स्टूडेंट्स एडवाइजरी समिति ने किया इंटरैक्टिव सेशन का आयोजन
फ़िल्म निर्माण एवं थिएटर जैसी विधा से छात्राएं हुई रूबरू
Varanasi (dil India live). वसंत कन्या महाविद्यालय में ख्यातिलब्ध निर्देशक अभिषेक शर्मा और ऑस्कर नामांकित श्रद्धा सिंह के साथ एक इंटरैक्टिव सेशन आयोजित किया गया।स्टूडेंट्स एडवाइजरी समिति के सौजन्य से आयोजित इस कार्यक्रम की रूपरेखा डॉ राजेश श्रीवास्तव (वेस इंडिया) एवं डॉ अंशु शुक्ला, एसोसिएट प्रोफेसर के द्वारा बनायी गई जिसका उद्देश्य महाविद्यालय की छात्राओ को उनके अकादमिक क्रियाविधियों से अलग फ़िल्म निर्माण एवं थिएटर जैसी रचनात्मक विधा से रूबरू करना था।
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प्राचार्या प्रो रचना श्रीवास्तव ने अथितियों का स्वागत करते हुए उनके द्वारा लिखित एवम् निर्देशित प्रसिद्ध फ़िल्मों तेरे बिन लादेन' (2010), इसके सीक्वल 'तेरे बिन लादेन: डेड ऑर अलाइव' (2016), 'द शौकीन्स' (2014) जैसी कॉमेडी फिल्में और जॉन अब्राहम अभिनीत उनकी फिल्म 'परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण' (2018), अक्षय कुमार अभिनीत 'रामसेतु' (2022)और सोनम कपूर अभिनीत 'द जोया फैक्टर' (2019 ) का जिक्र करते हुए उनके अद्भुत कार्य के लिए बधाई दी।
अभिषेक शर्मा एक भारतीय फिल्म निर्देशक और लेखक हैं जो हिंदी फिल्मों में अपने काम के लिए जाने जाते हैं, साथ ही राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली (NSD) के एक प्रसिद्ध पूर्व छात्र भी हैं।
श्रद्धा सिंह एक फिल्म निर्माता हैं और पिछले एक दशक से हिंदी फिल्म उद्योग का हिस्सा रही हैं। उन्होंने ‘हाथी मेरे साथी 2’, ‘द जोया फैक्टर’, जाह्नवी कपूर और राजकुमार राव अभिनीत ‘रूही’, सनी कौशल और डायना पेंटी अभिनीत ‘शिद्दत’, अभिषेक बच्चन और यामी गौतम अभिनीत ‘दसवीं’ जैसी फिल्मों में अलग-अलग भूमिकाएँ निभाई हैं। वह मैडॉक फिल्म्स, मुक्ता आर्ट्स, एडलैब्स फिल्म्स आदि के लिए प्रोडक्शन का काम संभाल रही हैं। वह शहर में अपनी लघु फिल्म ‘कथाकार’ के लिए जानी जाती हैं, जिसे 2016 में स्टूडेंट्स एकेडमी अवार्ड्स (ऑस्कर) के लिए नामांकित किया गया था। एक बहुत ही रोचक सत्र में अभिषेक शर्मा ने छात्राओ एवम् अध्यापकों की जिज्ञासाओ को धैर्य से सुना और हर एक प्रश्न का जवाब बेबाकी से दिया।
डायरेक्टर बनने का क्या विज़न होता है ? फ़िल्मों की रूपरेखा बनाते समय रिसर्च्स की क्या भूमिका होती है ? रिसर्च कैसे होती है? सेंसरशिप क्या होती है ? निर्देशक के रूप में आप इसको कैसे हैंडल करते है ? किसी मूवी को बनाने के लिए प्लॉट या करैक्टर क्या जायदा महत्वपूर्ण होता है ? कहानी का चयन कैसे करते है ? कहानी लिखने की प्रेरणा कैसे मिलती है ? OTT प्लेटफॉर्म पे क्या सेंसर बोर्ड की कमान नहीं होती ? जैसे कई प्रश्नों से सभी ने फ़िल्म जगत की सच्चाई को करीब से जानने का प्रयास किया और दोनों ही कलाकारों ने बड़ी गंभीरता से सबको इसके बारे में अवगत कराया । महाविद्यालय के शैक्षणिक एवम् गैरशैक्षणिक कर्मचारियों के साथ छात्राओ ने अति उत्स से प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में मचदूतम थिएटर ट्रस्ट के सदस्यों ने भी शिरकत की ।
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