Ramadan में तरावीह हर मोमिन को अदा करना ज़रुरी
Varanasi (dil india live)। मुकद्दस रमजान इबादतों और नेकी का महीना है। इस पूरे महीने जिस तरह से मोमिन को रोज़ा रखना ज़रूरी है वैसे ही उसे तरावीह की नमाज़ भी अदा करना ज़रुरी होता है। रोज़ा फर्ज़ है और तरावीह सुन्नत। इसके बावजूद तरावीह अदा करना इस्लाम में बेहद ज़रूरी करार दिया गया है, इसलिए कि तरावीह नबी-ए-करीम को बेहद पसंद थी।
रमज़ान को इबादत का महीना माना जाता है और इस महीने की बहुत अहमियत है। इस मुकददस महीने में मुसलमान महीने भर रोजे (व्रत) रखता है। पांच वक्त की नमाज और नमाजे-तरावीह अदा करता हैं। कुछ मस्जिदों में तरावीह 4 दिन कि तो कहीं 6 दिन तो कहीं 15 दिन में अदा की जाती है। उलेमा कहते हैं कि अगर किसी ने 4 दिन की तरावीह या 15 दिन की तरावीह मुकम्मल कर ली तो वो ये न सोचे कि तरावीह उसकी हो गई। उलेमा कहते है कि तरावीह पूरे महीने अदा करना ज़रूरी है। तरावीह चांद देखकर शुरू होती है और चांद देखकर ही खत्म होती है। तरावीह में पाक कुरान सुना जाता है। अगर किसी ने 4 दिन, 7 दिन या 15 दिन या जितने भी दिन की तरावीह मुकम्मल की हो उसे सुरे तरावीह महीने भर यानी ईद का चांद होने तक अदा करना चाहिए।
दुआएं होती है कुबुल
रमज़ान में देश दुनिया में अमन के लिए दुआएं व तरक्की के लिए दुआएं मांगी जाती है।
दरअसल रमजान का पाक महीना इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना होता है। इस पाक महीने में लोग इबादत करके अपने रब का जहां शुक्रिया अदा करते हैं वहीं इस महीने में दुआएं कुबुल होती है।
क्या होती है तरावीह
रमजान में मोमिन दिन में रोज़ा रखते हैं और रात में तरावीह की नमाज़ अदा करते है। यह नमाज़ बीस रिकात सामूहिक रुप से अदा की जाती है। इस नमाज को कम से कम 3 दिन ज्यादा से ज्यादा 30 दिन में पढ़ा जाता है जिसमें एक कुरान मुकम्मल की जाती है। खुद पैगंबर हुजूर अकरम सल्लललाहो अलैह वसल्लम ने भी नमाज तरावीह अदा फरमाई और इसे पसंद फरमाया।
सरफराज अहमद
(युवा पत्रकार, वाराणसी)
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