सोमवार, 3 मई 2021

इमाम जाग रहा है ज़माना सोता है…

हज़रत अली की शहादत पर हुई मजलिसें

वाराणसी(दिल इंडिया लाइव)। खुदा के सजदे में साजिद शहीद होता हैइमाम जाग रहा है ज़माना सोता हैकुछ ऐसे ही मिसरे फिज़ा में बुलंद हुए। मौका था शेरे खुदा मुश्किलकुशा हज़रत अली की शहादत की याद में शहर भर में हुई मजलिस का। कोविड के चलते विभिन्न इलाकों से उठने वाला ताबूतअलम का जुलूस इस बार नहीं निकाला गया, मगर सोश्ल डिस्टेंसिंग के साथ लोगों ने घरों में मजलिस का एहतमाम किया। शाम में अंजुमन ज़ाफरियाअंजुमन अज़ादारे हुसैनी, दोषीपुराअंजुमन नसीरुल मोमीनीनअंजुमन आबिदिया चौहट्टालाल खां की ज़ेरे निगरानी इस बार जुलूस नहीं निकला। हर बार यह जुलूस तेलियानालामुकीमगंजजलालीपुरा आदि इलाकों से होकर सदर इमामबाड़ा लाट सरैया पहुंचता था तो शिवाला स्थित मस्जिद डिप्टी जाफर बख्त से ताबूत का जुलूस उठाया जाता था जो शिवाला घाट पहुंच कर सम्पन्न होता था। जुलूस की ज़ियारत करने के लिए जगह-जगह लोगों का मजमा जुटता था।

दर्द भरे नौहों के बोल पर हुआ मातम

मजलिस में शामिल लोगों ने दर्द भरे नौहों के बोल पर मातम का नज़राना पेश किया। मजलिस में उलेमा ने कहा कि मौला अली वो शक्सीयत थे जिन्होंने अपनी शहादत के वक्त भी कहा कि मैं कामयाब हो गया। क्यों कि वो काबा में पैदा हुए और मस्जिद में शहीद हुए।

काली महाल मस्जिद में मजलिस को खेताब करते हुए शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता सैयद फरमान हैदर ने कहा कि अली बहादुरीशुजातइबादतशहादतसब्रइल्म और खुद्दारी का नाम है। हज़रत अली कहा करते थे कि दुश्मन को उतनी ही सजा दो जिसका वो हक़दार है। यही वजह है कि जब उन पर हमला करने वाला कातिल उनके सामने लाया गया तो उन्होंने हजरत इमाम हसन से कहा कि हसन इसकी रस्सी खोल दो और जो शर्बत उनके लिये लाया गया था उसे उन्होंने अपने दुश्मन को दे दिया।

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