रमज़ान का पैग़ाम (04-05-2021)
काश रमज़ान कुछ दिन और होता तो इबादत का और मौका मिलता
वाराणसी (अमन/दिल इंडिया लाइव)। मुकद्द्स रमज़ान जैसे-जैसे रुखसत होने लगता है। रातों की इबादतें बढ़ जाती है। खुदा के नेक बंदे उन इबादतों में तड़प उठते हैं। कि काश रमज़ान कुछ दिन और होता तो इबादत का और मौका मिल जाता। पता नहीं अगले रमज़ान में इसका मौका मिले या न मिले। एक तरफ ईद की तैयारियां चल रही होती है। लोग बाज़ारों का रुख करते हैं मगर खुदा के नेक बंदे रब से यही दुआ करते हैं कि काश मेरे रब जिंदगी में रमज़ान की नेयमत और मिल जाती तो इबादत का और मौका मिलता। दुआ करते-करते वो बेज़ार होकर रो पड़ते हैं। दिल इण्डिया कि एक रिपोर्ट..।
रमज़ान जैसे-जैसे रुखसत होने लगता है। रातों की इबादतें बढ़ जाती है। खुदा के नेक बंदे उन इबादतों में तड़प उठते हैं। कि काश रमज़ान कुछ दिन और रुक जाता तो थोड़ा और इबादत का मौका मिल जाता। पता नहीं अगले रमज़ान में इबादत का मौका मिले या न मिले। हम हयात में हों न हो। एक तरफ ईद की तैयारियां चल रही है। लोग बाज़ारों का रुख कर रहे हैं। बंदा पूरे महीने कामयाबी से रोज़ा रखने के बाद अपनी कामयाबी की उनमें खुशी तलाश रहा है, वहीं कुछ ऐसे भी खुदा के नेक बंदे हैं जो इन दुनियावी मरहले से दूर होकर अपने रब से रमज़ान के आखिरी वक्त तक दुआएं मांगता है। लोगों की मगफिरत के लिए पूरी-पूरी रात जागकर इबादत करता है। इस्लामी मामलों के जानकार मौलाना अमरुलहुदा कहते हैं रमज़ान का आखिरी अशरा रोज़ेदारों के लिए खासी अहमीयत रखता है। इसमें ताक रातों में खूब इबादत मोमिनीन करते है ताकि उनकी मगफिरत तो हो ही साथ ही जो लोग दीन से भटक गये हैं, जो रोज़े और नमाज़ की अहमीयत नहीं समझ सके वो नादान भी सही राह पर आ जायें।
रोने-गिड़गिड़ाने वाला खुदा को बेहद पसंद
छोटी मस्ज़िद औरंगाबाद के इमाम मौलाना निज़ामुद्दीन चतुर्वेदी कहते हैं कि खूब इबादत के बाद भी खुदा के नेक बंदे सिर सजदे में और हाथ इबादत में उठाये खुदा से यही दुआ करते हैं कि इस बार इबादत ज्यादा नहीं कर पाया ऐ मेरे रब जिंदगी में रमज़ान की नेयमत और मिल जाये ताकि और इबादत का मौका मिले। वो बताते हैं कि दुआओं के दौरान ज़ार-ज़ार रोने और गिड़गिड़ाने वाला खुदा के नज़दीक बेहद पसंद किया जाता है। इसलिए खुदा के नेक बंदे रमज़ान की रुखसती पर दुआ के वक्त रो पड़ते हैं।
रोज़ा न रखने वाले पर अज़ाब नाज़िल होगा
मदरसा फारुकिया के कारी शाहबुददीन कहते हैं हममें से कई ऐसे भी बंदे हैं जो रमज़ान महीने की अहमीयत नहीं समझ पाये, रात की इबादत तो दूर दिन में ही वो चाय खाने और पान की दुकानों को आबाद किये रहते हैं। हदीस और कुरान में आया है कि ऐसे लोगों पर खुदा का अज़ाब नाज़िल होगा।
हाफिज तहसीन रज़ा ग़ालिब कहते है कि जिन लोगों ने रब के महीने की अहमीयत नहीं समझी। जो दिन रोज़े व रात इबादत में गुज़रनी चाहिए उसे ज़ाया किया। शर्म आती है ऐसे लोगों पर जो खुद को मुसलमान तो कहते हैं मगर उनमें मोमिन की कोई
पहचान नहीं नज़र आती। रमज़ान में मोमिनीन ऐसे लोगों के लिए भी दुआएं करते हैं। उधर शिया जामा मस्ज़िद के प्रवक्ता सैयद फरमान हैदर रोज़दारों को सुझाव देते हैं कि जो कुछ भी नेकिया रमज़ान में कमाया है उसे ईद में लूटा न दें, क्यों कि रमज़ान की नेकियां ही साल भर इंसान को बुरे कामों और बुराईयों से बचाती हैं। रमज़ान में कमाई नेकियों को संजो कर रखे।
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