मंगलवार, 18 जनवरी 2022

कथक सम्राट बिरजू महाराज का काशी से था खास जुडाव

2019 में अंतिम बार आये थे काशी, बच्चों को दिया था कथक की टिप्स

नटराज संगीत एकेडमी के प्रोग्राम में करना था उन्हें मार्च में शिरकत 





वाराणसी 17 जनवरी (dil india live)। लखनऊ घराने के मशहूर कथक कलाकार पंडित बिरजू महाराज का अंतिम बार मार्च में बनारस आने का ख्वाब अधूरा ही रह गया। वो 2003 से लगतार हर साल बनारस आते थे और यहां बच्चों को कथक की बारिकियों से रुबरु कराते थे, मगर कोविड के चलते 2019 के  बाद बनारस आना उनके लिए ख्वाब सरीखा हो गया। बनारस से पं बिरजू महाराज का गहरा लगाव था। उनकी बनारस में एक मात्र शिष्या संगीता सिन्हा कहती वो भले ही लखनऊ में पैदा हुए मगर वो बनारस से हमेशा जुड़े रहे। वह हर साल नटराज संगीत एकेडमी में आकर संगीत की नई पौध को कथक की बरीकियों से रुबरु कराते थे। पिछले दिनों लखनऊ और दिल्ली में मैं उनके साथ थी। बच्चों को कथक की बरीकियों से रुबरु कराने के लिए मार्च में उन्हें नटराज संगीत एकेडमी आने के लिए मैं तैयार करके आयी थी मगर ईश्वार को तो कुछ और ही मंजूर था। यह अनहोनी हो गई।, यह कहते हुए संगीता सिन्हा की आंखे भर आयी। उन्होने कहा कि कथक के जादूगर थे गुरुजी। उनका बनारस आने का सपना अधूरा ही रह गया।  

पंडित बिरजू महाराज का भले ही लखनऊ के कालिका-बिन्दादिन घराने से रिश्ता रहा हो, लेकिन धर्म और संगीत की नगरी बनारस से उनका संगीत के अलावा पारिवारिक रिश्ता भी था। पहले ससुराल फिर समधियाना दोनों उन्होंने बनारस में ही बनाया। यही वजह है कि उनके निधन की खबर से बनारस स्तब्ध है। कथक सम्राट बिरजू महाराज के आंखों की मुद्रा से राधा-रानी की कलाओं की पेशकश हो या फिर तबले की थाप संग पैरों की जुगलबंदी, इसका जैसा अद्भुत मिलन पंडित बिरजू महाराज के नृत्य में देखने को मिलता था, वो खुद में बेहद खास था। गिरिजा देवी के गुरु पंडित श्रीचंद्र मिश्र की बेटी अन्नपूर्णा देवी बिरजू महाराज की पत्नी थीं। कबीरचौरा संगीत घराने वाली गली में पंडित बिरजू महाराज का ससुराल है। वहीं, ख्यात सारंगीवादक पंडित हनुमान प्रसाद मिश्र के पुत्र पंडित साजन मिश्र के साथ बिरजू महाराज की बेटी कविता का विवाह हुआ है। उनके एक भाई ने बनारस घराने के ख्यात पंडित रामसहाय की शागिर्दी में तबला वादन सीखा था। पंडित बिरजू महाराज का खुद बनारस से बहुत गहरा जुड़ाव था। बनारस के राजेन्द्र प्रसाद घाट, अस्सी घाट पर होने वाले कार्यक्रम हो या फिर देश भर के संगीतकारों की जुटान का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण संकट मोचन संगीत समारोह। इन आयोजनों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पंडित बिरजू महाराज बनारस जरूर पहुंचते थे। काशी में होने वाले ध्रुपद मेले में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहता था। यही वजह है कि प्रतिष्ठित अवार्ड पद्म विभूषण से सम्मानित 83 वर्षीय बिरजू महाराज ने दिल्ली के साकेत हॉस्पिटल में अंतिम सांस लेने की खबर काशी पहुंचते ही मानो संगीत घराने में कोहराम मच गया। 

सीखने और सीखाने की अदभूत ललक

संगीत सिन्हा बताती है कि बिरजू महाराज में सीखने और सीखाने की अदभूत ललक थी। वो एक शानदार ड्रमर भी थे, जो आसानी और सटीकता के साथ लगभग सभी ड्रम बजाते थे। उन्हें खासतौर पर तबला और नाल बजाने का शौक था। वह  सितार वाद्य, सितार, सरोद, वायलिन, सारंगी आसानी से बजा लेते थे। उन्होंने इन सबका किसी औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया। वो सदैव कथक के प्रमोशन के लिए परेशान रहते थे। यही वजह है कि छोटे-छोटे बच्चों के प्रोग्राम में भी मेरे बुलाने पर काशी हर साल आते थे।

 अच्छन महाराज थे बिरजू महाराज के गुरु

बिरजू महाराज के अच्छन महाराज व लच्छू महाराज थे। अच्छन महराज कोईऔर नहीं बल्कि उनके पिता थे, तो लच्छू महाराज चाचा। उनकी मां भी उनकी गुरु की श्रेणी में ही आती थीं। यूं तो इनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था, जो लखनऊ घराने से थे और अच्छन महाराज के नाम से जाने जाते थे। पिता ने बचपन से ही अपने यशस्वी पुत्र को कला दीक्षा देनी शुरू कर दी थी। ठुमरी सम्राट महादेव प्रसाद मिश्र के पुत्र पं. गणेश मिश्र कहते है कि बिरजू महाराज को कथक विरासत में मिली थी। अच्छन महाराज के निधन के बाद उन्होने कथक नृत्य प्रशिक्षण लेना शुरू किया। आज बिरजू महाराज भले ही हम लोगोें के बीच नहीं है मगर उनकी कला और उनके काम सदैव हम लोगों को उनकी याद दिलाती रहेगी। उनका जाना वास्तव देश दुनिया के संगीत प्रेमियों के लिए सदमे जैसा है।


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