बुधवार, 13 जनवरी 2021

लोहड़ी क्या है, जाने लोहड़ी की कहानी



दुल्ला भट्टी वाला हो...गीत पर झूमेगा सारा जहां

नगाड़े की थाप पर होगा, गिददा व भांगड़ा

वाराणसी (दिल इंडिया)। पंजाब समेत देश दुनिया को रोमांचित कर देने वाला पर्व लोहड़ी, आज रात 13 जनवरी को देशभर में धूमधाम से मनाया जाएगा। सिखो और पंजाबियों का यह पर्व दुनिया भर में रहने वाले भारतवंशी धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह पर्व गली मुहल्लों से लेकर पंचसितारा होटलों तक में पंजाबी लिवास पहनकर सेलीब्रेट किया जाता है। यही वजह भी है कि लोहड़ी पंजाब में मनाई जाये या देश दुनिया के किसी भी हिस्से में, मगर पूरा नज़ारा पंजाब का ही देखने को मिलता है। लेकिन बहुत सारे लोग हैं जो नहीं जानते हैं कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है। दिल इंडिया आपको यहाँ बताने जा रहा है लोहड़ी की पूरी कहानी, एक रिर्पोट...।

क्या है लोहड़ी

लोहड़ी की कहानी उस दिलदार डाकू दुल्ला से शुरु होती है, जो  दूसरों की मदद करता था। एक बार दुल्ला के कुछ डाकू साथी अमीरों को लूटा और विवाहिता को भी लूट लिया। उन्होंने नव-विवाहिता को उठाकर दुल्ला के सामने पेश भी किया। जिससे दुल्ला डाकू काफी नाराज हुआ और उसे उसके पिता को लौटाने को कहा। लेकिन, लड़की के पिता ने उसे स्वीकार ही नहीं किया। फिर ससुराल वालों को देने गए तो वे भी उसे अपनाने से इतराने लगे। ऐसे में डाकू ने उसी दिन से विवाहिता को अपनी बेटी के रूप में अपना लिया और उसकी शादी धूमधाम से की। उसी दिन नई फसल हुई थी जिसका सभी ने उत्सव मनाया। उसी दिन से लोहड़ी मनाने की परंपरा शुरू हो गयी। एक अन्य मान्यता है कि दुल्ला दुष्ट अमीरों से धन लूट कर गरीब लड़कियों की शादी कराता था, जिससे गरीब गिददा और भांगड़े की खुशी में डूब जाते थे। यही वजह है जिसकी आज नई शादी होती है या जिसके घर बच्चा होता है लोहड़ी उसी की होती है।  

लोहड़ी के ये हैं पारंपरिक गीत

लोहड़ी के अपने पारंपरिक गीत भी हैं, जो आज तक गाया जाता है। जिसके बोल है, सुंदरिए मुंदरिए तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो.....

लोहड़ी पर गुरुद्वारो में सजता है दीवान

लोहड़ी पर गुरुद्वारों में विशेष तौर पर दीवान सजाया जाता है। ऐतिहासिक गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग, वाराणसी के प्रबंधक सरदार महेन्द्रर सिंह ने कहते हैं कि लोहड़ी पर गुरुद्वारो में भी दीवान सजाया जाता है। वाराणसी में इस बार गुरुद्वारा नीचीबाग में लोहड़ी पर धमाल होगा। रात में सिख समाज के लोग अलाव जलाकर इसके चारों ओर भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करेंगे। खास बात यह है कि लोग सामुहिक तौर पर गीत गाकर डांस तो करते ही साथ ही साथ आग में रेवड़ी, मूंगफली, मखाना जैसे भोग भी डालते हैं और खुब खुशियां मनाते हैं।

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