इबादत ही नही अदब भी सिखाता है रमज़ान
वाराणसी(दिल इंडिया लाइव)। रमज़ान इबादत ही नही अदब भी सिखाता है, रमजान का महीना बेशुमार नेमतो वाला है। इस पूरे महीने एक रोज़ेदार नफ्स पर कंट्रोल के साथ ही इबादत और सब्र करता है। नबी (स.) ने फरमाया है कि ये महीना सब्र का है और सब्र का बदला जन्नत है। इस महीने के अंदर बाल-बच्चों और नौकरों से ज्यादा मेहनत व कड़े काम न लो, यह महीना इबादत के साथ ही अदब व एहतराम का भी महीना है। इस महीने में जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं और जहन्नुम के दरवाज़े बंद कर दिये जाते हैं। रमज़ान में अल्लाह के रसूल का हुक्म है कि बंदियों को इस महीने में रिहा कर दो, रमज़ान में झगड़ा और फसाद से सख्ती से बचो। मोमीन को चाहिए कि मारपीट, बहस, लड़ाई-झगड़ा छोड़कर अमन और मिल्लत की नज़ीर पेश करे। जैसा हमारा रब चाहता है हमारे नबी (स.) चाहते हैं। नबी (स.) ने इरशाद फरमाया कि कोई रोज़े की हालत में गाली दे दे या तुम्हें मारने पर अमादा हो जाये तो उसे बता दो कि मैं रोज़ा हूं और मैं झगड़ा नहीं चाहता। रोज़ेदार रमज़ान का रोज़ा रख कर जहां ज़ाति तौर पर अपनी इस्लाह करता है वहीं वो एक अच्छे मोआशरे यानी बेहतर समाज भी बनाता है। ऐसे तो हर महीने हर दिन हर घंटे इंसान को पड़ोसियों के साथ, दूसरे मज़हब के साथ नरमी का हुक्म है मगर रमज़ान में खुसूसियत के साथ एक परिवार दूसरे परिवार का हक अदा करें, पड़ोसी मुसलमान हो या दूसरे मजहब का उसके साथ नरमी बरती जाये। यूं तो हर दिन झगड़ा करना हराम है मगर इस बरकत वाले महीने की बरकत हासिल करने के लिए पूरे महीने रोज़दार को अपनी और दूसरों को तकलीफ पहुंचाने वाली हरकतों से बचना चाहिए। और अपनी पिछली गुनाहों से माफी मांगनी चाहिए। यह महीना बक्शीश का महीना है। इस महीने में जहां पर उनके गुनाहों की माफी होगी वहीं रोज़ा उसकी गुनाहों के लिए कफ्फारा भी है। अल्लाह हम सबको रमज़ान की नेयमत अता करे, और सबको ईद की खुशियां दे.. आमीन
मुफ्ती मौलाना हारुन रशीद नक्श्बंदी
{प्रमुख उलेमा वाराणसी}
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