शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

मानसून पार्टी में मचाया धमाल



Varanasi (dil india live). स्माइल मुनिया के तत्त्वाधान मे मानसून पार्टी का आयोजन किया गया। इस दौरान स्कूल जाने वाली एक जरुरतमंद मुनिया को साइकिल प्रदान की गई। सभी सदस्याएं आसमानी रंग के परिधान में सजधज कर आईं थीं। बारिश के गीत डांस तथा उसी से संबंधित मजेदार गेम्स का भी आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मानसून क्वीन का चयन हुआ। 

अध्यक्षा अंजलि अग्रवाल ने स्वागत कर मुनिया को साइकिल प्रदान किया। निशा एवं सुषमा के संयोजन में कार्यक्रम संपन्न हुआ। निधि, विनीता मल्होत्रा, जयंती, प्रीती जयसवाल, नूतन रंजन, ममता तिवारी, रेनू कैला, विनीता इत्यादि ने कार्यक्रम को खुशनुमा रंग दिया। इस  मौके पर धन्यवाद सरोज राय तथा संचालन चंद्रा शर्मा ने किया।

COVID-19: 18 प्लस के युवाओं का शुरू हुआ वैक्सीनेशन

बूस्टर डोज वैक्सीनेशन अब लग रहा निःशुल्क


Himanshu Rai

Ghazipur (dil india live). कोविड-19 टीकाकरण जो स्वास्थ्य विभाग की तरफ से आमजन को निशुल्क किया जा रहा है। कुछ समय पहले की बात करें तो  निजी अस्पतालों के माध्यम से प्रति टीकाकरण ₹375 का शुल्क लिया जा रहा था। लेकिन आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 18 प्लस के युवाओं का शुक्रवार 15 जुलाई से 30 सितंबर तक जनपद के सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर निशुल्क टीकाकरण शुरू किया गया। जिस के क्रम में जनपद में 502 लोगों का टीकाकरण किया गया।

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ उमेश कुमार ने बताया कि शासन से मिले निर्देश के क्रम में आज जनपद के 16 ब्लॉक में 18 प्लस के युवाओं के लिए टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया। बूस्टर डोज के लिए लोगों की भीड़ कम दिखी। लेकिन आने वाले समय में लोगों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है । विभाग के द्वारा और जिला प्रशासन के द्वारा कोविड-19 के बूस्टर डोज 18 प्लस के युवाओं को लगाया जाना है। इसके लिए जागरूक किया जा रहा है।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ आशीष राय ने बताया कि उनके ब्लॉक में ट्रामा सेंटर के अलावा पांच अन्य स्वास्थ्य केंद्रों पर भी कोविड-19 टीकाकरण 18 प्लस के लोगों का किया गया। जिसका उद्घाटन भाजपा के नेता सतीश चंद्र राय और तेज बहादुर के द्वारा किया गया। उन्होंने बताया कि  टीकाकरण के लिए स्लॉट बुक कराने वाले लोगों के लिए प्राथमिकता पर टीकाकरण किया गया। वहीं पूर्व में टीकाकरण कराये लोग जिनका 6 माह पूर्ण हो चुका था। उन्हें फोन कर आमंत्रित किया गया और कुल 66 लोगों का टीकाकरण हुआ।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रेवतीपुर पर कोविड-19 टीकाकरण का उद्घाटन ब्लाक प्रमुख अजिताभ राय के द्वारा किया गया । इस दौरान उन्होंने स्वयं  अपना बूस्टर डोज का वैक्सीनेशन भी कराया। बीपीएम बबीता सिंह ने बताया कि उनके स्वास्थ्य केंद्र पर कुल 52 लोगों का टीकाकरण किया गया। जिसमें से बहुत सारे लोगों को फोन कर बताया गया था।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सैदपुर पर डब्ल्यूएचओ के एसएमओ डॉ विनय कुमार के द्वारा कोविड-19 टीकाकरण का शुभारंभ किया गया। कुल 45 लोगों का टीकाकरण किया गया। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र देवकली पर डॉ एसके सरोज ने टीकाकरण केंद्र का उद्घाटन किया । कुल 65 लोगों का टीकाकरण कराया गया। इस दौरान मनिहारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर बूस्टर डोज का लाभ 55 लोगों ने उठाया। बीपीएम धीरज विश्वकर्मा ने बताया कि बूस्टर डोज के लिए 1 दिन पूर्व से ही सेकंड डोज का 6 माह पूर्ण कर चुके लोगों को लगातार फोन किया गया। फिर भी संख्या कम रही लेकिन आने वाले समय में लोगों की भीड़ बढ़ने की उम्मीद है। इस कार्यक्रम में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मोहमदाबाद पर बीपीएम संजीव कुमार,एएनएम प्रीति, सुधीर, यासमीन, धर्मेंद्र, पंकज मौजूद रहे। वही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रेवतीपुर पर प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ अनिल कुमार, बीसीपीएम सुनील कुमार, आशुतोष कुमार, अभिषेक कुमार ,आनंद कुमार, शैलजा राय, शैलेश राय व अन्य लोग मौजूद रहे।

जानिए भारतीय सेना के इस जांबाज ब्रिगेडियर की कहानी

'नौशेरा के शेर' मोहम्मद उस्मान की आज है यौमे पैदाइश

(15 जुलाई जयंती पर खास ) 




Shahin ansari

Varanasi (dil india live)। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जंग के मैदान में शहीद होने वाले बड़ी रैंक के पहले अफसर थे। बहादुरी ऐसी कि पाकिस्तानी सेना खौफ खाती थी। इंडियन आर्मी के इस अफसर को "नौशेरा का शेर" भी कहा जाता है। उस्मान ने वतन परस्ती की ऐसी मिसाल पेश की कि बंटवारे के दौरान पाकिस्तानी सेना का चीफ बनने का मोहम्मद अली जिन्ना का प्रस्ताव ठुकरा दिया। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान पहले ऐसे अफसर थे,जिस जांबाज़ पर पाकिस्तान ने इनाम रखा था।

  भारतीय सेना के महान अफसर  ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को  आजमगढ़ में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद फारूख पुलिस में आला अधिकारी थे जबकि मां जमीलन बीबी घरेलू महिला थीं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय मरदसे में हुई और आगे की पढ़ाई वाराणसी के हरश्चिंद्र स्कूल तथा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हुई। वह न सिर्फ अच्छे खिलाड़ी थे बल्कि ज़बरदस्त वक्ता भी थे। वीरता उनमें कूट-कूट कर भरी थी। तभी तो महज़ 12 साल की उम्र में वह अपने एक मित्र को बचाने के लिए कुएं में कूद पड़े थे और उसे बचा भी लिया था।

 देश के बंटवारे के समय जिन्ना और लियाकत खान ने मुसलमान होने का वास्ता देकर उनसे पाकिस्तान आने का आग्रह किया। साथ ही पाकिस्तान की सेना का प्रमुख बनाने का न्यौता भी दिया। मगर उन्होंने उस न्यौते को ठुकरा दिया और 1947-48 में पाकिस्तान के साथ पहले युद्ध में वे शहीद हो गए। साल 1932 में मोहम्मद उस्मान की उम्र महज 20 वर्ष थी। उस्मान जिस दौर में पल रहे थे, वो आजादी से काफी पहले का दौर था। उस्मान ने तभी सेना में जाकर देश के लिए कुछ करने का जज्बा दिल में पाल लिया था। यह वो दौर था जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत थी। उस्मान के पिता चाहते थे कि बेटा सिविल सर्विस में जाकर खानदान का नाम ऊंचा करे। लेकिन उस्मान के ख़्वाब उनके पिता की सोच से अलग थे।

 20  वर्ष की उम्र में उस्मान को आर एम, रॉयल मिलिट्री एकेडमी में दाखिला मिल गया। उस वक्त पूरे भारत में केवल 10 लड़कों को इस मिलिट्री संस्थान में दाखिला मिला था। उस्मान उनमें से एक थे। तब भारत की अपनी मिलिट्री एकेडमी नहीं थी, इसलिए सेना में जाने वाले युवाओं को ब्रिटिश सरकार इंग्लैंड में रॉयल मिलिट्री एकेडमी भेजकर ट्रेनिंग करवाती थी। हालांकि इंग्लैंड की इस एकेडमी का यह आखिरी बैच था। उसी साल भारत में उत्तराखंड के देहरादून में पहली इंडियन मिलिट्री एकेडमी की स्थापना हो गई। उस्मान अपने पिता फारूख की उम्मीदों से उलट आर्मी अफसर बनने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए। वहां उन्होंने 3 साल तक मिलिट्री की कड़ी ट्रेनिंग ली। इंग्लैंड की रॉयल मिलिट्री एकेडमी में प्रशिक्षण पूरा करने के बाद एक साल उस्मान ने रॉयल मिलिट्री फोर्स में भी अपनी सेवाएं दीं।

 जिसके बाद वो भारत लौट आए। साल 1935 में उस्मान को 10वीं बलूच रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में पहली तैनाती मिली। वर्ल्ड वॉर के दौरान मोहम्मद उस्मान को अफगानिस्तान और बर्मा में भी तैनात किया गया। 30 अप्रैल, 1936 को उनको लेफ्टिनेंट की रैंक पर प्रमोशन मिला और 31 अगस्त, 1941 को कैप्टन की रैंक पर। अप्रैल 1944 में उन्होंने बर्मा में अपनी सेवा दी और 27 सितंबर, 1945 को लंदन गैजेट में कार्यवाहक मेजर के तौर पर उनके नाम का उल्लेख किया गया। बंटवारे से पहले साल 1945 से लेकर साल 1946 तक मोहम्म्द उस्मान ने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन का नेतृत्व किया। बलूच रेजीमेंट में तैनाती के दौरान वह युद्ध की हर बारीकी को सीख रहे थे। उस्मान शायद अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई के लिए तैयार हो रहे थे। जो उन्हें बंटवारे के बाद पाकिस्तानी फौज से लड़नी थी। अपनी काबिलियत के दम पर उन्हें लागातार प्रमोशन मिलता रहा और कम उम्र में ही वो ब्रिगेडियर के पद पर क़ाबिज़ हो गए।

 साल 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। जिसके बाद दोनों देशों से हजारों लोग इस तरफ से उस तरफ गए और वहां से यहां आए। भारत-पाक बंटवारे के बाद हर चीज का बंटवारा हो रहा था। जमीन के टुकड़े के साथ ही विभागों और सेना की कुछ रेजिमेंट का बंटवारा किया गया। बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा बना। बंटवारे के बाद मोहम्मद उस्मान बड़ी मुश्किल में आ गए। क्योंकि बलूच रेजिमेंट बंटवारे के बाद पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई। उस दौर में सेना में बहुत ही कम मुसलमान थे। जब बंटवारा हुआ तो मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमान होने की वजह से ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तान ले जाना चाहते थे।

 जिन्ना जानते थे कि उस्मान एक काबिल और दिलेर अफसर हैं, जो पाकिस्तानी सेना के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बावजूद इसके उस्मान ने पाकिस्तान जाने से साफ मना कर दिया। उसके बाद उस्मान को तोड़ने के लिए पाकिस्तानियों की ओर से काफी प्रलोभन दिए गए। इतना ही नहीं, मोहम्मद अली जिन्ना ने मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तानी सेना का चीफ ऑफ आर्मी बनाने तक का लालच दिया था। मगर जिन्ना का ये लालच भी उस्मान के ईमान को हिला नहीं पाया। उस्मान ने भारतीय सेना में ही रहने का फैसला किया। जिसके बाद उन्हें डोगरा रेजिमेंट में शिफ्ट कर दिया गया। साल 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद कश्मीर आजाद रहना चाहता था। लेकिन पाकिस्तान ने बेहद चालाकी से वहां घुसपैठ की । पाकिस्तान की मंशा कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने की थी।

 उस दौरान कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। भारतीय सेना ने कश्मीर को बचाने के लिए अपने सैनिकों को श्रीनगर भेज दिया। भारतीय सेना का पहला लक्ष्य पाकिस्तानियों से कश्मीर घाटी को बचाना था। भारतीय सेना ने कश्मीर के आम इलाकों को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया। वहीं, पाकिस्तानी घुसपैठ करते हुए नौशेरा तक पहुंच गए थे। पाकिस्तानी फौज कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर चुकी थी। पुंछ में हजारों लोग फंसे हुए थे। जिन्हें निकालने का काम भारतीय सेना कर रही थी। उस समय ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 77वें पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे। वहां से उनको 50वें पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभालने के लिए भेजा गया। इस रेजिमेंट को दिसंबर, 1947 में झांगर में तैनात किया गया था।

 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झांगर पर भी कब्जा कर लिया था। झांगर का पाक के लिए सामरिक महत्व था। मीरपुर और कोटली से सड़कें आकर यहीं मिलती थीं। लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करिअप्पा तब वेस्टर्न आर्मी कमांडर थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था – झांगर और पुंछ पर कब्जा करना। कई अन्य अधिकारियों के साथ ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भी कश्मीर में अपनी बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। उस्मान के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं था। दुश्मन गुफाओं में छिपकर भारतीय सेना पर हमला कर रहे थे। उस्मान ने झांगर क्षेत्र को पाकिस्तानियों के कब्जे से आज़ाद कराने की क़सम खाई थी। जो उन्होंने पूरी भी की।

 ब्रिगेडियर उस्मान ने एक तो पाकिस्तान की सेना में सेनाध्यक्ष बनने की जिन्ना की पेशकश को ठुकरा दिया था। उसके बाद ऐसी बहादुरी दिखाई कि एक के बाद एक इलाके दुश्मन सेना के कब्जे से छुड़ा लाए। झांगर हासिल करने के बाद ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा को भी फतह कर लिया था। जिसके बाद से उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाने लगा। उस्मान की बहादुरी के आगे पाकिस्तानी सेना चारों खाने चित्त हो गई थी। ब्रिगेडियर उस्मान की क़ाबलियतऔर कुशल रणनीति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके नेतृत्व में भारतीय सेना को काफ़ी कम नुकसान हुआ था। जहां इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 1000 सैनिक मारे गए, तो वहीं भारतीय सेना के सिर्फ 33 सैनिक शहीद हुए थे। ब्रिगेडियर  उस्मान अपनी बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सेना की आंखों की किरकिरी बन चुके थे। पाकिस्तान इतना बौखला गया था कि उसने उस्मान के सिर पर 50 हजार रुपए का इनाम भी रख दिया।

 पाक सेना घात लगाकर बैठी थी। 3 जुलाई, 1948 की शाम, पौने 6 बजे होंगे। उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले कि उन पर 25 पाउंड का गोला पाक सेना ने दाग दिया। उनके अंतिम शब्द थे – हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाए। ब्रिगेडियर उस्मान 36वें जन्मदिन से 12 दिन पहले शहीद हो गए। ब्रिगेडियर के पद पर रहते हुए देश के लिए शहीद होने वाले उस्मान इकलौते भारतीय थे। उन्हीं की कुर्बानी का नतीजा है कि आज भी जम्मू-कश्मीर की घाटियां भारत का अभिन्न अंग हैं। 

 शहादत के बाद राजकीय सम्मान के साथ उन्हें जामिया मिल्लिया इस्लामिया क़ब्रगाह, नयी दिल्ली में दफनाया गया। उनकी अंतिम यात्रा में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला शामिल थे। किसी फौजी के लिए आज़ाद भारत का यह सबसे बड़ा सम्मान था। यह सम्मान उनके बाद किसी भारतीय फौजी को नहीं मिला। मरणोपरांत उन्हें ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

 उस्मान अलग ही मिट्टी के बने थे। अपने फौजी जीवन में बेहद कड़क माने जाने वाले उस्मान अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद मानवीय और उदार थे। अपने वेतन का अधिकाँश हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। वे नौशेरा में अनाथ पाए गए 158 बच्चों को उनको पढ़ाते-लिखाते और उनकी देखभाल करते थे। जब-जब भारतीय फौज की वतनपरस्ती और पराक्रम का जिक्र होगा, भारत माँ के सपूत ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का नाम बड़े अदब के साथ याद लिया जाएगा।

"लाई हयात आये , क़ज़ा ले चली , चले।

अपनी ख़ुशी से आये ना, अपनी ख़ुशी चले।।"

(लेखक सेन्टर फ़ॉर हार्मोनी एंड पीस से जुड़ी हुई हैं।)

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

आमिर बने वैज्ञानिक अधिकारी


Varanasi (dil india live). मदरसा जामिया मतलउल उलूम कमनगढा के वरिष्ठ अध्यापक मुहम्मद अकील अंसारी के पुत्र मुहम्मद आमिर का भाभा आटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) मुंबई में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर चयन होने पर मदरसा परिवार और बुनकर समाज गौरवान्वित महसूस कर रहा है। सभी खुश हैं कि आमिर ने बुनकर समाज का नाम रौशन किया है। आमिर का वैज्ञानिक अधिकारी बनने पर सामाजिक संस्था "सुल्तान क्लब" वाराणसी के अध्यक्ष डॉक्टर एहतेशामुल हक और सभी सदस्यों ने मुबारकबाद पेशकर उज्ज्वल भविष्य की कामना की है। मूलतः गाजीपुर जनपद के रहने वाले मुहम्मद आमिर ने पिछले दिनों आल इंडिया परीक्षा गेट में 45 वीं रैंक प्राप्त किया था। आमिर ने वाराणसी में रहकर अपनी पढ़ाई मुकम्मल की।

बुधवार, 13 जुलाई 2022

इनरव्हील मित्रम की नई टीम



Varanasi (dil india live). इनरव्हील क्लब वाराणसी मित्रम द्वारा द्वारिका होटल लंका, BHU ट्रॉमा सेंटर के सामने नवगठित टीम का शपथ ग्रहण समारोह मनाया गया। इसमें मुख्य अतिथि PAT अंजलि अग्रवाल गेस्ट ओफ़ ऑनर एसोसीएशन ट्रेज़रर अर्चना बाजपेई, ESO आशा अग्रवाल, कोऑर्डिनेटर रेणु कैला एवं अन्य क्लब की अतिथि मौजूद रहीं। मित्रम की सभी सदस्य इस समारोह में हर्षोल्लास से उपास्थित हुई। नवगठित टीम में नूतन रंजन ने अध्यक्ष पद की शपथ लिया, सेक्रेटेरी- चंद्रा शर्मा, वाइस प्रेसिडेंट- ममता तिवारी, ट्रेज़रर- सरोज राय, ISO- रीता कश्यप , एडिटर - उमा केशरी ने भी अपना पद ग्रहण का शपथ लिया। अध्यक्ष नूतन रंजन ने आए हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए उन्हें बाधाइयाँ दीं। कार्यक्रम का संचालन शीला अग्रवाल एवं धन्यवाद ज्ञापन वाइस प्रेसिडेंट ममता तिवारी ने किया। इस अवसर पर क्लब की सभी सदस्य - रीता भट्ट, रानी केशरी, अमृता शर्मा, पल्लवी केशरी, सतरूपा केशरी, मंजु  केशरी , सुनीता अग्रवाल, रेखा अग्रवाल, निशा अग्रवाल, सुषमा अग्रवाल, अमृता रानी, पारुल, सरिता, संगीता अग्रवाल आदि मौजूद थीं।

एएमयू का बजट घटाये जाने से अल्पसंख्यक कांग्रेस में रोष

Varanasi (dil india live). अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का बजट घटाए जाने से कांग्रेसियों में रोष व्यक्त किया है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश महासचिव हसन मेंहदी कब्बन ने एक विज्ञप्ति में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का बजट 62 करोड़ से घटाकर 9 करोड़ करने को लेकर अल्पसंख्यक कांग्रेस में रोष है।

कब्बन ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव भी नहीं हो रहा हैं जिससे छात्रों की जायज मांग विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष नहीं उठ पा रही हैं। यूपीए सरकार द्वारा प्रस्तावित एएमयू के चार बड़ केंद्रों को जल्द से जल्द शुरू करने की भी मांग की है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का बजट 100 करोड़ करने की कांग्रेस जनों ने मांग की है। उन्होंने अपने बयान में आगे कहा कि सरकार बजट में कटौती कर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को बंद करने की साजिश रच रहा है। जल्द ही उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम के नेतृत्व में एक जन आंदोलन चलाया जाएगा जिसकी शुरुआत पहले मानव संसाधन मंत्रालय को ज्ञापन देकर की जाएगी।

पं. दीनदयाल चिकित्सालय में फिर से शुरु हुई दंत चिकित्सा सेवा

नये संसाधनों, उपकरणों के साथ दंत रोगियों का हो रहा निःशुल्क उपचार


Varanasi (dil india live). दंत रोगियों को अब इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं है। पं. दीन दयाल उपाध्याय चिकित्सालय में दंत चिकित्सा सेवा फिर से शुरू कर दी गयी है। नये संसाधनों के साथ शुरू की गयी इस सेवा का दंत रोगी लाभ उठा सकते हैं।

पं. दीनदयाल चिकित्सालय दंत विभाग की प्रभारी डा. निहारिका मौर्या ने बताया कि ओपीडी में हर रोज औसतन 40 से 50 मरीज देखे जा रहे हैं। जरूरत के अनुसार उनकी सर्जरी भी की जा रही है। उन्होंने बताया कि फिलहाल दंत चिकित्सा की सभी जरूरी सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं। मसलन खराब दांत को निकालना, उनकी सफाई, फीलिंग आदि उपचार किये जा रहे हैं।

दांतोंके प्रति न बरतें लापरवाही


डा. निहारिका कहती हैं दांत हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। इसके प्रति बरती गयी लापरवाही न केवल हमारे स्वास्थ्य बल्कि व्यक्तित्व पर भी प्रभाव डालता है। शरीर के अंदर होने वाली कई बीमारियों का कारण खराब दांत और खराब मसूढ़े होते हैं। लिहाजा इनके प्रति सभी को संवेदनशील होना चाहिए। आम तौर पर दांत की बीमारियों की लोग अनदेखी करते हैं। चिकित्सक के पास तब जाते है जब उन्हें दांत या मसूढ़े में तेज दर्द होने लगता है, जबकि थोड़ी सी सावधानियों से हम दंत रोगों से बच सकते हैं। डा. निहारिका ने कहा कि दांतों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए खाने के बाद उसे अच्छी तरह साफ करना जरूरी होता है। ऐसा न करने पर खुराक दांतों में फंस जाता है और कुछ समय बाद उसमें सड़ांध शुरू होजाती है। वह कहती हैं कि एक ही ब्रश कई महीनों तक इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उसे समय-समय पर बदलते रहना चाहिए ताकि खराब ब्रश दांतों व मसूढ़ों को नुकसान न पहुंचा सकें।

 यहां करें सम्पर्क

डा. निहारिका का कहना है कि दंत रोग होने पर उसका तुरंत उपचार कराना चाहिए। पं. दीन दयाल उपाध्याय चिकित्सालय के कक्ष संख्या 313 में किसी भी कार्यदिवस में सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक दंत चिकित्सा सेवा निःशुल्क उपलब्ध है। दंत रोगी इसका लाभ उठा सकते हैं।

Om Prakash Rajbhar बोले आदर्श समाज के निर्माण में स्काउट गाइड का योगदान सराहनीय

भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के स्थापना दिवस सप्ताह का समापन जमीयत यूथ क्लब के बच्चों ने किया मंत्री ओपी राजभर का अभिनंदन Varanasi (dil India li...