सोमवार, 22 जनवरी 2024

Ajmer Sharif me khwaja का उर्स सम्पन्न

केवड़े से महका अजमेरी दरबार

ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती गरीब नवाज के दर से लौटने लगा दुनिया का रेला 


Ajmer (dil India live). हिंदलवली सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह के सालाना उर्स बड़े कुल की रस्म के साथ इतवार को संपन्न हो गया। दरगाह में बड़े कुल की रस्म पर अकीदतमंदों ने केवड़े और गुलाब जल से ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह शरीफ़ की दीवारों को धोया। जिससे अजमेरी दरबार परिसर महक उठा तो वहीं जायरीन ने दरगाह में हाजिरी लगाकर अपने और अपने परिवार की सलामती और खुशहाली की दुआ मांगी। इस दौरान दरगाह में मुल्क में अमन-चैन, भाईचारे और मोहब्बत के लिए भी दुआएं मांगी गई। ख्वाजा गरीब नवाज के सालाना उर्स पर परंपरागत रस्मे निभाई जाती है। इन रस्मों में सबसे आखरी रस्म बड़े कुल की होती है। इस रस्म के बाद से ही दरगाह में आम दिनों की तरह व्यवस्थाएं शुरू हो जाती है। रविवार को दरगाह में बड़े कुल की रस्म के लिए बड़ी संख्या में जायरीन मौजूद रहे। यूं तो जायरीन ने शनिवार की रात से ही दरगाह की दीवारों को गुलाब जल और केवड़े से धोना शुरू कर दिया था, जिसका सिलसिला रविवार को सुबह के दौरान भी देखने को मिला। यहां सुबह से ही दरगाह में जायरीन ने दरगाह की दीवारों से पानी बोतल में भरते हुए दिखाई दे रहे थे। बताया जाता है कि ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का समापन विधिवत रूप से रजब की 6 तारीख को छोटे कुल की रस्म के साथ हो जाता है। 9 रजब की तारीख को दरगाह में बड़े कुल की रस्म अदा की जाती है। इस रसुमात को गुसल की रस्म भी कहा जाता है।

ये होती है बड़े कुल की रस्म

दरगाह में खादिमों की संस्था अंजुमन कमेटी के पूर्व सदर मोईन सरकार ने बताया कि कि कुल की रस्म के तहत दरगाह के खादिम आस्ताने में इत्र और गुलाब जल से मजार शरीफ को गुस्ल देते हैं। इसके बाद परिसर के अहाते को गुलाब जल और केवड़ा से धोया जाता है, वहीं, सूफीयत से जुड़े लोग आस्ताने के बाहर के क्षेत्र को केवड़ा और गुलाब जल से धोते हैं। उन्हें देखकर जायरीन भी केवड़ा और गुलाब जल से दरगाह को धोना शुरू कर देते हैं। सालों से कुल की रस्म के दौरान यही रसुमात होती आई है। जायरीन अपने साथ दरगाह की दीवार पर लगने वाले गुलाब जल और केवड़े के पानी को बोतलों में भरकर लाते हैं. उन्होंने बताया कि 9 रजब को मजार शरीफ को आखरी गुसल दिया जाता है। इस रस्म को कुल की रस्म कहते हैं। इस रसुमात के तहत मजार शरीफ को गुसल दिया जाता है। देश मे अमन चैन खुशहाली के लिए भी ख़ास दुआएं की गई।

कुल की रस्म के साथ उर्स संपन्न

खादिम सैयद फैसल चिश्ती ने कहा कि कुल की रस्म उर्स की आखरी रस्म होती है। इस रस्म के बाद से ही उर्स मेला सम्पन्न हो जाता है और जायरीन का रेला अपने घरों को लौटने लगता हैं। उन्होंने बताया कि कुल की रस्म के दौरान खादिम दरगाह आने वाले हर जायरीन के लिए दुआएं करते हैं। ताकि वो और उनका परिवार सलामत और खुशहाल रहे।

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

Ajmer Sharif में बरस रही है रौनक

ख्वाजा गरीब नवाज के दर पर सूफियाना कलाम सुन कर झूमे अकीदतमंद




Mohd Rizwan
Ajmer (dil India live). हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह सरकार गरीब नवाज का सालाना 812 वां उर्स पूरे परवान पर है। देश के कोने-कोने से जायरीन गरीब नवाज की दरगाह में अकीदत के फूल और मखमली चादर पेश कर मन्नतें व मुराद मांग रहे हैं। ख्वाजा के दर पर नूर की बारिश हो रही है हर तरफ रौनक ही रौनक है। सूफियाना कलाम सुन कर तमाम जायरीन झूम रहे हैं।

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में उर्स के मौके पर देश के अलग-अलग कोनों से आए शाही कव्वाल अपनी कव्वालियों से अकीदतमंदों का दिल जीत रहे हैं। दरगाह में बीती रात खादिम कुतुबुद्दीन सखी की सदारत में महफिल ए कव्वाली का आयोजन किया गया, जिसमें देश भर के कव्वालों ने एक से बढ़कर एक कव्वालियां सुनाई। 

इस मौके पर सुल्तान नजम, उस्मान गुलफाम, अजीम नाजा, सलीम जावेद, अवेश नजम, इमरान ताज, मुर्शिद आतिश, मेराज वारसी, अनीस नवाब, इरफान नजम, नासिर कादरी सहित अन्य कव्वालों में अपनी बेहतरीन कव्वालियों से समा बांधा। दरगाह के खादिम कुतुबुद्दीन सखी ने बताया कि गरीब नवाज के सालाना उर्स के मुबारक मौके पर हर साल ख्वाजा गरीब नवाज की शान में कव्वाली का आयोजन किया जाता है। जिसमें देश के जाने-माने कव्वाल ख्वाजा गरीब नवाज की शान में कव्वाली पेश करते हैं। बीती रात गरीब नवाज की शान में महफिल ए कव्वाली दालान हामिद अली साहब के सैयद कुतुबुद्दीन सखी की सदारत में महफिल का आयोजन किया गया जो अल सुबह तक चला। इस मौके पर देशभर से आए विभिन्न कव्वालों ने एक से बढ़कर एक कव्वालियां और कलाम पेश कर दरगाह में मौजूद अकीदतमंदों को झूमने पर मजबूर कर दिया।

बुधवार, 17 जनवरी 2024

"मैं हूँ परम पुरख को दासा, देखन आयो जगत तमाशा"

तही प्रकाश हमारा भयो, पटना शहर विखै भव लयो।। 

दसवें पातशाह गुरु गोविन्द सिंह के प्रकाशोत्सव पर झूम उठी काशी

-श्रद्धा व उत्साह से मनाया गया प्रकाश पर्व 




Varanasi (dil India live). धर्मरक्षक, सरवंशदानी दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह महाराज का 357 वां प्रकाशोत्सव पौष मास की सप्तमी तिथि बुधवार को वाराणसी के समस्त संगत के सहयोग से एवं गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा गुरुद्वारा, गुरुबाग एवं गुरुद्वारा बढीसंगत, नीचीबाग में बड़े ही श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाया गया। बाहो प्रगटयो मरद अगंडा वरयाम अकेला, वाहो-वाहो गोविन्द सिंह आपे गुरू चेला, के शबद एवं बोले सो निहाल सत्श्री अकाल का जयकारा गूँजता रहा। दोनों गुरुद्वारों में दरबार साहिब को फूल-मालाओं एवं विद्युतीय झालरों से आकर्षक ढंग से सजाया गया था। सभी साध संगत ने पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब को मत्था टेका। इससे पहले मंगलवार को शाम 7:00 बजे से 9:30 बजे तक गरुद्वारा, गुरूबाग में हजूरी रागी जत्था भाई रकम सिंह गुरुद्वारा, बड़ीसंगत एवं बाहर से आये रागी जत्थों ने शबद गायन कर संगत को निहाल किया। इसके बाद प्रसाद वितरण हुआ।  वहीं बुधवार को प्रातः 3.45 बजे से 4.15 तक गुरुद्वारा बड़ीसंगत, नीचीबाग में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश एवं शहाना स्वागत से पर्व की शुरूआत हुयी। फूलों से सजी पालकी में गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति में गुरू प्रेमियों ने परिक्रमा में भाग लिया। प्रातः 4:15 बजे से 5:00 बजे तक नाम सिमरन व 7:00 बजे तक शबद कीर्तन हुआ। 40 दिन से चल रहे श्री अखण्ड पाठ साहिब का लड़ीवार पाठ का समापन, अरदास एवं प्रसाद वितरण हुआ। गुरुद्वारा, गुरुबाग में सबेरे 9:30 बजे से 2:00 बजे तक कीर्तन दीवान सजा। प्रातः 9:30-10:30 बजे तक गुरुनानक इंग्लिश स्कूल व गुरूनानक खालसा बालिका इन्टर कालेज, गुरूबाग एवं गुरुनानक इंग्लिश स्कूल शिवपुर के बच्चों ने शबद गायन किया। प्रातः 10:30-11:00 बजे तक गुरुद्वारे के मुख्य ग्रन्थी भाई रंजीत सिंह ने कथा द्वारा व प्रातः 11:00-12:30 बजे तक सिक्ख धर्म के महान् रागी जत्था भाई मेहताब सिंह जालन्धर वाले एवं दोपहर 12:30-2:00 बजे तक भाई सुरजीत सिंह, बंगला साहिब दिल्ली वाले ने शबद कीर्तन द्वारा संगत को निहाल किया। विशिष्ट लोगों एवं बच्चों को सिरोपा देकर सत्कार दिया गया। अतिरिक्त. पुलिस आयुक्त सीपी चन्नप्पा, डीसीपी काशी जोन राम सेवक गौतम, सेवानिवृत्त जय प्रकाश विश्वविद्यालय छपरा बिहार के कुलपति प्रो. हरिकेश सिंह ने गुरुबाग में माथा टेक आर्शीवाद लिया। मुख्य ग्रंथी भाई संजीत सिंह ने दीवान समाप्ति के बाद अरदास किया एवं प्रसाद वितरण हुआ तथा गुरू का लंगर अटूट बरताया गया।
 शाम का दीवान गुरुद्वारा, नीचीबाग में सायं 7 बजे से 12 बजे रात्रि तक दीवान सजा, जिसमें काफी संख्या में लोगों ने श्रद्धापूर्वक मत्था टेक आशीर्वाद लिया। गुरुद्वारा साहिब की भव्य सजावट की गयी थी। बाहर से आये रागी जत्थे एवं हजूरी रागी जत्था भाई रकम सिंह जी गुरुद्वारा, बड़ीसंगत, नीचीबाग वाले "साचु कहीं सुन लेहु सबै, जिन प्रेम कियो तिनही प्रभ पायो" व "मैं हूँ परम पुरख को दासा, देखन आयो जगत तमाशा" शबद कीर्तन एवं उपदेश द्वारा संगत को निहाल किया। इस पावन गुरूपर्व पर श्री अखण्ड पाठ साहिब की समाप्ति एवं आरती हुई। इसी दौरान रात भर नाश्ता, चाय व लंगर प्रसाद का वितरण होता रहा। गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की ओर से गुरुद्वारे के मुख्य ग्रन्थी भाई जगतार सिंह ने समूह सिख समाज एवं गुरु प्रेमियों को प्रकाशोत्सव की बधाईयां व धन्यवाद दिया। दीवान समाप्ति पर गुरुद्वारा, बड़ीसंगत, नीचीबाग के मुख्य ग्रंथी भाई जगतार सिंह ने अरदास की एवं गुरू का लंगर अटूट बरताया गया। 

मंगलवार, 16 जनवरी 2024

मुनव्वर राना का था बनारस से दिली रिश्ता

जिस्म पर मिट्टी मलेंगे पाक हो जायेंगे हम, 

ए ज़मीं एक दिन तेरी खुराक हो जायेंगे


Varanasi (dil India live)। मरहूम शायर मुनव्वर राना का जाना शायरी की दुनिया में बड़ी क्षति है। मुनव्वर राना का बनारस से दिली रिश्ता था। वो बेनियाबाग, पितरकुंडा, सनबीम कालेज व दिन दयाल जलान के यहां मुशायरों व काव्य गोष्ठी में हिस्सा लेने आते रहते थे। चकाचक बनारसी से उनकी नजदीकियां थी। बनारस की अवाम उनकी शायरी की मुरीद थी।

उनके इन्तेकाल पर बनारस में भी अफ़सोस है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश सचिव गाज़ीपुर प्रभारी फसाहत हुसैन बाबू, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश महासचिव हसन मेहंदी कब्बन, कांग्रेस विधि विभाग के प्रदेश उपाध्यक्ष अशोक सिंह एडवोकेट ने कहा कि जिस्म पर मिट्टी मलेंगे पाक हो जायेंगे हम, ए ज़मीं एक दिन तेरी खुराक हो जायेंगे...।

उक्त नेताओ ने मुनव्वर राना की आत्मा की शांति के लिए खिराजे अकीदत पेश करते हुए कहा की उनका जाना अदबी दुनिया का बड़ा नुकसान है। उर्दू अदब में विशेष योगदान के लिए उन्हें शहीद शोध संस्थान उत्तर प्रदेश की ओर से माटी रतन सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार,खुसरो पुरस्कार , मीर तकी मीर पुरस्कार, गालिब पुरस्कार , ज़ाकिर हुसैन पुरस्कार, सरस्वती समाज पुरस्कार सहित कई पुरस्कार से नवाजा गया।उक्त नेताओ कहा की उनके जाने से उर्दू युग व उर्दू अदब की बड़ी क्षति हुई है।

सोमवार, 15 जनवरी 2024

सदी के मशहूर शायर Munawwar Rana सुपुर्द-ए-खाक

फिल्म गीतकार व लेखक Javed Akhtar ने दिया कंधा 

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी खिराजे अकीदत पेश करने पहुंचे 




Varanasi (dil India live). सदी के मशहूर शायर मुनव्वर राना को आखिरी बिदाई देने फिल्म लेखक व गीतकार जावेद अख्तर सोमवार को लखनऊ पहुंचे। इस दौरान उन्होंने शायर मुनव्वर राणा के जनाजे में न सिर्फ शामिल हुए बल्कि उनके जनाजे को कंधा भी दिया। इस मौके पर जावेद अख्तर ने कहा कि ''शायरी और उर्दू का यह एक बड़ा नुकसान है... मुझे इसका बेहद अफसोस है। यह नस्ल एक-एक करके जा रही है और इसकी भरपाई नहीं हो पाएगी, उनकी कमी हमेशा खलेगी... उनकी शायरी प्रेरक है, उनके लिखने का अपना अंदाज था। अच्छी शायरी करना मुश्किल है, लेकिन उससे भी ज़्यादा मुश्किल है अपनी लिखी शायरी करना।"

मरहूम मुनव्वर राणा के जनाजे में जावेद अख्तर काफी भावुक दिखे। जावेद अख्तर का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी तेजी से वायरल हो रहा है। नेटिजंस जावेद अख्तर के इस वीडियो को देखने भर से काफी भावुक हुए जा रहे हैं।

उनके जनाजे में पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी मरहूम मुनव्वर राना के दौलतखाने पर उन्‍हें खिराजे अकीदत देने पहुंचे। अखिलेश यादव ने कहा, "मुनव्वर राणा देश के बड़े शायर थे... ऐसे शायर बहुत कम होते हैं जो कई मौकों पर बहुत स्पष्ट होते हैं... मैं प्रार्थना करूंगा कि भगवान उनके परिवार को यह दुख सहने की हिम्मत दें।" इस दौरान मरहूम मुनव्वर राना के जनाजे में लोगों का जनसैलाब उमड़ा।

गौरतलब हो कि मुनव्वर राना का 71 वर्ष की आयु में रविवार मध्यरात्रि दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। वो काफी समय से बीमार चल रहे राना यहां संजय गांधी पीजीआई में भर्ती थे। सोमवार को उन्हें लखनऊ के ऐशबाग कब्रिस्तान में सिपुर्द-ए-खाक किया गया। मुनव्वर राना उर्दू साहित्य के बड़े नाम थे। 26 नवंबर 1952 को रायबरेली में जन्मे राना को 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था। मुनव्वर राना भले ही मां पर शायरी करने के लिए मशहूर हुए मगर वो ऐसे शायर थे जो हर मौजू पर शायरी करते थे।

मकर संक्रांति पर भीषण ठंड के बीच Ganga में श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी

गंगा स्नान कर श्रद्धालुओं ने बुलंद की, हर-हर गंगे...की सदाएं 

-डीजे की धुन पर हुई पतंगबाजी, गूंजता रहा भककाटा 




Varanasi (dil India live)। मकर संक्रांति पर काशी में भोर से ही गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा शुरू हो गया था। इस दौरान कड़ाके की ठंड के बीच लाखों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। इस दौरान हर-हर गंगे के जयकारों से घाट गूंज रहा था। वहीं डीजे की धुन पर काशी में जमकर पतंगबाजी हुई।

संक्रांति पर्व पर सोमवार को यहां सात लाख लोगों ने स्नान किया। मकर संक्रांति पर सोमवार को काशी में भोर से गंगा घाट पर स्नान करने वाले और बाबा विश्वनाथ के दरबार में दर्शन पूजन करने वालों की भीड़ जुटने लगी थी। इससे पूरा गोदौलिया क्षेत्र श्रद्धालुओं से पटा रहा। मंदिर तक लंबी कतार लगी रही। इससे पूरा मंदिर क्षेत्र बाबा के जयकारे से गुंजायमान रहा। त्योहार पर भक्तों की भीड़ को देखते हुए घाट से लेकर मंदिर तक व्यवस्था की गई है। भोर से गंगा तटों पर श्रद्धालु पहुंच गए स्नान कर सूर्य को प्रणाम किया। सूर्यदेव ने सुबह 9:13 बजे धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश किया। भद्राकाल सुबह 9:30 बजे तक रहा। इसलिए गंगा व सरोवरों आदि में स्नान व दान पुण्य का शुभ मुहूर्त 17 मिनट बाद यानी 9:31 बजे से शुरू हुआ। वहीं, कुछ लोगों ने रविवार को ही गंगा स्नान-दानकर मकर संक्रांति मनाया था। मकर संक्रांति के लिए तिलकुट, लाई, चूड़ा की खरीदारी रात तक हुई। बाजार में आए तिल से बने पट्टी, लड्डू, पैकेट बंद गजक आदि की खूब मांग रही। वहीं, बदाम व लइया की पट्टी के अलावा चूड़ा, बतासा, गट्टा व गुड़ की भी खूब बिक्री हुई। दुकानदार चेतगंज के बबलू, लहरतारा के अजय ने बताया कि तिलवा-लइया के दाम में 10 प्रतिशत की तेजी आई है। चेतगंज, लहुराबीर, लंका, सिगरा, विश्वेश्वरगंज, पांडेयपुर, पहड़िया, शिवपुर आदि इलाकों में लगी दुकानों पर भीड़ रही। उधर बड़े बड़े डीजे बजाते हुए लोगों ने खूब पतंगें उड़ाई।  पतंगबाजी में पूरा माहौल डूबा नजर आया। बच्चों के साथ ही अधेड़, जवान व बूढ़े भी पतंगबाजी करते नजर आए। आसमान में पेंच क्या लगे की हर तरफ भककाटा...की गूंज सुनाई देती रही। देर शाम तक लोग पतंगबाजी का लुत्फ उठाते दिखाई दिए।

मशहूर शायर मुनव्वर राना नहीं रहे






Lucknow (dil India live)। 

“मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू

मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना”

“किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई

मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई”

“ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया

माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया”

“इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है

माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है”

“अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा

मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है”।

कुछ ऐसी ही शायरी करने वाला इस सदी का मशहूर शायर मुनव्वर राणा का आज इंतेकाल हो गया। वो 71 साल थे। सदी के इस मशहूर शायर लंबे वक्त से बीमारी से संघर्ष कर रहे थे। मुनव्वर राणा ने  लखनऊ के पीजीआई में अंतिम सांस ली है। उनके निधन की खबर की पुष्टि उनके बेटे ने की है। मुनव्वर राणा का बनारस से भी गहरा रिश्ता था।

मुनव्वर राणा का जीवन परिचय

मुनव्वर राणा एक भारतीय उर्दू भाषा के कवि, लेखक और उत्तर प्रदेश, भारत के गीतकार हैं। वो अपनी शक्तिशाली और विचारोत्तेजक कविता के लिए जाने जाते रहे हैं जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों को संबोधित करती रही है। उन्होंने कविता के कई संग्रह प्रकाशित किए हैं और उनकी रचनाओं को भारत और उसके बाहर व्यापक रूप से सराहा गया है।

दो दर्जन से अधिक पुरस्कारों के विजेता, लखनऊ स्थित मुनव्वर राणा एक अद्वितीय स्वर के साथ भारत के सबसे लोकप्रिय और प्रशंसित कवियों में से एक हैं। वो हिंदी और उर्दू दोनों में लिखते थे और भारत और विदेशों में मुशायरा हलकों में एक प्रमुख नाम था। उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता ज़बरदस्त 'माँ' थी जिसमें उन्होंने ग़ज़ल की शैली का इस्तेमाल एक माँ के गुणों का गुणगान करने के लिए किया था। उनके कुछ अन्य कार्यों में मुहजिरनामा, घर अकेला हो गया और पीपल छाँव शामिल हैं। उन्हें उनकी कविता पुस्तक, शाहदाबा के लिए प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें अमीर खुसरो पुरस्कार, मीर तकी मीर पुरस्कार, ग़ालिब पुरस्कार, डॉ. ज़ाकिर हुसैन पुरस्कार और सरस्वती समाज पुरस्कार मिल चुके हैं। राणा की कविताओं का हिंदी, उर्दू, गुरुमुखी और बांग्ला में भी अनुवाद और प्रकाशन हुआ है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के एक गांव में हुआ था। विभाजन की उथल-पुथल के दौरान, उनके अधिकांश करीबी रिश्तेदार, जिनमें उनकी चाची और दादी शामिल थीं, पाकिस्तान में सीमा पार कर गए थे। लेकिन उनके पिता ने भारत के प्रति प्रेम के कारण यहां रहना चुना। बाद में, उनका परिवार कोलकाता चला गया, जहाँ युवा मुनव्वर ने अपनी शिक्षा पूरी की। माँ की स्तुति करने के लिए ग़ज़ल शैली का उनका चुनाव उनकी कविता का एक दुर्लभ और उल्लेखनीय पहलू है, क्योंकि ग़ज़लों को पारंपरिक रूप से कविता की एक शैली के रूप में माना जाता था जिसमें प्रेमी एक दूसरे के साथ बातचीत करते थे।

साहित्य में करियर

मुनव्वर राणा उर्दू साहित्य की दुनिया में एक प्रमुख व्यक्ति हैं। उन्होंने एक कवि के रूप में अपना करियर शुरू किया और अपनी अनूठी शैली और शक्तिशाली भाषा के लिए जल्दी ही पहचान हासिल कर ली। उन्होंने अपनी कविताओं के कई संग्रह प्रकाशित किए हैं, जिनमें "खाकान ए इश्क", "मैं नहीं मानता", "सर-ए-वादी-ए-सबा" और "बातें" शामिल हैं। उनका काम अपनी विचारोत्तेजक सामग्री और मजबूत सामाजिक टिप्पणी के लिए जाना जाता है। एक कवि के रूप में अपने काम के अलावा, राणा ने फिल्म और टेलीविजन के लिए गीतकार के रूप में भी काम किया है। उन्होंने कई लोकप्रिय फिल्मों और टीवी शो के लिए गीत लिखे हैं, और उनके गीत उनकी भावनात्मक गहराई और शक्तिशाली प्रभाव के लिए जाने जाते हैं।

राजनीतिक विचार

मुनव्वर राणा अपनी शक्तिशाली और विचारोत्तेजक कविता के लिए जाने जाते हैं जो अक्सर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को उठाती है। उन्हें आधुनिक उर्दू शायरी में अग्रणी आवाज़ों में से एक माना जाता रहा है और उन्हें भ्रष्टाचार, भेदभाव और सामाजिक अन्याय जैसे संवेदनशील विषयों के स्पष्ट और अप्रकाशित उपचार के लिए भी जाना जाता है।

अपने पूरे करियर के दौरान, मुनव्वर राणा ने महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और यथास्थिति को चुनौती देने के लिए एक मंच के रूप में अपनी कविता का उपयोग किया है। वो विवादास्पद विषयों पर अपने निर्भीक और निडर दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे, और उनके काम ने कई लोगों को प्रेरित और सशक्त किया है। राणा के सामाजिक और राजनीतिक विचार उनके साहित्यिक कार्यों से निकटता से जुड़े हुए हैं, और उन्हें व्यापक रूप से आधुनिक उर्दू कविता में सबसे प्रभावशाली आवाज़ों में से एक माना जाता है।

मुनव्वर राणा एक प्रसिद्ध उर्दू कवि और गीतकार हैं जिन्होंने उर्दू साहित्य को काफी प्रभावित किया है। उन्हें समकालीन उर्दू शायरी में प्रमुख आवाज़ों में से एक माना जाता है और वो अपनी तीक्ष्ण और विचारोत्तेजक शायरी के लिए प्रसिद्ध हैं जो अक्सर राजनीतिक और सामाजिक विषयों को संबोधित करती हैं। राणा ने अपने करियर के दौरान साहित्य और कला में अपने योगदान के लिए अनगिनत सम्मान और पुरस्कार अर्जित किए हैं, और वो आज भी कवियों और कलाकारों के लिए एक बड़ी प्रेरणा हैं।

'हमारी फिक्र पर पहरा लगा नहीं सकते, हम इंकलाब है हमको दबा नहीं सकते'

'बेटियां है तो घर निराला है, घर में इनसे ही तो उजाला है....' डीएवी कॉलेज में मुशायरे में शायरों ने दिया मोहब्बत का पैगाम Varanasi (d...