नबी-ए-करीम (स.) सादगी से मनाया करते थे ईद
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं होता मगर वो रमज़ान से इसलिए खुश होते हैं कि रमज़ान खत्म होते ही ईद आयेगी, और ईद आने का मतलब है कि ईदी मिलेगी। ईद का जश्न रमज़ान के 29 या फिर 30 वीं तारीख का चांद देखे जाने के बाद अगली सुबह ईद की नमाज़ के साथ एक शव्वाल को शुरु होता है। यह एक ग्लोबल पर्व है। पूरी दुनिया इस त्योहार के अल्लास में कई दिन तक डूबी रहती है। मगर आपने कभी सोचा है प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद (स.) ईद कैसे मनाते थे।
नबी-ए-करीम (स.) ईद सादगी से मनाया करते थे। इसलिए इस्लाम में सादगी से ईद मनाने का हुक्म है। एक वाक्या है, जिससे सभी को बड़ी सीख मिल सकती है। एक बार नबी-ए-करीम हजरत मोहम्मद (स.) ईद के दिन सुबह फज्र की नमाज़ के बाद घर से बाज़ार जा रहे थे। कि आपको एक छोटा बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया। नबी (स.) ने उससे कहा आज तो हर तरफ ईद की खुशी मनायी जा रही है ऐसे में तुम क्यों रो रहे हो? उसने कहा यही तो वजह है रोने की, सब ईद मना रहे हैं मैं यतीम हूं, न मेरे वालिदैन है और न मेरे पास कपड़े और जूते-चप्पल के लिए पैसा। यह सुनकर नबी (स.) ने उसे अपने कंधों पर बैठा लिया और कहा कि तुम्हारे वालिदैन भले नहीं हैं मगर मैं तुम्हे अपना बेटा कहता हूं। नबी-ए-करीम (स.) के कंधे पर बैठकर बच्चा उनके घर गया वहां से तैयार होकर ईदगाह में नमाज़ अदा की। जो बच्चा यतीम था उसे नबी-ए-करीम (स.) ने चन्द मिनटों में ही अपना बेटा बनाकर दुनिया का सबसे अमीर बना दिया। इसलिए ईद आये तो सभी में आप भी खुशियां बांटे। इसे ईद-उल-फित्र इसलिए कहते हैं क्यों कि इसमें फितरे के तौर पर 2 किलों 45 ग्राम गेंहू जो हम खाते हो उसके दाम के हिसाब से घर के तमाम सदस्यों को सदाका-ए-फित्र निकालना होता है। दरअसल ईद उसकी है जिसने रमज़ान भर इबादत कि और कामयाबी से रमज़ान के पूरे रोज़े रखे।
हाफिज़ नसीम अहमद बशीरी
(फाईल फोटो)
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