अजमेर में खुला जन्नती दरवाजा, संदल तकसीम में उमड़ा हुजूम
Mohd Rizwan
dil india live (Ajmer). अजमेर स्थित सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के 814 वां उर्स 6 रजब को मनाया जाएगा। उर्स की रस्म का आगाज़ रजब के चांद के दीदार संग हो गया। इससे पहले दरगाह शरीफ में शनिवार रात अहम रस्में अदा की गईं थी। खुद्दाम-ए-ख्वाजा कमेटी की ओर से मजार शरीफ पर वर्ष भर चढ़ाया गया संदल उतारकर जायरीन में तकसीम किया गया था।
परंपरा के अनुसार जमादीउल आखिर की 28 वीं तारीख की रात मजार शरीफ की खिदमत के दौरान संदल उतारने की रस्म पूरी की गई। इस दौरान खादिम सैयद कुतुबुद्दीन सखी, उर्स कन्वीनर सैयद हसन हाशमी सहित अन्य खुद्दाम जायरीन में संदल वितरित करते नजर आए। इस दौरान लोगों का हुजूम उमड़ा।
सैयद हसन हाशमी ने इस दौरान बताया कि जन्नती दरवाजा वर्ष में चार बार खोला जाता है, लेकिन उर्स के दौरान इसे सबसे अधिक छह दिनों के लिए खोला जाता है। परंपरा के अनुसार कुल की रस्म के बाद 6 रजब को यह दरवाजा बंद कर दिया जाएगा। जन्नती दरवाजा खुलने के साथ ही दरगाह में जायरीन की आवक बढ़ गई है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मखमली चादर और फूलों की टोकरियां लेकर जियारत के लिए अपनी बारी का इंतजार करते नजर आ रहे हैं। उधर उर्स के मद्देनजर यातायात पुलिस ने आमजन और जायरीन से अपील की है कि वाहन सड़क या सड़क किनारे खड़े न करें। सभी वाहन निर्धारित पार्किंग स्थलों में ही पार्क किए जाएं। मेला अवधि के दौरान दुपहिया वाहनों के उपयोग और उन्हें भी तय पार्किंग में खड़ा करने का आग्रह किया गया है।
पैदल पहुंचे मलंग और कलंदर
अजमेर शरीफ दरगाह के उर्स में पहुंचने के लिए मलंगों और कलंदरों ने सैकड़ों किलोमीटर की कठिन यात्रा पूरी की। इस सफर में कई मलंगों के पैरों में छाले फूट गए, चलना मुश्किल हो गया, लेकिन प्राथमिक उपचार कराकर वे फिर पैदल ही दरगाह की ओर बढ़ते रहे। किसी ने दर्द की परवाह नहीं की, क्योंकि मंज़िल ख्वाजा गरीब नवाज की बारगाह थी। यह यात्रा केवल दूरी तय करने की नहीं, बल्कि सब्र, त्याग और अटूट आस्था की परीक्षा मानी जाती है, जिसे मलंग पूरी शिद्दत से निभाते हैं।
उर्स के दौरान दरगाह परिसर और आसपास ऐसे नज़ारे देखने को मिले, जिन्होंने आम जायरीन को हैरत में डाल दिया। किसी मलंग ने अपने सिर पर कोल्ड ड्रिंक की कांच की बोतल बजाकर ढोल की तरह ताल दी, तो किसी ने नुकीले हथियार से शरीर के आर-पार प्रतीकात्मक साधना की। कुछ मलंगों ने अपनी आंख बाहर निकालने जैसी कठिन फकीरी साधना दिखाई, तो किसी ने नुकीले तारों को शरीर से आर-पार कर आत्मिक समर्पण का भाव प्रकट किया। इसे देखने वाले आश्चर्य और श्रद्धा के भाव से भर उठे।
छड़ी का जुलूस, सूफी परंपरा की पहचान
उर्स के दौरान निकाला गया मलंगों और कलंदरों का छड़ी का जुलूस इस पूरी परंपरा की विशेष पहचान है. छड़ी को फकीरी, अनुशासन और रूहानी ताकत का प्रतीक माना जाता है. जुलूस के दौरान मलंग "दमादम मस्त कलंदर" के नारे लगाते हुए आगे बढ़ते हैं और ख्वाजा गरीब नवाज की बारगाह में छड़ी पेश करते हैं. यह जुलूस यह दर्शाता है कि सूफी परंपरा में हर रंग, हर रास्ता और हर इबादत अंततः प्रेम, इंसानियत और भाईचारे की ओर ही ले जाती है।



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