गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

काशी की अंजलि ने किया बनारस का नाम रौशन

मिस नार्थ इंडिया में 1st रनरअप बनी अंजली



वाराणसी 2 दिसंबर (dil india live)। काशी की बेटी अंजली ने पिछले दिनों झांसी में आयोजित मिस नार्थ इंडिया कम्पटीशन में 1st रनरअप का खिताब अपने नाम कर काशी का नाम राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया। अंजली की इस उपलब्धी पर अंजली के परिवार में और क्षेत्र में उल्लास का माहोल है। अंजली द्वारा इस उपलब्ध की जानकारी होते ही आसपास और परिचितों का हुजूम अंजली के घर पर उमड़ पड़ा और सभी ने उसको बधाई दिया है।

बताते चले कि वाराणसी के नाटी इमली क्षेत्र की निवासिनी अंजली एक माध्यम वर्गीय परिवार से सम्बन्धित है। शुरू से माडलिंग की शौक़ीन अंजली को परिवार ने हौसला दिया और उसने अपने शौक को अपना करियर बनाने की सोची। इसी कड़ी में अंजली ने मिस नार्थ इण्डिया कम्पटीशन में हिस्सा लिया, जहा काफी कडा मुकाबला था।

अंजली ने इस कम्पटीशन में 1st रनरअप का खिताब अपनी समस्त प्रतिद्वंदियों को हार कर हासिल किया। अंजली की इस उपलब्धी पर उन्होंने हमसे बात करते हुवे कहा कि कोई भी कम्पटीशन कितना भी टफ क्यों न हो, आपकी लगन आपकी जीत का रास्ता खुद बना देगी। बस सफलता का प्रयास मन से होना चाहिए। अपने पिता द्वारा दिली इसी सीख से मैंने ये उपलब्धी हासिल किया है।

गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल है अगहनी जुमा



किसानों ने की थी पूजा, मुस्लिमों ने अदा की थी तब नमाज़  

 वाराणसी01दिसंबर (dil india live)। अगहनी जुमे की नमाज सिर्फ बनारस में ही अदा की जाती है इसके बारे में  बुनकर बिरादराना तंजीम बावनी के सदर हाजी मुख्तार महतो कहते हैं कि अगहनी जुमे की नमाज की ये परम्परा लगभग 450 साल पुरानी है उस वक़्त देश में सुखा पड़ा था जिसकी वजह से किसान और बुनकर दोनों परेशान थे, बारिश नहीं हो रही थी जिसके कारण किसान खेती नहीं कर पा रहे थे। जबरजस्त मंदी से बुनकरों के बुने हुए कपडे नहीं बिक रहे थे। हर तरफ भूखमरी का आलम था। तब उस वक्त बुनकरों ने अपने अपने कारोबार को बन्द करअगहन के महीने में जुमे के दिन ईदगाह में इकठ्ठा होकर नमाज अदा कर अल्लाह की बारगाह में दुआए मांगी गयी और हिन्दू किसानों ने पूजा की थी। उसके बाद अल्लाह के रहमो करम से बारिश हुयी और देश में खुशहाली आई बुनकरों के कारोबार भी चलने लगा तब से अगहनी जुमे की यह परंपरा आज तक कायम है। अगहनी जुमे को बनारस में मुस्लिम नमाज़ अदा करते हैं तो हिन्दू गन्ने की फसल पूजा के बाद बेचने पहुंचते हैं। नमाज़ अदा करके लौटने वाले गन्ना खरीद कर अपने घरों को लौटते हैं।  

 इस पारंपरिक अगहनी जुमे की नमाज की परंपरा को बनारस में बुनकर बिरादराना तंजीम बाईसी के सरदार की सदारत में निभाई जाती है इस मौके पर बाईसी तंजीम के सरदार गुलाम मोहम्मद उर्फ दरोगा ने बताया की अगहनी जुमे की नमाज की इस ऐतिहासिक परम्परा को हम सब की तंजीम बुनकर बिरादराना तंजीम बाईसी के देख रेख में पुरानापुल पुल्कोहना ईदगाह में हर साल अदा की  जाती है। जब जब देश के अवाम के ऊपर ऊपर मुसीबते आती है तो बनारस के सारे बुनकर अगहन के महीने में अपने अपने कारोबार को बंद कर ईदगाह में इकठ्ठा होकर अगहनी जुमे की नमाज अदा करने हजारो हजार की तादाद में पहुंचते है और अपने अपने कारोबार में बरक्कत और मुल्क की तरक्की के लिए दुआए मांगते है। इस साल अगहनी जुमे की नमाज पुरानेपुल पुलकोहना ईदगाह में  3 दिसंबर को अदा की जायेगी। जिसमें सभी बुनकर भाइयो से बाईसी तंजीम ने गुजारिश की है कि उस दिन सभी बुनकर अपना अपना करोबार बन्द कर पुरानापुल ईदगाह पहुंच कर अगहनी जुमे की नमाज अदा करे। ऐसे ही चौकाघाट ईदगाह पर भी अगहनी जुमे की नमाज़ अदा की जाती है।

बुधवार, 1 दिसंबर 2021

पिता ने दो बच्चों के साथ खुद को लगाई आग, तीनों की मौत


गोरखपुर 01दिसंबर (dil india live) गीडा थाना क्षेत्र के ग्राम छपिया सरया में मदन कन्नौजिया ने आज दोपहर अपने दो बच्चों के साथ कमरा बंद कर आग लगा ली जिससे झुलसने से तीनों की मौत हो गई है। मृतक मदन कन्नौजिया लगभग पांच साल से मानसिक अवसाद में चल रहा था। उसका इलाज गोरखपुर के डॉक्टर बेरी के यहां चल रहा था। ग्रामीणों ने अनुसार कुछ दिन पहले ही उसका अपनी पत्नी से अनबन हो गई थी जिसके बाद उसने अपनी पत्नी को घर से मारपीट कर भगा दिया था। मदन के पूरे परिवार में कमाने वाला एक छोटा भाई है जो गीडा की एक फैक्टरी में काम करता है। आज दोपहर में मदन ने घर में रखे सिलेंडर का पाइप काटकर दरवाजा बंद कर आग लगा ली जिससे उसके बच्चो सहित तीनों लोग बुरी तरह झुलस गए और तीनों की मौके पर ही मौत हो गई।

एड्स के प्रति जागरूकता जरूरी

विश्व एचआईवी/एड्स दिवस मनाया गया


 वाराणसी 01 दिसम्बर (dil india live)। विश्व एचआईवी/एड्स दिवस पर बुधवार को पं. दीनदयाल उपाध्याय राजकीय  चिकित्सालय में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में जागरुकता गोष्ठी व हस्ताक्षर अभियान का आयोजन किया गया। गोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. राहुल सिंह ने कहा कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से एड्स की बीमारी नहीं होती है। संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने से यह बीमारी फैलती है। इससे बचाव के लिए सावधानी बरतने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि समाज में एड्स से बचने के लिए जागरुकता अत्यन्त जरूरी। पं. दीनदयाल चिकित्सालय चिकित्सालय के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डा. आरके सिंह ने कहा कि एचआईवी पाजीटिव होने के बाद अगर समय से उपचार शुरू हो जाए तो पीड़ित सामान्य जीवन जी सकता है। उन्होंने कहा कि उपचार न होने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है और उसे तमाम तरह के रोग हो जाते है। इसलिए इसका समय से उपचार जरूरी है। गोष्ठी में एआरटी सेंटर की वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी  डा. प्रीति अग्रवाल, चिकित्सा अधिकारी डा. सुनील सिंह, क्षय व एड्स रोग के कोआर्डीनेटर विनय मिश्र के अलावा विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव  ने विचार व्यक्त किया। इसके पूर्व चिकित्सालय में एड्स जागरूकता के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया गया।

अब लाइलाज नहीं रहा ‘क्लबफुट’

हो उपचार तो ठीक हो सकते हैं बच्चों के जन्मजात टेढ़े पैर

  •  राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत मुफ्त उपचार की सुविधा
  • मिरेकलफीट के सहयोग से मण्डलीय चिकित्सालय में जागरुकता कार्यक्रम आयोजित

 



वाराणसी, 1 दिसम्बर (dil india live)। शिशुओं के जन्मजात टेढ़े पंजे (क्लबफुट) का  समय से उपचार हो तो वह  पूरी तरह से ठीक हो सकता है। यह अब लाइलाज नहीं रहाl राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के तहत इसका उपचार पूरी तरह मुफ्त किया जाता है। बुधवार को स्वास्थ्य विभाग के तत्वावधन में मिरेकलफीट के सहयोग से आयोजित जागरुकता कार्यक्रम में मण्डलीय अपर निदेशक/मण्डलीय चिकित्सालय के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डा. प्रसन्न कुमार ने यह बातें कहीं।

डा. प्रसन्न कुमार ने कहा कि टेढ़े पंजे (क्लबफुट) की समस्या एक जन्मजात विसंगति है जिसे पूरी तरह से ठीक किया जाना संभव है। ऐसे बच्चों के पंजे जन्म के बाद से अंदर की ओर मुडे होते हैं। किसी बच्चे का दोनो पैर तो किसी बच्चे का एक पैर भी अंदर की ओर मुड़ा हुआ हो सकता है। उन्होंने बताया कि देश में हर 800 में एक बच्चा क्लबफुट के साथ पैदा होता है। अगर समय से उपचार हो तो ऐसे बच्चे पूरी तरह ठीक हो सकते हैं। वह सामान्य बच्चों की तरह क्रिया-कलाप कर सकते हैं। यहां तक कि बड़े होने पर खेल-कूद प्रतियोगिताओं में भी शामिल होने योग्य हो जाते हैं। यह सब तभी संभव हो सकता है जब बच्चे का उपचार सही समय से शुरू कर दिया जाए।

अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी /राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम( आरबीएसके)  के नोडल अधिकारी डा. अशोक कुमार गुप्ता* ने कहा कि  आरबीएसके  के तहत ऐसे बच्चों का उपचार पूरी तरह निःशुल्क किया जाता है। क्लबफुट पीड़ित बच्चों के अभिभावकों को इसका पूरा लाभ उठाना चाहिए। ऐसे नवजात बच्चों का उपचार जितनी जल्द शुरू हो उतना ही प्रभावी परिणाम आते है। ऐसे में नवजात के पंजे अगर अंदर की ओर मुड़े हुए नजर आते हैं तो उसका तत्काल उपचार शुरू करा देना चाहिए। ऐसे बच्चों के पंजों में चार से छह सप्ताह तक प्लास्टर लगाया जाता है। इसके पश्चात पंजे के पिछले हिस्से में एक मामूली चीरा लगाकर पुनः प्लास्टर लगा दिया जाता है। इस प्लास्टर को भी 21 दिन बाद काट दिया जाता है और बच्चे के पैरों में ब्रेस (विशेष रुप से तैयार किये गये जूते) पहनाये जाते है। तीन से -पांच वर्ष में ऐसे बच्चे पूरी तरह सामान्य हो जाते हैं। डॉ गुप्ता ने कहा कि क्लबफुट पीड़ित बच्चों के उपचार में मिरेकलफीट का काफी सहयोग रहा है। उसके प्रयास से काफी संख्या में ऐसे बच्चों का उपचार संभव हो सका है। 

आरबीएसके के डीईआईसी प्रबंधक डॉ अभिषेक त्रिपाठी ने कहा कि क्लबफुट पीड़ित बच्चों के उपचार के लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। समय से उपचार हो जाने से ऐसे बच्चे दिव्यांग होने से बच सकते हैं। 

कार्यक्रम के प्रारम्भ में मिरेकलफीट की प्रोग्राम एक्जक्यूटिव नेहल कपूर ने क्लबफुट के बारे में विस्तार से जानकारी दी और बताया कि शिवप्रसाद गुप्त मण्डलीय चिकित्सालय के कक्ष संख्या 11 में प्रत्येक बुधवार को ऐसे बच्चों के निःशुल्क उपचार के लिए कैम्प लगता है। पीड़ित बच्चों के अभिभावक इसका लाभ उठा सकते हैं। 

इस जागरुकता कार्यक्रम में क्लबफुट पीड़ित काफी संख्या में बच्चों के साथ उनके अभिभावक भी शामिल हुए। पं. प. दीनदयाल नगर-चंदौली से अपने दो माह की बेटी के साथ कार्यक्रम में शामिल रिजवाना ने बताया कि उसकी बेटी के दोनों पंजे अंदर की ओर मुड़े हुए थे। पैरों में प्लास्टर लगाकर उसका निःशुल्क उपचार शुरू कर दिया गया है। चौबेपुर की सुजाता विश्वकर्मा  ने बताया कि इस उपचार का ही नतीजा है कि उनकी ढाई वर्ष की बेटी अब सामान्य रूप से चल-फिर रही है। उसका एक पंजा पंजे जन्म से अंदर की ओर मुडा था लेकिन उपचार कराने से अब वह पूरी तरह ठीक हो चुकी  है हैं।

जागरूकता से ही दूर किया जा सकता है एचआईवी/एड्स

जिले में एड्स मरीजों के मुफ्त इलाज की सुविधा  

मिथक,भ्रांतियों को तोड़ना जरूरी 

Himanshu rai

गाजीपुर 1 दिसम्बर (dil india live)। विश्व एड्स दिवस पर बुधवार को राइफल क्लब में जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में जन जागरूकता  गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान हस्ताक्षर अभियान भी चलाया  गया । जिलाधिकारी ने हस्ताक्षर कर इस अभियान को आगे बढ़ाया। इस दिवस का उद्देश्य एचआईवी/एड्स के प्रति जागरूकता को बढाना है । 

जिलाधिकारी ने कहा कि सरकार, स्वास्थ्य विभाग, ग़ैर सरकारी संगठन और अन्य समाजसेवी एड्स की रोकथाम और नियंत्रण के लिए जागरूकता फैला रहे हैं। इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन संगोष्ठी तक सीमित नहीं रखना चाहिए,  बल्कि ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन उन जगहों पर होना चाहिए जहां पर मरीजों की संख्या अधिक हो जिससे जन जागरूकता के माध्यम से लोगों को एड्स से बचाव व पहचान के बारे में बताया जाए और जागरूकता के माध्यम से मिथक  व भ्रांतियों  को तोड़ा जा सके। 

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ हरगोविंद सिंह ने बताया कि विश्व एड्स दिवस को मनाने का उद्देश्य एचआईवी/एड्स के बारे में हर उम्र के लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ावा देना है । शुरुआती दौर में विश्व एड्स दिवस को सिर्फ बच्चों और युवाओं से ही जोड़कर देखा जाता था,  जबकि एचआईवी संक्रमण किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है। एचआईवी एक प्रकार के जानलेवा इंफेक्शन से होने वाली गंभीर बीमारी है। मेडिकल भाषा में ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम  यानि एचआईवी के नाम से जाना जाता है। 

जनपद गाजीपुर में एचआईवी के 1704 मरीजों  का जिला अस्पताल के एआरटी सेंटर में निःशुल्क इलाज किया जा रहा है। एड्स के मरीजों के नाम और पहचान सार्वजनिक नहीं की जा सकती | इसके अलावा टीबी के साथ एचआईवी के मरीजों की संख्या 28 है जिनका निक्षय पोषण योजना के तहत 500 रुपये डीबीटी के माध्यम से उनके खाते में भेजा जा रहा है। क्षय रोग विभाग के जिला कार्यक्रम समन्वयक मिथिलेश सिंह ने बताया कि जनपद गाजीपुर में सबसे अधिक एड्स के मरीज जनपद के बिरनो ब्लॉक का गांव है जहाँ मतिजो की संख्या करीब 78 है और सभी लोगों का नि:शुल्क इलाज चल रहा है। इसके साथ वहाँ लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है। आज के कार्यक्रम में डॉक्टर के के वर्मा, डॉ डीपी सिन्हा, डॉ एसडी वर्मा ,डॉ मनोज सिंह डॉ उमेश कुमार के साथ ही एआरटी सेंटर, क्षय रोग विभाग के सभी अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रहे।

एचआईवी नहीं रहा अब मातृत्व के लिए अभिशापएड्सदिवस


तीन वर्ष में 50 संक्रमित महिलाओं ने दिया स्वस्थ बच्चों को जन्म


गर्भवती का समय पर हो उपचार तो संक्रमण से बच सकता है गर्भस्थ शिशु


इस वर्ष की थीम है “असमानताओं को समाप्त करें, एड्स समाप्त करें”

वाराणसी01दिसंबर(dil india live)। विमला (परिवर्तित नाम) जब पहली बार गर्भवती हुई तो उन्होने अस्पताल में प्रसव पूर्व जांच के दौरान खून की जांच करायी तो उन्हें एचआईवी पॉजीटिव होने का पता लगा। डाक्टर ने जब इस बारे में उसे बताया तो ऐसा लगा कि उसपर जैसे वज्रपात हो गया हो। लगा जैसे मां बनने की सारी खुशियां किसी ने पलभर में छीन ली हों। पेट में पल रहे दो माह के बच्चे, लम्बी जिंदगी के साथ ही घर-गृहस्थी और समाज की चिंता भी उसे सताने लगी। तब उसके हौसले और एंटी रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट (एआरटी) सेंटर से मिले चिकित्सीय सलाह ने उसे एक नई जिंदगी दी। समय से शुरू हुए उपचार का नतीजा रहा कि एचआइवी पाजीटिव होते हुए भी उसने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। अब वह एक खुशहाल जिंदगी जी रही है। यह कहानी सिर्फ विमला की ही नहीं है पंडित दीनदयाल राजकीय चिकित्सालय स्थित एआरटी सेंटर में उपचार कराकर एचआईवी संक्रमित 50 महिलाएं तीन वर्ष के भीतर स्वस्थ बच्चों को जन्म दे चुकी हैं।

प्रभारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं जिला एचआईवी/एड्स अधिकारी डॉ राहुल सिंह ने बताया कि हर साल एक दिसंबर को एचआईवी/एड्स के प्रति समुदाय में जागरूकता बढ़ाने व मिथ्य व भ्रांतियों को तोड़ने के लिए विश्व एचआईवी/एड्स मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम “असमानताओं को समाप्त करें, एड्स समाप्त करें” निर्धारित की गयी है। 

डॉ राहुल सिंह बताते हैं कि आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों ने मां के एचआईवी संक्रमण से उसके गर्भ में पल रहे बच्चे का बचाव करना मुमकिन कर दिया है। बशर्ते गर्भवती के बारे में समय रहते यह पता चल जाए कि वह एचआईवी संक्रमित है, इसलिए सुरक्षित मातृत्व का सुख प्राप्त करने के लिए गर्भवती को अपना एचआईवी जांच जरूर करवा लेना चाहिए। गर्भधारण के तीसरे-चौथे महीने के बाद संक्रमण का पता चलने पर बच्चे को खतरा अधिक होता है, इसलिए एचआईवी संक्रमित गर्भवती का जितनी जल्द उपचार शुरू हो जाता है उतना ही उसके बच्चे को खतरा कम होता है। 

150 संक्रमित महिलाओं ने दिया स्वस्थ बच्चों को जन्म 

एआरटी सेंटर की वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ प्रीति अग्रवाल ने बताया कि प. दीनदयाल राजकीय चिकित्सालय स्थित एआरटी सेंटर उपचार करा रही एचआईवी संक्रमित 50 महिलाओं ने तीन वर्ष के भीतर स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया है। एआरटी सेंटर की वरिष्ठ चिकित्साधिकारी डा. प्रीति अग्रवाल बताती है कि वर्ष  2019 में 18,  2020 में 12 और 2021 में अक्टूबर माह तक 20 एचआईवी संक्रमित गर्भवती ने स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया है। एआरटी सेंटर में दावा लेने आई सुनीता (35 वर्ष) ने बताया कि चार वर्ष पूर्व हुई शादी के कुछ माह बाद ही पता चला था कि पति के साथ ही वह भी एचआईवी पॉजीटिव है। तब माँ बनने के सपने पर ग्रहण लगता नजर आया था पर एआरटी सेंटर की सलाह व उपचार से आज वह दो वर्ष के बेटी की माँ है। 

उपचार के साथ ही सलाह भी 

एआरटी सेंटर में एचआइवी संक्रमित गर्भवती का विशेष ख्याल रखा जाता है। साथ ही उसे दवा खाने के लिए विशेष रूप से निर्देश दियजाता है। इससे गर्भस्थ शिशु पर बीमारी का असर नहीं पड़ता है। समय पूरा होने पर एचआइवी संक्रमित गर्भवती को सुरक्षित प्रसव के लिए महिला अस्पताल रेफर किया जाता है। 

क्या है एचआईवी वायरस डॉ प्रीति अग्रवाल ने बताया कि एचआईवी का वायरस मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है, जिसका समय से उपचार न करने पर उसे अनेक बीमारियां घेर लेती हैं। इस स्थिति को एड्स कहते हैं। उपचार से वायरस को पूरी तरह खत्म तो नहीं किया जा सकता, लेकिन रोककर रखा जा सकता है। अच्छे खानपान और उपचार से मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है। इसलिए मरीज रोग को छिपाए न, समय पर और नियमित उपचार करे तो वह अपनी सामान्य आयु पूरी कर सकता है

एचआईवी पॉजीटिव होने के कुछ प्रमुख लक्षण     

- लगातार वजन का घटना        


- लगातार दस्त होना        


- लगातार बुखार होना        


- शरीर पर खाज, खुजली, त्वचा में संक्रमण होना       


- मुंह में छाले, जीभ पर फफूंदी आना

फूलों की खेती और उससे बने उत्पाद आर्थिक दृष्टि से अत्यंत लाभकारी-भक्ति विजय शुक्ला

Sarfaraz Ahmad  Varanasi (dil India live). फूलों की बढ़ती मांग और ग्रामीण किसानों तथा महिलाओं में फूलों की खेती के प्रति रुचि को देखते हुए, ...