16 दिवसीय ऑनलाइन राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न
वाराणसी, 27 नवम्बर(dil india live)। डीएवी पीजी कॉलेज के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के तत्वावधान में आयोजित प्राचीन भारतीय संस्कृति के विविध आयाम विषय पर चल रहे 16 दिवसीय राष्ट्रीय ई-कार्यशाला के समापन सत्र में शनिवार को जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के प्रो वाइस चान्सलर प्रो. दूर्ग सिंह चौहान ने कहा कि संस्कृति के अवशेषों से ही राष्ट्र की पहचान निर्धारित होती है। भारतीय संस्कृति दुनिया में सबसे अलग है जिसमें सामूहिकता का भाव निहित है। संस्कृति के सम्यक विकास के कारण शान्ति की संभावनाएॅ और प्रबल हुई हैं सामूहिक सहअस्तित्व के भाव से ही विश्व का विकास संभव है।
मुख्य वक्ता डेक्कन कॉलेज एण्ड पीजी रिसर्च इन्सट्यिूट, पुणे, महाराष्ट्र के पूर्व कुलपति प्रो. बसन्त शिन्दे ने कहा कि हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने दुनिया को नगरों के निर्माण की सभ्यता सिखाई। प्रो. शिन्दे ने कहा कि सैन्धव सभ्यता ने विश्व को ईंटों की विशेष व्यवस्था से संयोजन एवं जोड़ने की कला दी, जिसके आधार पर बाद में बड़े भवनों और इमारतों का निर्माण संभव हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि इतिहास लेखक को सभी प्रकार के श्रोतों का यथासंभव प्रयोग करना चाहिए। किसी विचार के खण्डन के लिए पहले सम्यक अध्ययन तथा वैज्ञानिक विश्लेषण करना आवश्यक होता है। भारतीय संस्कृति के विरासत का सही ढ़ंग से आकलन किया जाये तो भारत की एक विशिष्ट पहचान सम्पूर्ण विश्व में सदियों तक अजर अमर रहेगी। उन्होंने राखीगढ़ी पुरास्थल से प्राप्त अवशेषों के डीएनए विश्लेषण के आधार पर भारतीय लोगों की पहचान निर्धारित करने की कोशिश की तथा यह भी कहा कि समस्त भारतीय लोगों के आदि पूर्वज हड़प्पा निवासी ही थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. सत्यदेव सिंह ने किया। संचालन कार्यक्रम संयोजक डॉ. प्रशान्त कश्यप ने किया। रिर्पोट वाचन डॉ. सीमा, धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मुकेश कुमार सिंह ने दिया। इस अवसर पर डॉ. ओम प्रकाश कुमार, डॉ. समीर पाठक, डॉ. शोभनाथ पाठक, डॉ. विनय कुमार, डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ. देवेन्द्र प्रताप सिंह आदि ऑनलाइन उपस्थित रहे। कार्यशाला में 150 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
(प्रताप बहादुर सिंह)
मीडिया प्रभारी
डीएवी पीजी कॉलेज, वाराणसी
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