बुधवार, 12 मई 2021

8 साल के यासीन ने रखा पूरे माह रमज़ान का रोजा

ये कहानी है नन्हें रोजेदार  की (12-05-2021) 

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। हजारों साल नर्गिस अपनी बे नूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा...। यह लाइन इस मासूम बच्चे पर बहुत ही ठीक बैठती है। जो एक रमज़ान से अब तक पूरा रोज़ा रखने में कामयाब रहा हैं। फिरोज आलम के लख्ते जिगर इस नन्हें रोजेदार ने लोगों के दिलों को जीत लिया। इतनी कम उम्र में पूरे एक माह का रोज़ा रख कर नमाज़ की पाबंदी के साथ दुआ का भी एहतमाम करता है।

 काज़ी सादुल्लाह पूरा के रहने वाले 8 साल का यासीन, गुलिस्तां इंग्लिश स्कूल में दर्जा एक में पढ़ता है। कोरोना काल में भी पढ़ाई घर पर करने से नहीं भा


गता, मां बाप के लाख मना करने पर पिछले 2 वर्ष से पूरे माह का रोज़ा रखता चला आ रहा है।15 घंटा दिन भर भूखा प्यासा रहकर अपने मासूम हाथों से खुदा से दुआ मांगता है कि इस वबाई कोरोना मर्ज को ऐ अल्लाह हमारे मुल्क से दूर कर दे और सभी को सेहत व तंदुरुस्ती दे, हमे इल्म की रौशनी से मालामाल कर दे...आमीन।

मंगलवार, 11 मई 2021

आखिरी शबे कद्र पर इबादत में डूबे रोज़ेदार

शबे कद्र में नाज़िल हुई थी पाक कुरान

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। इस माहे रमज़ान की आज आखिरी शबे कद्र पर रोज़ेदारों ने जाग कर इबादत की। इस दौरान शहर में कई जगहों पर शबीने का भी एहतमाम किया। पाक कुरान की आयतें फिज़ा में देर रात तक बुलंद हो रही की थी।


शबे कद्र के बारे में अल्लाह तआला फरमाता है कि बेशक हमनें कुरआन को शबे कद्र में उतारा। शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है यानी हजार महीना तक इबादत करने का जिस कदर सवाब है उससे ज्यादा शबे कद्र में इबादत का सवाब है। जो आदमी इस एक रात को इबादत में गुजार दे उसने गोया 83 साल 4 माह से ज्यादा वक्त इबादत में गुजार दिया। हाफिज तहसीन रज़ा ने बताया कि पैगंबर-ए-आजम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया शबे कद्र अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत को अता की है। यह पहली उम्मतों को नहीं मिली। हजरत आयशा रदियल्लाहु अन्हा से मरवी है कि पैगंबर-ए-आजम ने फरमाया शबे कद्र को आखिरी अशरा की ताक रातों में तलाश करो यानी रमजान की 21, 23, 25, 27, 29 में तलाशो।

ईद ज़रूरतमंदों का ख़याल रखने का नाम

ईद का पैग़ाम-4 (11-05-2021)

घरों में ही मनाएं ईद की ख़ुशियां 

वाराणसी(दिल इंडिया लाइव)। ईद ज़रुरतमंदों का ख्याल रखने का नाम है। इस वक्त कोरोना महामारी का दौर है। लोगों का कारोबार रसरकार द्वारा लगाए गए कोरोना कर्फ्यू की वजह से बंद पड़ा है। मुसलमानों को इस सबसे बड़े त्यौहार को घर पर ही रह कर मनाना है। ऐसे में अगर हम सब एक दूसरे का ख्याल रखें तो सभी की ईद हंसी खुशी मन जायेगी।

इस वक्त अल्लाह हम सब का कड़ा इम्तिहान ले रहा। कारोबार से लेकर बहुत सारी ज़रूरी काम-काज़ बंद है। नमाज़ व अन्य ज़रूरी इबादत भी अपने-अपने घरों में अदा कर रहे हैं, देश व दुनिया के अंदर आई महामारी के कारण इस साल भी पिछले साल की तरह ही अलग प्रकार की ईद मनाने को हम सब बेबस हैं। सब को यह पता है कि इस बीमारी से बचने का एक ही उपाय है कि हम सब अपने-अपने घरों में रहें और सोशल डिस्टेन्स का पालन करें। बहुत ज़रूरी हो तभी घर से निकले वो भी मास्क लगाकर। ईद के दिन उलेमाओं के हिसाब से अपने घरों में ही अच्छी नीयत व मजबूत इरादों के साथ नमाज़ पढ़ें, अल्लाह से ख़ूब दुआएं करें जिससे कि इस कोरोना महामारी से निजात भी मिले और हमसब फिर से पहले की तरह सेहतमंद रहें व अपने हाल-कारोबार में तरक्की भी कर सकें। अपने आस-पास ज़रूरतमंदों का हर हाल में ख्याल रखना है जिससे ईद की खुशियों में हर शख्स शामिल हो सके।

 


                       डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद

                       (पूर्व सदस्य, सेण्ट्रल हज कमेटी)

तेरे दीदार से होगी चाहने वालो कि ईद

चांद रात कलदीदार की रहेगी सभी को बेताबी

वाराणसी

(दिल इंडिया लाइव)। रमज़ान की 
29 वीं तारीख बुधवार चांद रात है। अगर चांद का दीदार हो जाता है तो हिजरी कलैंडर के 10 वें महीने शव्वाल का आगाज़ हो जायेगा और मुस्लिम ईद की खुशियां जुमेरात को मनायेंगे। इस दौरान चांद देखने के लिए लोगों में बेताबी रहेगी। चांद देखने के लिए घरोंमस्जिदों-इबादतगाहों की छत और मैदान में रोज़ेदार जुटेगे। अगर चांद देखे जाने की तस्दीक हो जाती है तो जुमेरात को ईद मनायी जायेगीअगर चांद नहीं दिखाई देता हैतो जुमेरात चांद रात होगी और जुमे को ईद मनायी जायेगी।

चांद दिखे तो यहां करें इत्तेला

अगर आपने 29 वीं रमज़ान का चांद देखा है तो आपकी जिम्मेदारी है इसकी जानकारी उलेमाओं या फिर चांद कमेटी को दें। ताकि ईद का सही ऐलान किया जा सके। क्यों कि उलेमा आपकी तस्दीक पर ही ईद का ऐलान करते हैं। मर्द हो या ख्वातीन ईद का चांद जरूर देखे।

नबी के दौर से है चांद की रवायत 

चांद देखने की रवायत इस्लाम में सैकड़ों साल कदीमी है। जब नबी-ए-करीम (स.) ने मक्का से मदीना हिजरत किया और अपने नबी होने का ऐलान किया था। तभी हिजरी सन् की शुरुआत चांद देखकर हुई। इसलिए चांद के दीदार से ही इस्लामी हिजरी महीने का आगाज़ होता है। चांद देखने का सवाब भी है। नबी-ए-करीम (स.) फरमाते हैं कि पांच महीने का चांद देखना वाजिबे केफाया है। इसमें शाबानरमज़ानशव्वालज़ीकादा और जिल्हिज्जा शामिल है। यानी जिसनेइन महीनों का चांद देखा उसके नाम और आमाल में नेकिया लिखी जायेगी। हिजरी माह 29 या 30 का होता है। इस्लाम में 28 या 31 तारीख का कोई वजूद नहीं है। इसलिए हर साल अंग्रेजी कलैंडर से तकरीबन 10 दिन कम हो जाता है और ईद कभी गर्मी में तो कभी बरसात और सर्दी में पड़ती है।

इन्हें दें चांद दिखने की जानकारी 

मरकज़ी रुइयते हेलाल कमेटी के सदरशहर काज़ी मौलाना गुलाम यासीन साहब: 9453311784

इश्तेमाई रुइयते हेलाल कमेटी के संयोजक मो. अशरफ एडवोकेट 9935638218

मुफ्ती बोर्ड के सेक्रेटरी मौलाना हसीन अहमद हबीबी 9026118428, 9450349400

अल्लाह मुल्क में अमन चैन कायम कर....आमीन


नन्हें रोज़ेदार की है ये कहानी

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। काजीसादुल्लाह पुरा के रहने वाले बुनकर खुर्शीद आलम के 13 साल के साहबज़ादे ओबैदुल्लाह खालिद ने इस रमज़ान महीने का अब तक का पूरा रोज़ा रखकर मिसाल पेश किया है। ओबैदुल्लाह का आज 28 वां रोज़ा है। ओबैदुल्लाह खालिद के लगातार रोजा रखने से पूरे इलाके में उसकी तारीफ हो रही है।

 मां बाप के मना करने पर भी वो रोज़ ज़िद कर के सहरी में उठ जाता है,और नमाज़ की पाबंदी के साथ दुआ में मशगूल हो जाता है। मदरसा दारुल उलूम बागे नूर, बुनकर कालोनी में दर्जा चौथी का यह छात्र अल्लाह से दुआ करता है कि ऐ अल्लाह हम सबको सेहत व तंदुरुस्ती दे और कोरोना महामारी जैसी वबा से पूरे मुल्क के लोगों को बचा और अमन व शांति पैदा कर।

सोमवार, 10 मई 2021

ऐ मौला सब कुछ पहले सा कर दे...आमीन


आपसी सौहार्द व मदद का पैगाम है ईद- नबील हैदर

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। ईद का त्योहार सबको साथ लेकर चलने के लिए जाना जाता है। ईद सौहार्द की मिसाल वक्त वक्त पर पेश करती रही है।

उक्त बातें सैंयद नबील हैदर ने आज अर्दली बाजार में एक जलसे को खिताब करते हुए कही। उन्होंने कहा कि ईद पर हर मुसलमान एक साथ नमाज़ पढ़ते हैं और एक दूसरे को गले लगाते हैं। इस्लाम में जकात एक अहम पहलू है जिसमें हर मुसलमान को कुछ ना कुछ दान करने को कहा गया है। हिजरी कैलेंडर के शव्वाल महीने के पहले दिन इस त्यौहार को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह महीना चांद देखने के साथ शुरु होता है इस तरह रमजान आखरी दिन चांद देखने के बाद अगले दिन ईद मनाई जाती है। नबील ने कहा कि एक समय पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी इसी जीत की खुशी में सबका मुंह मीठा कराया गया था।

इस्लामी कैलेंडर के अनुसार हिजरी सवत 2 यानी 624 ई. में पहली बार ईद उल फितर मनाया गया। नबील ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि पिछले साल और इस वर्ष में भी रमजान ईद कोरोना का भेंट चढ़ गया। उन्होंने रब से दुआ करते हुए कहा कि या रब इस मुसीबत से हम सब को निजात दे और पूर्व की भांति अमन चैन और सुकून की जिंदगी हम सब गुजरे, ऐ मौला सब कुछ पहले सा कर दे...आमीन।

ईद का पैग़ाम-3 (10-05-2021)

नबी-ए-करीम (स.) सादगी से मनाया करते थे ईद

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं होता मगर वो रमज़ान से इसलिए खुश होते हैं कि रमज़ान खत्म होते ही ईद आयेगीऔर ईद आने का मतलब है कि ईदी मिलेगी। ईद का जश्न रमज़ान के 29 या फिर 30 वीं तारीख का चांद देखे जाने के बाद अगली सुबह ईद की नमाज़ के साथ एक शव्वाल को शुरु होता है। यह एक ग्लोबल पर्व है। पूरी दुनिया इस त्योहार के अल्लास में कई दिन तक डूबी रहती है। मगर आपने कभी सोचा है प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद (स.) ईद कैसे मनाते थे। 

 नबी-ए-करीम (स.) ईद सादगी से मनाया करते थे। इसलिए इस्लाम में सादगी से ईद मनाने का हुक्म है। एक वाक्या है, जिससे सभी को बड़ी सीख मिल सकती है। एक बार नबी-ए-करीम हजरत मोहम्मद (स.) ईद के दिन सुबह फज्र की नमाज़ के बाद घर से बाज़ार जा रहे थे। कि आपको एक छोटा बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया। नबी (स.) ने उससे कहा आज तो हर तरफ ईद की खुशी मनायी जा रही है ऐसे में तुम क्यों रो रहे होउसने कहा यही तो वजह है रोने कीसब ईद मना रहे हैं मैं यतीम हूंन मेरे वालिदैन है और न मेरे पास कपड़े और जूते-चप्पल के लिए पैसा। यह सुनकर नबी (स.) ने उसे अपने कंधों पर बैठा लिया और कहा कि तुम्हारे वालिदैन भले नहीं हैं मगर मैं तुम्हे अपना बेटा कहता हूं। नबी-ए-करीम (स.) के कंधे पर बैठकर बच्चा उनके घर गया वहां से तैयार होकर ईदगाह में नमाज़ अदा की। जो बच्चा यतीम था उसे नबी-ए-करीम (स.) ने चन्द मिनटों में ही अपना बेटा बनाकर दुनिया का सबसे अमीर बना दिया। इसलिए ईद आये तो सभी में आप भी खुशियां बांटे। इसे ईद-उल-फित्र इसलिए कहते हैं क्यों कि इसमें फितरे के तौर पर किलों 45 ग्राम गेंहू जो हम खाते हो उसके दाम के हिसाब से घर के तमाम सदस्यों को सदाका-ए-फित्र निकालना होता है। दरअसल ईद उसकी है जिसने रमज़ान भर इबादत कि और कामयाबी से रमज़ान के पूरे रोज़े रखे।

                   हाफिज़ नसीम अहमद बशीरी

        (इमामे जुमा, शाही मसजिद ढ़ाई कंगूरा, ज़ेरेगूलर)

     (फाईल फोटो)

'हमारी फिक्र पर पहरा लगा नहीं सकते, हम इंकलाब है हमको दबा नहीं सकते'

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