने के लिए बतौर इम्तेहान यह देखना चाहता है कि मेरा बंदा मुझ से कितनी मोहब्बत करता है जो रब और उसके रसूल से मोहब्बत करता है रब उससे मोहब्बत करता है। ऐ अल्लाह तू अपने हबीब के सदके में हम सब रोज़ेदारों को इबादत करनेरोज़ा रखने की तौफीक दे..आमीन।

 

           डा. शाह मेराज

{सदरइस्लामिक हैंडवाराणसी}

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