फेमिनिस्ट रिसर्च में प्रामाणिकता पर दिया गया कार्यशाला में जोर
Varanasi (dil India live). वसंत कन्या महाविद्यालय, कमच्छा वाराणसी में 3 से 9 मार्च तक फेमिनिस्ट रिसर्च मेथोडोलॉजी पर एक कार्यशाला का आगाज़ किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य छात्राओं को नारीवाद के बारे में जागरूक करना, इसकी विभिन्न शोध पद्धतियों को समझाना और फेमिनिस्ट रिसर्च के दौरान अनुसंधान की नैतिकता से अवगत कराना है।
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की शुरुआत महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. रचना श्रीवास्तव की अगुवाई में हुआ। उन्होंने अतिथियों का उत्साहपूर्वक स्वागत किया और कहा कि ऐसी कार्यशालाएँ छात्राओं के लिए अत्यंत लाभकारी और महत्वपूर्ण होती हैं, जिससे वे इस विषय की जटिलताओं को समझ सकें।
उद्घाटन सत्र की मुख्य वक्ता प्रो. कल्पलता पांडेय, (पूर्व कुलपति, जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया) थीं। उन्होंने नारीवाद के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि फेमिनिस्ट रिसर्च में प्रामाणिकता होनी चाहिए। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि फेमिनिस्ट रिसर्च मेथोडोलॉजी वास्तव में एक पश्चिमी अवधारणा है। उनके अनुसार, भारत में महिलाएँ वैदिक काल से ही सशक्त रही हैं, इसलिए किसी नारीवादी आंदोलन की आवश्यकता नहीं है। बस, उन्हें उनके अधिकार और सशक्तिकरण को याद दिलाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि सशक्तिकरण शक्ति और भावनात्मक बुद्धिमत्ता के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
द्वितीय सत्र की मुख्य वक्ता प्रो. चंद्रकला पडिया मैडम थीं। उन्होंने कहा कि इतिहास में हमेशा पुरुषत्व (मास्कुलिन) को महत्व दिया गया है, न कि फेमिनिन को, जो उचित नहीं है। उन्होंने समानता की परिभाषा को चुनौती देते हुए कहा कि फेमिनिस्ट रिसर्च में गुणात्मक (क्वालिटेटिव) और सहभागी (पार्टिसिपेटरी) अनुसंधान अत्यंत आवश्यक है। साथ ही, उन्होंने फेमिनिस्ट रिसर्च में रिफ्लेक्सिविटी (आत्मविश्लेषण) और पारदर्शिता के महत्व पर भी जोर दिया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रतिमा सिंह ने किया। विषय प्रवर्तन कार्यशाला की संयोजिका डॉ अनुराधा बापुली ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन सह-संयोजिका डॉ सिमरन सेठ ने किया। इस अवसर पर प्रो. सीमा वर्मा, डॉ. आरती चौधरी, डॉ. सरोज उपाध्याय, डॉ. पूनम वर्मा सहित अन्य समिति सदस्य एवं संकाय सदस्य उपस्थित रहे।
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