प्रागैतिहासिक मानव जीवन के विविध पक्षों पर डाली रौशनी
dil india live (Varanasi). वसंत कन्या महाविद्यालय में आयोजित, उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व इकाई द्वारा वित्तपोषित, छह दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के पांचवें दिन प्रागैतिहासिक मानव जीवन के विविध पक्षों को विस्तार से समझाया गया। दिन के पहले सत्र में प्रोफेसर विदुला जायसवाल ने यूरोप औऱ एशिया के मध्यपाषाण काल के चरणों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। उन्होंने आदिमानव के परिवेश और तकनीकी विकास यात्रा पर भी विस्तार से बात की। डॉ आरती कुमारी ने नवपाषाणिक संस्कृति में मानव जीवन में आए बदलावों को वैश्विक और भारतीय परिप्रेक्ष्य में समझाया।
अपरान्ह सत्र में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के भूतपूर्व डायरेक्टर जनरल डॉक्टर राकेश तिवारी ने उत्तर प्रदेश में मनुष्य के बसाव की पुरातनता को पुरातात्विक आधार पर लगभग ग्यारह हजार साल पहले ले जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि पुरातत्व के अध्ययन में हमें नए साक्ष्यों को सावधानी से ग्रहण करने की आवश्यकता है। साथ ही पूर्वाग्रहों से दूर रहना भी ज़रूरी है।
उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रागैतिहासिक संस्कृतियों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण पैसरा, चिरांद, लहुरादेवा, हेता पट्टी आदि पुरास्थलों का उदाहरण देकर उन्होंने इस क्षेत्र के पूर्व-स्थापित इतिहास के पुनरावलोकन की आवश्यकता पर बल दिया।
उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग की निदेशक डॉ रेणु द्विवेदी ने आयोजकों को शुभकामनाएं दीं। अतिथियों का स्वागत प्राचार्या प्रोफेसर रचना श्रीवास्तव के संबोधन से हुआ तो धन्यवाद ज्ञापन डॉ आरती चौधरी ने किया। संचालन डॉ. नैरंजना श्रीवास्तव और संयोजन डॉ आरती कुमारी ने किया। कार्यक्रम में मार्गदर्शन प्रोफेसर विदुला जायसवाल का रहा।
इस अवसर पर डी ए वी पी जी कॉलेज से डॉ. ओम प्रकाश और महिला महाविद्यालय से डॉ स्वतंत्र सिंह उपस्थित रहे। क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई से डॉ. राजीव रंजन भी उपस्थित रहे।



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