मंगलवार, 30 नवंबर 2021

बेहतर भविष्य की सुखद उम्मीद

महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल रंगा रंग कार्यक्रम संग सम्पन्न




वाराणसी 30नवंबर (dil India live)। विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से कबीर और उनकी शाश्वत शिक्षाओं को फिर से आत्मसात करते हुए तीन दिवसीय 'महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल' का भव्य समापन रविवार को गुलेरिया घाट पर हुआ. इस अनूठे उत्सव में ख्यातिलब्ध कलाकारों ने कबीर वाणी और आध्यात्मिक संगीत के माध्यम से जीवन दर्शन को समझाया और मन की सादगी में छिपे वैभव को जीने का रहस्य  उजागर किया. संगीत के साथ ही साहित्य, कला और आध्यात्म के सह-अस्तित्व की महत्ता का बखान किया।

फेस्टिवल पर अपने विचार साझा करते हुए महिंद्रा समूह के उपध्यक्ष और प्रमुख, सांस्कृतिक आउटरीच जय शाह ने कहा कि महिंद्रा समूह को इस महोत्सव के माध्यम से कलाकारों और दर्शकों को फिर से मिलने का मौका देने पर गर्व है। उन्होंने  इस बात पर राहत महसूस की कि कबीर के उत्सव के बहाने एक बार फिर जीवन की आशा और नई उम्मीदों के द्वार खुले हैं. उन्होंने आशा व्यक्त की कि भविष्य के लिए योजना बनाते समय हम आनंद और प्रतिबिंब से भरे इन पलों की ऊर्जा को अपने साथ रखेंगे।टीमव र्क आर्ट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय के. रॉय ने कहा कि इस वर्ष महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल वैश्विक आपदा से जूझ रहे लोगों और कलाकारों के लिए नई ऊर्जा के रास्ते खोले हैं. उन्होंने कहा कि कबीर के दर्शन में मनुष्य की अनुकूलन और आगे बढ़ने की क्षमता समाहित है। क



बीर को याद रख कर हम इस क्षमता को अपने भीतर निरंतर प्रवाहित होने दे सकते हैं।

तीसरे दिन प्रातःकालीन संगीत सत्र का आरम्भ  वाराणसी के शास्त्रीय गायक और शिक्षक प्रतीक नरसिम्हा के गायन से हुआ. कलाकार ने राग नट भैरव और कबीर के भजन प्रस्तुत किये. तत्पश्चात 'द आहवान प्रोजेक्ट' के कलाकारों ने भावपूर्ण कार्यक्रम प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था, ''कबीर, तुम कहाँ हो ?' प्रेम, मानवता और दया के दर्शन को बढ़ावा देने के लिए कबीर दर्शन की जरूरत पर ज़ोर देते हुए 'द आहवान प्रोजेक्ट' की गायिका वेदी सिन्हा ने अपनी कबीराना अदायगी से सुनने वालों के मन को छू लिया. उन्होंने कहा, "किसी भी समाज में, कोई भी समय या युग हो, कबीर का दर्शन हमेशा प्रतिध्वनित होता है क्योंकि यह एक सार्वभौमिक दर्शन है।"

दोपहर के सत्र में संगीतकार, कहानीकार और लेखक रमन अय्यर ने,  दिल्ली स्थित बैंड 'मंतश' के कलाकारद्वय अंजलि सिंह पडियार और लाभ भारद्वाज के साथ  जीवन संतुलन को समझने के लिए कबीर के कुछ छंदों पर अपने विचार प्रस्तुत किये. अय्यर ने रोजमर्रा के जीवन में काम के दबाव पर चर्चा करते हुए कहा कि कबीर के छंदों ने हरेक व्यक्ति को उसके सवालों के जवाब खोजने में मदद की है. आधुनिक  वर्कहॉलिक जीवन शैली से अलग जीवन के सत्य के समक्ष समर्पण करने में कबीर का दर्शन कैसे सहायक है, इस बिंदु पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की साथ ही  मिस्टर शिपली द्वारा रचित एक मेडले का प्रदर्शन करके दिवंगत संगीतकार मिस्टर वैलेंटाइन शिपली को भी श्रद्धांजलि दी।


तत्पश्चात, अगले सत्र 'तरन्नुम से कबीर' में अस्करी नकवी ने संगीतमय गायन की एक अनूठी शैली का प्रदर्शन किया, जो कबीर की प्रसिद्ध कविताओं का गुलदस्ता था. नक़वी ने कहा कि “कबीर का जीवन दर्शन सारे संशय से मुक्त है और किसी भी रूढ़ी में विश्वास नहीं करता. वैसे ही कबीर पर आधारित मेरी गायन शैली भी बिना किसी बंधन के मुक्त प्रवाह वाली है.' नकवी ने कबीर के दोहा 'पिंजर प्रेम प्रकाशिया' के साथ अपने प्रदर्शन की शुरुआत करते हुए जीवन और मृत्यु, प्रेम और ज्ञान को कबीर के संदर्भों के साथ व्याख्यायित किया.

संध्य्कालीन संगीत सत्र की शुरुआत डीपीएस वाराणसी के वाद्यवृन्द द्वारा प्रस्तुत 'निरंजलि' के साथ हुई। इस संगीतमय प्रदर्शनमें  सभी आयु समूहों के विद्यार्थियों कबीर के दोहे प्रस्तुत किये गये.  डीपीएस वाराणसी के प्रिंसिपल मुकेश शेलार ने कहा, "निरंजलि कबीर के दर्शन के अनुकूल है. इस मनोहारी प्रदर्शन में कबीर के पारंपरिक दोहे, कुछ फ्यूजन और कुछ सूफी शैली के संगीत शामिल थे.

समापन संध्या को और भी भव्य बनाते हुए अगली प्रस्तुति ने उपस्थित जनमानस को हृदय की गहराइयों तक भावमय कर दिया. यह प्रस्तुति थी एम.के.रैना की उत्कृष्ट कृति 'कबीरा खड़ा बाज़ार में' के माध्यम से कबीरवाणी की आधुनिक पुनर्व्याख्या, जिसने इस शाम को एक अलग ही ऊंचाइयों तक पहुँचा दिया.  दास्तानगोई शैली में पेश किया गया यह कार्यक्रम कबीर के कालजयी साहित्य को एक नया ही रंग दे रहा था. 

समारोह का समापन सुविख्यात शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली के सुमधुर गायन के साथ हुआ. गायन प्रस्तुत करने के साथ ही कलापिनी कोमकली ने कहा, ' मुझे इस अभिनव उत्सव में आमंत्रित करने के लिए मैं बहुत आभारी हूं. माँ गंगा के किनारे बैठ कर कबीर को गाना और सुनना, इससे अद्भुत जीवन-अनुभव कहीं नहीं मिल सकता.सी के साथ जन-जन के कबीर का आह्वान करते हुए अगले वर्ष फिर मिलने के वादे और एक सुखद भविष्य की सकारात्मक आशा के साथ 'महिंद्रा कबीरा महोत्सव' का 5 वां संस्करण संपन्न हुआ। निश्चित रूप से अपने तरह के सबसे अनूठे इस महोत्सव की मधुर स्मृतियाँ अगले संस्करण तक सबके मन में बनी रहेगी।

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