बुधवार, 4 जून 2025

Dr Anshu Shukla को शान-ए-काशी अवार्ड

"शुक्ला मैरिटल एटिट्यूड बैटरी" का किया है डा.अंशु ने विकास

शोध के लिए हो रहा कई देशों में इसका उपयोग 

Varanasi (dil India live). वसंत कन्या महाविद्यालय में 2005 से कार्यरत डॉ. अंशु शुक्ला ने अपने लंबे शैक्षिक करियर में उत्कृष्ट उपलब्धियां हासिल की हैं। डॉ. अंशु शुक्ला की उपलब्धियां और योगदान शैक्षिक जगत में एक प्रेरणा के स्रोत हैं। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण ने उन्हें एक उत्कृष्ट शैक्षिक व्यक्तित्व बनाया है।और इसी के लिए उन्हें आज संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आईएजे की तरफ़ से शान-ए-काशी अवार्ड से नवाजा गया। 


अपनी प्रारंभिक शिक्षा बलिया के सरस्वती शिशु मंदिर एवं जीजीआईसी से पूर्ण करने के बाद गोविंद बल्लभ पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी से बीएससी और एमएससी करने के बाद उन्होंने बीएचयू से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. शुक्ला ने अपने शोध और लेखन के माध्यम से शैक्षिक जगत में अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और स्कोपस जर्नल्स में 32 पेपर प्रकाशित किए हैं, साथ ही 3 पाठ्य-पुस्तकें और 3 संपादित पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं। इसके अलावा, उन्होंने 10 पुस्तक अध्याय भी लिखे हैं।


डॉ. शुक्ला की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है "शुक्ला मैरिटल एटिट्यूड बैटरी" का विकास, जिसका उपयोग शोध के लिए कई देशों में किया जा रहा है। इस मनोवैज्ञानिक उपकरण से अविवाहित युवाओ के विवाह के प्रति अभिवृत्ति को मापा जा सकता है । इनहोंने 100 से अधिक सम्मेलनों में शोध पत्र पढ़े हैं और कई प्लेटफार्मों पर रिसोर्स पर्सन के रूप में कार्य किया है। लगभग 36 जगहों पर उन्हें आमंत्रित व्याख्यान देने का अवसर मिला है।

डॉ. शुक्ला कई विश्वविद्यालयों की चयन समिति और बोर्ड ऑफ स्टडीज की सदस्य भी है। उन्होंने एनसीआरआई और आईसीएसएसआर के दो प्रोजेक्ट्स को सफलतापूर्वक पूरा किया है और 04 शोध निर्देशन के साथ लगभग 60 पीजी शोध प्रबंध कराए हैं। डॉ. शुक्ला को उनके कार्यों के लिए 16 क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उन्होंने राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के लिए अध्ययन सामग्री भी तैयार की है और एमएचपीएसएस मिशन शक्ति और वुमन हेल्पलाइन 1090 के लिए काउंसलर के रूप में भी कार्य किया है।


ऐकडेमिक जगत के साथ सामाजिक क्षेत्र में भी समान रूप से सक्रिय है । २००२-३ में सामुदायिक सहयोग से दो गांवो में आंगनवाड़ी की स्थापना की जिसको बाद में सरकार द्वारा भी मान्यता मिली। इनका मानना है कि अगर किसी को मछली खाने को दी जाए तो वो १-२ दिन में खा लेगा लेकिन अगर उसको मछली पकड़ने का कौशल सिखा दिया जाए तो वो उसकी आजीविका बन सकती है। अर्थात् व्यक्ति को अगर हुनरमंद बनाया जाए तो आजीविका की समस्या और सरकार पर निर्भरता को कम किया जा सकता है। कई सामाजिक सरोकार के कार्यो और संस्थाओं से जुड़ कर सामाजिक उत्थान एवम् कौशल विकास के लिए कार्य करने को सदा तत्पर रहती है। कौशल परक शिक्षा की घोर पक्षधर है । 

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