सोमवार, 22 जनवरी 2024

Ajmer Sharif me khwaja का उर्स सम्पन्न

केवड़े से महका अजमेरी दरबार

ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती गरीब नवाज के दर से लौटने लगा दुनिया का रेला 


Ajmer (dil India live). हिंदलवली सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह के सालाना उर्स बड़े कुल की रस्म के साथ इतवार को संपन्न हो गया। दरगाह में बड़े कुल की रस्म पर अकीदतमंदों ने केवड़े और गुलाब जल से ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह शरीफ़ की दीवारों को धोया। जिससे अजमेरी दरबार परिसर महक उठा तो वहीं जायरीन ने दरगाह में हाजिरी लगाकर अपने और अपने परिवार की सलामती और खुशहाली की दुआ मांगी। इस दौरान दरगाह में मुल्क में अमन-चैन, भाईचारे और मोहब्बत के लिए भी दुआएं मांगी गई। ख्वाजा गरीब नवाज के सालाना उर्स पर परंपरागत रस्मे निभाई जाती है। इन रस्मों में सबसे आखरी रस्म बड़े कुल की होती है। इस रस्म के बाद से ही दरगाह में आम दिनों की तरह व्यवस्थाएं शुरू हो जाती है। रविवार को दरगाह में बड़े कुल की रस्म के लिए बड़ी संख्या में जायरीन मौजूद रहे। यूं तो जायरीन ने शनिवार की रात से ही दरगाह की दीवारों को गुलाब जल और केवड़े से धोना शुरू कर दिया था, जिसका सिलसिला रविवार को सुबह के दौरान भी देखने को मिला। यहां सुबह से ही दरगाह में जायरीन ने दरगाह की दीवारों से पानी बोतल में भरते हुए दिखाई दे रहे थे। बताया जाता है कि ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का समापन विधिवत रूप से रजब की 6 तारीख को छोटे कुल की रस्म के साथ हो जाता है। 9 रजब की तारीख को दरगाह में बड़े कुल की रस्म अदा की जाती है। इस रसुमात को गुसल की रस्म भी कहा जाता है।

ये होती है बड़े कुल की रस्म

दरगाह में खादिमों की संस्था अंजुमन कमेटी के पूर्व सदर मोईन सरकार ने बताया कि कि कुल की रस्म के तहत दरगाह के खादिम आस्ताने में इत्र और गुलाब जल से मजार शरीफ को गुस्ल देते हैं। इसके बाद परिसर के अहाते को गुलाब जल और केवड़ा से धोया जाता है, वहीं, सूफीयत से जुड़े लोग आस्ताने के बाहर के क्षेत्र को केवड़ा और गुलाब जल से धोते हैं। उन्हें देखकर जायरीन भी केवड़ा और गुलाब जल से दरगाह को धोना शुरू कर देते हैं। सालों से कुल की रस्म के दौरान यही रसुमात होती आई है। जायरीन अपने साथ दरगाह की दीवार पर लगने वाले गुलाब जल और केवड़े के पानी को बोतलों में भरकर लाते हैं. उन्होंने बताया कि 9 रजब को मजार शरीफ को आखरी गुसल दिया जाता है। इस रस्म को कुल की रस्म कहते हैं। इस रसुमात के तहत मजार शरीफ को गुसल दिया जाता है। देश मे अमन चैन खुशहाली के लिए भी ख़ास दुआएं की गई।

कुल की रस्म के साथ उर्स संपन्न

खादिम सैयद फैसल चिश्ती ने कहा कि कुल की रस्म उर्स की आखरी रस्म होती है। इस रस्म के बाद से ही उर्स मेला सम्पन्न हो जाता है और जायरीन का रेला अपने घरों को लौटने लगता हैं। उन्होंने बताया कि कुल की रस्म के दौरान खादिम दरगाह आने वाले हर जायरीन के लिए दुआएं करते हैं। ताकि वो और उनका परिवार सलामत और खुशहाल रहे।

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